आनंद बाजार प्रकाशन के हिंदी साप्ताहिक रविवार में काम करते वक्त मेरे कैरियर में एक और मोड़ आया। मेरी वहां ड्यूटी पांच बजे तक थी। घर वापस लौटते वक्त मैं ठनठनिया काली मंदिर के पास बेचू चटर्जी स्ट्रीट स्थित मशहूर चित्रकार होरीलाल साहू जी के पास कुछ देर के लिए रुकता उन्हें पेंटिंग करते देखता, उनसे बातचीत करता फिर वीणा सिनेमा के पास से 46 नंबर बस पकड़ कांकुड़गाछी स्थित अपने फ्लैट लौट आता। यहां बता दूं कि होरीलाल जी भैया के परिचितों में ले थे। उनका परिचय बंबई (अब मुंबई) में हुआ था जहां वे मशहूर पेंटर और फिल्मों के आर्ट डाइरेक्टर रामकुमार शर्मा के असिस्टेंट हुआ करते थे। रामकुमार शर्मा के असिस्टेंटों में भैया के बुंदेलखंड के बांदा के बालसखा मनीष गुप्त भी थे। होरीलाल जी से भैया का वह परिचय उस वक्त भी बराबर जारी रहा जब होरीलाल जी कोलकाता में आकर बल गये। होरीलाल जी ने आर्ट की शिक्षा पहले कोलकाता के इंडियन कालेज आफ आर्ट ऐंड ड्राफ्टमैनशिप से पायी उसके बाद उन्होंने जे जे स्कूल आफ आर्ट से आर्ट की शिक्षा पायी। मूलत: वे बनारस के रहनेवाले थे। मैं अक्सर उनके पास बैठ कर उनका काम देखता था। एक दिन उनके वे टीचर आये जिन्होंने उनको इंडियन आर्ट कालेज में पढ़ाया था। होरीलाल जी जब स्टूडियो से अंदर घर चले गये मास्टर मोशाय के लिए चाय बनाने के लिए कहने उस समय मास्टर मोशाय ने कहा-होरीलाल है तो मेरा स्टूडेंट पर इसमें जो गुण है वह मुझमें नहीं। मुझे अगर किसी से अपने दिवंगत प्रियजनों की आयल पेंटिंग बनाने का आर्डर मिलता है तो वे उसमें कुछ ना कुछ खोट निकाल देते हैं और मुझे होरीलाल से ठीक कराना पड़ता है। अगर आर्ट में रुचि हो तो इससे बहुत कुछ सीख सकते हो।
तब तक होरीलाल जी भीतर के घर से स्टूडियो में वापस आ गये। मास्टर मोशाय उनसे बोले-अरे तुम्हारे राजेश जी भी आर्ट में बहुत रुचि रखते हैं।
जबकि यह बात है उन दिनों होरीलाल जी सन्मार्ग हिंदी दैनिक के उस विशेषांक का चित्रांकन कर रहे थे जिसका संपादन मेरे भैया रामखिलावन त्रिपाठी ‘रुक्म’ कर रहे थे। उनके प्रति होरीलाल जी की श्रद्धा इस कदर थी कि जब तक वे जीवित रहे दीपावली में भैया को एक धोती और मिठाई देने आते रहे।
जब मास्टर मोशाय चले गये तो होरीलाल जी मुझसे बोले-राजेश जी चलिए आपको कल इंडियन आर्ट कालेज में भर्ती करा देते हैं।
दूसरे दिन मैं आनंद बाजार कार्यालय से हमेशा की तरह होरीलाल जी के घर पहुंच गया। वे तैयार ही बैठे थे। हम दोनों आर्ट कालेज पहुंचे कालेज में प्रवेश के पूर्व मेरा इंटरव्यू लिया जाने लगा। कालेज के प्रिंसिपल ने होरीलाल जी से कहा-होरीलाल तुम भी इंटरव्यू दे दो हमारे यहां शिक्षकों की कमी है।
मैं छात्र के रूप में और होरीलाल जी शिक्षक के रूप में इंटरव्यू पास कर गये। पांच बजे के बाद मेरी आनंद बाजार कार्यालय से छुट्टी होती और मैं पैदल धर्मतला स्ट्रीट से सियालदह की ओर चल पड़ता जहां सड़क के बगल में हमारा कालेज था। वह कोई पुरानी ब्लिडिंग थी।
हमारे क्लास शुरू हुए। फोलियज से लेकर न्यूड स्टडी, वाटर कलर, आयल पेंटिंग एचिंग और अन्य पद्धतियां सिखायी जाने लगीं। एक दिन स्केलटन यानी कंकाल की ड्राइंग का क्लास चल रहा था। सामने स्केलटन टंगा था उसे देख कर ड्राइंग बनानी थी। हमारा संध्या का क्लास था जो आठ-नौ बजे तक चलता था। एक दिन ऐसा हुआ कि कंकाल सामने टंगा था और हम लोग उसे देख कर ड्राइंग कर रहे थे। अचानक बिजली चली गयी और अंधेरे में वह कंकाल और अधिक चमकने लगा। हमारे कुछ साथी बहुत शरारती किस्म के थे। वे हम सब को डराने के लिए बोले-यह कालेज कभी एक जमींदार का बंगला था। कहते हैं जमींदार अपने दुश्मनों को लाता था और यहीं खून कर नीचे के तहखाने में गाड़ देता था। अब आप ही बताइए सामने कंकाल टंगा हो और कोई ऐसी कहानी सुनाए कि इस ब्लिडिंग के तहखाने में लाशें गाड़ी जाती थीं तो कलेजा मुंह को आयेगा ही।
