Sunday, October 9, 2022

इस तरह मैंनैे फेस किया आनंद बाजार प्रकाशन की हिंदी पत्रिका के लिए इंटरव्यू

  आत्मकथा-44


राजेश त्रिपाठी

जिस दिन से मुझे आनंद बाजार प्रकाशन के हिंदी साप्ताहिक के लिए मुझे इंटरव्यू  का लेटर मिला मैं बहुत उत्सुक था। यही सोच रहा था कि इतनी बड़ी और विख्यात प्रकाशन संस्था से जुड़ना भाग्य की बात होगी। अब तक मैंने जो सीखा उसे आजमाने का अवसर मिलेगा और नया कुछ सीखने का मौका मिलेगा।

 नियत दिन, सही समय पर मैं 6 प्रफुल्ल सरकार स्ट्रीट कोलकाता स्थित आनंद बाजार पत्रिका के कार्यालय पहुंच गया। वहां देखा विशाल भवन है। मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही रिसेप्शन। रिसेप्शन में जाकर पूछा-हिंदी पत्रिका के लिए इंटरव्यू देना है किधर जाना होगा।

रिसेप्शन वाले व्यक्ति ने बता दिया-ऊपर तीन तल्ले पर जाइए।

तीन तल्ले पर पहुंच कर एक व्यक्ति से पूछा कि- हिंदी पत्रिका के लिए इंटरव्यू किधर हो रहा है।

उन्होंने एक बड़े हाल में जाने का इशारा किया।

हाल में प्रवेश करते ही मैंने देखा चार लोग कुर्सियों में गोलाकार बैठे हैं। गोले के बगल में एक कुर्सी खाली थी। मैं समझ गया कि यह कुर्सी मेरे लिए होगी यह भी कि यह चार लोग मुझ पर प्रश्नों के बाण छोड़ेंगे। झूठ नहीं बोलूंगा डर तो लग रहा था। कारण इससे पहले मैंने कभी कोई इंटव्यू नहीं फेस किया था।चार-चार महारथी जाने क्या पूछ बैठें। अपने मन को पक्का कर मैंने सोचा जो बनेगा उत्तर दूंगा, नौकरी मिल गयी तो अच्छा नहीं ये लोग कोई मुझे बांध थोड़े लेंगे। यहां हुआ तो हुआ नहीं इतनी बड़ी दुनिया पड़ी है कहीं और भाग्य आजमायेंगे। वैसे मन की बात बताऊं मैं चाह यहीं रहा था कि यहां हो जाये कारण तब बहुत कुछ सीखने का मौका मिलेगा यह भी गर्व से बता सकूंगा कि मैं आनंद बाजार प्रकाशन जैसे बड़े मीडिया संस्थान का एक हिस्सा हूं ।

*

  मैंने हाल में प्रवेश करते ही सभी जनों को हाथ जोड़ कर अभिवादन किया। हलकी दाढ़ी वाले सांवले रंग के एक व्यक्ति ने खाली पड़ी कुर्सी की ओर इशारा करते हुए कहा-बैठिए।

पहला सवाल उस सांवले व्यक्ति ने ही दागा-रामहित तिवारी जी इसके पहले आपने कहां-कहां काम किया है। (यहां यह स्पष्ट कर दूं कि मेरे सारे शैक्षणिक प्रमाणपत्र मेरे मूल नाम रामहित तिवारी के नाम से हैं और राजेश त्रिपाठी मेरा पेन नेम है जो मैं अपने लेखन में प्रयोग करता था)

मैंने कहा- सर जी मैं सन्मार्ग हिंदी दैनिक में प्रशिक्षण रत हूं, इसके साथ ही एक हिंदी साप्ताहिक स्क्रीन के प्रबंध संपदक के रूप में काम कर रहा हूं। मैं बाल उपन्यास लेखक हूं। मेरे दर्जनों उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। कई पत्र-पत्रिकाओं में मेरे आलेख, कहानियां आदि प्रकाशित हो चुकी हैं।

उस सांवले व्यक्ति ने अगला प्रश्न दागने के पहले कहा –मुझे सर जी कहने की आवश्यकता नहीं आप मुझे सुरेंद्र जी भी कह सकते हैं।

 सुरेंद्र जी कुछ पूछते इससे पहले सामने बैठे एक गोरे-चिट्टे व्यक्ति ने कहा-हां और आप मुझे मिस्टर अकबर कह सकते हैं। मैं हूं एम जे अकबर साप्ताहिक हिंदी पत्रिका रविवार का संपादक।

सुरेंद्र प्रताप सिंह


 प्रश्नकर्ताओं में एक पवित्र मोहन भी थे जो संस्थान के पर्सनल मैंनेजर थे। उन्होंने एक बार बस इतना पूछा-आप बांग्ला जानते हैं?

