Monday, August 8, 2022

मायानगरी के सच ने खोल दीं युवक की आंखें

आत्मकथा-39


भाग-39

राजेश त्रिपाठी

आत्मकथा के पिछले भाग में हमने मुंबई के फिल्म उद्योग की कड़वी सच्चाई दिखाई जहां अपना भाग्य चमकाने, हीरो बनने जाने वाले नवयुवकों को किस तरह झूठा दिलासा देकर भटकाया जाता है। आपने निर्माता-निर्देशक केदार शर्मा की कहानी सुनी जिन्होंने एक थप्पड़ जड़ कर राज कपूर स्टार बना दिया। हमारे साथ कोलकाता के उपनगर से जो युवक  हीरो बनने, अभिनय की ट्रेनिंग लेने के लिए ट्रेनिंग इस्टीट्यूट में भर्ती होने की गरज से आया था उसका हौसला केदार शर्मा के मुंह से मुंबई फिल्म उद्योग की सच्चाई सुन काफी हद तक पस्त हो चुका था। हौसला खत्म नहीं हुआ था।

वह युवक मेरे भैया रुक्म जी से बोला-चाचा जी जिस एक्टिंग स्कूल का मेरे पास विज्ञापन है वहां राजेश खन्ना भी एक्टिंग सिखाते हैं। उनसे भी मिल कर पूछ लेते हैं।

भैया बोले-अरे भाई राजेश खन्ना अभी सुपर स्टार हैं। एक एक दिन में कई शिफ्ट शूटिंग करते हैं। उनके पास सांस लेने की फुरसत नहीं एक्टिंग पढ़ाने का समय वे कहां से निकाल पाते होंगे।

वह युवक बोला- फिर भी चाचा जी एक बार राजेश खन्ना जी से मिल कर जानकारी ले लेते हैं मुझे भी तसल्ली हो जायेगी।

 भैया ने कहा-ठीक है, होटल चल कर राजेश खन्ना के यहां फोन कर लेते हैं अगर वे मिलने का समय देते हैं तो मिल लेते हैं।

होटल अरोमा लौट कर राजेश खन्ना के घर आशीर्वाद में मैने ही फोन लगाया। उधर से किसी ने हलो कहा तो मैंने अपना परिचय देते हुए उनसे राजेश खन्ना जी से मिलने की इच्छा व्यक्त की। हम कोलकाता से हैं पत्रकार हैं यह सुन कर दूसरे सिरे से फोन उठाने वाले ने कहा-जल्दी आ जाइए, काका (राजेश खन्ना को उनके करीबी प्यार से इसी नाम से पुकारते थे) फिल्म रोटी की शूटिंग के लिए चांदीवली आउटडोर स्टूडियों के लिए निकलने वाले हैं।

 हम लोगों ने तुरत नीचे जाकर एक टैक्सी पकड़ी और कुछ समय बाद हम लोग बांद्रा के कार्टर रोड पर स्थित राजेश खन्ना के बंगले आर्शीवाद के सामने खड़े थे। बंगला बहुत ही आलीशान था लेकिन उसके सामने का दृश्य उतना ही बुरा। समुद्र का एक कोना उधर निकल गया था जिसमें सड़ती जलकुंभी की गंध नथुने फाड़ रही थी।यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि यह बात 70 के दशक के प्रारंभ की है। अब तो आशीर्वाद बंगला बिक चुका है उसका कोई अस्तित्व नहीं है।

 हमने बंगले के दरवाजे के पास जाकर देखा कि वहां छह-सात रंगबाज टाइप के लड़के खड़े सिगरेट फूंक रहे थे। हम दरवाजे की ओर बढ़े तो वे हमारे सामने खड़े होकर तन गये और पूछा-कहां, हमने कहा –राजेश खन्ना से मिलना है। वे बोले-दिन भर बहुत लोग आते हैं तो क्या किसी को भी अंदर जाने की इजाजत दे दी जाये। आप हैं कौन?

