Sunday, April 6, 2014

· शुरू हुआ लोकतंत्र का महापर्व





  • ·मतदान अवश्य करें, एक नागरिक के रूप में यह आपका अधिकार है और कर्तव्य भी

सोचो, समझो, जांचो, परखो फिर दबाओ बटन
मत भूलो पांच साल के लिए किसी को सौंप रहे हैं अपना भाग्य
राजेश त्रिपाठी
     
हम गणतांत्रिक देश हैं। हमारे यहां जनता के द्वारा, जनता के लिए सरकार चुनने का अधिकार है। यह अधिकार हमारे लिए बहुत बड़ा वरदान है। लेकिन कितने लोग इसके प्रति गंभीर हैं। कुछ ऐसे भी हैं तो मतदान करने की जरूरत भी नहीं समझते लेकिन पांच साल तक उस सरकार को कोसते रहते हैं जिसे उनके अपने देश की जनता ने चुना होता है। जो लोग मतदान नहीं करते वह न सिर्फ अपने नागरिक अधिकारों के दुरुपयोग के बल्कि एक गणतांत्रिक प्रक्रिया से विमुख रहने के भी अधिकारी हैं। उन्हें किसी भी सरकार को कोसने का कोई अधिकार नहीं। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सरकारों के गठन में लोक की भूमिका सीधी और सक्रिय होती है। उसे अधिकार होता है कि हर पांच साल बाद वह अपने मन की सरकार चुन सके। ऐसे में हर एक को अपने मताधिकार का अवश्य प्रयोग करना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि सही और योग्य लोग ही चुन कर जायें ताकि वह देश की दशा-दिशा सुधार सकें, बदल सकें।
      हमारे यहां अक्सर देखा जाता है कि जेल में रहने वाले अपराधी या उनके द्वारा नियुक्त गुर्गे भी चुनाव में न सिर्फ खड़े होचे हैं बल्कि जीत भी जाते हैं। उनके इलाके के लोग उनके रौब-दाब और आतंक से डर कर उन्हें अपना मत देने के बाध्य होते हैं लेकिन अगर वह सचेत हो जायें तो ऐसे लोगों का राजनीति में प्रवेश निश्चित ही रुक जायेगा। चुनाव आयोग तो हर बार ताकीद  करता है कि राजनीतिक दल अपराधियों या सजायाफ्ता लोगों को राजनीति में न आने दें लेकिन इसका कोई असर होता नहीं दिखता। एक अनुमान के अनुसार इस बार भी कई ऐसे प्रत्याशी खड़े हैं जिन पर कोई न कोई आरोप या मामला है।
      इस सब को देखते हुए ही यह उचित होगा कि खुद मतदाता ही ऐसे लोगों को परास्त कर उनको राजनीति में आने से रोके। 7 अप्रैल 2014 से इस बार का लोकतंत्र का महायज्ञ शुरू हो रहा है। इसमें हर मतदाता को उत्साह से भाग लेना चाहिए और अपने लिए एक बेहतर देश गढ़ने के प्रयास का भागीदार बनना चाहिए। मतदान करने से पहले यह बार-बार सोच लें कि जिसे आप अपना बहुमूल्य मत दे रहे हैं क्या वह उस मत के काबिल है। इसके लिए उसका चेहरा, चरित्र और चाल जांचिए। देखिए कि उसका अतीत किसी कलंक से कलंकित तो नहीं, अपने अंचल की उसने कितनी सेवा की है यह भी कि राजनीति का उसे कितना ज्ञान है। वह आपके सपनों को साकार करने के प्रति कितना गंभीर है। इस बार का चुनाव कुछ खास है क्योंकि इस बार सभी स्थानों पर त्रिकोणी या चतुष्कोणी टक्कर होती दिख रही है। कई-कई क्षेत्रों में तो ऐसे उम्मीदवार भी खड़े हैं