Thursday, July 4, 2013

कटरा से श्रीनगर की ओर

सर्पीली घाटियों के सफर का रोमांच और प्राकृतिक सुषमा का सुख
राजेश त्रिपाठी
कटरा में मां वैष्णव देवी के दर्शन करने के पश्चात हमारा गंतव्य था भूस्वर्ग कश्मीर का श्रीनगर। हम जिस दल के साथ इस टूर पर गये थे, उसने तय किया कि कटरा से आगे के सफर के लिए एक बड़ी बस कर ली जाये, उसी में हमारे दल के 38 लोग समा पायेंगे। यह बस पूरी कश्मीर यात्रा में हमारे साथ रहनी थी। बस की गयी उसके ड्राइवर एक यंगमैन गोरे-चिट्टे खूबसूरत थे और वैसा ही था उनका सहायक जो लबादा जैसा लंबा कश्मीरी फरेन पहने हुए था। इनके साथ हमारा बस का सफर शुरू हुआ। कुछ दूर तक तो समतल सड़क मिली फिर शुरू हुआ सर्पीली घाटियों के बीच पहाड़ी सड़क का रोमांच भरा सफर। हजारों फुट की ऊंचाई पर टेढी़-मेढ़ी घुमावदार सड़क पर चलती हमारी बस। नीचे घाटी की ओर नजर डालें तो कलेजा मुंह को आता। उतनी ऊंचाई से कहीं बस फिसली तो सभी के पल भर में इतिहास बनने में देर न लगे। सड़क कहीं-कहीं इतनी पतली की उसके पहिए के बाद बस कुछ इंच धरती ही बचती थी और कहीं वह भी भुरभुरी हो गयी हो फसक जाये तो फिर पल भर में सबका जय गोविंद हो जाये। भगवान पर भरोसा था और उस नवजवान ड्राइवर पर भी जिसके हाथों में अब से एक सप्ताह तक के लिए हमारी जिंदगी सौंप दी गयी थी। उसकी एक पल की गलती हमारे लिए बहुत बड़े संकट का कारण बन सकती थी ।टेढ़ी-मेढ़ी सर्पीली सड़क कटरा से कुछ आगे बढ़ते ही शुरू हो गयी थी। कुछ और आगे बढ़ने पर मिलिट्री कालोनी सैपर्स इन्क्लैव मिली। उससे कुछ और आगे बढ़ने पर एक भवन मिला जिस पर लिखा था-कंट्री फर्स्ट-यानी सबसे पहले देष। यह भी सैनिक प्रतिष्ठान ही था। इसी में आगे चल कर श्रद्धांजलि पार्क है जो सेना के वीर शहीदों की याद में बनाया गया है। इसमें लिखा है-ये दिल मांगे मोर। यानी देश पर मर मिटने का अदम्य जज्बा।
बीआरओ (बार्डर रोड आर्गनाइजेशन) सीमा सड़क संगठन के साहसी और निष्ठावान इंजीनियरों व श्रमिकों की ओर से खून-पसीना एक कर पहाड़ों का सीना चीर कर बनायी गयी सड़कें दुर्गम पहाड़ी पथ पर चलनेवालों के लिए वरदान है। ये हैं तो खतरनाक लेकिन कल्पना कीजिए कि अगर ये न होतीं तो श्रीनगर जैसी जगहों पर जाना भी मुमकिन न हो पाता। इन सड़कों पर जगह-जगह पर खतरे के लिए निर्देश भी लिखे गये हैं। हम जिस पर चल रहे थे वह कटरा से श्रीनगर की ओर जानेवाला राष्ट्रीय राजमार्ग 1 एएच था। इस पर बीआरओ की ओर से लिखे कुछ नारों की बानगी देखें- आफ्टर ह्विस्की, ड्राइविंग रिस्की। ड्राइव स्लो, इट्स हाईवे नाट रन वे। स्पीड थ्रिल्स बट इट किल्स।
 
