आत्मकथा
कुछ भूल गया, कुछ याद रहा
(भाग-8)
मंगलप्रसाद तिवारी को जो जमीन मिली थी वह बरसों से परती पड़ी थी। उन्होंने कुछ मजदूरों को लगवा कर उसमें उग गये पेड़ और खर पतवार को साफ कराया। इस जमीन का सड़क से जुड़ा हिस्सा बहुत ऊंचा था उसके नीचे से एक छोटा नाला बहता था जो केवल बरसात में उफनता था बाकी समय सूखा पड़ा रहता था। जहां यह खेत था उस क्षेत्र को डाननरिया कहते थे। यह खेत ही अब उनके जिंदगी जीने का सहारा था। बांदा में इतने दिनों में जो रुपये कमाये थे वे दो गायें खरीदने का साधन बनें। बाकी बचे रुपयों से घर-गृहस्थी का सामान खरीद लिया।
जुगरेहली वापस आने के बाद भी मंगलप्रसाद तिवारी अपने छोटे भाई स्वामी
कृष्णानंद के समाचार लेते रहते थे। कृष्णानंद भी अपने घोड़े पर बैठ कर कई महीनों
में एक-दोबार बड़े भाई से मिलने जुगरेहली आ जाया करते थे। कृष्णानंद को सुगंधित
तेल (जिसे हमारे यहां महकुआ तेल कहते हैं) बहुत पसंद था। उनके बड़े भाई मंगलप्रसाद
सिर में लगाने का तेल भूतनाथ खास उनके ही लिए कलकत्ता से मंगाते थे। इसकी सुगंध
बहुत तीव्र थी और दूर-दूर तक जाती थी।
एक बार ऐसे ही स्वामी
कृष्णानंद जुगरेहली में अपने भाई मंगलप्रसाद से मिल कर घोड़े पर सवार होकर अपनी
कुटी बिलबई लौट रहे थे। उनके सिर पर भूतनाथ तेल लगा हुआ था। बिलबई के पास पहुंचने
तक दोपहर के बारह बज चुके थे। अचानक कृष्णानंद को लगा जैसे किसी ने उन्हें घोड़े
से उठा कर नीचे पटक दिया है। उनके गहरी चोटें आयीं। उन्होंने उठने की कोशिश की
लेकिन उठ नहीं पाये क्योंकि उनका एक पैर बिल्कुल सुन्न पड़ गया था। लगता था जैसे
वह बेकार हो गया है। वे काफी देर तक सड़क पर पड़े दर्द से छटपटाते रहे। उन दिनों
तो मोबाइल फोन थे नहीं कि कोई उनके दुर्घटनाग्रस्त होने की खबर उनके अपनों तक
पहुंचाता।
कहते हैं कि दोपहर बारह बजे और अर्धरात्रि में ज्यादा महक वाला तेल
लगा कर नहीं चलना चाहिए। ऐसे में उस व्यक्ति के आत्माओं के क्रोध का शिकार होने का
भय रहता है। कृष्णानंद स्वामी के साथ भी ऐसा ही हुआ। वे तो बराबर घोड़े पर चलते थे
कभी कोई हादसा नहीं हुआ।
वे रास्ते पर पड़े छटपटा रहे
थे तभी उन पर वहां से गुजरते किसी परिचित की नजर पड़ गयी। वह दौड़ा-दौड़ा उनके पास
पहुंचा और उन्हें उठाते हुए पूछा-क्या हुआ महाराज।
कृष्णानंद ने कराहते हुए कहा-पता नहीं ऐसा लगा कि जैसे किसी ने मुझे
घोड़े से उठा कर नीचे पटक दिया।
वह व्यक्ति बोला-आप इतनी तीखी महक वाला तेल लगाये हैं हो सकता है किसी
आत्मा ने यह किया हो।
उस व्यक्ति ने आस-पास से गुजरते कुछ लोगों को जुटाया और पास ही उनकी
कुटी तक पहुंचा कर वहां कुछ लड़कों को उनका ध्यान रखने की बात कह कर चला गया।
उन लड़कों से जो बन सका सेंक
आदि की पर स्वामी जी का एक पैर पूरी तरह सुन्न हो गया था। उस पर थोड़ी भी शक्ति
नहीं रह गयी थी। वे उस पैर पर जोर लगा कर उठते और धड़ाम से गिर जाते। उन्होंने कुछ
