जिनको दी बंबई जाने की
प्रेरणा
राजेश त्रिपाठी
(भाग-4)
सिर्फ संगीतकार रविंद्र जैन ही नहीं कलकत्ता से उन्होंने दो और लोगों को भी बंबई जाकर भाग्य आजमाने को प्रेरित किया। इनमें एक थे अभिनेता संजीव कुमार (वास्तविक नाम हरीभाई जरीवाला) जो कलकत्ता के नाटकों में भाग लिया करते थे। रुक्म जी सन्मार्ग के सिने संपादक थे इसलिए अपनी खबर छापने का अनुरोध लेकर अक्सर 160 बी चित्तरंजन एवेन्यु पर स्थित सन्मार्ग के कार्यालय पहुंच जाते थे। अक्सर वे रुक्म जी से अनुरोध करते कि वे उनकी तस्वीर और परिचय अपने अखबार में छाप दें। रुक्म जी अक्सर उनको टालते रहते थे। जब उनके आग्रह के सिलसिले ने थमने का नाम नहीं लिया तो एक दिन रुक्म जी ने समझाया-‘तुममें टैलेंट है, अच्छे अभिनेता बनने की सारी खूबियां हैं , क्यों यहां अपना समय और मेरा भी बरबाद करते हो। बंबई जाओ, ऐसा अभिनेता बनो कि मैं तुम्हारी तस्वीर खोज-खोज कर छापने को मजबूर हो जाऊं।‘ संजीव कुमार को उनकी यह बात जंच गयी। उन दिनों राधेश्याम (शायद यही नाम था उनका) झुनझुनवाला एक फिल्म बनाने जा रहे थे। वे अपने साथ संजीव कुमार को ले गये। वह फिल्म तो शायद बनी नहीं पर धीरे-धीरे संजीव कुमार की फिल्मों की गाड़ी चल पड़ी। बंबई में वे इप्टा (इंडियन प्यूपिल्स थिएटर एसोसिएशन ) से जुड़े और नाटकों व फिल्म में काम करते रहे। धीरे-धीरे वे शीर्ष नायक बने। वे ऐसे अभिनेता के रूप में ख्यात हुए जो अभिनय नहीं करते थे बल्कि कथानक के उस पात्र को जीते थे जो उन्हें दिया जाता था। उनके अभिनय में वह खूबी थी कि उनके परदे पर आते ही सामने खड़ा अभिनेता उन्नीस हो जाता था। दर्शकों का सारा ध्यान संजीव कुमार पर टिक जाता था। संजीव कुमार ने रात और दिन, राजा और रंक, कोशिश, शोले, आंधी, मौसम, संघर्ष, आपकी कसम, पति पत्नी और वह, अंगूर, सीता और गीता, नया दिन नयी रात (जिसमें उन्होंने 9 भूमिकाएं निभायीं), अनामिका, त्रिशूल व कई अन्य फिल्मों में भूमिकाएं कीं। उनको श्रेष्ठ अभिनेता के रूप में कई सम्मान मिले जिनमें दो राष्ट्रीय पुरस्कार भी शामिल हैं।
संजीव कुमार |
अंजन श्रीवास्तव आज फिल्मों की दुनिया का जाना-पहचाना नाम है। फिल्में हों या धारावाहिक हर एक में उन्होंने अपने अभिनय से लोगों की प्रशंसा पायी है। अंजन ने कोलकाता में बी काम और एलएलबी करने के बाद इलाहाबाद बैंक में नौकरी कर ली। उन्हें अभिनय से लगाव था इसलिए वे हिंदी, बंगला नाटकों में काम करने लगे। जिन संस्थाओं के साथ कलकत्ता (अब कोलकाता) में नाटक करते थे उनमें संगीत कला मंदिर और अदाकार जैसी प्रसिद्ध संस्थाएं भी थीं। रुक्म जी भी अक्सर उनके नाटकों को समालोचक के रूप में देखने जाते थे। धीरे-धीरे उनकी अंजन श्रीवास्तव से गहरी पहचान हो गयी। फिर अंजन रुक्म जी से मिलने अक्सर सन्मार्ग कार्यालय ( कोलकाता के चित्तरंजन एवेन्यू ) में जाने लगे। वहां वे भी औरों की तरह अपने बारे में अखबार में छापने का अनुरोध करने लगे। रुक्म जी ने उनका अनुरोध रखा तो लेकिन उन्हें भी यही राय दी कि समुद्र में तैरने का हुनर रखनेवाली मछली को तालाब से बाहर निकलना चाहिए। उनका आशय था कि इतना अच्छा अभिनय कर लेते हैं तो इसकी कदर तो बंबई (अब मुंबई) में ही होगी। यहां कुछ नहीं रखा। नाटकों में काम करके आप एक सीमित दायरे में सिमट कर रह जायेंगे। फिल्मों में आये तो अभिनय का व्यापक फलक मिलेगा। अंजन को भी बात समझ में आ गयी। पहले तो कुछ दिन तक उन्हें बंबई जाने के लिए पिता की इजाजत नहीं मिली लेकिन बाद में पिता ने अनुमति दे दी।
अभिनेता राजेंद्र कुमार के साथ रुक्म जी |
अपने उन्ही रुक्म जी के निधन की खबर पाकर अंजन विह्वल हो गये। उन्होंने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी और कहा-‘आज मैं जहां भी हूं वहां पहुंचाने में उनका बड़ा योगदान है।‘
अंजन श्रीवास्तव |
फिल्मी दुनिया के बारे में तरह-तरह के अनुभवों से रुक्म जी को दो-चार होना पड़ता था । कई घटनाएं जो आदमी को अंदर तक हिला जायें। दिलीप कुमार, राज कपूर के साथ रुक्म जी का परिचय पुराने समय के मशहूर चरित्र अभिनेता मोतीलाल से भी था। कहते हैं कभी मोतीलाल जी का जलवा था लेकिन जब वे अंतिम दिनों में बीमार पड़े तो अपने घर में ही अकेले कैद हो कर रह गये थे। रुक्म जी जब एक बार उनसे मिलने उनके घर गये तो उन्होंने दरवाजे की बेल दबायी। बेल बजते ही भीतर से कुत्ते के भूंकने की आवाज आयी। वह आवाज धीरे-धीरे और करीब आती गयी। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला तो सामने कुत्ता खड़ा भूंक रहा था। रुक्म जी के रोएं खड़े हो गये। वे डर गये कि कुत्ता अनजान समझ कर काट न ले। अभी वे डर रहे थे कि तभी ऊपर की तरफ से एक धीमी आवाज आयी-‘घबराइए मत, उसके पीछे-पीछे चले आइए, वह आपको लेने गया है।‘ हिम्मत कर के रुक्म जी कुत्ते के पीछे-पीछे चल दिये। कुत्ता उन्हें मोतीलाल के पलंग के पास छोड़ कर वहीं एक कोने में सिमट कर बैठ गया। मोतीलाल ने बताया कि वे बिस्तर से लग गये हैं। बहुत कम लोग ही ऐसे में हाल पूछने आते हैं। यह कुत्ता इतना आज्ञाकारी है कि यही लोगों की आगवानी करके ले आता है।
मोतीलाल की हताशा में उम्रदराज और काम न कर सकने या न पाने वाले कलाकारों की दास्तान साफ झलकती थी।
बंबई आते-जाते रुक्म जी की जान-पहचान माला सिन्हा, मीनाकुमारी, साधना, वैजयंती माला आदि से भी हो गयी। बंबई में अक्सर वे फिल्म की शूटिंग में भी जाते रहते थे। (शेष अगले भाग में)
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