Wednesday, July 22, 2009

सच का सामना या निजता में सेंध!

-राजेश त्रिपाठी
इन दिनों टीवी चैनलों में टीआरपी बढ़ाने के लिए जिस तरह से आपाधापी हो रही है, वह पहले कभी नहीं थी। इसके चलते ये टीवी चैनल इस तरह के फूहड़ और अश्लील कार्यक्रम परोस रहे हैं जिनका न कोई सिर होता है न पैर। बस अगर होता है तो दर्शकों को उत्तेजित या खौफजदा करना ताकि वे आधा घंटा, एक घंटा या चौबीस घंटा उनकी उस बेहूदगी को झेलते और अपना सिर धुनते रहें। कोई भूत-प्रेत का सहारा ले रहा है, तो कोई साक्षात् शंकर जी को ही परदे पर ले आता है जो कहते हैं किसी भक्त के सपने में आये होते हैं। वह भक्त उनका वीडियो भी बना लेता है। यानी चैनल की इस कपोल कल्पना पर यकीन करें तो कलियुग में कितने सुलभ और सस्ते हो गये हैं भगवान। हर चैनल कोई भी खबर देते समय यह दावा करता है कि यह खबर सिर्फ और सिर्फ वह ब्रेक कर रहा है। कुछ इस तरह के जुमले उछाले जाते हैं- `यह खबर आप सिर्फ और सिर्फ इसी चैनल पर देख रहे हैं। ' `यह हमारी एक्सक्लुसिव खबर है।' यकीन मानिए चैनल घुमा कर देखिए वह खबर दूसरे कई चैनलों
में भी दिखेगी और वह भी यही कह रहे होंगे कि खबर हमने ब्रेक की, आप हमारे ही चैनल पर इसे पहली बार खास तौर पर देख रहे हैं। अब आप किस पर यकीन करेंगे कि किस चैनल का दावा सही है।
आजकल तो टीआरपी बढ़ाने के नाम पर ये चैनल अनाप-शनाप और आपत्तिकर कार्यक्रम तक पेश करने लगे हैं। कहीं किसी की बहादुरी दिखाने के लिए उन्हें कुत्तों से नुचवा रहे हैं तो कहीं किसी की तिलचट्टों या सांपों से चटवा रहे हैं। यह कैसी बहादुरी! अभी हाल ही एक चैनल लोगों को सच का सामना करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। लालच यह दिया जा रहा कि अगर कोई महिला या पुरुष सच-सच साफ-साफ खुलेआम बयान कर सके तो एक करोड़ रुपये उसके हो जायेंगे। यह कार्यक्रम कुछ ऐसा है कि प्रतियोगी से सारे प्रश्न पहले अलग से पूछ लिये जाते हैं। ऐसा करते वक्त पोलीग्राफी टेस्ट के जरिये उसका झूठ पकड़ा जाता है। कई बार उसके दिमाग में कुछ और चल रहा होता है और वह उसे खुलेआम कहने का साहस नहीं करता और झूठ बोल जाता है, लेकिन उसे पता नहीं होता कि पोलीग्राफी मशीन उसका झूठ पकड़ चुकी है। इस कार्यक्रम को एक बार यह सोच कर देखना चाहा कि देखें कोई नया सोच लेकर आये होंगे चैनल वाले लेकिन जो कुछ देखा उससे तो यही लगा कि यह
और कुछ नहीं किसी की निजता में सेंध मारने की अनधिकृत चेष्ठा है। किसी की निजता उसके अपने नितांत निजी व्यक्तित्व के साथ शाब्दिक बलात्कार और उसके जीवन में विष घोलने की चेष्टा है। देखा एक महिला हाट सीट पर है और प्रोग्राम का एंकर उससे सवाल पर सवाल दागे जा रहा है। सवाल- क्या आपकी मां आपको कम प्यार करती है? क्या वे आपके बेटों से ज्यादा अपने बेटे के बेटों को प्यार करती हैं। यहां तक तो ठीक। वैसे इसमें भी उस महिला ने जो जवाब दिये वह अपनी मां के खिलाफ दिखे और वहां मौजूद उसकी मां के चेहरे में गुस्सा और ग्लानि साफ पढ़ी जा सकती थी। उसके बाद का सवाल किसी भी भारतीय नारी के लिए बहुत ही मुश्किल सवाल हो सकता है और उसका जवाब देने में उसे पसीने आ सकते हैं। मैं भारतीय नारी इसलिए कह रहा हूं क्योंकि यहां परिवार अब भी जिंदा हैं। पति-पत्नी के बीच का सामंजस्य भले ही क्षीज रहा हो पर मरा नहीं है। उसे प्रोत्साहित करने की कोशिश हो तो बेहतर, खत्म करने या मारने की चेष्ठा उचित नहीं। फिर से सच का सामना के