लड़कों से कहा कि वे उनके संबंधियों यानी रामखिलावन के चाचा वगैरह से उनके साथ हुई
घटना की बात बता दें। यह भी कि वे लोग मेरे बड़े भाई मंगलप्रसाद तक यह खबर पहुंचा
दें कि मेरे साथ दुर्घटना हो गयी है, मैं चलने फिरने लायक नहीं रहा।
लड़कों ने वह खबर रामखिलावन
त्रिपाठी के चाचा वगैरह तक पहुंचा दी पर उन्होंने ना मंगलप्रसाद तिवारी तक उनके
छोटे भाई की तकलीफ की खबर ही पहुंचाई और ना ही उन लोगों ने स्वामी कृष्णानंद की
सेवा सुश्रूषा ही की। उनकी हालत दिन पर दिन खराब होने लगी।
एक दिन की बात है मंगलप्रसाद तिवारी अपने खेत में कुछ काम कर रहे थे
तभी उन्हें वहां से बिलबई का एक परिचित आदमी जाता दिखा। उन्होंने आगे बढ़ कर
रामजोहार की। उनसे मिलते ही बिलबई के उस आदमी ने स्वामी कृष्णानंद के साथ हुई
दुर्घटना और उनके कुटी में असहाय पड़े होने की बात सुना दी।
छोटे भाई के साथ हुई दुर्घटना की बात सुनते ही मंगलप्रसाद परेशान हो
गये। वे दौड़े-दौड़े घर आये और पत्नी को स्वामी कृष्णानंद के साथ हुई दुर्घटना की
बात बतायी। उन्होंने उससे कहा कि उन्हें तुरत बिलबई जाना होगा।
पत्नी को समझा कर वे बिलबई
चले गये। उन्होंने वहां जाकर देखा कि उनके छोटे भाई जमीन में पड़े कराह रहे हैं।
भाई की यह दशा देख मंगलप्रसाद उनसे लिपट कर रोने लगे। स्वामी कृष्णानंद ने बताया
कि वे जानते नहीं कौन सा परिवार है जो रोज उनके लिए खाना भेज देता है। एक बच्चा
आता है मेरा हाल-चाल पूछता है और खाना खिला कर चला जाता है।
अभी दोनों भाई आपस में बात कर
रहे थे तभी वह बच्चा खाना लेकर आ गया। मंगलप्रसाद ने उसके हाथ से खाना ले लिया और
भाई को अपने हाथ से खिलाने लगे। खाना खत्म कर जब वह बच्चा वापस जाने लगा तो
मंगलप्रसाद भी उसके साथ हो लिये। उसके घर जाकर उन्होंने उनके माता-पिता को धन्यवाद
दिया वे उनके भाई स्वामी कृष्णानंद के लिए खाना भेज रहे हैं। वे ना होते तो उनका
भाई भूखों ही मर जाता।
मंगलप्रसाद की बात सुन कर घर का मालिक बोला-अरे स्वामी जी बहुत अच्छे
हैं। हम उन्हें वर्षों से जानते हैं। जब उनके साथ हुई दुर्घटना का पता चला तो हमने
तय किया कि जब तक कोई और प्रबंध नहीं हो जाता उनके लिए खाना हमारे घर से जाता
रहेगा। हम जानते हैं आप लोगों के रिश्तेदार यहां हैं पर वे तो देखने भी नहीं आये।
ऐसे में हम स्वामी जी को बेसहारा तो छोड़ नहीं सकते थे।
मंगलप्रसाद ने उनसे पूछा-यहां
कोई अच्छा वैद्य है क्या जिससे भाई का इलाज कराया जा सके।
मकान मालिक ने कहा-हां एक प्रसिद्ध वैद्य यहां हैं उन्हें दिखा लीजिए।
इतना कह कर उन्होंने अपने बेटे को मंगलप्रसाद के साथ कर दिया जो उन्हें वैद्य के
पास ले गया।
वैद्य ने सारी बात सुन कर
कहा- मैं रोगी को देखे बगैर कुछ नहीं कह सकता पहले रोगी को देखना होगा।
मंगलप्रसाद वैद्य को लेकर भाई
कृष्णानंद जी की कुटी ले गये। उन्हें देखते ही वैद्य बोले-अरे इन्हें तो मैं