हम परेशान हो रहे थे क्योंकि हमें बताया गया था कि राजेश खन्ना आउटडोर के लिए निकलने वाले हैं। वे लोग हमें भीतर जाने से रोकने के लिए कटिबद्ध थे और हमें हर हाल में भीतर जाना था।

 अब मैं थोड़ी ऊंची आवाज में बोला-भाई हम लोग कोलकाता से आये हैं। राजेश खन्ना के आफिस से बात हो गयी है। उनके बुलाने पर ही यहां आये हैं।

 मेरा इतना बोलना काम आ गया। आशीर्वाद का दरवाजा खुला और उससे एक छरहरे बदन का गोरा-चिट्टा युवक निकला। उसने निकलते ही कहा-कोलकाता से कौन आये हैं।

 मैंने जवाब दिया-हम लोग आये हैं पर यह लोग ना जाने क्यों हमें रोक रहे हैं।

वह युवक बोला-आप आइए।

अब वे युवक एक ओर हट गये और हम आशीर्वाद बंगले में प्रवेश कर गये। जो युवक हमें अंदर ले गया उसने अपना परिचय राजेश खन्ना के सचिव प्रशांत के रूप में दिया। वह भी बंगाल से था। उसे यह जान कर हर्ष हुआ कि हम भी उसके प्रांत बंगाल से हैं। उसने बताया कि वह है तो बंगाली पर उसे बांगला नहीं आती। बंगाल से जब मां की बांग्ला में लिखी चिट्ठी आती है तो उसे पढ़वाने के लिए वह निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंत के पास जाता है।

 अभी हम लोगों की बात चल ही रही थी कि ऊपर से राजेश खन्ना के संबंधी के.के तलवार जी आये। वे अपनी गोद में राजेश खन्ना और डिंपल की नन्हीं-मुन्नी बेटी ट्वीकंल को लिये हुए थे। उन्होंने प्रशांत से पूछा- काका से मिलने कौन आये हैं।

प्रशांत ने हम लोगों की ओर इशारा करते हुए कहा-ये लोग कोलकाता से आये हैं। पत्रकार हैं काका से मिलना चाहते हैं।

इस पर के.के.तलवार हमसे मुखातिब हुए और बोले-आप लोग चांदीवली आउटडोर स्टूडियो पहुंचिए थोड़ी देर में हम और काका भी वहीं पहुच रहे हैं। आज काका और मुमताज की फिल्म रोटी के एक गाने की शूटिंग है।

 हम लोग तलवार साहब और प्रशांत से नमस्ते कर बाहर निकल आये और हमने अंधेरी ईस्ट में स्थित चांदीवली आउटडोर स्टूडियो के लिए टैक्सी पकड़ ली। काफी देर के बाद हम चांदीवली स्टूडियो पहुंच गये। चारों ओर पहाड़ियों से घिरी यह जगह बहुत अच्छी लग रही थी। कहीं देखा छोटा-सा गांव बसाया गया है। गोबर से लिपे घर-आंगन, सामने तुलसी का चौरा। इसे जब फिल्म में देखेंगे तो यह गांव के घर की तरह ही लगेगा। बगल में गांव के स्कूल का सेट। इन सब से पार होते हुए हम आखिरकार उस जगह पहुंच ही गये जहां फिल्म रोटी की शूटिंग होनी थी। मई का महीना था बहुत गर्मी और तीखी धूप थी। इसके बीच वहां काफी गहमागहमी थी। कैमरामैन, यूनिट के स्टाफ सभी काम में व्यस्त थे। तभी हमें तलवार साहब दिख गये। उनसे नमस्ते किया तो उन्होंने कहा-शूटिंग में थोड़ी देर है आइए तब तक आपको कैंटीन में चाय पिलाते हैं।

  तलवार हमें वहां ले गये।हम लोग बैठ गये। चाय आ गयी और चाय की चुस्कियों के बीच राजेश खन्ना के रिश्तेदार तलवार साहब ने कहा-काका की एक फिल्म आपकी कसम आ रही है .यह सुपर-डुपर हिट होगी। बहुत अच्छे गाने हैं फिर वे टेबल पीट-पीट कर उस फिल्म के गीत गाने लगे। टाइटिल सांग-जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं, करवटें बदलते रहे, जय जय शिवशंकर।

