मदन पुरी और किशोर कुमार से जुड़े रोचक प्रसंग
(भाग-10)
राजेश त्रिपाठी
राजेश त्रिपाठी
इस कहानी को वापस मुंबई ले चलने से पहले एक प्रसंग रुक्म जी
के मामा मंगल प्रसाद तिवारी के ग्राम जुगरेहली का
लिये लेते हैं। यह प्रसंग उनके एक और रूप की झलक पेश करता है। रूप जो औरों
को साहित्य लेखन को प्रोत्साहित करता है। जुगरेहली पूरन नाम के एक व्यक्ति की
ससुराल थी जो बांदा के पास के गांव पल्हरी के रहने वाले थे। वह कविताएं लिखते थे और उनकी एक खंड काव्य रचने
की इच्छा थी लेकिन उन्हे ऐसा कोई एक वाक्य नहीं मिल रहा था जिसे आधार बना कर वह
अपने खंडकाव्य को रचते। रुक्म जी एक बार जुगरेहली गये थे। संयोग से पूरन भी उसी
वक्त अपनी ससुराल जुहरेहली पहुंचे थे। उन्होंने रुक्म जी के बारे में सुन रखा था
कि वे कथाकार और कवि हैं। उन्होंने उनसे मिल कर अपनी कुछ कविताएं दिखायीं और उनसे
कहां कि वे उनको कोई ऐसा आधार-वाक्य दें जिसके सहारे वह एक खंडकाव्य रच सकें। रुक्म
जी ने उनकी कविताएं देखीं जो भक्ति भाव से भरी थीं। उन्होंने उनको जो आधार वाक्य
दिया वह था – ‘जानत जहान पर मानत ना
कोई है’ उस एक वाक्य के
सहारे उन्होंने पूरन ने पूरा एक खंड काव्य लिख डाला।
चलिए वापस इस कहानी को मायानगरी मुंबई ले चलते हैं.। यह कहना अनुचित
नहीं होगा कि साप्ताहिक फिल्मी अखबार ‘स्क्रीन’ व दूसरी पत्रिकाओं के संपादन के चलते रुक्म जी का एक पैर मुंबई में रहता था। हर
य़ात्रा में अभिनेता अभिनेत्रियों व दूसरे लोगों से उनकी जान-पहचान का दायरा भी बढ़ता जा रहा
था। इनमें एक थे मशहूर खलनायक मदन पुरी। लाहौर में जन्में मदन पुरी ने अपने जीवन में तकरीबन 400 फिल्मों में काम किया।
मदन पुरी |
मदन पुरी के दो भाई अमरीश पुरी और चमन पुरी
भी फिल्मों में थे। मदन पुरी अपने समय के हिंदी फिल्मों सबसे सफल और लोकप्रिय
चरित्र अभिनेता थे जिन्होंने चंद फिल्मों को छोड़ कर अक्सर खलनायक की ही भूमिकाएं
निभायीं। मदन पुरी से भी रुक्म जी का अच्छा परिचय हो गया था। अपनी एक मुंबई य़ात्रा में जब वे मदन पुरी से
मिलने गये तो वे नगर के बाहरी हिस्से में शूटिंग के लिए जा रहे थे। वे रुक्म जी से
बोले-‘मैं शूटिंग के लिए
निकल रहा हूं। चलिए गाड़ी में बैठ जाइए, रास्ते में बातें करते रहेंगे, आप वहां चल
कर शूटिंग की भी कवरेज कर लीजिए।‘ रुक्म जी राजी हो गये और मदन पुरी के साथ कार में बैठ कर निकल पड़े।
अभी कार एक चौराहे में पहुंची ही थी कि सामने से
आते युवकों के एक झुंड ने मदन पुरी को देखते ही चिल्लाना शुरु कर दिया-‘देख सा....(गाली) विलेन जा रहा है।‘ इतना ही नहीं उनमें से एक न तो मदन पुरी की कार की
ओर पत्थर भी उछाल दिया जो संयोग और सौभाग्य से लक्ष्य चूक गया। रुक्म जी को यह
दृश्य देख कर बहुत अजीब लगा। उन्होंने मदन पुरी की ओर देखा जो गाली सुन कर भी
मुसकरा रहे थे। रुक्म जी ने आश्चर्य से पूछा-‘अरे जनाब आप भी अजीब हैं वे लोग आपको गाली देकर चले गये और
