अपनों से विनम्र निवेदन
गुरुजनों, बंधुजनों, प्रियजनों, विद्वदजनों आज मकर संक्राति पर्व के पावन अवसर पर आपको एक शुभ संदेश देने का मोह संवरण नहीं कर पा रहा। सत्यदेव की कृपा, जगन्नियंता की महती अनुकंपा से आज मेरी एक अभिलाषा पूर्ण हुई। यह प्रभु की ही कृपा थी कि उन्होंने एक भगीरथ कार्य का संपादन मुझ दास से कराने की कृपा की वह है सत्यनारायण व्रत कथा के संपूर्ण पांच अध्यायों का राधेश्याम तर्ज में पद्यानुवाद। इस कार्य में मुझे अपने भैया और गुरु दिवंगत रामखिलावन त्रिपाठी 'रुक्म' का प्रोत्साहन और सहयोग मिला जिसके बिना शायद ही यह कार्य संपन्न हो पाता। मैं हृदय से आभारी हूं कन्हैया कैसेट झांसी के मालिक भाई श्री दीपक सेठ जी का जिन्होंने इस कथा को गीत-संगीत के रूप में प्रस्तुत करने का
श्रेयष्कर कार्य किया। आज यह कथा जिस संगीतमय मधुर रूप में आपके सामने है उसका सारा श्रेय दीपक भाई को जाता है। उन्होंने अपने स्टूडियो में न सिर्फ इसके लिए विशेष सेट बनाये अपितु व्यक्तिगत रुचि लेकर इसे तैयार किया। मैं इसके लिए आजीवन उनका आभारी रहूंगा। मेरा सपना था कि इसे प्रख्यात संगीतमय कथा वाचक, भजनों के सरस गायक, बुंदेली गौरव पंडित चंद्रभूषण पाठक जी अपना सशक्त स्वर प्रदान करें। पंडित जी ने मेरा आग्रह स्वीकार किया और तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद मेरे लिए समय निकाला और अपने ओजपूर्ण स्वर से इस रचना को अमर कर दिया। उनके चरणों में श्रद्धा सहित प्रणाम। मुझ पर इस कृपा के लिए मैं जीवन भर उनका आभारी रहूंगा। धन्यवाद चंद्रभूषण पाठक जी। यहां मैं सन्मार्ग के संपादक रहे भाई श्री हरिराम जी पांडेय को याद करना कैसे भूल सकता हूं जिन्होंने यह काम करने का सुझाव दिया । पांडेय जी आपको भी धन्यवाद। कथा पांच भागों में है, यहां सभी लिंक दे रहा हूं। कृपया भक्ति भाव से सुनिए और मुझे आशीष दीजिए।
श्रेयष्कर कार्य किया। आज यह कथा जिस संगीतमय मधुर रूप में आपके सामने है उसका सारा श्रेय दीपक भाई को जाता है। उन्होंने अपने स्टूडियो में न सिर्फ इसके लिए विशेष सेट बनाये अपितु व्यक्तिगत रुचि लेकर इसे तैयार किया। मैं इसके लिए आजीवन उनका आभारी रहूंगा। मेरा सपना था कि इसे प्रख्यात संगीतमय कथा वाचक, भजनों के सरस गायक, बुंदेली गौरव पंडित चंद्रभूषण पाठक जी अपना सशक्त स्वर प्रदान करें। पंडित जी ने मेरा आग्रह स्वीकार किया और तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद मेरे लिए समय निकाला और अपने ओजपूर्ण स्वर से इस रचना को अमर कर दिया। उनके चरणों में श्रद्धा सहित प्रणाम। मुझ पर इस कृपा के लिए मैं जीवन भर उनका आभारी रहूंगा। धन्यवाद चंद्रभूषण पाठक जी। यहां मैं सन्मार्ग के संपादक रहे भाई श्री हरिराम जी पांडेय को याद करना कैसे भूल सकता हूं जिन्होंने यह काम करने का सुझाव दिया । पांडेय जी आपको भी धन्यवाद। कथा पांच भागों में है, यहां सभी लिंक दे रहा हूं। कृपया भक्ति भाव से सुनिए और मुझे आशीष दीजिए।
प्रेम और श्रद्धा से बोलिए सत्यनारायण भगवान की जय
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