Wednesday, February 5, 2014

ममता पर मोदी की 'ममता' का मतलब



बंगला में भाषण देकर खेला इमोशनल कार्ड
राजेश त्रिपाठी
     
   नरेंद्र मोदी अगर आज भाजपा के आइकन फिगर बन गये हैं तो इसमें उनकी माहौल देख कर सही निर्णय और वक्तव्य का रुख बदलने की सूझबूझ की भी बड़ी भूमिका है। अपने ब्लाग पर पहला पोस्ट नरेंद्र मोदी पर लिख रहा हूं। इसके पीछे न तो व्यक्ति पूजा है, न किसी दल या व्यक्ति के प्रचार की इच्छा। बस परखने की कोशिश है कि जिस व्यक्ति को लेकर इतने विवाद और इतना हंगामा है, उसमें कुछ तो है जिसे देखने-सुनने के लिए लाखों की भीड़ जुट जाती है। उसको देश की सत्ता के शीर्ष में देखने का सपना लाखों ने देखा है ताकि उनके सपनों को नये रंग मिल सकें। ऐसा क्या है मोदी में जो कोलकाता तक में (जहां भाजपा का सशक्त आधार नहीं) मोदी के नाम पर इतने लोग जुट गये। सबके अपने सपने, अपनी ख्वाहिशें और उनके सामने आशा की किरण के रूप में एक चेहरा, एक नाम-नरेंद्र मोदी। नरेंद्र मोदी पर भले ही अपने भाषणों में तथ्यात्मक भूलें करने के सही-गलत आरोप लगते रहे हों लेकिन उनमें श्रोताओ और सामने जुटी भीड़ की नब्ज पहचानने का गजब माद्दा है। कोलकाता 'जनचेतना रैली में उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत बंगला भाषा में की और उसी से खत्म किया। अपनी भाषा-साहित्य से जी-जान से प्रेम करने वाले बंगालियों के लिए किसी गैर बांग्लाभाषी से यह सुनना कि- ओ आमार सोनार बांग्ला आमी तोमाय भालोबासी ( ओ मेरे स्वर्णिम बंगाल मैं तुम्हें  प्रेम करता हूं) कितना प्रीतकर लगेगा यह उनका दिल ही महसूस कर सकता है। मोदी ने इस तरह से शुरुआत कर प्रारंभ में ही जनमानस से खुद को जोड़ लिया।
      नरेंद्र मोदी ने कोलकाता में बड़ी चतुराई से अपना भाषण दिया। उन्हें इस बात का बखूबी पता है कि उनके मिशन 272 प्लस को पूरा करना इतना आसान नहीं इसलिए वे मदद के सभी संभव रास्ते खुले रखना चाहते हैं। यही बात है कि उन्होंने अपने भाषण में ममता बनर्जी पर कोई ऐसी टिप्पणी नहीं की जिसे आलोचना या किसी नेता पर प्रहार कहा जा सके। उन्होंने वाममोर्चा व कांग्रेस की तो जम कर खिंचाई की लेकिन ममता बनर्जी पर नरम रुख ही अख्तियार किया। यहां तक कि उन्होंने उनके परिवर्तन का उल्लेख करते हुए कहा कि -ममता जी ने यहां परिवर्तन किया। उन्हें यहां काम करने दीजिए। हमें केंद्र की सत्ता तक पहुंचने में मदद कीजिए हम आपको सुशासन और स्वराज देंगे। उन्होंने कांग्रेस की ओर से प्रणव मुखर्जी जैसे योग्य नेता की उपेक्षा का सवाल उठाते हुए कांग्रेस को घेऱा। य़ह भी कहा कि अगर उन्हें प्रधानमंत्री बनाते हैं तो उन्हें तिगुना लाभ मिलेगा। देश के सर्वोच्च आसन पर उनके अपने प्रणव दा होंगे, प्रधानमंत्री के रूप में खुद मोदी होंगे और राज्य में ममता दीदी होंगी। यानी राज्य का हर तरह से भला होगा।
      मोदी कोलकाता में अप्रत्याशित भीड़ देख कर इतने उत्साहित हुए की उन्होंने थर्ड फ्रंट (जिसके गठन के बारे में 5 फरवरी को ही दिल्ली में बैठक चल रही थी।) पर भी निशाना साधा और कहा कि थर्ड फ्रंट के नेता हेलीकाप्टर से रैली में जमा भीड़ देखें तो उन्हें हवा के रुख का अंदाजा हो जायेगा। उन्होंने कहा- 'परिबर्तन' के लिए बंगाल की जनता ने ममता बनर्जी को चुना, केंद्र में परिबर्तन के लिए इस बार जनता भाजपा को चुने। उन्होंने अपनी रैली में रवींद्रनाथ टैगोर को भी उद्धृत किया। अंग्रेजी में भी और बांग्‍ला में भी। उन्‍होंने सुभाष चंद्र बोस का नारा 'तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें
