Tuesday, January 8, 2013

फिर आसाराम ने किया अनर्गल प्रलाप, बलात्कार पीड़ित का किया अपमान



-राजेश त्रिपाठी
संतों के प्रति लोगों की यही धारणा रही है कि वे समाज को सही दिशा देते हैं, लोगों को सत्य, अहिसां और धर्म के पथ पर चलने के प्रेरित करते हैं  लेकिन संत (?) आसाराम बापू के हालिया बयान ने ऐसे तथाकथित संतों के स्वभाव और बरताव को ही कठघड़े मे ला खड़ा किया है।  आसाराम बापू ने दिल्ली की गैंगरेप पीड़ित लड़की के बारे में जो अनर्गल प्रलाप किया है वह एक दिमागी तौर पर दिवालिया, पागल व्यक्ति के प्रलाप से अधिक और कुछ नहीं लगता।  शास्त्रो में लिखा है कि वाणी पर नियंत्रण रखना जरूरी है क्योंकि जिह्वा से निकली वाणी और धनुष से छोड़ा गया तीर वापस नहीं लौटते। यानी जो भी बोलो, पहले उसे तर्क और बुद्धि के तराजू पर तौलो कि इसका लोगों पर क्या असर होगा फिर बोलो।  आसाराम बापू का क्या कहें यह तो विवादग्रस्त रहे ही हैं । इन्होंने कई बार  ऐसे बयान दिये हैं कि सुनने वाला शर्मसार हो जाये लेकिन शर्म इसको मगर नहीं आती। अगर इन्होंने अतीत में इनकी जम कर हुई आलोचनाओं, निदा से सबक लिया तो यह एक संवेदनशील मुद्दे पर ऐसा संवेदनहीन और बेतुका बयान नहीं देते। समय गवाह है कि आसाराम बापू ने पहले भी ऐसे विवादास्पद, अशालीन और घिनौने बयान दिये हैं । (मिसाल के लिए यहां दिये लिंक में क्लिक कर देखिए मेरा एक पुराना पोस्ट http://rajeshtripathi4u.blogspot.in/2009/03/blog-post_16.html).। इस बार तो इस संत ने हद कर डाली । दिल्ली के जिस गैंररेप की घटना ने पूरे विश्व को दहला दिया है, आंदोलित कर दिया है उस पर भी ये सतही बयान देने से बाज नहीं  आये।  बयान भी ऐसा जो किसी बीमार मानसिकता और रूढ़िवादी सोच का परिचायक है। अभी जब लोग इस संवेदनशील मुद्दे पर संभल कर और सोच कर बयान दे रहे हैं. ऐसे में उनका यह बयान न सिर्फ उनके बौद्धिक दिवालियेपन का परिचायक है अपितु एक संत के रूप में उनकी भूमिका पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। संत तो समाज को पथ प्रदर्शक माने जाते हैं लेकिन आसाराम अपने इस बयान से समाज को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं। यत्र नार्यास्तु पूज्यंते की अवधारणा देने वाले देश की महिलाओं को बाजारू औरत कहते उनकी जीभ जड़ क्यों नहीं हो जाती। 
आगे बढ़ने से पहले उनके अनर्गल बयान पर एक नजर डालते हैं। दिल्ली गैंगरेप की घटना पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने यह कह कर कि -ताली एक हाथ से नहीं बजती।  वे कहना चाहते हैं कि पीड़ित लड़की भी इस घटना के लिए जिम्मेदार है। यह तो सरासर उस लड़की  का अपमान है जो अब इस दुनिया में नहीं है। इस बयान का माकूल जवाब उन्हें मिल गया है। पूरे देश भर में उनकी थू-थू हो रही है। महिला संगठन उनके पुतले जला रहे है्।  आसाराम जैसे व्यक्ति को जिनके लाखों अनुनायी हैं उन्हें इत तरह की सस्ती पब्लिसिटी की क्या जरूरत थी। आसाराम ऐसे संत है जिनके कुछ ऐसे अंधभक्त भी हैं जो उनके असत आचरण को भी महान और इनको भगवान मानते हैं। आसाराम के अनर्गल आशालीन प्रलाप पर की गयी मेरी टिप्पणी पर नाराज उनके अंधभक्त ने विषवमन किया था। मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि उनको सदबुद्धि और अच्छा-बुरा सोचने समझने की शक्ति दें। वापस आसाराम बापू की अमृतवाणी (?) पर आते हैं। आसाराम ने कहा है-ताली एक हाथ से नहीं बजती । गैंगरेप के लिए लड़की भी दोषी है। लड़की ने सरस्वती मंत्र पढ़ा होता तो अपने मित्र के साथ पहले तो रात को फिल्म नहीं देखने जाती और बस में नहीं चढ़ती। वह चाहती तो आरोपियों को भाई कह कर, उनके हाथ-पैर जोड़ कर बच जाती। वह उनमें से किसी का हाथ पकड़ कर कहती तुम तो मेरे धर्म भाई हो, दूसरे से कहती भइया मैं तो अबला हूं । उनका तर्क है कि ऐसा करने से लड़की बच सकती थी। जिन नराधमों उस असहाय लड़की पर इतने जुल्म किये कि उसकी जान तक ले ली क्या वे हाथ जोड़ने से पसीजते? आसाराम बापू ऐसी गारंटी दे सकते हैं। उनका यह बयान आतर्किक, अप्रासंगिक और अनुचित है यही वजह है कि पूरे देश से