Monday, September 27, 2021

मंगल प्रसाद तिवारी बन गये जीजा के बाडीगार्ड

कुछ भूल गया, कुछ याद रहा

(भाग-3)

मंगल प्रसाद तिवारी जीजा शिवदर्शन त्रिपाठी जी के साथ बिलबई चले गये। पीछे उनके गांव जुगरेहली का घर और खेत अनाथ छूट गये। यहां यह बताते चलें कि मंगल प्रसाद तिवारी न सिर्फ बेहद साहसी अपितु बंदूक, पिस्तौल, तमंचा,भाला सब कुछ चलाने में माहिर थे। ऐसे में वे अपने जीजा जी के बाडीगार्ड बन गये।छह फुट लंबे कदवाले मंगल प्रसाद जीजा जी का इतना आदर करते थे कि कभी उनसे आंख उठा कर बात नहीं करते थे। उनका इशारा पाते ही अकेले सात-सात लोगों के छक्के पलक झपकते छुड़ा देते थे। एक बार ऐसी ही किसी झड़प में एक दुश्मन ने मंगल प्रसाद पर पीछे से भाले से हमला कर दिया। जाड़े के दिन थे मंगल प्रसाद रुई से भरी मोटी जाकेट पहने थे (अपने बुंदेलखंड में इसे रुइहाई सदरी कहते हैं) जिसमें भाला फंस गया जिससे वे बच गये।

जीजा शिवदर्शन त्रिपाठी बिलबई के मुखिया थे और बड़े कास्तकार भी। उनके काली मिट्टी के खेतों में गेहूं की सुनहरी बालियां लहराती लोग देखते ही रह जाते थे पर दुश्मनों के दिल जलते थे। शिवदर्शन जी के दुुश्मनों में पराये नहीं बल्कि उनके अपने ही लोग थे। वे सीधे शिवदर्शन जी से लड़ नहीं सकते थे इसलिए भाड़े के टट्टुओं से उन पर हमला करवाने की कोशिश करते रहते थे लेकिन ऐसे हर हमले में मंगलप्रसाद जीजा की ढाल बन जाते। शिवदर्शन जी अपने दुश्मनों को जानते थे पर वे उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करते थे क्योंकि वे थे तो अपने ही।

यहां मंगल प्रसाद तिवारी के साहस की दो घटनाओं पर आते हैं। बिलबई में रहते हुए ही एक बार वे चित्रकूट की यात्रा पर गये जहां भगवान राम. लक्ष्मण और सीता ने वनवास के लगभग साढ़े ग्यारह साल बिताये थे। प्रभु राम ने कामद गिरि पर्वत की चोटी पर पर्णकुटी बनायी थी और उसी में रहते थे। मंगल प्रसाद तिवारी जब परिक्रमा पथ पर कामद गिरि की परिक्रमा कर रहे थे तो अचानक उनके मन में आया कि क्यों ना चोटी पर चढ़ कर वह जगह देखी जाये जहां प्रभु राम रहते थे।

 यह सोच कर जब मंगल प्रसाद तिवारी कामद गिरि पर चढ़ने लगे तो परिक्रमा पथ पर चल रहे लोगों ने टोंका –अरे भाई ऊपर मत जाना वहां खूंखार जानवर हैं खा जायेंगे।

मंगल प्रसाद तिवारी ने कहा- यहां तक आये हैं तो वह जगह तो देख कर ही जाऊंगा जहां प्रभु रहे थे। अगर मेरी जान किसी खूंखार जानवर के हमले से जानी है तो  जाये। प्रभु के चरणों से पावन स्थान तो देख कर ही जाऊंगा।

 वे चोटी पर गये और उन्होंने वहां देखा कि जिस जगह पर्णकुटी बनायी गयी रही होगी वह जगह समतल थी। इतना ही नहीं वहां आसपास तुलसी के पौधों का जंगल था। कहते हैं कि वनवास में चित्रकूट वास के समय पर्वत पर तुलसी के ये पौधे सीता जी ने लगाये थे जो धीरे-धीरे फैलते गये। शायद इसे देख कर ही यह उक्ति बनी होगी-रामभरोसे जो रहें पर्वत पर हरियांय। तुलसी बिरवा बांग में सींचे से कुम्हलांय।।



             कालींजर किले का भीतरी दृश्य

चित्रकूट से वापस लौटते वक्त चित्रकूट से बांदा जानेवाले मार्ग पर पड़ता है कालींजर का किला। कहते हैं कि इसका पहले कालंजर नाम था यानी जो काल से भी जीतता रहा हो बाद में यह कालींजर हो गया। इस पर कई हमले हुए लेकिन इसका अस्तित्व बरकरार रहा।कालिंजर किला, उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के बांदा जिला स्थित एक किला है। इसे भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में गिना जाता रहा है। इस किले में कई प्राचीन मन्दिर हैं। इनमें कई मंदिर तीसरी से पाँचवीं सदी गुप्तकाल के हैं।

कालींजर दुर्ग में स्थित नीलकंठ महादेव
   यहाँ के शिव मन्दिर के बारे में मान्यता है कि सागर-मन्थन से निकले कालकूट विष को पीने के बाद भगवान शिव ने यही तपस्या कर उसकी ज्वाला शांत की थी। यहां शिव जी की मूर्ति से लगातार पसीना निकलता रहता है। इसे पोंछ देने से वह फिर गरदन पर झलक आता है. कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला कतिकी मेला यहाँ का प्रसिद्ध सांस्कृतिक उत्सव है।

           यह है कालींजर किले के अंदर की पाताल गंगा का वीडियो
         वीडियो देखने के लिए  सबसे  पहले वीडियो के  बीच के बटन  पर फिरनीचे बायें वाले छोटे  बटन पर क्लिक कीजिए

 चित्रकूट से वापस लौटते वक्त मंगल प्रसाद तिवारी ने कालींजर किले और वहां स्थित नीलकंठ भगवान के दर्शन करने की सोची। वे किले में गये वहां नीलकंठ के दर्शन किये। वहीं किसी ने बताया कि पातालगंगा में स्नान करने से बहुत पुण्य मिलता है। किले के परिसर में ही एक ओर पातालगंगा थी. वहां मंगल प्रसाद ने देखा वहां कुछ खंभे हैं। वहीं बैठे किसी व्यक्ति ने कहा-इस पातलगंगा के सात खंभे छू आने वाले को स्वर्ग मिलता है।

अब मंगल तिवारी थे बेहद साहसी उन्हें किसी बात का डर नहीं था। वे सातों खंबे चूकर जब लौट रहे थे तो वहां एक पुलिस अधिकारी आ गया और बोला-आप इस कुंड में क्यों उतरे उतरे ही नहीं दूर तक चले गये जहां गहरा अंधेरा है। उस अंधेरे में जाने की कोई हिम्मत नहीं कर सका, आप कैसे चले गये। आपने देखा नहीं बोर्ड लगा है कि इसमें उतरना नहाना मना है।

 मंगल प्रसाद गलती तो कर बैठे थे वे बोले-साहब बोर्ड देखा नहीं क्षमा चाहता हूं।

  खैर पुलिस से छूट गये। वहीं पर किसी ने बताया कि प्रलय के वक्त इसी पातालगंगा का पानी इतना बढ़ जायेगा कि उससे पूरा पृथ्वीलोक जल में समा जायेगा। (क्रमश:)

 


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