जो खुद भले ही न जीतें लेकिन किसी जीतते उम्मीदवार का गणित अवश्य खराब कर देते हैं। इस बार के चुनाव में कुछ दलों के लिए राष्ट्रनिर्माण, भ्रष्टाचार से मुक्ति, विकास और सुशासन मुद्दा है तो कुछ लोगों के लिए धर्मनिरपेक्षता और विकास मुद्दा है। नेतागण अपने-अपने भाषणों और घोषणापत्रों में बढ़-चढ़ कर दावे कर रहे हैं। ऐसे में मतदाता के लिए जरूरी कि वह सावधान रहे और इनके वादों-इरादों को भलीभांति जांचे, परखे और फिर उसी व्यक्ति को मत दे जिससे उसे थोड़ी भी उम्मीद नजर आती हो। मतदाता को चाहिए कि अगर वह प्रबुद्ध, पढा-लिखा है तो वह हर उम्मीदवार के पांच साल पहले किये वायदों को परखे-जांचे कि उनमें से कितने उसने पूरे किये हैं। डफोरशंखी घोषणाएं तो सभी करते हैं लेकिन कितने हैं जो उन्हें पूरा करने के प्रति भी गंभीर होते हैं। नेतागण आपको इतने हसीन ख्वाब दिखायेंगे कि आपको लगेगा कि भारत बस चुटकी मारते ही सोने की चिड़िया बनने वाला है लेकिन आप पायेंगे कि फिर घोटाला. भ्रष्टाचार का दौर आया और देश और भी बेहाल होता गया। आपने अक्सर देखा होगा कि नेतागण बढ़-चढ़ कर दावे करते हैं और पांच साल में ही देश की तकदीर बदल देने् का दंभ भरते हैं। वे जब सत्ता में आ जाते हैं और अपने किये वायदे पूरे करने में असमर्थ होते हैं तो तुरत कहने लगते हैं कि 'हमारे पास कोई जादू की छडी़ तो नहीं है कि छू किया और सारी समस्याएं खत्म।' ऐसे में उनसे पूछा जाना चाहिए कि -'नेताजी जब आपको यह पता था कि जो बातें आप पांच साल में पूरा करने का दम भर रहे हैं वह गंभीर प्रयास करने पर भी 10-20 साल में भी मुश्किल से पूरी हो सकेंगी तो फिर आप झूटा आश्वासन क्यों दे रहे हैं क्या सिर्फ सत्ता सुख पाने के लिए।'
      ये लोग जीत कर एयरकंडीशंड कक्षों में जब धंस जाते हैं तो फिर इन्हें न गरमी में तपते किसान की फिक्र रहती हैं न सीमा पर जूझते जवान की । तब अगर चिंता रहती है तो पांच साल तक अपनी सत्ता की सीट सलामत रखने की । ऐसे में देश के लिए सोचने या कुछ करने की उन्हें फुरसत ही नहीं मिलती या वे गंभीर भी नहीं होते। स्वर्गीय़ जयप्रकाश नारायण ने जनप्रतिनिधि की वापसी की जो सलाह दी थी और मांग की थी आज की स्थिति में उसका लागू होना बहुत लाजिमी हो गया है। कोई भी जनता के मत की ताकत से चुन कर पांच साल के लिए सत्ता सुख पा लेता है, कुर्सी से जा चिपकता है और मस्त हो जाता है कि वह कुछ करे ना करे पांच साल तक के लिए उसका स्थान पक्का। वह सारी सुख-सुविधाएं भोगता है और उसके क्षेत्र की जनता पांच साल तक अपने भाग्य को कोसती रहती है। चुनाव आयोग ने इस बार एक सुविधा और दे दी है वह है नोटा (NOTA=none of the above) यानी ऊपर दिये गये में से कोई नहीं। इससे आप अगर चाहें तो अपने नापसंद सभी उम्मीदवारों को नकार सकते हैं। पहले आपके पास कोई चारा नहीं होता था आपको सांपनाथ या नागनाथ चुनना होता था लेकिन अब आप चाहें तो अपने नापसंद सभी उम्मीदवारों को अपना मत देने से इनकार कर सकते हैं। यह एक तरह से आपको अपना गणतांत्रिक अधिकार पूरा करने का अवसर देता है वहीं आपको यह ताकत भी देता है कि कम से कम आप अपने तईं तो किसी अपराधी या भ्रष्ट चरित्र के नेता को संसद या विधानसभा में जाने से रोक सकें।