यह मांग उठ रही है कि वे अपने शब्द वापस लें। हम तो यह कहेंगे कि एक मृतात्मा (जिसे सारा विश्व श्रद्धांजलि दे रहा है, उसकी स्मृति में जलायी गयी मोमबत्तियां लोगों के दिलों में एक अदम्य जज्बे की मशाल बन जलने लगी है, जज्बा स्त्री को उसका सम्मान और सुरक्षा दिलाने का, जज्बा अभियुक्तों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने का) का संत ने अपमान किया है और इसके लिए उन्हें अपने बयान के लिए पीड़ित लड़की के परिवार और राष्ट्र से क्षमा मांगनी चाहिए। अपराध तो उन्होंने किया है। उनका बयान उनकी क्षुद्र मानसिकता, विकृत सोच और नारी के प्रति दुर्भावाना का परिचायक है। ऐसे बयान से कौसी बौद्धिकता का परिचय देना चाहते हैं आसाराम। देश में और भी संत हैं उन्होंने इस संवेदशील मुद्दे पर चुप रहना ही बेहतर समझा। आसाराम के सामने ऐसे क्या बाध्यता थी कि वे आपे से बाहर हो गये, बावले हो गये और ऐसा प्रलाप कर बैठे जो उनको भारी पड़ेगा। 
संतों का ऐसा तो आचरण नहीं होता। वे बोलते हैं तो उनकी वाणी से अमृत टपकता है। यह कैसा संत है जो बलात्कार के खिलाफ कड़े कानून का भी विरोधी है। आसाराम का कहना है कि-बलात्कार के लिए कड़ा कानून बना तो इसका दुरुपयोग होगा। कोई भी बाजारू औरत इसका इस्तेमाल किसी के खिलाफ कर सकती है। धन्य है प्रभु आपकी प्रज्ञा और आपका यह प्रलाप। जहां तक कानून के दुरुपयोग का सवाल है तो क्या इसके लिए कोई सशक्त कानून ही न बनाये जाये। ऐ धर्म के ठेकेदार आपको किसी भी स्त्री को बाजारू कहने का हक किसने दे दिया। मत भूलिए आपके प्रवचन में माताएं, बहनें भी आती हैं। आप मातृशक्ति को ही गाली दे बैठे। आसाराम जी आप अरसे से तमाम तरह के विवदों से घिरे हैं, यह नयी मुसीबत क्यों मोल ले बैठे। उस पीड़ित बेटी के प्रति सहानुभूति नहीं रखते तो दुर्भावना तो नहीं रखते। उसने आपका क्या बिगाड़ा था जो उसे ङी कसूरवार बना बैठे। आज नहीं तो कर आपको अपने अनर्गल शब्दों को वापस लेना होगा और देश को बताना होगा कि ऐसा बैहूदा, बेतुका और वाहियाद बयान देने पर आपको क्यों मजबूर होना पड़ा। ऐसे सतही बयान बीच-बीच क्या आप टीवी चैनलों की तरह अपनी टी
आरपी बढ़ाने के लिए करते हैं? ईश्वर की कृपा से लाखों भक्त तो हैं आपके पास। क्या वे कम होने लगे है? अब यह तो समाज को सोचना है कि वह कब और  कैसे संत-असंत मे फर्क करेगा और वैसे ही उनके साथ बरताव करेगा लेकिन आपने जो किया, अच्छा नहीं किया। आपने उन लोगों की भावनाओं को चोट पहुंचायी है जो इस बिटिया के लिए आंसू बहा रहे हैं और इस पर जुल्म ढानेवालो के लिए कड़ी-से कड़ी सजा दिलाने के लिए कड़कड़ाती ठंड में आसमान के नीचे पड़े आंदोलन-अनशन कर रहे हैं। क्या आपकी आंखों में इस देश की बिटिया के लिए दो आंसू भी हैं। अगर हैं तो उस पर रोइए, उसके दर्द को महसूस कीजिए उसके प्रति कहे गये अशालीन शब्दों का आपका पाप कम हो जायेगा। ईश्वर भी आपसे प्रसन्न होंगे। सच मानिए आपकी यह कटु और अनर्गल वाणी उस जगत नियंता को भी मर्माहत कर गयी होगी क्योंकि वह सबसे प्रति सद्भाव-प्रेम रखता है। ईश्वर आपको सदबुद्धि दे और आपमें पश्चाताप का भाव जगायें ताकि आप प्रायश्चित करें, अपनी कुत्सित वाणी को शुद्ध करें। 
समाज के सामने भी इस तरह के बयानों ने तमाम सवाल खड़े कर दिये हैं। क्या संत-असंत की व्याख्या करने का समय नहीं आ गया है? हम क्यों किसी को भी आंख मूंद कर भगवान मान कर पूजें? गुरु या ईश्वर का रूप कहने के पहले किसी भी व्यक्ति की परख क्यों न हो कि उसका मानस कैसा है, उसका चरित्र कैसा है उसकी वाणी कैसी है? समाज के प्रति , लोगों के प्रति उसके भाव कैसे हैं? ये सवाल सिर्फ आसाराम के लिए ही नहीं उनके जैसे संत का चोला  पहने तमाम ऐसे बाबाओं के बारे में हैं जो बाहर से तो कुछ दीखते हैं लेकिन जिनके अंतर में कलुष. कुत्सित भावनाएं और शायद अपूर्ण कामनाएं छटपटा रही होती हैं। समाजवालों आंखें खोलो और अच्छे-बुरे को जान कर किसी को भगवान की तरह पूजो। सच मानो कोई कैसे भी दावे करे, बड़ी-बड़ी हांके पर वह भगवान नहीं हो सकता।

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