 चाय

फिल्म 'रोटी' का वही गीत दृश्य

खत्म हो गयी हम लोग उस लोकेशन पर वापस आ गये जहां शूटिंग होनी थी। वहां देखा सामने एक हरा-भरा मैदान था पेड़ों से घिरा हुआ। उस मैदान के सामने की ओर ढलान थी जो कंकड़ों से भरी थी। हमने देखा कुछ लोग एक रिकार्ड प्लेयर में फिल्म का गाना गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर गोरा रंग दो दिन में ढल जायेगा बजा रहे हैं। इसी गाने की शूटिंग होनी थी। बगल में एक छोटा-सा पोखरा था। हम बता चुके हैं कि मई का महीना था, तीखी धूम थी बहुत गर्मी थी। यहां बारिश में भीगते हुए राजेश खन्ना और मुमताज पर दृश्य फिल्माया जाना था। थोड़ी देर में डाइरेक्टर चिल्लाया फाग मारो हमने देखा एक आदमी जो उस तरह का छोटा सा हैंड हेल्ड स्टोव लिए था जिसे पकड़ कर स्वर्णकार गहनों की झलाई करते हैं। उसने उसमें कोई केमिकल डाला और चारों ओर धुआं ही धुआं फैल गया। ऐसा लग रहा था कि हम किसी पहाडी धुंध के बीच हैं। दरअसल यह चांदीवली स्टूडियों के उस कोने को कश्मीर का हिस्सा बनाने की कोशिश हो रही थी। दूसरी ओर से आवाज आयी बारिश। देखा दूर पोखरे में पंपिंग सेट लगा था और उसका पाइप पकड़े  एक व्यक्ति पास के पेड़ पर चढ़ा था उसने नीचे खड़े राजेश खन्ना पर पानी डाला तो वे चिल्लाये-अरे यार जला डाला। वे एक ओर हट गये और अपना सिर पोछने लगे। हुआ यह था कि तीखी धूप में पोखरे का पानी काफी गरम हो चुका था। किसी ने सलाह दी कि पांपिंग सेट चला कर इस छोटे पोखरे का कुछ पानी निकाल दो। लगभग आधे घंटे बाद जब बारिश की गयी तो वह पानी बरदाश्त करने लायक हो गया था। हमें बताया गया कि दृश्य कुछ इस प्रकार है कि राजेश खन्ना गाते हुए आते हैं और कान में हाथ टिकाये कूल्हे ऊपर किये मुमताज की नब्ज चेक करने की कोशिश सी करते हैं और फिर उसके कूल्हे पर लात मारते हैं और मुमताज कंकड भरी जमीन पर दूर तक लुढ़कती जाती है। सीन ठीक ही था लेकिन डांस डाइरेक्टर ने ओके नहीं किया। ऐसी ही क्रिया कई बार दोहरायी गयी और सीन ओके नहीं हुआ तो मुमताज फनफनाती हुई डांस डाइरेक्टर के पास आयीं और गुस्से से तमतमाते गुए बोलीं-तेरी ऐसी की तैसी, इन कंकड़ों से मेरा कचूमर निकला जा रहा है और तुम्हारा डांस ओके नहीं हो रहा।

  इतना सुनते ही के के तलवार ने अपने एक असिस्टेंट से कहा-अरे यार जाओ काका को समझाओ मैडम से बदला किसी और की फिल्म में ले लेगा मुझे ही डुबायेगा क्या। मेरी फिल्म पूरी है  सिर्फ यही गाने का पैच वर्क बाकी है। मुमताज मैडम इन दिनों इतना बिजी हैं कि यह सीन आज ओके नहीं हुआ तो उनकी डेट पाना मुश्किल हो जायेगा मेरी फिल्म अटक जायेगी।

 असिस्टेंट ने जाकर काका के कान में कुछ कहा और उधर डांस डाइरेक्टर ने मुमताज मैडम से केवल एक मौका और देने का आग्रह किया और वह मान गयीं। सीन ओके हो गया।

 हमने तलवार साहब से पूछा गलती क्या हो रही थी। वे बोले-हर सीन की ळूटिंग के वक्त कलाकार के शूटिंग एरिया में एंटर करने और सीन खत्म होने पर एक्जिट करने की दिशा तय होती है। काका गलत दिशा से एक्जिट कर रहा था।

