आत्मकथा-45
इंटरव्यू तो अच्छा हुआ था मैं बेसब्री से आनंद बाजार प्रकाशन के अप्वाइंटमेंट लेटर की प्रतीक्षा कर रहा था। जब इंटरव्यू के दौरान सुरेंद्र प्रताप सिंह जी ने सन्मार्ग में धारावाहिक छपने वाली मेरी शृंखला ‘संजय का जीवन बाल्यकाल से अब तक’ के प्रति आग्रह दिखाया था और उसके बारे में विस्तार से जानना था इसी से मैं इंटरव्यू के बारे में सकारात्मक रुख रख रहा था। उस दिन इंटरव्यू के अंतिम वाक्य इंटरव्यू लेने वालों से आये थे। वह थे-जाइए चिट्ठी जायेगी।
और एक दिन सचमुच चिट्ठी यानी
अप्वाइंटमेंट लेटर आ गया। मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा। मैंने सबसे पहले अपने पूज्य
बड़े भैया रामखिलावन त्रिपाठी ‘रुक्म’ जी के हाथों में अप्रवायंटमेंट लेटर रख कर उन्हें प्रणाम किया और
बोला-मेरे इस उत्कर्ष का श्रेय आपको जाता है। आप लिखना ना सिखाते तो मैं कुछ कर ही
नहीं पाता। आपने ही विश्वास दिलाया कि व्यक्ति अगर दृढ़् निश्चय कर ले तो वह
मनचाही मंजिल एक ना एक दिन पा ही लेता है। भैयाा ने कहा-इस मुकाम तक पहुंचने की राह में जिसने
जितनी भी मदद की हो उसको धन्यवाद देना ना भूलना। कल ही रामअवतार गुप्त जी से
सन्मार्ग में मिल कर उन्हें प्रणाम करना और उनको धन्यवाद देना।सन्मार्ग के अन्य
सदस्यों को भी धन्यवाद देना। उन्होंने तुम्हें ऐसा परिवेश दिया कि तुम वहां टिक कर
सहजता से बहुत कुछ सीख पाये। हां तुम्हारी ज्वाइनिंग डेट करीब है। स्क्रीन
साप्ताहिक के लिए महावीर प्रसाद से कल ही कह देना कि अब तुम उन्हें समय नहीं दे
पाओगे वे कोई अन्य व्यक्ति खोज लें।
मैंने सिर हिला कर भैया की बात पर हामी भर ली।
दूसरे दिन सन्मार्ग कार्यालय पहुंचते ही मैंने पता किया कि संपादक रामअवतार
गुप्त जी आ गये या नहीं। चपरासी ने बताया-बाबू जी आ गये हैं। अकेले हैं, अभी मिल
लीजिए फिर मिलने वालों का तांता लग जायेगा आपको मौका नहीं मिलेगा।
चपरासी की बात सुन कर मैंे सीधे रामअवतर गुप्त जी के चेंबर में पहुंच कर दरवाजा खटका कर पूछा-सर आ सकता हूं।
गुप्त जी मेरी आवाज पहचानते
थे। अंदर से आवाज आयी-आ जाइए राजेश जी।
मैंने अंदर जाकर हाथ जोड़ कर
उनका अभिवादन किया।
गुप्त जी ने कहा-बैठिए राजेश जी।
मैंने देखा मेरे शब्दों को
सुन कर गुप्त जी के चेहरे पर एक चमक और मुसकान उभर आयी। उन्होंने कहा-मुझे बहुत
प्रसन्नता हुई कि आपको एक बड़े संस्थान में काम करने का अवसर मिला।
इतना कह कर उन्होंने चपरासी को
बुलाने के लिए घंटी बजायी।
चपरासी आया तो गुप्त जी बोले –जरा गुणानंद मिश्र जी को भेजो।
गुणानंद मिश्र जी सन्मार्ग में लिखनेवालों को पारितोषिक दिया करते थे
