Wednesday, September 23, 2009

मां

-राजेश त्रिपाठी

ममता की छांव सी
बेघर के ठांव सी
जाड़े में धूप सी
यानी अनूप सी
मां
गंगा की धार सी
बाढ़ में कगार सी
ठंड़ी बयार सी
नफरत में प्यास सी
मां
धूप में साया सी
मोहमयी माया सी
गहराई में सागर सी
प्यार भरी गागर सी
मां
दुर्दिन अपार में
निर्दयी संसार में
कष्टों की मार में
दया और दुलार सी
मां
बच्चों की जान सी
दीन और ईमान सी
घर के कल्याण सी
धरती में भगवान सी
मां

2 comments:

  1. धरती में भगवान् सी
    मां?

    गलत! भगवान् से भी बड़कर

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  2. मां
    गंगा की धार सी
    बाढ़ में कगार सी
    ठंड़ी बयार सी
    नफरत में प्यास सी

    Rajesh jee,
    ma ke uupar bahut sundar kavita likhee hai apane---jitanii tareef kee jay kam hai.
    HemantKumar

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