आप हैं कि मुसकरा रहे हैं।‘
इस पर मदन पुरी ने हंसते हुए जवाब दिया-‘रुक्म जी !जिसे आप गाली कह रहे हैं, वह मेरा ईनाम है। सबसे बड़ा ईनाम।
यह मेरे अभिनय की कामयाबी है कि मेरे निभाये पात्र को यह असलियत में बुरा आदमी समझ
रहे हैं। इसका मतलब है कि परदे में वह चरित्र निभाते हुए मैं एक प्रतिशत भी मदन
पुरी नहीं लगा, वही खल-चरित्र लगा। इनकी गालियां मेरा सबसे बड़ा ईनाम है।‘
मदन पुरी जी का तर्क सुन कर रुक्म जी दंग रह गये।
वाकई यह तो अभिनय की सबसे बड़ी ऊंचाई थी कि कोई एक अभिनेता को उस चरित्र के रूप
में देखने लगे जिसे वह निभा रहा हो। खैर मदन पुरी के साथ रुक्म जी शूटिंग स्थल पर
पहुंचे लेकिन वहां पूरी तरह से सन्नाटा था। ना तो यूनिट का कोई सदस्य था और ना ही
निर्माता का ही पता था।
रुक्म जी
ने पूछा-‘
अरे मदन पुरी जी, कहां है आपकी यूनिट, कहां होगी शूटिंग।‘
मदन पुरी मायूसी भरे अंदाज में बोले-‘अरे रुक्म जी, काहे की शूटिंग। निर्माता पैसे ही
नहीं जुटा पाया। आज उसने मेरे पारिश्रमिक की एक किस्त देने कां वादा किया था। लगता है पैसे का इंतजाम नहीं हुआ
और उसने शूटिंग रद्द कर दी। लेकिन इसकी सूचना मुझे देना भूल गया या डर से देना ही
नहीं चाहा कि मैं नाराज ना हो जाउं। देखिए ना अगर पता होता तो यह डेट मैं किसी
दूसरे निर्माता को दे चुका होता। मेरा आज का दिन बरबाद हुआ।‘
रुक्म जी दंग रह गये यह सोच कर कि ऐसा भी होता है
फिल्मी दुनिया में। अजब है यह दुनिया जिसमें जितना उजाला है उससे कहीं ज्यादा
अंधेरा है। यहां फरेब है, छलावा और भुलावा है। इस चमकती दुनिया की चमक में कई
सीधे-साधे लोग फंस कर अपनी जिंदगी तबाह कर लेते हैं। कास्टिंग काउच और न जाने
कितने बदरंग दागों को समेटे इस दुनिया का हर पक्ष उजला नहीं है। अच्छे लोगों की इस
दुनिया को कुछ ऐसे लोग बदरंग करते हैं जिन्हें दूसरों को ठगने में मजा आता है। यहां
कई तरह की गुटबंदी है। इस गुटबंदी या गिरोहबाजी के बीच किसी नयी प्रतिभा को (चाहे
वह जिस भी क्षेत्र से हो) यहां पैर जमाने में जमीन-आसमान एक कर देना पड़ता है। इतना
करने पर वह तभी अपनी जगह बना पाता है जब उसका वहां कोई गाडफादर या मददगार बन जाये।
फिल्मी दुनिया की मृगमरीचिका ने न जाने कितने युवा-युवतियों की जिंदगी तबाह कर दी।
यहां आप काम मांगने जायें तो कोई ‘ना’
नहीं कहता बस इंतजार करने को कहता है। उम्मीद पर इंतजार करता शख्स दर-दर भटकता
फिरता है लेकिन उसका इंतजार खत्म नहीं होता।
कोलकाता में फिल्म 'दूर गगन की छांव में' प्रीमियर पर किशोर कुमार, संगीतकार सी रामचंद्र और रुक्म जी |
इस फिल्मी दुनिया ने कई जीनियसों को देखा है। इनमें
से एक थे गायक किशोर कुमार। किशोर कुमार अच्छे गायक तो थे ही बहुत ही मस्तमौला
इनसान भी थे। खंडवा मध्यप्रदेश में जन्में किशोर कुमार अभिनेता अशोक कुमार और अनूप
कुमार के भाई थे। गाने में उनका डुडली का प्रयोग तो सभी को पता है लेकिन कहते हैं
