कुछ भूल गया, कुछ याद रहा
भाग-7
भांजे रामखिलावन के अपनी पत्नी निरुपमा देवी के साथ नयी जिंदगी की तलाश में कलकत्ता जाने के बाद बांदा
में मंगलप्रसाद तिवारी पत्नी मीरा त्रिपाठी के साथ बहुत अकेलापन महसूस करने लगे
थे। भांजा उनकी जिंदगी का एक अभिन्न अंग बन गया था अचानक उसके दूर चले जाने से उनका
मन उचाट सा हो गया। उन्हें उसकी कमी खलने लगी। भांजा चौबीस घंटे उनके आस-पास रहता
था.और अब उसके बगैर घर खाली खाली लगने लगा था। उन्हें इस बात का तो इत्मीनान था कि
भांजा दुश्मनों से दूर सुरक्षित जगह चला गया है लेकिन इस बात का भी शिद्दत से
एहसास होने लगा था कि वह उनसे दूर चला गया है।
एक दिन जब वे काम से घर वापस लौटे तो पत्नी मीरा ने कहा-रामखिलावन के
जाने के बाद घर सूना-सूना लगने लगा है।
मंगलप्रसाद-क्या करें, हमारे मोह में वह यहां फंसा रहता तो फिर अपनी
जिंदगी को सही ढंग से नहीं ढाल पाता। बड़े शहर में गया है आज नहीं तो कल उसे कोई
काम मिल ही जायेगा। उसके बगैर अच्छा तो मुझे भी नहीं लगता।
मीरा त्रिपाठी-ऐसा क्यों ना करें, आपके गांव जुगरेहली चलते हैं। वहां
आपका घर है, खेत वगैरह हैं वहीं जिंदगी काट लेंगे।
मंगलप्रसाद-अरे यहां दूकान वगैरह है, मेरी नौकरी है क्या करें।
मीरा-वर्षों से आपने अपने पैतृक गांव, घर की ओर मुड़ कर नहीं देखा।
चलिए वहीं लौट चलते हैं। रामखिलावन के बिना अब यहां मन नहीं लगता।
मंगलप्रसाद पत्नी की बात सुन गांव वापस लौटने को राजी हो गये। दूकान
वगैरह किसी परिचित को देकर, बांदा शहर में किराये का घर छोड़ थोडी-सी गिरस्ती समेट
वे बबेरू तहसील के अपने पैतृक गांव जुगरेहली लौट आये।
गांव पहुंच कर उनका दिल धक्क रह गया। गांव से इतने वर्षों तक गायब
रहने के दौरान उनका सब कुछ छिन गया था। उनके पैतृक निवास में दूसरों का कब्जा हो
गया था। कई बीघे उपजाऊ खेत जो मंगलप्रसाद के पिता जी मुखराम शर्मा के नाम थे
उन्हें भी गांव वालों ने हड़प लिया था और अपने नाम करवा लिया था। इनमें गेंहूं और
धान की भरपूर फसल देनेवाले खेत भी थे। मंगलप्रसाद तिवारी जब बिलबई और फिर बांदा
में अपने भांजे रामखिलावन का भाग्य संवार रहे थे यहां जुगरेहली में लोग उनका घर और
जमीन हड़पने में लगे थे।
जुगरेहली आने पर मंगलप्रसाद तिवारी ने पाया कि उनका घर और खेती लायक
जमीन छिन गयी है। गांव पहुंच कर बांदा छोड़ने के अपने फैसले पर उनको पछतावा होने
लगा। मुसीबत की इस घड़ी में मदद के लिए किसके पास जायें। गांव में ही रहना अब उनकी
मजबूरी थी क्योंकि बांदा की नौकरी वे छोड़ चुके थे, मुगौड़े की दूकान भी किसी और
को सौंप आये थे। जब उन्हें इस मुसीबत से निकलने का कोई सिरा नजर नहीं आ रहा था तब
अचानक उनको गांव जुगरेहली के मुखिया गंगाप्रसाद दुबे की याद आयी जो उनके पिता
मुखराम शर्मा को बहुत मानते थे।
वे पत्नी मीरा त्रिपाठी के साथ गांव के मुखिया गंगाप्रसाद जी के पास
पहुंचे। उनको सारा हाल बताया कि किस तरह से लोगों ने उनके घर और जमीन तक पर कब्जा
कर लिया है और अब वे अपने ही गांव में बेघर हो गये हैं। कहां रहें क्या करें उनकी
समझ में नहीं आता।
सारी बातें गंगाप्रसाद जी ने सुनी और बोले-चिंता मत करो हमारा एक घर
खाली पड़ा है उसकी चाबी दिलवाये देता हूं उसमें रहो। वह घर आज से तुम्हारा ही हुआ।
गंगाप्रसाद जी का यह भरोसा मंगलप्रसाद तिवारी को ऐसा लगा जैसे डूबते को
तिनके का सहारा मिल गया हो।
उन्होंने उनके पैर छुए और उनका लाख-लाख धन्यवाद