 हमने पूछा-आपने अपने असिस्टेंट से कहा कि काका को कहो किसी और फिल्म में मैडम से बदला ले लेगा। यह क्या घटना है।

वे बोले किसी फिल्म की शूटिंग में मुमताज मैडम ने काका को ऐसा तमाचा जड़ा था जिसके निशान कई दिनों तक बने रहे। उसी का बदला।

 शूटिंग से निकल कर राजेश खन्ना हम लोगों की ओर आये और पूछा-हां बताइए आपको क्या जानना है।

 हमने एक्टिंग स्कूल का विज्ञापन दिखाते हुए पूछा-इस्टीट्यूट यह दावा करता है कि आप वहां अभिनय का प्रशिक्षण देते हैं।

 हमारा प्रश्न सुनकर राजेश खन्ना मुसकराये और बोले-चार-चार शिफ्ट शूटिंग कर रहा हूं दम लेने की फुरसत नहीं। मेरे पास टाइम कहां कि मैं किसी इंस्टीट्यूट में प्रशिक्षण दूं। मैं तो इस इंस्टीट्यूट का नाम पहली बार आपसे सुन रहा हूं।

 हम बात कर ही रहे थे कि तभी पांच-छह युवतियां आयीं और वहां खड़ी राजेश खन्ना की कार को चूमने लगीं।

 रहा नहीं गया तो राजेश खन्ना से पूछा-आपको यह अच्छा लगता है।

 राजेश खन्ना बोले-बिल्कुल नहीं लेकिन मैं इन्हें मना भी नहीं कर सकता, मेरे प्रशंसक कम हो जायेंगे। इन्हें यह करना अच्छा लगता है, इन्हें आनंद मिलता है करने दीजिए ना। मेरा क्या जाता है।

हमने राजेश खन्ना के सामने ही अपने साथ आये युवक से कहा कि –भाई सुन लिया राजेश खन्ना कह रहे हैं कि उन्होंने उस इंस्टीट्यूट का नाम ही नहीं सुना जो दावा करता है कि ये वहां एक्टिंग सिखाते हैं।

 हम लोग होटल अरोमा वापस लौट आये।

दूसरे दिन हम लोग फिर स्टूडियो गये। याद नहीं आ रहा वह शायद रूपतारा  था या श्री साउंड। वहां एक सेट पर मोहन सहगल की फिल्म वो मैं नहीं की शूटिंग चल रही थी। वहां अभिनेता राकेश पांडेय से भेंट हुई। उनसे काफी देर तक बातें होती रहीं। तभी वहां एक अधेड व्यक्ति ने प्रवेश किया। वह कुर्ता पहने थे और बंगल में झोला लटकाये थे। मैंने पूछा-यह कौन। राकेश पांडेय कुछ बोलें इससे पहले वहां बैठी एक युवती ने कहा-मुशी जी हैं। मैं समझ नहीं पाया और राकेश पांडेय का मुंह ताकने लगा वे बोले-यह डायलाग डाइरेक्टर हैं संवाद संकेतक। कोई कलाकार सही ढंग से संवाद नहीं बोल पाता तो यह सही उच्चारण करवाते हैं।

 तभी देखा सामने एक पलंग में युवती लेटी है। सामने से एक सहायक अभिनेता आता है उसके आते ही कैमरामैन लाइटमैन सभी सतर्क हो जाते हैं। कैमरा रोल करता है वह युवती किसी का नाम लेती है इस पर वह सहायक अभिनेता चिल्लाता है-यह किस मनहूस का नाम ले लिया टुमने। सीन कट होता है तो मुंशी जी यानी संवाद संकेतक उस आर्टिस्ट को समझाते हैं-भाई टुमने नहीं तुमने। वह बार-बार टुमने ही कहता रहता है।

 मैंने राकेश पांडेय से पूछा-अब क्या होगा।वे बोले –बाद में डब कर लिया जायेगा।

स्टूडियो में अभिनेता चंद्रशेखर (वही चंद्रशेखर जिन्होंने रामानंद सागर के प्रसिद्ध सीरियल में भूमिका की थी) मिल गये जो मेरे भैया रामखिलावन त्रिपाठी रुक्म के घनिष्ठ मित्र रहे हैं। भैया के साथ मैं पहले उनसे मिल चुका था इसलिए पहचानते थे। वे मेकअप कर रहे थे। वे जिस तरह के ब्रश से दीवाल रंगी जाती है उसी तरह के ब्रश से अपने गालों का मेकअप कर रहे थे।

