Wednesday, October 16, 2013

हम पाकिस्तान पर भरोसा करना कब छोड़ेगे?




जो  चीन की मदद से बढ़ा रहा है अपनी पारमाणविक शक्ति
-राजेश त्रिपाठी
एलओसी की रक्षा में तैनात हमारे जांबाज सैनिक
पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। वह लगातार कश्मीर से लगती सीमा पर युद्ध विराम का उल्लंघन कर रहा है। हमारे जवान पाकिस्तानी गोलियों का शिकार हो शहीद हो रहे हैं और हम हैं कि पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए मरे जा रहे हैं। हम उससे वार्ता करना चाहते हैं, वह भी अमरीका के दबाव से वार्ता में शामिल होने के लिए बेमन राजी तो हो जाता है लेकिन कभी भी यह नहीं दिखा कि वह वाकई भारत से संबंध सुधारने के लिए  आग्रही है। हाल ही में मनमोहन सिंह और नवाज शरीफ की अमरीका में हुई भेंट और वार्ता की तस्वीरें जिन्होंने देखी हैं और खामोश तस्वीरों के भाव पढ़ें हैं उन्हें यह एहसास अवश्य हुआ होगा कि मनमोहन और नवाज शरीफ की तस्वीरें उनके कहे गये शब्दों से ज्यादा कुछ कह रही थीं। मनमोहन सिंह अपनी चिर परिचित मुद्रा में मुस्कान बिखेर रहे थे जबकि नवाज शरीफ खिंचे-खिंचे और असहज से दिख रहे थे। लग रहा था जैसे उन्हें जबरन यह सब करना पड़ रहा है। मैं यहां यह साफ कर देना चाहूंगा कि मैं किसी को भी लेकर किसी तरह के दुराग्रह से ग्रस्त नहीं हूं लेकिन मैं हकीकत से आंखें भी मूंदने का आदी नहीं हूं। हम जब भी पाकिस्तान के बारे में कुछ भी सोचते हैं हमें अतीत का इतिहास नहीं भूलना चाहिए। हमारे  देश ने निरंतर उससे संबंध सुधारने की कोशिश जारी रखी, तमाम तरह के आघात और अपमान सह कर लेकिन उसकी ओर से जवाब में हमें कभी कारगिल मिला तो कभी उसके यहां के प्रशिक्षित उसके देश के ही आतंकवादियों ने मुंबई हमले को अंजाम दिया जिससे सारा देश हिल गया। इसके बावजूद हमने शिक्षा नहीं ली। रक्षा विशेषज्ञों तक ने यह राय दी कि वर्तमान परिस्थिति में पाकिस्तान से वार्ता नहीं की जानी चाहिए। पहले वह अपनी धरती का भारत के खिलाफ आतंकवादी आक्रमणों के लिए इस्तेमाल बंद करे तभी उससे बार्ता की जानी चाहिए। लेकिन दिल्ली के हमारे वर्तमान आकाओं को पता नहीं क्या हो गया है कि वे मानते नहीं। उन्होंने तमाम लोगों के मना करने के बाद भी वार्ता की हालांकि वही हुआ जो होना था। इसका भी कोई नतीजा नहीं निकला। पिछले कई महीनों से कश्मीर में पाकिस्तान की ओर से होनेवाली आतंकवादियों की घुसपैठ बदस्तूर जारी है। सीमा पर पाकिस्तानी सेना लगातार युद्ध विराम का उल्लंघन कर रही है। इसमें हमारे जवान शहीद हो रहे हैं। पाकिस्तान की ओर से आतंकवाद के रूप में भारत पर थोपे गये छाया युद्ध ने देश विभाजन के बाद से अब तक हजारों निर्दोष जानें ले ली हैं लेकिन हमने फिर भी सीख नहीं ली। हमारे विचारकों ने कभी यह कहा था कि-शठे शाठ्यम समाचरेत अर्थात शठ का जवाब उसी की ही भाषा में देना चाहिए क्योंकि वह वही भाषा समझता है। मेरे यह लिखने का अर्थ यह नहीं कि मैं देश को पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध छेड़ने की बात कह रहा हूं। युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं, यह किसी भी देश की प्रगति में भी बाधक है लेकिन क्या हम एक सशक्त राष्ट्र के रूप में नजर आने की कोशिश भी नहीं कर सकते। क्या हम अंतरराष्ट्रीय मंच पर जोरदार ढंग से पाकिस्तान के दोमुंहें चरित्र को बेनकाब नहीं कर सकते जो एक तरफ हमसे वार्ता करने का नाटक कर रहा और दूसरी तरफ अपने यहां आतंकी पाल कर उन्हें हमारे देश में आतंक मचाने को भेज रहा है। भारत में संगीन अपराध कर चुके कितने आतंकी पाकिस्तान में पनाह लिये बैठे हैं, वे वहां से भी भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों का संचालन कर रहे हैं भारत के खिलाफ रैलियों में जहर उगल रहे हैं और पाकिस्तान