यह हमारे लिए
बड़ी प्रसन्नता की बात थी कि हमारे साथ एक्टर बनने या एक्टिंग की सीखने की ख्वाहिश
ले मुंबई गये युवक की आंखों से चकाचौंध वाली फिल्मी दुनिया का मोह हट गया था। उसे
समझ आ गया था कि यहां के लुभावने अंधेरे के पीछे गहरा अंधेरा है। अगर कोई इस
अंधेरे में खो गया तो फिर उसने अपनी जिंदगी तबाह कर ली। इसके बाद उस युवक ने तय
किया कि आये हैं तो मुंबई घूम लेते हैं फिर वापस अपने-अपने धाम।
मुंबई दर्शन के क्रम में हम सबसे पहले गेट वे आफ इंडिया पहुंचे। यह रब सागर के अपोलो में बना एत द्वार है। इसके पास शिवाजी महाराज का स्टैच्यू और प्रसिद्ध होटल ताजमहल है। वहां से एलिफेंटा केव्स के लिए मोटर वोट्स थोड़ी-थोड़ी देर में सवारियां लेकर जा रहे थे। एलिफेंटा द्वीप महाराष्ट्र के मुंबई शहर में स्थित गेटवे ऑफ इंडिया से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। एलिफेंटा को घारापुरी के नाम से भी जाना जाता है जो कोंकणी मौर्य की द्वीपीय राजधानी थी। एलिफेंटा नाम पुर्तगालियों द्वारा यहां पर बने पत्थर के हाथी के कारण दिया गया था। यहां अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। पहाड़ियों को काटकर बनाई गई ये मूर्तियां दक्षिण भारतीय मूर्तिकला से प्रेरित हैं। यहां आने के बाद एक अलग ही दुनिया में आने जैसा अहसास होता है।मेरे भैया रामखिलावन त्रिपाठी ’रुक्म ’ फिल्मी साप्ताहिक स्क्रीन के संपादक होने के नाते मुंबई आते-जाते रहते थे। वे एलिफैंटा कैव्स देख आये थे और वहां उकेरी गयी मूर्तिकला की बड़ी तारीफ कर रहे थे। वे बार-बार कह रहे थे चलो मोटरबोट पकड़ लेते हैं और देख आते हैं। बहुत ज्यादा समय नहीं लगेगा। हमारे साथ गया युवक तुरत तैयार हो गया और बोला-टलते हैं चाचा जी।
मैं
अड़ गया और बोला कि- पानी में मेरी अल्प है, डूब कर मरने की आशंका हैय़ एक बार मैं
यमुना में डूबते बचा था। दोनों ने बार-बार समझाया पर मैं अड़ा रहा। मेरे इस निर्णय
से भैया को तो कुछ नहीं हुआ लेकिन हमारे साथ गये युवक का चेहरा उतर गया। भैया ने
भी हठ नहीं किया सवाल भाई की जिंदगी का था।
हमने
हाजी अली पीर की दरगाह में भी गये जो वर्ली के पास एक समुद्री टापू पर स्थित है पर
कभी डूबती नहीं है। वह समुद्र के अंदर है वहां तक जाने के लिए एक सड़क बनी है। जब
हम लोग सड़क से समुद्र के अंदर स्थित दरगाह जा रहे थे तो आसपास उठती समुद्र की
लहरें सड़की दीवार से टकरा कर हमें भिगो रही थीं। मुझे बहुत डर लग रहा था। मैं
भैया और अपने साथ गये मेरे दोस्त के बीच चलने लगा। जब हम लोग हाजी अली पीर की
दरगाह में थे शाम के सात बज गये थे लेकिन उस वक्त भी वहां धूप खिली थी। हम लोग
कोलकाता से गये थे जहां शाम सात बजे तक अंधेरा छा जाता है।
दूसरे दिन हमारा गंतव्य था आर के स्टूडियो था जो
मुंबई के चेंबूर इलाके में था। हमने वहां जाने के लिए टैक्सी पकड़ी। टैक्सी ने
हमें आर के स्टूडियो से बहुत पहले ही उतार दिया। हमने पूछा-कितनी दूर है आर के
स्टूडियो टैक्सी ड्राइवर ने उत्तर दिया-बस यही बाजू में है।
मई का महीना था, सूरज की तीखी धूप थी। हम चल