                                      अभिनेता चंद्रशेखर

उन्होंने कहा-देखना अभी मेरा चेहरा चमकने लगेगा। हीरोइनें इसी तरह अपने चेहरे को कश्मीरी सेब की तरह सुंदर बना लेती हैं। रीत के इसे उतारने में बहुत कष्ट होता है।

   किसी से सुना कि पास के एक कमरे में फिल्म वो मैं नहीं की हीरोइन रेखा मेकअप कर रही हैं। मैं अपनी पुस्तक फिल्मी सितारे उन्हें भेंट करना चाहता था। यह अच्छा अवसर था। मैंने देखा मेकअप रूम का दरवाजा आधा खुला है। एक लड़का कोल्ड ड्रिंक लेकर अंदर घुसा। मैं भी धीरे से उसके पीछे हो लिया। रेखा मेकअप के बाद कपड़े पहन रही थीं। पास ही उनकी हेयर ड्रेसर थी  वह बोली-क्या लेना। मैंने कहा-लेना नहीं देना।

 तब तक रेखा आगे आयीं। मुझसे हाथ मिलाया और बोलीं-बताइए क्या बात है।

मैंने अपनी पुस्तक फिल्मी सितारे उन्हें देते हुए  कहा-इसमें आप भी हैं। रेखा से मुलाकात के बाद मैं बाहर आया।

बाहर आया तो भैया बोले जिस फिल्म की शूटिंग चल रही है उसके निर्देशक मोहन सहगल मुझे पहचानते हैं चलो उनसे भी मिल लेते हैं।

  हम लोग बाहर आये तो देखा खाना खा कर मोहन सहगल चावल भरे हाथ धोने जा रहे हैं। भैया को देख उन्होंने हाथ उठा कर ठहरने को कहा। हाथ धोकर आये तो भैया से बोले- बोलिए त्रिपाठी जी।

भैया ने साथ आये युवक की अभिनय की अभिलाषा की बात बतायी और एक्टिंग इंस्टीट्यूट का जिक्र किया।

मोहन सहगल बोले-अगर ये सचमुच अभिनय के क्षेत्र में आना चाहते हैं तो मैं इधर-उधर खुले ढेरों इंस्टीट्यूटों में जाने को मना करूंगा। ये पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट में जाना चाहें तो मैं पत्र लिख दूंगा इनका एडमीशन हो जायेगा। यही सही तरीका है। नवीन निश्चल जब मेरे पास फिल्मों में मौका देने का आग्रह लेकर आया तो मैंने पहले उसे फिल्म इंस्टीट्यूट से प्रशिक्षण लेने को कहा। प्रशिक्षण पूरा कर के लौटने के बाद मैंने ही उसे चांस दिया। मेरी जिस फिल्म का सेट यहां लगा है वो मैं नहीं उसका हीरो वही है।

 मोहन सहगल जी को नमस्कार कर हम लोग वापस होटल अरोमा लौट आये। ये सारे प्रसंग इस आत्मकथा में जोड़ने का तात्पर्य यही है कि यह मेरे सामने हुआ और इसका तात्पर्य यह भी है कि फिल्मों में जाने  के दीवानों को वहां की असलियत बतायी जाये ताकि वे ठगे जाने और जिंदगी भर पछाताने से बच जायें।

 हमने देखा हमारे साथ गये उस युवक की आंखें खुल गयी हैं। वह मेरे भैया से बोला-चाचा जी देख ली यह दुनिया। आपने सही कहा था कि आर्क लैंप के चकाचौंध के पीछे बहुत ही गहरा डराने वाला अंधेरा है। ऐसा करते हैं दो-एक दिन मुंबई घूम लेते हैं फिर कोलकाता लौट चलते हैं। अच्छा हुआ आपने मेरा सच से साक्षात्कार करा दिया। (क्रमश:)

 


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