Wednesday, August 24, 2011

अन्ना अनशन तोड़िए, इन मोटी चमड़ीवालों को संसद में घेरिए

 अन्ना आपसे करबद्ध प्रार्थना है अपने देश के इस अदने से इनसान के कहने पर भगवान के लिए अनशन तोड़ दीजिए। आपके जज्बे को प्रणाम, उस अक्षय ऊर्जा को प्रणाम जो नौ दिन बाद भी आपको जवां मर्दों की तरह दहाड़ने की कूबत दे रही है। आपकी जिंदगी हम सब देशवासियों के लिए बहुत जरूरी है। आपको इससे भी बड़ी लड़ाई लड़नी है। जिन मोटी चमड़ीवालों से आप अपने जन लोकपाल के लिए समर्थन की उम्मीद किये बैठे हैं वे न पसीजे हैं और न कभी भी पसीजेंगे। आप जब अन्न त्याग कर देश के भ्रष्टाचार से मुक्त करने का अनथक तप करे हैं, उस वक्त वे सर्वदलीय बैठक के नाम पर बिस्कुट चाभ रहे थे, चाय की चुस्कियां लेते हुए मुसका रहे थे। उन्होंने आपके जन लोकपाल पर सहमति बनाने की जो कवायद या नौटंकी की उसका वही परिणाम हुआ जो होना था। उनकी इस पर सहमति नहीं बनी। जानते हैं अन्ना आप जिन लोगों के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं उन्हीं से उसका उपचार मांग रहे हैं। जहां तंत्र में ही भ्रष्टाचार घुला हो, जिस देश में भ्रष्टाचारे एक सहजात प्रक्रिया या अंग बन गया हो, वहां अगर कोई आपके साथ खड़ा है तो वह जनता जो इस भ्रष्टाचार से पीड़ित है वे नहीं जो इसके पोषक या संरक्षक हैं। जानते हैं आज भी कई लोग ऐसे हैं जो आपके इस पुनीत तप को विद्रूप दृष्टि से देखते हैं और उसका समर्थन करने वालों पर न सिर्फ खीझते या चीखते हैं बल्कि उन्हें ही कठघरे में खड़ा करने की ताक में रहते हैं। देशवासियों के सामने अब ऐसा संधिकाल आ खड़ा हुआ है जब उन्हें तय करना है कि देश के लिए कौन हितकारी है और कौन देश को लूटने-खसोटने को ही गणतंत्र मान बैठा है। अब उनके लिए फैसले की घड़ी है। जो सच के साथ नहीं, उसे देश को खारिज करना ही होगा। मत पार्थक्य हो सकता है, अन्ना के जन लोकपाल पर बहस हो सकती है लेकिन उसे पूरी तरह से खारिज करना, अन्ना की ईमानदारी पर शक करना परले दरजे की नामसमझी और सच के आंख चुराने की तरह है। अन्ना की आलोचना में कई तथाकथित छद्म प्रगतिवादी आ गये हैं। इन लोगों में वे भी हैं जिनके बयान पहले भी विवाद की लहर पैदा करते रहे हैं। महेश भट्ट को हम सुलझा हुआ इनसान मानते थे, उन्होंने कुछ अच्छी फिल्में दीं लेकिन आज वे भी अन्ना के खिलाफ बोल कर सवालों से घिर गये हैं और कहें तो देश की जनता के सबसे बड़े अंश की आंखों से गिर गये हैं। एक भद्र महिला हैं, तमाम इकराम पा चुकी हैं इसीलिए शायद अपना दिमागी संतुलन खो बैठी हैं। कभी इन्होंने अतिवादियों को सशस्त्र गांधीवादी की संज्ञा दी थी आज उन्हें अन्ना से परेशानी है क्योंकि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं। अब यह देशवासी तय करें कि यह महिला किस पंक्ति में और किसके साथ खड़ी है। देश की जनता को इन लोगों को यह बता और समझा देना चाहिए कि हर समय धारा के विपरीत तैरना ही प्रगतिशीलता और बुद्धिजीवी होने का परिचायक नहीं होता। कभी-कभी हकीकत की कद्र भी करनी चाहिए, हां उसमें एक खतरा है कि खबरों की सुर्खियां नहीं मिलेंगी जो अक्सर ऐसे लोग चाहते हैं।