मंच पर आते हैं। एंकर भद्र महिला से जिसका पति, मां और दूसरे संबंधी उसकी आंखं के सामने बैठे हैं पूछता है-`क्या आपने कभी अपने पति को कत्ल करने की बात सोची है।'इस प्रश्न से उस महिला के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगती है। उसका कलेजा मुंह को आने को होता है। वह एक बार पति की ओर देखती है, खुद को संभालती है और कहती है-हां। एंकर मशीन से पूछता है, मशीन का जवाब होता है -हां। कैमरे पति पर पैन होता है जिसकी आंखों में गुस्से के अंगारे होते हैं जैसे सोच रहा हो -घर चल बताता हूं कौन किसका कत्ल करता है।
मेरा सवाल है यह कैसा सच है जिसका सामना टीवी चैनल कराना चाहता है। महिला के सामने तो करोड़ रुपये के नोटों की हरियाली है जिसने उसके सारे संबंधों को गौण कर दिया है। पैसा जीतना है चाहे इसके लिए कुछ भी कहना पड़े। इसके बाद का सवाल तो टुच्चई और बेहूदगी की पराकाष्ठा था। एंकर पूछता है-`क्या कभी आपने अपने पति के अलावा और किसी मर्द के साथ सोने की इच्छा की है?' सच कहूं इस सवाल का जवाब मैं देखने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। क्या करें कुछ ऐसे संस्कार हैं कि बुरा देखा सुना नहीं जाता। कुछ लोग कह सकते हैं कि इसमें बुरा क्या है, समाज खुल रहा, सब कुछ खुलना चाहिए। उनकी अवधारणा उन्हें मुबारक, वे अपनी तरह जीने को आजाद हैं लेकिन यह भारत उन तक ही सीमित नहीं है। कोई कार्यक्रम तैयार करते वक्त व्यापक जनसमूह का ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि कहीं ऐसा न हो कि यह टीवी वाकई बुद्धू बक्सा ही बन कर रह जाये। सच का सामना के नाम पर किसी की निजता में सेंध मारना नितांत असंगत और निरर्थक है।
अगर किसी से सच कहलाना है तो उसके सामने से एक करोड़ का लालच हटा लीजिए फिर देखें वह अपना अंतर और अपने मन के भेद कितना खोलता है। दरअसल यहां रुपये का लालच प्रमुख है। बाद में पता चला कि इस कार्यक्रम के एंकर को किसी चैनल ने अपने यहां बुला कर पूछा कि क्या खुद वे ऐसे सवालों का सामना करना चाहेंगे। बंदे ने साफ इनकार कर दिया कि ऐसा करना उसके कैरियर के लिए अच्छा नहीं होगा। यानी आप अपना सच खोलने की हिम्मत नहीं रखते और दूसरों की इज्जत सरेआम उछाल रहे हैं। कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि टीवी वही दिखाता है, जो दर्शक या समाज देखना
चाहता है। अगर हमारे समाज की रुचि इतनी ओछी हो गयी है तो इसे संभालिए अन्यथा पता नहीं और क्या-क्या देखना और झेलना पड़े। माना कि ऐसे कार्यक्रमों से टीआरपी बढ़ती होगी लेकिन इससे दर्शकों का एक बड़ा हिस्सा ऐसे चैनलों से कट भी सकता है। माना कि हमारी नयी पीढ़ी पश्चिमी रंग-ढंग में रंग गयी है उसके लिए आज सेक्स टैबू नहीं है लेकिन भारत का समाज इतना भी नहीं खुला कि वह पश्चिमी देशों की तरह उन्मुक्त और उन्मत्त हो जाये। इसलिए चैनल के भाइयों और बहनों मैं तो यही कहंगा कि खुला खेल फरुर्खावादी मत दिखाइए-रहने दे अभी थोड़ा सा भरम। सच का सामना ही दिखाना है तो यह दिखाइए किसी ने किसी विकट परिस्थिति का मुकाबला कैसे किया या किसी ने किसी की जान कैसे बचायी। सच बोल कर किसी ने किसी मामले में बेगुनाह को कैसे बचाया। वह सच समाज के लिए कल्याणकारी होगा और वैसा पुनीत कार्य करने को औरों को प्रोत्साहित करेगा। जो फूहड़ कार्यक्रम आप दिखा रहे हैं वे तो किसी की निजता में सेंध लगायेंगे। संभव है वह करोड़पति बन जाये पर अपनी पारिवारिक जिंदगी तबाह कर बैठेगा। आपकी घर-घर के ड्राइंगरूम में पैठ है, आप हर भारतीय परिवार का हिस्सा बन गये हैं ऐसे में आपकी जिम्मेदारी भी बढ़ जाती है। वही दिखाइए जो सबजन हिताय, सब जन सुखाय हो। माना कि आपकी व्यावसायिका मजबूरी है लेकिन इसके चलते आप किसी समाज को दूषित करने के दोषी तो मत बनिए।

