Tuesday, April 21, 2009

लालू जी! आप एतना गुस्साये काहे हैं?


स्वनामधन्य लालू प्रसाद यादव जी इन दिनों बेहद खफा हैं।बहुतै गुस्साये और फनफनाये हुए हैं। गुस्सा उनके सिर चढ़ कर बोलने लगा है और उन पर इस कदर हावी हो गया है कि वे अपना बुद्धि विवेक भी खो बैठे हैं। न जाने क्या-क्या बके जा रहे हैं। उनकी जबान इस कदर बहकने लगी है कि वे ऐसे शब्द भी बोलने लगे हैं जो लिखे भी नहीं जा सकते। भला हो इलेक्ट्रानिक मीडिया का जो हमारे इन भाग्यविधाताओं और देश नियंताओं का सच 24 घंटा साक्षात पेश करता है। उसके जरिये सबने लालू जी के कटवचन अवश्य सुन लिये होंगे इसलिए हम उन्हें लिख कर अपना ब्लाग क्यों गंदा करें। हां इतना जरूर कहेंगे कि कभी लालू जी के जिस स्वभाव को हम सहज गंवई सहजता और भोलेपन का पर्यायमान कर सराहते थे, उनमें हमें सच्चा जननेता नजर आता था वह स्वभाव अब दंभ से भर गया है। अब उनमें यह भाव आ गया है कि सिर्फ बिहार का ही नहीं देश का भला अगर कोई कर सकता है तो सिर्फ लालू। बहुत अच्छी बात है , आप सक्षम नेता हैं आपने घाटे में चलती भारतीय रेल को दुधारू गाय बना दिया। देश के स्टेशनों को चमका दिया। यात्रियों के लिए तमाम सारी सुविधाएं मुहैया करा दीं। यह रेल मंत्री के रूप में आपका महत् कार्य है जिसके लिए आप साधुवाद के पात्र हैं। यह और बात है कि कुछ लोग कहते हैं कि आपका किया-धरा एक छलावा है आपने इस हाथ से दिया है तो दूसरे हाथ से वापस ले लिया है। खैर यह तो हिसाब-किताब का मामला है जिसमें हम थोड़ा कच्चे हैं लेकिन एक बात तो हमें साफ दिख रही है कि गाड़ियों के समय में आपका नियंत्रण नहीं रहा। शायद ही कोई दूरगामी ट्रेन अपने नियत समय तक गंतव्य तक पहुंचती होगी। तीन-चार घंटा तो लेट होना आम बात है कभी-कभी तो सात-आठ घंटे भी यात्री रास्ते में फंसा रहता है। संभव है कि आप कहें कि यह विरोधियों का आरोप है रेल में हम सब ठीक ठाक कर दिया हूं। लेकिन माफ कीजिए सच्चाई से आंख नहीं चुरायी जा सकती।
आप विदेश तक में मैनेजमेंट गुरु के रूप में ख्यात हो गये। बधाई! आपने तो देश का नाम भी ऊंचा किया लेकिन अब आपकी वाणी को क्या हुआ, उस पर जरा लगाम दीजिए। कभी आप वरुण गांधी पर रोडरोलर चला रहे हैं तो कभी किसी बड़े नेता को अपशब्द बक रहे हैं। उस दिन टीवी में आपको कहते सुना आप सांप्रदायिक शक्तियों की छाती पर चढ़ कर पेशाब करेंगे। सांप्रदायिक शक्तियों से हमें भी घृणा है। हम सर्व धर्म समभाव और बसुधैव कुटुम्ब के पक्षधर हैं और यही हमारे देश का भी आदर्श है । लेकिन खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए गाली-गलौच पर उतरने की क्या जरूरत है? लालू जी क्या आपकी धर्मनिरपेक्ष छवि पर किसी को शक होने लगा है जिसे साबित करने के लिए आपको इतना नीचे उतरना पड़ा, आप अपशब्दों की बैसाखी थाम कर अपने को सबसे बड़ा धर्म निरपेक्ष नेता साबित करना चाहते हैं। धिक्कार आप पर आपकी इस सोच पर। जयप्रकाश नारायण जैसे महान विभूति के आंदोलन से उपजे नेता का यह हस्र? जरा गंभीरता से सोचिए आपको खुद लगेगा कि कहीं आप गलत हैं। क्या