पड़े आर के स्टूडियो की ओर. देर तक चलते रहे।रास्ते में जिस किसी से पूछते वह
बोलता-बस यही बाजू में है। गरनी से हालत बेहाल थी। हम समझ नहीं पा रहे थे कि मुंबई
में जू की नाप इतनी लंबी होती है।
आखिरकार
हम लोग आर के स्टूडियो पहुंच ही गये। वहां जाकर देखा गेट से घुसते ही दायीं ओर
ट्रेन लाइन बनी है और उस पर ट्रेन के दो डिब्बे रखे हैं। सोचा यह शूटिंग के काम
आते होंगे।
आगे
बढ़े तो देखा एक सेट के बाहर षम्मी कपूर मन मारे बैठते हैं। नमस्ते कर के उनकी
उदासी का कारण पूछा तो बोले- अरे आज यूसुफ साहब (दिलीप कुमार) के भाई साहब का
इंतकाल हो गया है।
उन्हें सहज होने में थोड़ा वक्त लगा फिर पूछा-
किस फिल्म का सेट है इस स्टूडियो में।
उन्होंने
सहजता से जवाब दिया-समझ लीजिए बंडलबाज।
सचमुच
बाद में वह फिल्म बंडलबाज के नाम से ही रिलीज हुई जिसमें राजेश खन्ना, सुलक्षणा
पंडित और देवकुमार की भूमिकाएं थीं।
अब हमने शम्मी कपूर जी से आग्रह किया कि अगक राज
कपूर जी से मिलवा देते तो हमारी आर के की यात्रा पूरी हो जाती।
शम्मी मुसकरा कर बोले-राज साहब अभी वह सामने की
काटेज में हीरोइन के साथ स्टोरी डिसकशन में हैं। अभी आप क्या मैं और कोई भी उनसे
नहीं मिल सकता।
हमने लोगों में इस तरह की बातें सुन तो रखी थीं लेकिन शम्मी कपूर जी ने इसकी पुष्टि कर दी। यह जानकारी हमारे लिए चौंकाने वाली थी। यहीम यह बता देें कि आर के स्टूडियो अब बिक चुका है।
*
अब हमारी मुंबई से लौटने की बारी थी। टिकट हमने पहले से बुक करा लिये
थे जो कन्फर्म थे। हम लोग मुंबई मेल पकड़ने के लिए मुंबई वीटी स्टेशन पहुंचे। वहां
पहुंचे तो पता चला कि जार्ज फर्नांडीज ने पूरे भारत में अचानक रेल हड़ताल की घोषणा
कर दी है। इसका पता चलते ही सभी लोग स्टेशन की ओर दौड़ पड़े। सभी चाह रहे थे कि वे
जल्द से जल्द अपने घरों को लौट चलें। हम तीनों भी एक ट्रेन में चढ़ गये। ट्केन अभी
चली ही थी कि टिकट चेकर आया और जाने क्यों उसनें हमने तीनों को तत्काल उतर जाने को
कहा। हमारे साथ गये युवक ने बहुत मिन्नत की लेकिन उस टिकट चेकर का दिल नहीं पिघला।
उसने कहा-यहां उतर जाओ वरना ऐसी जंगल में उतारूंगा कि जहां पानी तक नहीं मिलेगा।
हम लोग दादर स्टेशन में उतर गये।
वहां हमने लोगों से पूछा कि
अब हम क्या करें। कुछ लोगों ने सलाह दी कि आप यहां से भूसावल के लिए गाड़ी मिलेगी।
वहां चले जाइए वहां कुछ डिब्बे कोलकाता जाने वाली गाड़ी में जुटते हैं। वहां वे
डिब्बे खड़े मिलेंगे उन पर बैठ जाइएगा। हमने वैसा ही किया और बड़ी मुश्किल का
सामना करना पड़ा। कुछ दूर चलने पर ही वे डिब्बे मराठी आदिवासियों से भर गये। उनके
साथ महिलाएं भी थीं। स्थिति यह धी कि एक व्यक्ति को पेशाब लगी तो वह उठ कर संडास
की तरफ जाने लगा। उसका पैर शायद किसी औरत को छू गया वह झल्लायी और उसका पति उस
आदमी पर टूट पड़ा। उसका सिर फोड़ डाला। वह वापस अपनी सीट पर बैठ गया। हम लोग दबे-दबाये बैठे रहे। कुछ
स्टेशन बाद वे आदिवासी उतर गये। जगह खाली हुई तब कभी हम लघुशंका कर पाये। जब गाड़ी
ने हावड़ा को छुआ तब हमने चैन की सांस ली। (क्रमश:)
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