आजादी दूंगा' भी
दोहराया और उस आधार पर नारा दिया, तुम मुझे साथ दो, मैं तुम्‍हें सुराज दूंगा।
      मोदी के ममता बनर्जी पर नरम रुख बरतने का राजनीतिक विश्लेषक चाहे कुछ भी अर्थ लगायें लेकिन इसका सीधा अर्थ यही है कि मोदी चुनाव बाद गठबंधन की संभावना बनाये रखना चाहते हैं। एक बात यह भी है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा का जनाधार नहीं है इसलिए यहां की ममता बनर्जी जैसी ताकतवर नेता के खिलाफ बोल कर वे अपना राजनीतिक नुकसान नहीं करना चाहते। उन्होंने सेक्युलरिज्म का उल्लेख भी किया और कहा कि उनके लिए सेक्युलरिज्म का अर्थ है सबको साथ लेकर चलना। उनका मंत्र है नेशन फर्स्ट। उन्होंने कहा- बंगाल हमेशा देश को दिशा दिखाता आया है। एक बार फिर से बंगाल को देश को दिशा दिखानी होगी। पश्चिम बंगाल का विकास करने वाली सरकार दिल्ली में होनी चाहिए। बंगाल की जनता से उन्होंने कहा कि परिबर्तन के बारे में आपको जबाव मांगना पड़ेगा।  उन्होंने कहा-मैं साफ देख रहा हूं इस बार का चुनाव पहले के चुनावों से भिन्न है। सभी अनुमान इस बार गलत निकलने वाले हैं।                 इस बार का चुनाव राजनीतिक दल नहीं लड़ रहे है बल्कि आम जनता लड़ रही है।
      बंगाल की ऐतिहासिक विरासत का जिक्र करते हुए मोदी ने कहा कि जब भारत विश्व गुरू था, तब बंगाल राष्ट्र गुरू था। यदि हम एक बार फिर भारत को विश्व गुरू बनाना चाहते हैं तो बंगाल को राष्ट्र गुरू बनाना होगा।
      अेगर भाजपा नेताओं के दावे पर यकीन करें तो करीब एक लाख लोग मोदी को सुनने के लिए रैली में आये थे। भाजपा ने मोदी की इस रैली के लिए सौ रुपए का प्रवेश शुल्क भी रखा था। रैली के लिए हजारों लोगों ने ऑनलाइन के माध्यम से टिकट खरीदे
थे। इस रैली को मोदी की सबसे महंगी रैली माना जा रहा है।
इससे पहले कोलकाता की किसी भी चुनावी रैली में आयोजकों ने लोगों से पैसे नहीं लिये थे। इस लिहाज से यह अपनी तरह की पहली रैली थी। लोगों ने टिकट आनलाइन बुक किये और बंगाल भर से व कहते हैं कि झारखंड और बंगाल से लगते बिहार के हिस्सों से भी लोग मोदी को सुनने इस रैली में आये।
      वैसे तो मोदी के पहुंचने के पहले पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने राज्य सरकार की जम कर आलोचना की लेकिन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ कुछ नहीं बोला। उन्होंने उलटे ममता बनर्जी का पक्ष लेते हुए कहा कि केद्र सरकार को उनका यह आग्रह मानना चाहिए था कि उनसे तीन साल तक के लिए ऋण की ब्याज वापसी रोक दी जाये। हां राजनाथ सिंह ने वाममोर्चा सरकार को जम कर कोसा और कहा कि उसके चलते पश्चिम बंगाल से उद्योग खत्म हो गया। शाहनवाज हुसैन ने अपने भाषण में थर्ड फ्रंट पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जो दल अपने-अपने राज्यों में असफल और तीसरे नंबर पर हैं वही तीसरा फ्रंट बनाने की कोशिश कर रहे हैं। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने भी रैली को संबोधित किया और बखूबी बंगला में बोले।
      मोदी ने राज्य की जनता से अपील की कि अगर वे उन्हें राज्य से सारी सीटें लोकसभा चुनाव में दिला देते हैं तो वे यहां बार-बार आना चाहेंगे। मोदी के भाषण की शैली ऐसी है जिसमें लच्छेदार भाषा के साथ-साथ लोगों को खुद से जोड़ने का गजब अंदाज होता है। वे भीड़ से कोई सवाल करते हैं और उससे उसका जवाब मांगते हैं। यहां भी अपने भाषण के अंत में उन्होंने 'चोलबेना ना'  (नहीं चलेगा) का उच्चारण करवा कर अपना मकसद पूरा किया। अपनी बात उन तक गंभीरता से पहुंचायी।