      आपको गणतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग अवश्य करना चाहिए लेकिन सावधान रहते हुए किसी सच्चे, सार्थक और योग्य व्यक्ति को ही चुनना चाहिए। ध्यान रहे, सावधानी हटी कि दुर्घटना घटी। दुर्घटना भी ऐसी जिसका घाव पांच साल तक टीसता रहेगा। पांच साल तक आपके पास अपना सिर धुनने के अलावा कोई चारा नहीं रह जायेगा। अगर जनप्रतिनिधि की वापसी का नियम लागू हो तो अलग बात है तब ऐसे विधायक या सांसद को वापस आना पड़ेगा जो कोई काम न करता हो। इस बार कई सांसदों के विवरण में देखा कि वे पांच साल तक संसद में बैठे ऊंघते रहे उनसे अपने क्षेत्र की जनता के हित का एक सवाल भी नहीं पूछा जा सका। इस तरह के लोगों को संसद में भेज कर आप अपना कितना और क्या भला कर सकेंगे। दलों के दलदल, लोकलुभवान नारों और वायदों की भूलभुलैंया से बचिये अपने नेता, अपने अगले पांच साल के भाग्य विधाता को जांचिए, परखिए की उसमें आपके और इलाके के हित का कितना जज्बा या ललक है फिर उसे अपना समर्थन दीजिए।
      मतदान से पहले याद रखिए कि उस क्षण तक जब तक आप ईवीएम का बटन नहीं दबाते तब तक चीजें आपके हाथ में हैं, आपने एक बार बटन दबा दिया तो तीर आपके हाथ से छूट गया। अगर आप की सोच और निशाना सच था तो यह सही जगह लगेगा लेकिन अगर गलत रहा तो पांच साल तक सिर्फ और सिर्फ आपके पास रोने-पछताने के अलावा और चारा नहीं रहेगा। बीत गये वे दिन जब कोई आपको बहका, धमका कर अपने पक्ष में मत दिलवा सकता था। अब आप स्वतंत्र हैं, सुरक्षा के बीच मतदान कर रहे हैं तो बेफिक्र हो कर ऐसे उम्मीदवार को चुनें जिसे देश की जनता, राष्ट्र के गौरव और चहुंमुखी और समावेशी विकास की फिक्र हो। जिसे अपनी सत्ता से अधिक जनता के सुख, देश के विकास और उसके गौरव का ध्यान हो। याद रहे आपका मतदान देश की प्रगति को नयी दिशा भी दे सकता है और अगर आपका चुनाव गलत हुआ तो यह देश के लिए विनाशक और बदतर भी हो सकता है। यह हम आपके विवेक, आपके सोच पर छोड़ते हैं, चुनाव आपका है, तकदीर आपकी है। आप इसे कैसे हाथों में सौंपना चाहते हैं जो इसे संवारे, विकसित करे या जो लूट-खसोट और घोटाले से आपकी दुनिया को और भी दुश्वार कर दे। दलों के रंग, उनकी घोषणाओं पर ज्यादा ध्यान न देकर यह सोचिए की उनका अतीत क्या है। देश के विकास में उनका क्या योगदान रहा है। जनहित के कौन-कौन से कार्य उसने किये हैं । आपका मत इसी आधार पर किसी को मिलना चाहिए। आप जब सचेत होंगे तभी गणतंत्र सशक्त होगा।


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