आत्मकथा
कुछ भूल गया कुछ याद रहा
राजेश त्रिपाठी
(भाग-6)
बांदा में मंगल प्रसाद तिवारी के छोटे से परिवार के दिन अच्छे ही कट रहे थे। रामखिलावन त्रिपाठी को स्कूल में दाखिल कर दिया गया था। उन दिनों उर्दू का चलन था तो रामखिलावन त्रिपाठी की प्राथमिक पढ़ाई भी उर्दू मीडियम से ही हुई। यही वजह है कि उर्दू की उन्हें अच्छी जानकारी थी। वे उर्दू लिखना-पढ़ना जानते थे। सुनते हैं कि क्लास में जब इम्तिहान में उर्दू में उनके अच्छे नंबर आते तो उर्दू टीचर उनके सहपाठी मुसलिम लड़कों से शिकायती लहजे में कहते-बरहमन का लड़का उर्दू में इतने अच्छे नंबर लाता है और तुम उसके आधे नंबर भी नहीं ला पाते।
मंगल त्रिपाठी केनाल सेक्शन में काम करने के साथ ही पार्ट टाइम में एक
कपड़े की दुकान में भी काम करते थे। वे कई मंदिरों में पूजा भी करते थे। जब वे
व्यस्त होते तो रामखिलावन त्रिपाठी भी मंदिरों में पूजा कर लिया करते थे।
आमदनी बढ़ाने के लिए मंगल प्रसाद तिवारी ने बांदा में मुगौड़े (मूंग
की दाल, धनिय़ा पत्ती, हरी मिर्च, प्याज से बना स्वादिष्ट चटपटा पकौड़ा) जो
बुंदेलखंड का प्रसिद्ध पकवान है की दूकान खोल ली। कुछ दिन में ही वह दूकान पूरे
शहर में मशहूर हो गयी और मंगल प्रसाद त्रिपाठी कहलाने लगे मुगौड़ेवाले महाराज।
कलक्टर, जज, बड़े-बड़े अधिकारी तक उनके मुगौड़े के दीवाने थे। वे अक्सर अपने मुलाजिम
को यह कह कर भेजते-जाओ मुगौड़ेवाले महाराज से मुगौड़े ले आओ।
वक्त पंख लगा कर उड़ता गया। रामखिलावन त्रिपाठी बांदा की रामलीला में
लक्ष्मण की भूमिका निभाने के लिए काफी मशहूर हो गये थे। बांदा की रामलीला ने जहां
उन्हें प्रसिद्धि दी वहीं उनकी जीवनसंगिनी निरुपमा
से भी उनकी पहली भेंट रामलीला में अभिनय के दौरान ही हुई। कहते हैं कि रामलीला में
जिस दिन किसी बहुत प्रसिद्ध और मुख्य प्रसंग के मंचन का दिन था उस दिन महिला
दर्शकों के लिए अलग से एक काठ का ऊंचा मचान बनाया गया था। उस रोज जब दिन में
रामखिलावन त्रिपाठी रामलीला मैदान आये तो उन्होंने उस मचान को देख कर रामलीला
कमेटी वालों से कहा कि –अच्छी तरह जांच-परख लिया है ना। यह मचान कहीं टूट ना जाये।
रामलीला कमेटी वालों ने
उन्हें आश्वस्त किया-नहीं भैया जी हमने देख लिया है मंचान मजबूत है।
रात को रामलीला का मंचन
प्रारंभ होने से पूर्व ही वह मचान खचाखच भर गया।
कुछ देर बाद ही रामखिलावन
त्रिपाठी की आशंका सही साबित हुई। महिला दर्शकों के बैठने के लिए बनाया गया मंच
चरमरा कर गिर गया। भगदड़ मच गयी। सबकी
निगाहें भीड़ में अपनों को खोज रही थीं। कई महिलाओं को चोट भी आयी थी। रामखिलावन
त्रिपाठी की नजरें भी किसी खास चेहरे को खोज रही थीं। और जब उसको सही सलामत पाया
तो उनकी जान में जान आयी। यही निरुपमा देवी बाद में उनकी जीवनसंगिनी बनीं।
यहां यह भी बताना प्रासंगिक रहेगा
कि बांदा में रहते हुए मंगल प्रसाद तिवारी और उनकी सहधर्मिणी मीरा त्रिपाठी की
अपने आसपास के लोगों से अच्छी-खासी मित्रता और अपनापा हो गया था। इनमें मीरा
त्रिपाठी की बहुत गहरी मित्र बन गयी थीं मुनसियाइन। मुनसियाइन मीरा त्रिपाठी को
बहुत मानती थीं। मीरा त्रिपाठी ने उनसे और उनके ही परचित हकीम से हकीमी-यूनानी
दवाएं सीख लीं थीं जिनमें कुछ बहुत ही चमत्कारी और अमोघ थीं। बाद में मीरा
त्रिपाठी ने उन्हीं दवाओं के बल पर ऐसे लोगों को भी नया जीवनदान दिया जिन्हें
सरकारी अस्पताल से यह कह कर लौटा दिय़ा था कि इसका कोई इलाज नहीं। आगे की कड़ियों
में मीरा त्रिपाठी के चमत्कारी चिकित्सा प्रसंगों में आयेंगे।
जैसा आगे बता आये हैं कि
रामलीला से ही रामखिलावन त्रिपाठी का परिचय निरुपमा देवी से हुआ। रामखिलावन
रामलीला के लक्ष्मण थे और निरुपमा रामलीला की नियमित दर्शक। वहीं से जान-पहचान
बढ़ी जो धीरे-धीरे प्रेम में बदल गयी और फिर दोनों ने जीवनसंगी बनने का निश्चय
किया। संयोग कुछ ऐसा बना कि विवाह के कुछ समय बाद ही रामखिलावन त्रिपाठी नौकरी की
तलाश में कोलकाता चले गये।
बांदा में मंगल प्रसाद तिवारी
और उनकी सहधर्मिणी मीरा त्रिपाठी भर रह गयीं थीं। भांजे रामखिलावन के दूर जाने का
मंगल प्रसाद तिवारी को दुख तो था लेकिन यह जान कर संतोष भी था कि दुश्मनों के लिए
बांदा नजदीक था कोलकाता तक तो उनकी पहुंच नहीं हो पायेगी और उनका भांजा वहां
सुरक्षित रहेगा। उन्हें यह उम्मीद थी कि भांजे को कोलकाता में काम मिल जायेगा तो
फिर वह कभी-कभी बांदा आता-जाता रहेगा। (क्रमश:)
बहुत ख़ूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर संस्मरण।
ReplyDelete