      कोलकाता की मोदी की रैली इस बात के लिए भी याद की जायेगी कि उन्होंने भी दिखा दिया कि राजनीति में कोई अछूत नहीं और चुनाव बाद किसी से भी गठबंधन संभव है। शायद इसी उम्मीद पर उन्होंने ममता दीदी के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा। राहुल सिन्हा ने ममता सरकार की आलोचना की यह शायद राज्य में भाजपा को कुछ लाभ दिलाने के लिए उनकी मजबूरी हो सकती है लेकिन मोदी का फलक व्यापक है वे राज्य नहीं राष्ट्र के स्तर पर सोचते हैं और उनके लिए ममता दीदी या तृणमूल का साथ आगामी लोकसभा चुनाव के बाद महत्वपूर्ण हो सकता है। भाजपा इस बार केंद्र की सत्ता प्राप्त करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहती वह सारे विकल्पों पर सोच रही है। अभी तेलुगू देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू नायडू की पार्टी से भाजपा गठबंधन की कोशिश में है। इसके अलावा अपने क्षेत्र की महत्वपूर्ण हस्तियों को भी भाजपा पार्टी से जोड़ रही है।
      आगामी लोकसभा चुनाव बहुत ही दिलचस्प और महत्वपूर्ण होने वाले हैं। नरेंद्र मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के घोषित प्रत्याशी हैं और राहुल गांधी कांग्रेस के अघोषित प्रत्याशी। कोई कुछ भी कहे यह तय है कि अगर कांग्रेस बड़े दल के रूप  उभरती है और संप्रग को तीसरी बार सत्ता में आने का मौका मिलता है तो कांग्रेस राहुल जी को ही अपना नेता चुनेगी। भाजपा ने मोदी के प्रचार में सारी शक्ति झोंक दी है। सोशल मीडिया हो, प्रिंट मीडिया हो या जनसंपर्क हर माध्यम से मोदी के पक्ष में माहौल बनाया जा रहा है। भाजपा ने नमो चाय स्टाल देश भर में खोल कर एक अभिनव अभियान शुरू किया है। इसके जरिए जहां मोदी के साधारण पृष्ठभूमि से आने का प्रचार हो रहा है वहीं उनका नाम जन-जन तक पहुंचाया जा रहा है। मोदी के चाय बेचने को कांग्रेस व अन्य दल तिरस्कार की दृष्टि से देखते और खिल्ली उड़ाते हैं लेकिन यह दांव उलटा ही पड़ रहा है।
      मोदी अपने भाषणों में जहां भी तथ्यात्मक भूल कर रहे हैं उसकी आलोचना करना वाजिब है लेकिन केवल इस बिना पर कि कोई पहले एक साधारण पृष्ठभूमि से से था उसके सारे किये-धरे को नकारा नहीं जा सकता। मोदी के साथ जुड़े विवादों का जिक्र है तो उसके लिए देश का कानून है वह अपना काम कर रहा है। इसका जिम्मा उस पर ही रहे तो बेहतर यह क्या कि हर राजनीतिक दल उन्हें कठघरे में खींचना चाहता है। दरअसल हो यह रहा है कि मोदी की जितनी आलोचना होती है, उनका उतना ही प्रचार हो रहा है। उनके गुण-दोष का विवेचन करने वालों की नजर राजनीति के कुछ दूसरे चेहरों पर भी पड़नी चाहिए जिनका विवादों से गहरा रिश्ता रहा है। गुण-दोष विवेचन का कार्य एकपक्षीय तो नहीं ही होना चाहिए। अब लोकसभा चुनावों के परिणाम क्या आते हैं यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन फिलहाल प्रचार और लोकप्रियता की दृष्टि से तो मोदी का पलड़ा ही भारी लगता है। भाजपा और उसके सहयोगी 272 के मैजिक फिगर तक भले ही न पहुंच सकें लेकिन यह तय-सा लगता है कि सबसे बड़ा दल बन कर भाजपा ही उभरने वाली है।

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