Saturday, November 20, 2021

बहन से बछड़ा नहीं मिला तो भाई ने सारे रिश्ते तोड़ दिये

आत्मकथा
कुछ भूल गया कुछ याद रहा 
राजेश त्रिपाठी
(भाग-10) 
 मादा नेउले बुधिया का अचानक जाना मीरा त्रिपाठी को अब भी सता रहा था। वह जिस तरह से गयी थी उससे यह साफ था कि जैसे उसे लगा कि इस घर में जो आया है अब मां की सारी ममता उस पर होगी। ऐसे में उसने घर को छोड़ना ही उचित समझा। मेरे अर्थात रामहेती जो अब राजेश है के धरा पर आने से पहले की जो भी बातें इस आत्मकथा में आयेंगी वे मैंने अपने माता-पिता से सुनी और जानीं। दो संतानों को गर्भ में ही खोकर तीसरी संतान पाकर मीरा त्रिपाठी बहुत खुश थी और सावधान भी। वह बच्चे को बड़े प्रेम और स्नेह से पाल रही थी। उसे छींक भी आ जाये तो उसका कलेजा कांप जाता। मां की ममता की छांव में रामहेती धीरे-धीरे बढ़ने लगा। पिता मंगलप्रसाद तिवारी बेटे के लिए जो भी जरूरी सामान था वे यथासाध्य जुटा रहे थे। 
  मैं जब तीन साल का हुआ तो एक अजीब तकलीफ ने मुझे घेर लिया। मुझे तनिक भी ज्वर होता तो कुछ क्षण के लिए बेहोशी आ जाती। यह बीमारी छह साल से कम उम्र के बच्चों को होती है। इसे कहीं तडका, कहीं ज्वर का दौरा कहते हैं। अंग्रेजी में इसे फेब्राइल कन्वल्शन कहते हैं। मुझे जब भी ऐसा होता मां रो-रो कर मां भगवती दुर्गा को पुकारने लगतीं और कहती-मोहि पुकारत देर भई जगदंब विलंब कहां करती हो। उनकी विनती के यह स्वर जादू जैसा काम करते थे। मैं होश में आ जाता और ‘मां’ कह कर चिल्ला पड़ता। तब कहीं मां को शांति मिलती और दिल की धड़कन सामान्य होती।
  जब यह बीमारी लगातार चलती रही तो मां ने सोचा मां के चरणों में बेटे को डाल देते हैं और उनसे ही उसके क्षेम-कुशल की भीख मांगते हैं। यह सोच कर मेरे माता-पिता ने मां विध्यवासिनी के दर्शन करने का निश्चय किया। नियत दिन दोनों मुझे साथ लेकर तीर्थयात्रा पर निकल पड़े। यात्रा ट्रेन से हो रही थी। बाद में मुझे मां ने बताया था कि –जब भी गाड़ी रुक जाती थी तो मैं चिल्लाता था ‘हांक’ ‘हांक’ अर्थात ‘चलाओ’ ‘चलाओ’। हमारे बुंदेलखंड में बैलगाड़ी को चलाने के लिए हांकना कहते हैं। मां विंध्यवासिनी ने कृपा की। मां ने उनके चरणों में मुझे डाल कर प्रार्थना की थी-‘मां तुमने दया करके इसे दिया है तो अब रोग-दुख से इसकी रक्षा करने का भार भी तुम पर है।’ 
   मां की कृपा से उसके बाद ज्वर तो आता पर फिर मुझे बेहोशी के दौरे नहीं आये। मैं कुछ बड़ा हुआ तो मुझे गांव की पाठशाला में डाल दिया गया। क्षमा करेंगे ‘डाल दिया गया’ का प्रयोग किया क्योंकि वह पाठशाला तो थी ही नहीं। किसी की खाली चौपाल थी जहां हमारी तहसील बबेरू से आनेवाले एक शिक्षक हम सबको दिन भर घेरे रहते और पाटी में कुछ पाठ लिखाते रहते। उन दिनों पाटी में लिखाया जाता था। चाक जिसे हम छूही कहते थे उसे दवात जैसे चौड़े मुंहवाले मिट्टी के पात्र में घोला जाता यही उस समय की सफेद स्याही थी। पाटी काठ की होती और काले रंग की होती। उसे घोट्टे (काले शीशे या पत्थर की गोल चूड़ी जैसी मोटी वस्तु) से घोंट कर चमकाया जाता था। उस समय इस बात की होड़ लगती कि किसकी पाटी कितनी चमकीली है। शिक्षक साइकिल में आते और दिन भर जो बन पड़ता पढ़ा कर वापस लौट जाते। वे हफ्ते में तीन-चार दिन ही आते थे बाकी दिन हम लोग छुट्टी मनाते थे। 
   हमारी पाठशाला जिस हिस्से में थी वह गांव का प्रवेश था। एक दिन की बात है हम लोग पाठशाला में बैठे पढ़ रहे थे। दोपहर का समय हुआ था तभी लक-दक कपड़ों से सजा एक अजनबी वहां आया और शिक्षक से पूछने लगा-मास्टर जी मंगलप्रसाद तिवारी का घर किधर है। मैं चौंका अरे यह कौन है जो मेरे पिता जी का नाम ले रहा है। मास्टर ने मुझे आवाज लगायी-रामहेती इनको अपने घर ले जाओ, ये तुम्हारे पिता जी से मिलना चाहते हैं। मैं यंत्रवत उठा और उस अजनबी को साथ ले अपने घर की ओर चल पड़ा जो गांव के आखिरी छोर पर था। रास्ते में उस अजनबी ने स्वयं अपना परिचय देते हुए कहा- मैं तुम्हारा मामा प्यारेलाल पाठक हूं, तुम्हारे मां के मायके मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के गौरिहार से आया हूं। अब मैं सहज हुआ मुझे भी अच्छा लगा कि मैं अपने मामा से मिल रहा हूं। 
    
