कविता
-राजेश त्रिपाठी
आज का आदमी
लड़ रहा है,
कदम दर कदम,
एक नयी जंग।
ताकि बचा रहे उसका वजूद,
जिंदगी के खुशनुमा रंग।
जन्म से मरण तक
बाहर से अंतस तक
बस जंग और जंग।
जिंदगी के कुरुक्षेत्र में
वह बन गया है
अभिमन्यु
जाने कितने-कितने
चक्रव्यूहों में घिरा हुआ
मजबूर और बेबस है।
उसकी मां को
किसी ने नहीं सुनाया
चक्रव्यूह भेदने का मंत्र
इसलिए वह पिट रहा है
यत्र तत्र सर्वत्र।
लुट रही है उसकी अस्मिता,
उसका स्वत्व
घुट रहे हैं अरमान।
कोई नहीं जो बढ़ाये
मदद का हाथ
बहुत लाचार-बेजार है
आज का आदमी।
सटीक रचना आज के आदमी के हालातों को बयां करती हुई
ReplyDeleteआज के आदमी का सही चित्रण। आभार…
ReplyDeleteउसकी मां को
ReplyDeleteकिसी ने नहीं सुनाया
चक्रव्यूह भेदने का मंत्र
इसलिए वह पिट रहा है
यत्र तत्र सर्वत्र।
आज का आदमी का एक सच यह भी है ...!
सच में यही हाल है आज के आदमी का.
ReplyDeleteबहुत सटीक लिखा
आजके आदमी की त्रासदी को बयां करती एक संवेदन शील रचना...बधाई...
ReplyDeleteनीरज