हमेशा से इस बात से इनकार करता रहा है कि उसके यहां भारत का कोई वांक्षित अपराधी है। जबकि हकीकत यह है कि आतंकवादियों की घुसपैठ कराने में उसकी सेना मदद कर रही है। सर्दियां आने को हैं और  कश्मीर की घाटियां बर्फ से ढंक जायेंगी उस वक्त भारत में आतंकवादियों को घुसाना कठिन हो जायेगा इसीलिए इस वक्त कश्मीर की सीमा पर युद्ध विराम के उल्लंघन की घटनाएं बढ़ गयी हैं। अगर खबरों पर यकीन करें तो भारी संख्या में आतंकवादी पाकिस्तान की ओर से भारत में घुसने की फिराक में हैं। उन्हें भारत में घुसाने के लिए कभी-कभी पाकिस्तानी सेना कवर फायर करती है ऐसा भी सुना जाता है। बकरीद के दिन भी युद्ध विराम का उल्लंघन हुआ जिसमें नियंत्रण रेखा (एलओसी) से जुड़े इलाकों में पाकिस्तान की ओर जबरदस्त गोलीबारी की गयी। इस गोलीबारी में एक भारतीय जवान लांस नायक मोहम्मद फिरोज शहीद हो गये। वे मद्रास रेजिमेंट से जुड़े थे। हमें अपने इन जवानों पर गर्व है जिनके लिए सबसे पहले देश है। कहते हैं कि सेना की ओर से फिरोज को बकरीद की छुट्टी मंजूर कर दी गयी थी ताकि वे परिवार के साथ यह त्योहार मना सकें लेकिन उन्होने मना कर दिया और सीमा की रक्षा में डटे रह कर शहादत दी। इस तरह से हम अपने कई वीर जवानों को युद्ध नहीं बल्कि पाकिस्तान के छाया युद्ध में गंवा चुके हैं। पता नहीं और ऐसे कितने वीरों की बलि देनी पड़ेगी। पाकिस्तान अपनी आदतों से कभी बाज नहीं आयेगा।
      पाकिस्तान ने कभी यह नहीं समझा कि भारत से अच्छे संबंध उसके ही हित में हैं। उधर अमरीका भारत और पाकिस्तान को करीब लाने की कोशिश कर रहा है तो इसमें उसका स्वार्थ है। उसकी सेना अभी अफगानिस्तान मे फंसी है ऐसे में वह इस क्षेत्र में कोई भी तनाव नहीं चाहता। इस भ्रम में कभी नहीं रहना चाहिए कि  वह भारत के भले के लिए यह कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान के अतीत को देखते हुए यह  दिन के उजाले की तरह साफ है कि ऊपरी तौर पर वह कुछ भी कहे अंतर से भारत से संबंध सुधारने की उसकी कभी इच्छा नहीं रही। अगर ऐसा होता तो वह कह सकता था कि हम भी आतंकवाद के सताये हैं, भारत हमारा साथ दे और हम दोनों मिल कर पाक की धऱती से आतंकवाद का नामोनिशान मिटा देंगे। अगर अमरीका अफगानिस्तान में आकर अपने दुश्मनों को मार सकता है तो क्या भारत-पाकिस्तान मिल कर अपने क्षेत्र में पल रहे आतंकवाद को नेस्तनाबूद नहीं कर सकते। ऐसा करना दोनों देशों के हित में होगा क्योंकि पाकिस्तान में भी आतंकवाद का आतंक दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। वहां चाहे लोकतंत्र रहा हो या सैनिक शासन हर वक्त सेना और वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई का ही वर्चस्व रहा है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि आतंकवादियों की घुसपैठ वहां की सेना तक में हो चुकी है। यह भी सुना जाता रहा है कि आतंकवादियों को आईएसआई की मदद प्राप्त है। ऐसे में अमरीका समेत कई शक्तियां पाकिस्तान के पारमाणविक अस्त्रों की सुरक्षा की चिंता हो रही है। डर इस बात का है कि अगर आतंकवादियों की पहुंच इन पारमाणविक अस्त्रों तक हो गयी तो फिर इस क्षेत्र में ऐसी विनाशलीला हो सकती है जिसकी कल्पना भर से कलेजा मुंह को आता है।
