Wednesday, September 30, 2009

अश्कों के फूल चुन के संवारी है जिंदगी

-राजेश त्रिपाठी

पूछो न किस तरह से गुजारी है जिंदगी।
अश्कों के फूल चुन के संवारी है जिंदगी।।
आंखें खुलीं तो सामने अंधियारा था घना।
असमानता अभाव का माहौल था तना।।
मतलब भरे जहान में असहाय हो गये।
दुख दर्द मुश्किलों का पर्याय हो गये।।
दुनिया के दांव पेच से हारी है जिंदगी। (अश्कों के फूल ...)
आहत हुईं भलाइयां, सतता हुई दफन।
युग आ गया फरेब का, क्या करें जतन।।
ऐसे बुरे हालात की मारी है जिंदगी (अश्कों के फूल ...)
चेहरे पे जहां चेहरा लगाये है आदमी।
ईमानो-वफा बेच कर खाये है आदमी।।
हर सिम्त नफरतों के खंजर तने जहां।
कैसे वजूद अपना बचायेगा आदमी।।
जीवन की धूपछांव से हारी है जिंदगी (अश्कों के फूल..)
सियासत की चालों का देखो असर।
आग हिंसा की फैली शहर दर शहर।।
आदमी आदमी का दुश्मन बना है।
हर तरफ नफरतों का अंधेरा घना है।।
इन मुश्किलों के बीच हमारी है जिंदगी (अश्कों के फूल..)

यह गीत सुनने के लिए कृपया नीचे की तस्वीर पर क्लिक कीजिए
YOUTUBE.COM
गीत -Video Upload powered by https://www.TunesToTube.com








2 comments:

  1. न किस तरह से गुजारी है जिंदगी।
    अश्कों के फूल चुन के संवारी है जिंदगी।।

    बहुत सुन्दर उम्दा राजेश जी बधाई.

    ReplyDelete
  2. आहत हुईं भलाइयां, सतता हुई दफन।
    युग आ गया फरेब का, क्या करें जतन।।
    ऐसे बुरे हालात की मारी है जिंदगी (अश्कों के फूल ...)
    चेहरे पे जहां चेहरा लगाये है आदमी।
    ईमानो-वफा बेच कर खाये है आदमी।।
    हर सिम्त नफरतों के खंजर तने जहां।
    कैसे वजूद अपना बचायेगा आदमी।।
    जीवन की धूपछांव से हारी है जिंदगी (अश्को
    त्रिपाठी जी बहुत लाजवाब रचना है बधाई

    ReplyDelete