तब पारिश्रिमक का चलन नहीं था।
गुणानंद जी आये और गुप्त जी
को प्रणाम कर बोले-जी सर।
गुप्त जी ने कहा कि पहले तो
एक अच्छी खबर सुन लीजिए, हमारे राजेश जी को आनंद बाजार संस्थान में काम मिल गया
है।
इतना सुनते ही गुणानंद जी ने
बधाई दी। मैंने प्रणाम कर कहा-बधाई शिरोधार्य पर आप बड़ों के आशीर्वाद भी चाहिए।
उन्होंने कहा- बहुत बहुत
आशीर्वाद।
अब गुप्त
जी मिश्र जी से बोले- राजेश जी ने ‘संजय का जीवन बाल्यकाल से अब तक’ शृंखला लिखने में काफी मेहनत की है। इन्हें पारितोषिक नहीं
पारिश्रमिक दिया जाये हर किश्त के बारह रुपये। अभी बना दीजिए ये लेकर जायेंगे। कल
से ये सन्मार्ग नहीं आयेंगे।
गुणानंद जी सर बोल कर चले गये।
उनके
जाने के बाद गुप्त जी बोले-राजेश जी आप पहले व्यक्ति हैं जो सन्मार्ग छोडते वक्त
मेरा और सन्मार्ग संस्थान का आभार जता
रहे हैं वरना यहां से जो भी निकल कर जाता है मेरी निंदा ही करता है।
मैंने कहा-सर मैं इतना कृतघ्न नहीं कि उस संस्थान वहां के कर्ता-धर्ता की निंदा
करूं जिसने मुझे अपने यहां सीखने का मौका दिया।
इसके बाद मैं गुप्त जी के केबिन से बाहर निकल
आया।
संपादकीय विभाग में आकर सभी वरिष्ठों को अपनी नयी
नौकरी के बारे में सूचित किया। सभी ने प्रसन्नता जतायी और मेरे उज्ज्वल भविष्य के
लिए आशीर्वाद दिया।
इसके बाद
मैं सन्मार्ग के तत्कालीन समाचार संपादक तारकेश्वर पाठक जी के केबिन में गया और
उनके चरण स्पर्श कर बोला-आशीर्वाद दीजिए, मुझे आनंद बाजार प्रकाशन की जल्द प्रकाशित
होनेवाली हिंदी साप्ताहिक पत्रिका ‘रविवार’ में काम मिल गया है। उन्होंने मुझे हृदय से लगा लिया और बोले –मुझे ऐसी खुशी हो रही है जैसे मेरा अपना भाई एक अच्छे संस्थान में नौकरी करने जा रहा है।
मैंने देखा खुशी से पाठक जी के नेत्र सजल हो गये थे।
*
सन्मार्ग से निकल कर मैंने स्क्रीन हिंदी
साप्ताहिक के कार्यालय की राह पकड़ी जो पास ही था। वहां पहुंचा तो पाया कि मालिक
महावीर प्रसाद पोद्दार प्रेस में ही मिल गये। उन्हें नम्स्कार कर आनंद बाजार में
नौकरी पाने की खबर दी। यह खबर सुनते ही महावीर बाबू के पैरों तले से जैसे जमीन
खिसक गयी।
वे बोले- अब स्क्रीन का क्या होगा।
इसे आत्मश्लाघा ना समझें मेरे स्र्क्रीन को
संभालने के कुछ दिन बाद ही वहठीकठाक चलने लगी थी।
मैंने
कहा-लोगों की कमी नहीं है कोई ना कोई तो मिल ही जायेगा। अभी तो आप मेरे काम के लिए
शुभकामनाएं दें।
महावीर बाबू ने बुझे मन से ही सही शुभकामना दी
मैं घर लौट आया। जब से मुझे नयी नौकरी मिलने की खबर आयी थी पूरा परिवार खुश था। (क्रमश:)
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