  मामा प्यारेलाल जब घर पहुंचे तो वर्षों बाद अपने भाई को देख कर मेरी मां भाई से लिपट कर रोने लगी और बोली-भैया बहन विवाह के बाद इतनी परायी हो गयी कि इतने दिनों तक उसकी याद भी नहीं आयी कि बहन जिंदा है या मरी। इसके बाद मामा ने कुछ ना कुछ बहाना बना कर मां को चुप कराया। वे दो दिन जुगरेहली में अपने बहन के घर रहे। इस बीच उनकी नजर गोरुहाई (गौशाला) में बंधे एक अच्छे बछ़ड़े पर पड़ी। वह उनकी नजर में चढ़ गया और दूसरी सुबह ही वे अपनी बहन से बोले-बहना, हमारे यहां एक बैल की सख्त कमी है तुम अपना यह बछड़ा हमें दे दो हम एक कहीं से खरीद लेंगे तो जोड़ी बन जायेगी। मां ने सीधे जवाब दिया-भैया बछड़ा तो हम नहीं दे पायेंगे। अभी हमारे पास एक जोड़ी बैल हैं जिससे खेती में देर होती है। आपके जीजा जी ने एक बैल देख रखा है जिसे खरीदनेवाले हैं। यह बछड़ा थोड़ा और बड़ा हो जायेगा तो हमारे यहां बैलों की एक जोड़ी बन जायेगी जो बहुत जरूरी है। मुझे माफ करो भैया यह बछड़ा तो मैं नहीं दे पाऊंगी। 
   मामा प्यारेलाल पाठक दूसरे दिन जो गौरिहार वापस गये तो फिर लौट कर नहीं आये। ऐसी है यह दुनिया कि एक बछ़ड़ा नहीं मिला तो बहन से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया। सुना तो यही है कि मायकेवाले बेटी को कुछ ना कुछ देते हैं बदले में उससे प्रेम के अलावा और कुछ पाने की उम्मीद नहीं करते। इसका नतीजा यह हुआ कि मैं कभी अपना ननिहाल नहीं देख पाया। कैसे जाता वहां जब वे लोग अपनी तरफ से सारे रिश्ते तोड़ बैठे थे।                       
      मैं मां से गौरिहार के किस्से सुन कर ही संतोष कर लेता था। मां बताती थीं-हमारे घर के सामने एक पहाड़ था जिस पर जालपा देवी (दुर्गा का ही एक रूप) का मंदिर था। हम लोग जाड़े के दिनों में देखा करते थे चीता, तेंदुआ जैसे जानवर चट्टानों में बैठ कर धूप सेंका करते थे।‘ मां मुझको अपने यहां के तीज-त्योहार और मेले-ठेले के बारे में बताती और मैं कल्पना में ही अपने ननिहाल पहुंच जाता और मेरे मन मस्तिष्क में स्वप्नवत उभरते मां के बताये गये बिंब और साथ ही मै अपनी मां को अपने मायके का बखान करते हुए गौर करता कि उनके चेहरे पर एक अद्भुत चमक उभर आयी है। 
     मां जब भी मायके का जिक्र करती उसके बाद देर तक रोती रहतीं जो पल बेटे मेरे लिए बहुत ही दुखद और असह्य होते थे। मीरा त्रिपाठी को इसी बात का पछतावा होता था कि वह तो मायके के रिश्ते की डोर को बहुत मजबूत मान रही थीं पर वह तो लाभ लोभ में टिकी थी। जाने क्यों कुछ परिवारों में लोग बेटी को ब्याह कर ऐसा महसूस करने लगे हैं जैसे उनके सिर से कोई बोझ उतर गया। मानाकि ऐसा दहेज की बढ़ती मांग की वजह से हो सकता है लेकिन इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कई परिवारों में बेटी का दर्जा बेटे से कमतर होता है। शायद इसके पीछे यह सोच काम करता हो कि बेटा तो कमायेगा, बहू लायेगा और बेटी तो जब आयेगी कुछ ना कुछ लेकर जायेगी। मेरी मां की जिंदगी में कुछ अलग ही घटा था। जिस भाई को बहन के लिए कोई भेंट लेकर आना चाहिए था वही उससे कुछ मांग बैठा और जब मिला नहीं तो हमेशा के लिए सारे रिश्ते तोड़ लिये। मुझे भी हमेशा यह दुख रहा कि उसका ननिहाल होते हुए भी वह वहां नहीं जा सकता क्योंकि जिन्होंने सारे संबंध ही तोड़ दिये तो उनके यहां किस संबंध का आसरा लेकर जाये। (क्रमश:)

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