      अन्ना से एक विनम्र अनुरोध। अगर हमारे नेता और सांसद संसदीय प्रणाली के जरिये ही किसी बात को सुनना और उस पर गौर करना चाहते या जानते हैं तो यही सही। अन्ना आपके साथ आज पूरा भारत खड़ा है। अनशन तोड़िए, देश का मानस और उसकी आत्मा पूरी तरह से आपसे जुड़ गयी है। पूरा देश अन्नामय हो गया है। लोग बेहोश हो रहे हैं, इलाज करा कर फिर आपके साथ आंदोलन में शामिल हो जाते हैं। ऐसा लगाव, किसी आंदोलन से जी-जान से जुड़ाव हमने तो अपने याद में नहीं देखा। यह आपकी संपत्ति है, यही आपके तप का हासिल है कि देश आपके साथ है और आपको सेनापति बना कर भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी जंग को एक सकारात्मक परिणाम तक पहुंचाना  चाहता है। रामलीला मैदान ने एक राह खोली है इसे मंजिल तक पहुंचाने के लिए आप अनशन तोड़िए। और दिल्ली के इस पुनीत मैदान से जो कई ऐतिहासिक जनसभाओं का साक्षी रहा है, जिनमें कई ने नया इतिहास रचा है, यह संकल्प लीजिए कि आप इस लड़ाई को संसद तक ले जायेंगे। आप अपनी पार्टी जन क्रांति दल बनाइए। अपने लोगों को चुनाव लगाइए। जानते हैं किसी दल या व्यक्ति के साथ आपका नाम ही काफी है। आपको लाखों-करोड़ों रुपयों की दरकार नहीं होगी। अन्ना के नाम पर सारा देश उनके लोगों को वोट डालेंगे। आप बहुमत से संसद में पहुंचेगे और तब आपके जन लोकपाल की राह रोकने वाला होई नहीं होगा। आप अपना सपना साकार कर सकेंगे।
      आपके साथ जुड़ें सुधी लोगों और आपसे प्रार्थना है कि रामलीला मैदान से जो कुछ भी हासिल हुआ है, यहां जो मशाल जलायी गयी है, आजादी की दसरी लड़ाई का जो संकल्प लिया गया है उसे अब निरंतर आनेवाले चुनावों तक गतिशील रखना होगा। अन्ना स्वस्थ होकर देश के कोने-कोने में जाकर जनसभाएं करें और जनता को कहें कि हम अपनी लड़ाई जनतांत्रिक ढंग से नहीं जीत सके हमे संसद का सहारा चाहिए। हमारे लोगों को ज्यादा से ज्यादा जिता कर संसद में भेजिए ताकि हम आपकी आकांक्षाओं को पूरा कर सकें। अन्ना आप मुगालते में न रहें बहुत सी शक्तियां ऐसी हैं जो आपकी जान संकट में डालना चाहती हैं। वे जानती हैं कि एक अन्ना गया तो दूसरा तो पैदा नहीं हो सकेगा ऐसे में भ्रष्ट तंत्र फूलता-फलता रहेगा। उन्हें नहीं पता कि अन्ना अमोघ शक्ति लेकर पैदा हुए हैं और कई बार मौत को धोखा दे सकें हैं लेकिन इस बार उनकी उम्र ज्यादा हो गयी है इसलिए दिक्कत आ रही है। सरकार उनसे सियासती दांवपेंच खेल रही है, एक दिन पहले उनकी तीन बातें छोड़ सारी मान लीं बुधवार 24 अगस्त को सर्वदलीय बैठक में जनलोकपाल पर पूरी तरह सहमति बन ही नहीं पायी यानी चीजें वापस उसी जगह पहुंच गयीं जहां से शुरू हुई थी। सीधी सी बात है अन्ना की बात मानने को कोई तैयार नहीं है। सब अन्ना के नाम का सहारा लेकर अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे देश के एक ईमानदार बुजुर्ग व्यक्ति को जो आम आदमी की लड़ाई लड़ रहा है, मरने के लिए छोड़ दिया है। अन्ना आप अपनी लड़ाई लोगों तक ले जाइए। आप रामलीला मैदान से ही यह एलान कीजिए कि भ्रष्ट राजनीतिक तंत्र से अब आप राजनीति के मैदान में ही निपटेंगे। आप राजनीतिक दल बनाइए, उसके जरिए स्वच्छ चरित्र के लोगों को चुनाव लड़वाइए और देश की विधानसभाओं और संसद में अपनी पैठ बनाइए। तब आपको जन लोकपाल या ऐसे ही जनहितैषी कानूनों को पारित कराने के लिए इन स्वार्थी राजनेताओं या सांसदों के सामने घिघियाना नहीं पड़ेगा। जो आपका इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ सत्ता पक्ष को परास्त कर खुद गद्दी हड़पने की गरज से कर रहे हैं। अगर ये दल आपके आंदोलन और मुहिम से तनिक भी श्रद्धा या सरोकार रखते होते तो ये देश में अपनी तरफ से भी भ्रष्टाचार के विरोध में और आपके समर्थन में आंदोलन चला रहे होते। ये तो संसद में खुद ही कह रहे हैं कि इनको आपका जन लोकपाल हूबहू पसंद नहीं है। फिर ये किस तरह से