यह बौखलाहट, यह चिड़चिड़ापन किसी अज्ञात भय से तो नहीं ? क्या इस बार बिहार की चुनावी वैतरणी पार पाना आपको कठिन लग रहा है? क्या आपका एमवाई फार्मूला भी जवाब दे रहा है? कौन सी हताशा आपको उस यूपीए या कांग्रेस पर दोषारोपण करने और कटाक्ष करने पर मजबूर कर रही है जिस यूपीए ने आपको रेल मंत्री का दर्जा दिया और आप इतने महान हो गये कि आपकी धूम विदेश तक हो गयी। आपने राजनीतिक मजबूरी के चलते रामविलास पासवान (जिनसे कभी आपका छत्तीस का आंकड़ा था) और मुलायम सिंह यादव ( जिनसे भी आपकी नहीं बनती थी) से हाथ मिलाया। बिहार में कांग्रेस को सीटों के मामले में आपने ठेंगा दिखा दिया क्योंकि आपको नये चुनावी साथी जो मिल गये थे। कांग्रेस ने भी झारखंड में आपसे बदला ले लिया और आपकी उम्मीद के विपरीत बिहार में भी सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिये। ऐसे में आपका बौखलाना स्वाभाविक था। उधर कहते हैं कि नीतीश कुमार भी बिहारवालों को भा रहे हैं और इसने आपके दिल में जरूर नश्चर चुभ रहे होंगे। शायद इन सारी स्थितियों ने हमारे प्यारे लालू जी से उनका विनोदी स्वभाव छीन लिया है और उनमें भर दी है तल्खी, खीझ और गुस्सा। इसी से वे अनियंत्रित हो रहे हैं और अपनी चुनावी सभाओं में विनोद और हंसी मजाक के लिए प्रसिद्ध लालू गाली-गलौच पर उतर आये हैं। लालू जी! सच कहूं तो आपका यह नया रूप मुझे जंचा नहीं। हम तो अपने उसी लालू को चाहते हैं जो सच्चा जननेता है, खरी कहता है (खोटी और अशालीन नहीं) , खुश रहता है और अपनी मजाकिया वाणी से सबको खुश रखता है। आप अपने उसी रूप में वापस आइए लालू जी! चुनाव और राजनीतिक चक्कर तो आते-जाते रहते हैं लेकिन इनके फेर में कही हमारे प्यारे लालू प्रसाद खो गये तो बहुत दुखद होगा। हम आपको जेपी के सच्चे उत्तराधिकारी और सच्चे शालीन जननेता के रूप में ही देखना चाहते हैं। चाहता नहीं था कि आप पर तल्ख अंदाज में लिखूं लेकिन लिखना पड़ा। कहीं कुछ अनुचित लगे तो अन्यथा न लीजिएगा यह सोच कर कि आपसे ऐसा क्या हुआ कि हमें ऐसा लिखना पड़ा। अपने आप से सवाल कीजिए कि आपकी पहचान किस रूप में है और आप उस रूप को कैसे बदरंग कर रहे हैं।
राजेश त्रिपाठी (21 अप्रैल 2009)

2 comments:

  1. rajeshji in netaon ko paathh padhane ka koi fayeda nahin magar fir bhi chahte hain ki lalooji apki bat sune shubhkamnayen agar sun liya to hame bhi bata den

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  2. rajesh jee aapne bilkul thik likha hain. mere jaise patrkaron ka bhi manana hai ki lalu prasad ka aasli roop is chunav me kanhi kho gaya hain.chunavi shikast aur my samikaran ke bikharne se lalu paresan hain.unki bhasha janha talkh aur katu ho gai hai wahi juban bhi kante bhari ho gai hai.lalu ka karishmai vyaktitwa lagta hai kanhi kho gaya hai.dambhi lalu ka yah roop kisi ko nahi bha raha hain.
    rakesh praveer
    patna

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