कि वे आवाज बदल कर बात करने के लिए भी मशहूर थे। इस तरह की एक घटना के खुद रुक्म
जी भी साक्षी बने थे। वे मुंबई में एक बार किशोर से मिलने उनके घर गये। अभी वे
उनसे बात कर ही रहे थे कि किसी फिल्म निर्माता का फोन आया। वह अपनी फिल्म के गाने
की रिकार्डिंग के लिए उन्हें बुला रहा था। फोन उनके किसी सहायक ने पकड़ा।
उसने कहा-‘सर, एक निर्माता हैं, वे आज आपको रिकार्डिंग के लिए
बुला रहे हैं।‘ किशोर कुमार ने
संकेत से पूछा-‘रोकड़ा (पैसा) मैनेज
किया है?’ सहायक ने
वापस निर्माता से बात की तो पता चला, पैसा बाद में दे देंगे।‘ इस पर किशोर कुमार ने अपने सहायक से फोन ले लिया
और औरत की आवाज बना कर बोले-‘देखिए जी। अभी किशोर जी घर पर नहीं हैं। आप बाद में फोन कीजिएगा।‘ इतना कह कर फोन रख कर किशोर मुसकराने लगे।
रुक्म जी को यह अजीब लगा। उन्होंने कहा-‘यह क्या किशोर जी। आप घर में हैं और सरासर झूठ बोल
गये कि घर पर नहीं है।‘
इस पर किशोर कुमार ने जवाब दिया-‘रुक्म जी, आप इन लोगों को नहीं जानते, उनसे पहले
पैसा ना ले लो तो बडी मुश्किल होती है। भाई अपना तो वसूल है- पहले पैसा फिर भगवान।‘
कहना होगा कि किशोर कुमार अपनी जगह बिल्कुल सही
थे.। आखिर कोई भी कलाकार जो भी करता है, पैसे के लिए ही तो करता है फिर अपने उस हक
से वह कोई समझौता क्यों करे।
मुंबई में ही रुक्म जी की मुलाकात चित्रकार मुनीश
गुप्ता व होरीलाल साहू से हुई। दोनों उन दिनों मशहूर चित्रकार रामकुमार शर्मा के
सहायक के रूप में काम कर रहे थे जो उन दिनों एक फिल्म के साथ आर्ट डाइरेक्टर के
रूप में जुड़े थे। मुनीश गुप्ता रुक्म जी के नगर बांदा के और उनके बालसखा थे और
होरीलाल साहू बनारस के हैं जिन्होंने अपनी आर्ट की पढ़ाई कोलकाता के इंडियन आर्ट
कालेज और मुंबई के जे. जे. स्कूल आफ आर्ट में पूरी की। होरीलाल जी से मुंबई में
हुई पहचान तब भी जारी रही जब होरीलाल जी ने कोलकाता लौट कर इस नगर को ही अपना
कार्यक्षेत्र बनाया। कुछ अरसे में रुक्म जी और उनके परिवार से उनका संबंध
पारिवारिक हो गया। दोनों परिवार का एक-दूसरे के घर आना-जाना बराबर लगा रहा। होरीलाल
जी सन्मार्ग के पूजा विशेषांक का चित्रांकन करने के साथ ही रुक्म जी द्वारा
संपादित पत्रिका घरवा का भी चित्रांकन करते रहे। तैलचित्रों में उन्हें जो महारत
हासिल है वह बिरले ही लोगों को मिलती है। वे उसी इंडियन आर्ट कालेज में जहां कभी
वह पढ़ते थे प्रिंसिपल बने और उसी पोजीशन में रिटायर किया। वे रुक्म जी को बहुत
मानते थे। रुक्म जी भी जब तक चलने-फिरने लायक रहे उनसे मिलने उनके घर जाते रहे। होरीलाल
जी ने एक नियम बना रखा था वह था हर दीवाली में रुक्म जी के घर जाना और उन्हें एक
नयी धोती और मिठाई देकर उनका आशीर्वाद लेना। चाहे तबीयत खराब या कुछ भी उन्होने
अपना यह नियम बराबर जारी रखा। तबीयत खराब होती तो बेटे को लेकर आ जाते लेकिन आते
जरूर थे। (शेष अगले भाग में)
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