भ्रष्टाचार को मिटाने और उससे लड़ने का दावा कर रहे हैं। यह क्या मजाक है कि कहा जा रहा है जिसे भी कुछ कहना या करवाना है वह संसद में चुनाव लड़ कर आये। अगर ऐसा है तो हम अपने जनप्रतिनिधियों को संसद में क्यों भेजते हैं। क्या उन्हें हमारी आकांक्षाओं को समर्थन और सपनों को शब्द नहीं देना चाहिए। क्या यह उनका कर्तव्य और दायित्व नहीं। अन्ना अगर वे यही भाषा समझते हैं तो उन्हें उसी भाषा में जवाब दीजिए। आपने देखा आपकी बात मानने का दिलासा देकर किस तरह से शासक दल ने आपको धोखा दिया। ताज्जुब नहीं कि आपको जबरन उठा कर आपका अनशन तुड़वा दिया जाये।
      अब वक्त आ गया है कि आप चुनाव के मैदान में आइए और उन सांसदों को जो आपके जन लोकपाल विधेयक को पास नहीं होने देते, उनकी ही भाषा में माकूल जवाब दीजिए। आपका दल चुनाव लड़ेगा तो उसे पैसे की जरूरत नहीं होगी। वह भारत के आम आदमी की आकांक्षाओं का दल होगा जिसे वह सर आंखों पर बैठा कर संसद में प्रतिष्ठित कर देगा। बस आपको जन लोकपाल आंदोलन से उठी लहर को ठंढा नहीं होने देना। आप इस गति को बनाये रहिए और संसदीय चुनाव आने तक बरकरार रखिए। देश का कोना-कोना छान मारिए और जनसभाओं व कम्युनिटी साइट्स के जरिए अपना प्रचार रामलीला मैदान छोड़ने के साथ ही शुरू कर दीजिए और अपना मुकाम पाने तक जारी रखिए। बल्कि इसे एक सतत प्रक्रिया बनाइए ताकि देश के दूसरी क्रांति के तरफ बढ़े कदम थमे नहीं और आपके दल को संसद तक पहुंचा कर ही दम लें। आप जिन लोगों से मदद की उम्मीद लिए बैठे हैं वे पहले ही आपको हूट करने और दिल्ली से भगाने की ताक में रहे हैं। इन आपको भगोड़ा कहने में भी शर्म नहीं आयी हालांकि सेना ने जब आपकी सम्मानपूर्वक सेवानिवृत्ति और पदक पाने का उल्लेख किया तो इन्हें शर्म से मुंह छिपाते भी नहीं बन रहा था।  अन्ना ये समझ रहे थे कि जैसे एक बाबा को डरा कर भगाने में कामयाब रहे उसी तरह अन्ना को भी खदेड़ देंगे। इन्हें क्या पता अन्ना दूसरी ही धातु के बने हैं और अदम्य व अटल हैं। आपका यह साहस और सत्यपथ पर संघर्षरत रहने का भाव हमेशा कायम रहे। आप शतायु हों ताकि देश आपके नेतृत्व में भविष्य में भी ऐसे धर्मयुद्ध लड़ता और जीतता रहे। आप समझ रहे होंगे अन्ना केंद्र का सत्ताधारी दल आपके आंदोलन को प्रतिष्ठा की लड़ाई बना चुका है , वह किसी भी तरह से हारना नहीं चाहता चाहे उसे कितने भी निचले स्तर तक उतरना पड़े। रहा सवाल विपक्ष का तो उनकी नजर भी राजनीतिक लाभ या स्वार्थ के गिर्द ही घूमती रहती है। आप अब किस पर भरोसा करेंगे। आपको इन चंद राजनेताओं या सांसदों की दया की क्या जरूरत। आपके साथ पूरा भारत, उसकी आत्मा है। उसे अपना ब्रह्मास्त्र बनाइए और चुनावी समर जीत कर अपनी सरकार बनाइए और देश को दिखा दीजिए कि गणतंत्र के सही मायने और सही रास्ता कौन-सा है। अन्ना उठिए. आगे बढ़िए, देश आपकी सेहत को लेकर बहुत चिंतित है। आपके इन योद्धाओं में निराश घर करे, इनका धैर्य टूटे और इनके अहिंसा के भाव से ’ हटे इससे पहले इनमें नयी आश जगाइए और इन्हें संसदीय प्रणाली के जरिए सत्ता के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचाइए ताकि आपका मकसद पूरा हो सके। एक बात और, लोकतंत्र के इस पावन यज्ञ में जो शामिल नहीं हुए या इसके खिलाफ खड़े हैं, आनेवाला कल उन्हें माफ नहीं करेगा।
      समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
      जो तटस्थ है, समय लिखेगा, उनका भी इतिहास।।

       

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