खैर किसी तरह से हमने फाइन ऐंड विजुअल आर्ट का वह डिप्लोमा कोर्स पूरा किया जो बाद में डिग्री कोर्स हो गया।
आगे बढ़ने से पूर्व होरीलाल जी के विनोदी स्वभाव का प्रसंग। आर्ट कालेज से मैं होरीलाल जी ठनठनिया काली बाडी तक पैदल आते थे फिर वे अपने घर चले जाते और मैं 46 नंबर बस पकड़ कर कांकुड़गाछी चला आता। एक दिन रास्ते में उन्हें दो बड़े-बड़े पान बनवाते देख मैंने पूछा- दो पान किसके लिए।
वे बोले- तूली (होरीलाल जी की बेटी) की मां के लिए। पता नहीं क्यों सुबह से मुंह फुलाये है। जाते ही दो बड़े-बड़े पान थमा दूंगा। इन्हें खत्म करते करते उसका गुस्सा भी खत्म हो जायेगा।
हमारा कोर्स खत्म हुआ तो परीक्षा की बारी आयी। पता नहीं क्या विवाद था कि कालेज में परीक्षा नहीं हो पा रही थी। बड़ी मुश्किल से धर्मतला के एनसीसी टेंट में परीक्षा आयोजित करने का कार्यक्रम बना। अब माडेल कहां से जुटाया जाये। हमारे प्रिंसिपल को एक देशवाली आदमी भुने चने बेंचते दिखा। छात्रों में मैं ही एक हिंदीभाषी था। प्रिंसिपल ने कहा –जाओ तुम्ही इस आदमी को माडेल बन कर बैठने को राजी करो। यह जरूर कहना कि रुपये मिलेंगे।
मैं गया और उस आदमी को समझा –बुझा कर ले आया। वह माडेल के रूप में बैठा ही था कि हमारे कालेज के कुछ परले दर्जे के शैतान छात्रों ने उससे कहा-जानते हो तुम्हारी तस्वीर क्यों बनायी जा रही है। यह तस्वीर पुलिस को दे दी जायेगी और पुलिस कल से तुम्हारा यहां चना बेचना बंद करवा देगी। तुम्हें
इतना सुनना था कि वह आदमी चने से भरा अपना टोकरा उठा कर तेजी से भागता हुआ बाहर निकल गया।
प्रिंसिपल ने यह देखा तो मुझसे पूछा- क्या हुआ यह माडेल भाग क्यों गया?
मैंने कहा-हमारे कुछ साथियों की करतूत से उन्होंने उसे डरवा दिया कि यह जो तुम्हारी तस्वीर बना रहे हैं उसे पुलिस को दे देंगे और वह तुम्हें गिरफ्तार कर लेगी।
प्रिंसिपल ने दोनो छात्रों को बहुत डांटा और मुझसे कहा- देखो एक बार कोशिश करो उसे मनाने की। बड़ी मुश्किल से यह एनसीसी टेंट मिला है अगर यहां भी परीक्षा ना हो पायी तो फिर नहीं ही होगी।
प्रिंसिपल की आज्ञा पाकर मैं दौड़ा-दौड़ा गया। चना बेचनेवाला वह व्यक्ति पास ही मिल गया। मैंने उसे समझाया कि वे छात्र बदमाश हैं। वे नहीं चाहते कि कुछ घंटे यहां बैठने के तुम्हें अच्छे-खासे पैसे मिल जायें। तुम मुझ पर विश्वास करो पहले पुलिस तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती और अगर ऐसा कुछ हुआ भी तो मैं अखबार में काम करता हूं मैं तुम्हें छुड़ा लूंगा।
मैं अखबार में काम करता हूं लगता है यह बात उसे भरोसे की लगी। वह आया और माडेल के रूप में बैठा और हमारी परीक्षा संपन्न हुई। एक कालेज की परीक्षा एनसीसी टेंट में
हो रही है यह अपने आप में एक खबर थी। क्या कारण है कि अपना कालेज होने के बावजूद छात्र वहां से दूर एक एनसीसी टेंट में परीक्षा दे रहे हैं। कालेज में परीक्षा होती तो माडेल के लिए चनेवाले को ना पकड़ना होता। वहां तो रेगुलर बेसिस पर पुरुष और महिला माडेल थीं जिनको दैनिक पेमेट दिया जाता था। टेंट में परीक्षा हो रही है तो इसे कवर करने आनंदबाजार पत्रिका का फोटोग्राफर आया। यह फोटो जो ऊपर आप देख रहे हैं उसमें लाल तीर का निशान जिस तस्वीर पर लगा है वह मेरी है। यह फोटो परीक्षा के समय की है। (क्रमश:)
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