भाग-4
तब क्यों होता फर्क
कितने जन भोजन बिना
तड़प-तड़प मर जांय।
सरकारी गोदाम
में अन्न पड़ा सड़ जाय ।।
सब जन प्रभु की देन
हैं, तब क्यों होता फर्क।
कुछ तो सिंहासन चढ़े, कुछ का बेड़ा गर्क ।।
कलियुग में सब
जनों पर नहीं करें विश्वास।
मधुर मधुर बतियाय कुछ
सज्जन को ले फांस।।
सदा खुशी
रहता वही जिसमें
हो संतोष ।
जिसे अधिक की लालसा,
देय भाग्य को दोष।।
श्रद्धांजलि
याद किया जाता वीरों
को जिस दिन वे शहीद होते हैं।
मालाएं पहना
कर नेता, घड़ियाली आंसू रोते हैं
।।
लंबे चौड़े
भाषण होते, जम कर होती खूब प्रशंसा ।
अखबारों में नाम
छपेगा, असल यही होती है मंशा ।।
शेष तीन सौ चौसठ दिन
तक, मूर्ति गंदगी से भर जाती।
पक्षी बैठ बीट करते
हैं, नहीं किसी को सुधि तब आती ।।
ऐसा करने से अच्छा है, करें मूर्ति
की सदा सफाई ।
यही श्रेष्ठ
श्रद्धांजलि होगी, नेताओं को यदि यह भाई।।
माया वाला रोग
अपना सब कुछ भूल कर,
चलें गैर की चाल।
आज विदेशी लगें वे,
अद्भुत उनकी चाल ।।
धनकुबेर तो बन गये,
किंतु और की चाह ।
इसीलिए वे आजकल,
चलें गलत सब राह।।
जो बन जाता है कभी
धन दौलत का दास।
मानवता उससे डरे,
कभी न आती पास ।।
नहीं संग कुछ जात है,
जानत हैं सब लोग।
किंतु न पीछा छोड़ता, माया वाला रोग ।।
साहस हारे कवि से
कविता लिखना बहुत
कठिन है, कवि बनना आसान नहीं है।
पंत, निराला,
बच्चन जैसे, कवियों की अब शान नहीं है।।
बात नहीं जंचती हमको यह, दिल छोटा क्यों करते
प्यारे ।
ऐसा लिखो
जमाना चौंके, श्रोता अर्थ
लगा कर हारे ।।
रबड़ छंद
के चलते अब तो
, सारे टूट गये
हैं बंधन।
जहां ‘आग’ का तुक लिखना हो,
साहस कर लिख मारो ‘चंदन’।।
पांडे, बच्चन
ने लिख डाली, ‘हल्दीघाटी’ औ ‘मधुशाला’ ।
साहस कर के
तुम लिख
मारो, ‘चूनाघाटी’ ‘खटमलशाला’।।
चाह नहीं है
चाह नहीं संपादक बन
कर, जो मन आये छपवाऊं।
चाह नहीं आफीसर बन
कर, मनचाही रिश्वत पाऊं।।
चाह नहीं
घुसखोरी करके, महल दोमहले बनवाऊं।।
चाह नहीं लीडर बन कर
के, जनता को नित भरमाऊं।।
चाह नहीं तस्कर बन
कर के, धन कुबेर मैं कहलाऊं।
चाह नहीं दल बदल करॉं
फिर, ऊंचा पद पा इतराऊं।।
चाह यही है हे
वनमाली, भ्रष्ट जनों से मुझे बचाना।
ऐसों के दर्शन पाकर
के , नहीं नर्क हमको है जाना।।
नारी तुम हो केवल
श्रद्धा
नारी तुम अतशिय उदार
हो, है महान व्यक्तित्व तुम्हारा।
तुमने अर्पण ही सीखा है, स्वीकारो तुम नमन हमारा ।।
एक और व्यक्तित्व तुम्हारा,आज विश्व भर में है
छाया।
विज्ञापन की तुम हो शोभा, अजब तुम्हारी देखी माया।।
साबुन, शैंपू,
तेल, तौलिया, देखे
तरह-तरह विज्ञापन।
शर्टिंग, सूटिंग,
काजल, सुरमा, मरहम, क्रीम, दांत का मंजन।।
नारी तुम
केवल विज्ञापन समझ रहे,
जो करते धंधा ।
किंतु तुम्हें हम सदा
मानते, नारी तुम हो केवल श्रद्धा ।।