 मैंने कहा-बांग्ला पढ़ सकता हूं, लिखना सीख रहा हूं, बोल लेता हूं।

इसके बाद उन्होंने मुझसे बांग्ला में बात की और मैंने साहस कर के उत्तर बांग्ला में देने की कोशिश की। उन्होंने मुसकराते हुए कहा-ठीक आछे (ठीक है)।

 अब अकबर साहब की बारी थी-मान लीजिए आप चुन लिए जाते हैं तो हम आपसे क्या उम्मीद करें।

मैंने कहा-अकबर साहब मैं काम को पूजा मानता हूं। इसे अन्यथा ना लें आपको शायद ही कभी मुझसे काम के बारे में शिकायत का मौका मिलेगा। मेरा तो सौभाग्य होगा कि मैं आप और सुरेद्र जी जैसे वरिष्ठ पत्रकारों की सरपरस्ती (देख रेख) में काम कर कुछ सीख पाऊंगा।

लगता है मेरा सरपरस्ती शब्द बोलना गलत हुआ क्योंकि यह उर्दू शब्द बोलते ही अकबर साहब को याद आ गया कि मैंने अपने अप्लीकेशन में यह भी लिख रखा है कि मैं उर्दू भी जानता हूं।

एम. जे. अकबर

 अकबर साहब ने एक चपरासी को बुलाया और कहां-नीचे सिक्यूरिटी में जो खान साहब हैं उनके घर से जो उर्दू की चिट्ठियां आती हैं उनमें से एक ले आइए।

  इतना  सुनते ही मैं मन ही मन प्रभु को ध्याने लगा कि-हे प्रभु लाज रख लेना। अब तक मैंने कातिब की लिखी या छपी हुई उर्दू पढ़ी है किसी के हाथ की लिखी उर्दू पढ़ने का मौका नहीं मिला।

 फिर मैंने मन ही मन सोचा कि यह मेरे लिए एक चुनौती है और मुझे हर हाल में इसे जीतना है। कारण, अगर मैं चिट्ठी ना पढ़ पाया तो सीधा सा मतलब होगा कि मैंने अप्लीकेशन में गलत तथ्य दिया है कि मैं उर्दू जानता हूं।

 खैर चपरासी नीचे से सिक्युरिटी वाले खान के घर से आयी चिट्ठी लेकर आ गया। उसने वह चिट्ठी अकबर साहब को दे दी। अकबर साहब ने उसे पूरा पढ़ा और फिर मुझे थमाते हुए कहा-लीजिए इसको पढ़िये।

 मैंने मन ही मन मां सरस्वती और हनुमान जी का ध्यान किया और चिट्ठी पढ़ने लगा इसे आत्मश्लाघा ना माना जाये, लगता है सरस्वती ही जिह्वा में विराज गयीं। मैं बिना अटके सारी चिट्ठी पढ़ गया।

मैने जब उर्दू की चिट्ठी पढ़ ली तो अकबर साहब के मुंह से निकला-आप तो उर्दू जानते हैं।

मैंने कहा-साहब मैंने अपनी योग्यता के बारे में जो कुछ लिखा है उसमें एक भी बात बढ़ा-चढ़ा कर नहीं लिखी। आप चाहें तो हर मुद्दे पर मुझसे सवाल कर सकते हैं।

 इसके बाद मैं अपने प्रकाशित बाल उपन्यास, कहानियां और दूसरे आर्टिकल दिखाने लगा। संयोग देखिए सन्मार्ग में धारावाहिक प्रकाशित होने वाली शृंखला की अंतिम किस्त उसी प्रकाशित हुई थी। वह मैं अपने साथ ले गया था। मैने सुरेंद्र जी की ओर देखते हुए कहा-आप चाहें तो देख सकते हैं सन्मार्ग में प्रकाशित होने वाली मेरी शृंखला संजय का जीवन बाल्यकाल से अब तक की आखिरी किस्त प्रकाशित हुई है आप चाहें तो देख लें।

 इसके बाद सुरेंद्र जी ने जो जवाब दिया वह मेरे मन में आशा की किरण जैसा लगा।

सुरेंद्र जी ने कहा-नहीं अखबार निकालने की जरूरत नहीं, हम नियमित पेपर खरीद कर पढ़ते हैं।

उनके इस एक शब्द ने एक उम्मीद जगा दी कि चलो इनके लिए मैं अपरिचित नहीं और ये मेरा लिखा पढ़ते हैं।

 इसके बाद उन्होंने जो प्रश्न किया वह मेरे लिए परेशानी का कारण था। उन्होंने कहा इसके लिए इतने तथ्य कहां से जुटाते हैं

मैंने इतना भर काह-यह मेरा सीक्रेट है मुझे पूरा विश्वास है आप मुझे इसको उजागर करने को बाध्य नहीं करेंगे।

सुरेंद्र जी मुसकराये और अकबर साहब की ओर देखते हुए उन्होंने पूछा- इनसे और कुछ पूछना है। अकबर  साहब ने सिर हिला कर मना कर दिया।

 सुरेद्र जी ने मेरी ओर मुखातिब होते हुए कहा- आप जा सकते हैं. चिट्ठी जायेगी।

 मैं सभी को नमस्कार कर ह़ाल से बाहर निकल आया। हाल में जाते वक्त पैर भारी थे अब वे हलके लग रहे थे क्योंकि मन में एक आशाजनक शब्द गूंज रहा था-चिट्ठी जायेगी।

घर आया तो पाया भैया मेरी ही राह देख रहे थे। उन्हें सारा हाल बताया तो उन्होंने बताया कि -तुम जिन सुरेंद्र जी से मिले हो अगर मैं उनसे ना मिला होता तो शायद तुम्हें .यह अवसर ही नहीं मिल पाता। मैं तो मणि मधुकर से मिला था वे बोले थे कि हम बुला लेंगे। यह तुम्हारा सौभाग्य था कि उस दिन मैं सुरेंद्र प्रताप सिंह मिल लिया नहीं तो ना तुम अप्लीकेशन दे पाते ना तुम्हें इंटरव्यू का लेटर ही मिलता। अब मुझे पूरा विश्वास है कि चिट्ठी अवश्य आयेगी। (क्रमश;)

No comments:

Post a Comment