      उधर पाकिस्तान है कि अपनी पारमाणविक शक्ति बढ़ाने की लगातार कोशिश कर रहा है। इस कार्य में उसकी मदद चीन कर रहा है। चीन सरकार पाकिस्तान को दो और परमाणु रिएक्टर देने जा रही है। हालांकि भारत ने चीन के इस कदम पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा है कि इससे भारतीय सुरक्षा को खतरा होने की आशंका है लेकिन चीन फिर भी अपने इरादे से डिगेगा नहीं। इन दोनों रिएक्टरों की कीमत 9.6 अरब डॉलर बतायी जा रही है। सुरक्षा मामलों के जानकार इसे भारत के लिए बड़ा खतरा मान रहे हैं। ये रिएक्टर मिल जाने से पाकिस्तान को अपनी पारमाणविक शक्ति बढ़ाने में और मदद मिलेगी। एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में पाकिस्तान के पास 100 से ज्यादा परमाणु बम हैं जबकि भारत के पास 80 परमाणु बम ही बताये जाते हैं। नये रिएक्टरों के चालू होने से पाकिस्तान अपने परमाणु बमों के ढेर को बढ़ा लेगा। जहां तक चीन का सवाल है तो चीन तो पहले से ही भारत की नाक में दम किये हुए है। वह भारत के बड़े भूभाग पर कब्जा किये हुए है और गाहे-बगाहे ऐसी हरकत करता ही रहता है यहां तक कि हाल ही उसने भारत के हिस्से में टेंट तक लगा लिये थे और वहां गश्त के लिए गये भारतीय जवानों को भगा दिया। यह अलग बात है कि बाद में वह वहां से हट गया। चीन पाकिस्तान को सामरिक दृष्टि से सशक्त कर एक तरह से भारत को परेशान ही करना चाहता है। चीन की सामरिक शक्ति के सामने हम कहीं नहीं टिकते, उससे सीधी लड़ाई हमारे लिए आसान नहीं होगी। वह भी शायद भारत से युद्ध नहीं चाहेगा लेकिन वह पाकिस्तान को सामरिक दृष्टि से मजबूत कर भारत की मुश्किलें बढ़ा कर उसे परेशान करना नहीं छोडेगा। ऐसा करने से उसे रोक सके शायद ऐसी कोई शक्ति भी नहीं है।
      इन हालात में भारत के लिए आवश्यक यह है कि वह पाकिस्तान के सामने अपनी बेचारगी न दिखाये बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर लगातार उसकी कार्रवाइयों को जोरदार ढंग से उजागर करता रहे। उसे विश्व भर में इस तरह नंगा कर दे कि उसे मिलने वाली विदेशी सहायता बंद हो जाये। भारत यह कहे कि जो सहायता वहां पहुंचायी जा रही है, वह आतंकवाद फैलाने के काम आ रही है। ऐसा कर के पाकिस्तान पर दबाव बनाया जा सकता है और विश्व जनमत को भारत अपने पक्ष में कर सकता है। इतिहास गवाह है कि भारत के कश्मीर जैसे स्थानीय मुद्दे को पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना दिया है इसका फायदा वह जम कर उठा रहा है। वह कश्मीर की समस्या को एक बड़ी समस्या बताता है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी यह मुद्दा उठा कर लगातार भारत को घेरता रहा है। भारत अंतराष्ट्रीय मंच पर जोरदार ढंग से इसक विरोध क्यों नहीं कर पा रहा पता नहीं। क्या भय और क्या संकोच है। भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह बात क्यों नहीं कहता कि समस्या अगर कुछ है तो वह है पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर जो भारत का अभिन्न अंग है जिस पर पाकिस्तान ने अवैध  कब्जा कर रहा है। क्या भारत के सामने ऐसा कहने में कुछ संवैधानिक बाधा है, अगर है तो देश भी यह जानना चाहेगा कि जो हमारा अंग है वह दूसरे के कब्जे में क्यों है और जो हमारा है उस पर दूसरे की कुदृष्टि क्यों हैं। पाकिस्तान क्यों हमेशा कश्मीर का राग अलापता रहता है। अगर कश्मीर की कोई समस्या है तो वह भारत का आंतरिक मामला है उसमें हस्तक्षेप कर पाकिस्तान दूसरे देश के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करने का अपराध कर रहा है। हम लगातार उसे ऐसा करने देने की आजादी क्यों दे रहे हैं क्या इसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर जोरदार जवाब देने की ताकत हमारे किसी राजनेता में नहीं। हम कब तक पड़ोसी की ओर से थोपा गया आतंकवाद झेलते रहेंगे। है कोई जो भारत के स्वाभिमान की रक्षा कर सके, इसे फिर से एक सशक्त देश के रूप में प्रतिष्ठित कर सके। यह सच है कि हम अपना पड़ोसी बदल नहीं सकते लेकिन यह भी सच है कि अगर हम मन- प्राण से ठान लें तो उसे अपना रवैया बदलने को बाध्य अवश्य कर सकते हैं। इसके लिए हमें दृढ़ प्रतिज्ञ और आत्मनिर्भर होना पड़ेगा और देश के सम्मान को ही सर्वोपरि मानना पड़ेगा। हे प्रभु मेरे भारत की रक्षा करना।

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