शुद्धिकरण
राजनीति में शुद्धिकरण
की, लोग सदा करते हैं चर्चा।
भीषण भाषण में
नेतागण, शब्द बहुत करते हैं खर्चा।।
‘नहीं पालते बाहुबली हम, दागी नहीं एक भी रहता।’
ताज्जुब खुद अपराधी
होता, सो ऐसा ही दावा करता।।
कितने ऐसे होते
मंत्री, जिनकी छवि हो भ्रष्टाचारी।
मालाओं से लादे
जाते, खूनी, अपहर्ता, व्यभिचारी।।
केवल भाषण में सुनते
हैं, शुद्धिकरण की अगणित बातें।
जिनके श्रीमुख से यह
सुनते वही कर रहे छिप कर घातें।।
नहीं तरक्की पाय
‘रुक्म’ जगत में आय कर, कर
लीजै यह काम।
बिना परिश्रम धन
जुटे, कष्ट ना पावे चाम ।।
ऐसी बानी
बोलिए, अपना आपा
खोय।
जिसमें दहशत हो भरी,
घूस ना मागे कोय।।
ज्यों-ज्यों कलियुग
बढ़ रहा, नारि उघरती जाय।
त्याग, लाज, संकोच
सब अंग- अंग दर्शाय ।।
ठकुरसुहाती नहीं कहें, खरी बात बक
जांय।
बात बिगाड़े
आपनी, नहीं तरक्की
पाय ।।
फर्ज
इच्छा है या अनंत
सागर, जिसका मिलता है छोर नहीं।
मैं तो रानी अब ऊब
गया,पर तुम होती हो बोर नहीं।।
फरमाइश फर्ज न बीबी
का, यह फर्ज महज महबूबा का।
तुम जब फरमाइश करती
हो, करती हो काम अजूबा का।।
पहले देखो
सोचो, समझो, कितनी भूलें कर डाली हैं।
यह घर या ट्रेन की
बोगी है, कोई भी जगह न खाली है।।
दिन रात मचे धक्कम धुक्का, गाली-गलौज मारा पीटी ।
कोई तो दांत
निपोर रहा, कोई मारे
लंबी सीटी।।
आज हमें चाणक्य
चाहिए
जन प्रतिनिधि कहलाने
वाले अगर सुरक्षा ले चलते हैं।
इसका अर्थ
यही होता है, जनता से डरते रहते हैं ।।
छोटे नेताओं
को देखा, वे भी चाह
रहे हैं पहरा ।
वह सब देख और सुन
कर, हमको लगता सदमा गहरा।।
नेता वह जो पूजा
जाये, सबकी हो आंखों का तारा ।
नहीं किसी का उसको
डर हो,जन-जन का हो राजदुलारा।।
हमें आज चाणक्य सरीखा, अगर कहीं नेता मिल जाये।
इसमें नहीं जरा भी
शक है, अपना देश स्वर्ग बन जाये।।
कैसे कहें जवान?
कहां गयी अपने
तरुणों की, केहरि-सी वह चाल।
इस्पाती वक्षस्थल
दिखता, ज्यों राणा की ढाल।।
पदघात करते
धरती से, बह उठता था नीर ।
अब इतिहासों के
पृष्ठों पर मिलते हैं वे वीर ।।
झुका नयन ऐसे चलते हैं, जैसे चलता दूल्हा।
लज्जा से मुस्काती
तरुणी,देख लचकता कूल्हा।।
तरुणायी में कटि झुक
जाती, कैसे कहें जवान।
इनसे तो बहु वृद्ध
महाशय, दिखते हैं बलवान।।
बदल न जाये सेक्स
ब्लाउज सी
बुशर्ट पहनते, लड़के
केश बढ़ाते।
रह-रह अलक झटकते
चलते,कमर नयन मटकाय।।
कोई ऐसा
वेश बनाता, पतले स्वर में गाता ।
लड़का है या लड़की
भैया, भेद समझ ना आता।।
रूप बदलने की लगी
होड़, बढ़ी आज बीमारी ।
भय है कहीं दिखाई ना
दे, लड़कों के तन सारी।।
फैशन की इस
प्रदर्शनी पर,अगर लगी ना रोक।
भय है सेक्स बदल ना
जाये,चलेगी यह बेटोक।।
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