दिया। गंगाप्रसाद बोले-नहीं धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं। गांव के लड़के को रहने के
लिए घर नहीं मिलेगा मेरे रहते ऐसा कभी नहीं होगा।
मंगलप्रसाद विनयी भाव से बोले- देखिए ना मेरा पैतृक घर तो लोगों ने
दखल किया ही हमारे सारे खेत भी लोगों ने अपने नाम करा लिये। क्या करूं गलती मेरी
थी जो भांजे की रक्षा के लिए मुझे इतने साल बिलबई और फिर बांदा में रह जाना पड़ा।
मंगलप्रसाद की बात सुन कर गंगाप्रसाद
जी बोले- अरे हां तुम्हारे लिए जमीन का इंतजाम भी तो करना होगा। अभी कुछ दिन के
खाने के लिए गेहूं, चावल वगैरह हमारे यहां से मिल जायेंगे।
जब की यह बात है तब नवाबों
का शासन था। जुगरेहली गांव पास के ही हरदौली गांव के नवाब के अख्तियार में था।
वहां की तमाम जमीन नवाब साहब की थी। गंगाप्रसाद गांव के मुखिया थे और नवाब साहब से
परिचित थे।
गांगाप्रसाद जी ने मंगलप्रसाद
से कहा-मैं नवाब साहब के नाम एक चिट्ठी लिख देता हूं, तुम कल हरदौली चले जाओ और
उनसे सारा हाल बताओ, हमारे गांव में उनकी खेती लायक बहुत जमीन है वे चाहेंगे तो
तुम्हे जमीन दे देंगे।
गंगाप्रसाद जी से हरदौली
जाने की हामी भर कर उनकी दी चाबी और नवाब के लिए लिखी चिट्ठी लेकर मंगलप्रसाद उस
घर में आये जो गंगाप्रसाद जी ने उन्हें रहने के लिए दिया था।
मीरा त्रिपाठी और मंगलप्रसाद
घर की सफाई में लग गये। घर की सफाई समाप्त
ही हुई थी कि गंगाप्रसाद के भेजे कुछ लोग खाना और एक घड़े में पानी लेकर आ गये। वे
साथ में एक बोरा गेहूं और कुछ चावल भी लाये थे।
जाते-जाते वे लोग यह भी कहते
गये-मालिक ने कहा है कुछ और जरूरत पड़े तो बताइएगा, हम दे जायेंगे।
गंगाप्रसाद जी की इस मदद के लिए मंगलप्रसाद कतज्ञता से भर गये।
उन्होंने उन लोगों से कहा –हां भाई जरूरत होगी तो मालिक के पास ही आयेंगे। इस गांव
में वही तो एक हमारा सहारा हैं।
बांदा से गृहस्थी का जो सामान
मंगलप्रसाद साथ लाये थे वह घर के एक कोने में रख दिया और वर्षों से बंद पड़े घर को
रहने लायक बनाने में जुट गये।
मुखिया गंगाप्रसाद जी की चिट्ठी लेकर दूसरे दिन मंगलप्रसाद तिवारी
हरदौली के नवाब साहब से मिलने गये। नवाब साहब के आदमी ने उनसे गंगाप्रसाद जी की
लिखी चिट्ठी मांगी और नवाब साहब को दिखलाया। नवाब साहब ने मंगलप्रसाद तिवारी को
अपने पास बुलाया। उन्होंने मंगलप्रसाद से सारा हाल जाना और थोड़ी देर चुप रहने के
बाद बोले-पंडत तुम ऐसा करो अपने गांव में सड़क किनारे की जमीन ऊंचे टीले से लेकर
मटियारा नाला तक ले लो। हम कारिंदा को कह कह तुम्हारे नाम से लिखवाये देते हैं।
जुगरेहली के एक आदमी को जाने कैसे यह भनक मिल गयी थी कि मंगलप्रसाद तिवारी नवाब के पास जमीन मांगने गया है वह भी वहां धमक पड़ा। अभी कारिंदा मंगलप्रसाद तिवारी के नाम पूरी जमीन लिखने ही वाला था कि उसने नवाब से मिन्नत की कि उसके पास भी जमीन नहीं है अगर उस पर भी मेहरबानी हो जाती।
इसके बाद हुआ यह कि मंगलप्रसाद तिवारी को मिलनेवाली जमीन में से उस
आदमी को भी कुछ हिस्सा दे दिया गया।
नवाब साहब को शुक्रिया जता
कर मंगलप्रसाद तिवारी गांव वापस लौट आये। दूसरे दिन ही वह अपनी जमीन देखने गये जो
बबैरू से बांदा जानेवाली सड़क से लगी थी। उस जमीन का सड़क की तरफ जुड़नेवाला
हिस्सा ऊंचा था और नीचे ढलान पर एक बड़ा समतल टुकड़ा था।
रहने को घर और खेती के लिए
जमीन पाकर मंगलप्रसाद तिवारी को कुछ राहत मिली। वे नये ढंग से जिंदगी संवारने की
जुगाड़ में लग गये। (क्रमश:)
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