3 comments:

  1. "अगर हमारे समाज की रुचि इतनी ओछी हो गयी है तो इसे संभालिए अन्यथा पता नहीं और क्या-क्या देखना और झेलना पड़े।...."

    घंटी बांधेगा कौन ? हमाम में सारे नंगे है ! अगर ये चैनल वाले इतने ही महान विचारों वाले थे तो सच का सामना में हमारे देश के इन बड़े-बड़े राजनीतिक धुरंदरों को बुलाकर पूछते कि कुल कित गमन/घोटाले अब तक किये, लेकिन इन्हें तो मिंया-बीबी के विस्तार पर सेंध लगाने में ज्यादा रूचि है ! हमारे मानवाधिकार संस्थावो को आतंकवादियों को बचाने में ज्यादा रूचि है !

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  2. इस फूहड़ कार्यक्रम में तो मुझे सच नहीं दिखा लेकिन आपने जरूर सच लिखा है..!ये आपकी नहीं लगभग सभी देशवासियों की प्रतिक्रिया है ,लेकिन बस सब देखे जा रहे है!विदेशी शो की भद्दी नक़ल दरअसल हमारे देश को नहीं चाहिए लेकिन थोपी जा रही है..!ऐसा ही फूहड़ राखी का स्वयंवर है जिसमे जो दिखया जा रहा है वो हर भारतीय को शर्मिंदा करने के लिए काफी है...

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  3. आप ने अपनी सोच परोसी... अच्छी बात है... बाकी सभी चीज़ों पर मैं आपका समर्थन करता हूं... लेकिन "सच का सामना" के बारे में आपने जो लिखा है... उस पर एक बार आप ज़रूर सोचिएगा... आपको पता होना चाहिए कि इस कार्यक्रम में प्रतिभागी से जो भी सवाल पूछे जाते हैं वो पहले से उन्हे पता होते हैं... सच और झूठ का फैसला पॉलीग्राफ मशीन करती है... और एक व्यक्ति ये जानते हुए कि उससे इतने निजी और कठिन सवाल पूछे जाएंगे, वो सच की कुर्सी पर बैठता है... तो उसकी हिम्मत की दाद देनी चाहिए... साथ ही में एक बात और अगर आप ये सीरियल देख रहे हों तो आप ख़ुद को टटोलना शुरू कर देते हैं कि वो कौन सा सच है जो मैं लोगों के सामने नहीं रख सकता... या वो कौन सा झूठ है जो आप लोगों के सामने रखने से डरते हैं... और एक बात मेरे भीतर तो ऐसे लोगों को देखकर इतनी हिम्मत तो आती है कि आगे से मैं सच बोलने की कोशिश करूंगा... क्या आपको ऐसा नहीं लगता...

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