ब्लागर राजेश त्रिपाठी की गोद में नाती देवांश
ऊधमपुर के पास के एक  कस्बे से एक गौर वर्ण डोंगरी युवती बस में चढ़ी और ड्राइवर की बगल की सीट पर बैठ गयी। उसका रूप कुछ ऐसा  कि बस में बैठे सारे पुरुषों (विशेषकर) और स्त्रितियों की नजरें उसकी ओर बरबस मुड़ गयीं। पता चला वह हमारे ड्राइवर की पत्नी है और चार माह पूर्व ही उनकी शादी हुई है। वह बीए पार्ट 2 की छात्रा है।(यह अप्रैल 2012 की बात है)। नपे-तुले, सुघड़ नाक-नक्शवाली उस तन्वंगी  पर सबकी निगाहें जैसे जम गयीं। लगता था बनानेवाले ने उसे फुरसत में गढ़ा होगा, कही कोई खोट, कोई कमी नहीं। एक अप्रतिम और संपूर्ण सौंदर्य। उसे देख लगा कि लोग सच कहते हैं कि सौंदर्य तो कश्मीर में ही बसता है। उसने परिचय हो जाने के बाद सबका स्वागत स्मित हास्य से किया। बस में कोलकाता से आये बंगाली स्त्री, पुरुष टूटी-फूटी हिंदी में उसकी ताऱीफ करने में जुट गये। स्त्रियों में कम पुरुषों में उसके पास बैठने परिचय करने की होड़ सी मच गयी। स्त्रियां अपने पतियों को उसके पास बैठा देख मन मसोस कर रह जातीं। वे खुलेआम पतियों को कुछ कह नहीं सकती थीं कि पता नहीं कहीं वह बात  उस कश्मीरी युवती को बुरी न लग जाये। बातों-बातों में किसी ने ड्राइवर से कह दिया-अरे भाई शादी की है अभी चार ही महीने तो हुए हैं. हम सब की मिठाई तो बनती ही है। ड्राइवर ने भी सबका मुंह मीठा कराया पहाड़ की सोनपापड़ी खिला कर। कश्मीर भ्रमण में ड्राइवर की पत्नी पूरे वक्त हमारे साथ रही। बस में अगर उसकी किसी से जम कर दोस्ती हुई तो वह थे हमारे नाती देवांश। देवांश को ड्राइवर की वह पत्नी जिसे वह आंटी कहने लगा था इतनी भायीं की वह रोज बस में सवार होते ही उनकी गोद में जा जमता था। शाम वापस लौटने पर ही वह उनकी गोद से उतरता था। पूरे दिन वह आंटी के साथ इस तरह बैठा रहता जैसे वह हमारे घर का नहीं उनका ही बच्चा हो। हालांकि पूरी यात्रा में उसके पापा मुकेश, मम्मी, नानी और मैं (नाना)  उसके साथ थे लेकिन वह तो बस आंटी के साथ ही रहता। उसका खाना, दूध बना कर दे दिया जाता और उसे खिलाने की ड्यूटी भी आंटी की हो गयी थी। वह भी उसे बेहद चाहने लगी थी और दूसरे दिन से खुद उसे बस में उठते ही गोद में ले लेती थी।
खतरनाक सर्पीली सड़कों से होते हुए , प्राकृतिक सुषमा को जी भर कर निहारते हुए हम रात को श्रीनगर पहुंचे। श्रीनगर शहर में बस के प्रवेश करते ही इस टूर की श्रीनगर में कोआर्डिनेटर एक महिला बस में सवार हो गयीं और वे ही हमारी बस को निर्देश देते हुए डल लेक के डल गेट की ओर ले गयीं जहां हम लोगों को पास-पास बने दो छोटे होटलों में ठहराया गया। लगता ऐसा था जैसे ये डल के ही एक हिस्से को पाट कर बने हों। उन तक पहुंचने के लिए काठ के पटरों से बनाया पुल था जिसके नीचे डल का पानी बहता था। डल लेक का एक कोना वहां से दिख रहा था और उस पर बने हाउसवोट की बत्तियां टिमटिमा रही थीं। हाड़ कंपा देनेवाली ठंड यह एहसास कराने लगी थी कि हम कश्मीर में हैं जहां चारों ओर बर्फीले ग्लैशियर और अपार जलराशि का भंडार है। हमने जल्द विश्राम करने की सोची क्योंकि अगली सुबह से शुरू होनी थी श्रीनगर के आसपास के दर्शनीय स्थलों की यात्रा।

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