पहचानता हूं ये तो हमारे स्वामी जी हैं। क्या हुआ था इन्हें।
मंगलप्रसाद ने सारी कहानी
बता दी। वैद्य जी ने पैर को देखा उन्हें उसमें कुछ जान नजर आयी।
वैद्य जी ने कहा-पूरी तरह से ठीक होने की तो गारंटी नहीं है पर मैं एक
तेल और कुछ खाने की दवा दे देता हूं। एक महीने तक दवा लेने और तेल की मालिश करने
से ये चल पायेंगे लेकिन बैसाखी का सहारा लेकर। इनके पैर को लकवा मार गया है।
वैद्य की बात सुन कर
मंगलप्रसाद बहुत परेशान हुए। उन्होंने तय किया कि वे भाई की सेवा के लिए किसी को
रख देंगे और बीच-बीच में आकर भाई को देख जाया करेंगे।
वैद्य जी के साथ जाकर
मंगलप्रसाद दवा और तेल ले आये। उन्हें पैसा देकर वे वापस उस परिवार में आये जो
लगातार स्वामी जी के लिए खाना भेजता था।
मंगलप्रसाद ने घर के मालिक से
पूछा –क्या कोई ऐसा लड़का मिल जायेगा जो मेरे भाई स्वामी जी की देखभाल कर सके और
उन्हें दवा खिला कर तेल की मालिश कर सके। मैं यहां रह जाता लेकिन गांव में पत्नी
अकेली है।
मंगलप्रसाद की बात सुन कर घर
के मालिक ने कहा-आप चिंता मत कीजिए, हमारा एक परिचित लड़का है वह बहुत अच्छा है,
स्वामी जी भी उसे जानते हैं। वह उनकी देखभाल कर लेगा। उनके साथ रह लेगा।
मंगलप्रसाद बोले-उस लड़के से
मुझे मिला दीजिए।
वह लड़का पास में ही रहता था उसे तुरत बुला लिया गया।
उस लड़के ने सारी बातें सुनीं तो बोला-स्वामी जी की सेवा करना मेरे
लिए सौभाग्य की बात होगी। मैं उन्हें कोई कष्ट नहीं होने दूंगा।
मंगलप्रसाद बोले-बेटा सदा
खुश रहो, मुझसे जो बन सकेगा तुम्हें अवश्य दूंगा। बस तुम मेरे भाई को संभाल लो।
मैं हर हफ्ते आकर देख जाया करूंगा। अगर गांव में मेरे घर में कोई और होता तो मैं
एक माह के लिए यहां रह जाता। तुम्हार नाम क्या है बेटा।
वह लड़का बोला-मैं रामकुमार
हूं।
उस लड़के को स्वामी कृष्णानंद के साथ रख कर मंगलप्रसाद छोटे भाई से
बोले-भाई तुम्हारी देखभाल के लिए रामकुमार है, मैं रुक जाता मगर गांव में तुम्हारी
भाभी अकेली है। मैं हर हफ्ते आता रहूंगा।
स्वामी कृष्णानंद बोले-भैया
तुम चिंता मत करो रामकुमार बहुत अच्छा लड़का है यह मेरा बड़ा भक्त है। यह मुझे
कष्ट नहीं होने देगा।
भाई की बात सुन कर मंगलप्रसाद
को बहुत ढांढस हुआ और भाई को सब समझा बुझा कर वे गांव के लिए लौट पड़े।
घर पहुंचते-पहुंचते रात हो
गयी। मंगलप्रसाद ने देखा पत्नी परेशान बैठी थी। उन्होने उनसे सारी बात बतायी और कहा-
कोई इंतजाम किये बगैर भाई को ऐसे ही तो छोड़ कर आ नहीं सकता था। अब इतना तो भरोसा
है कि चौबीस घंटा उनकी देखभाल के लिए एक विश्वासी लड़का है।
देवर कृष्णानंद के बारे में
सुन कर मीरा त्रिपाठी भी बहुत दुखी हुई।
उसके बाद मंगलप्रसाद हर हफ्ते
जाकर भाई का हाल देख आते। दस-पंद्रह दिन बाद उनको वैद्य के इलाज का असर दिखने लगा
था। अब उनके छोटे भाई उस पैर को थोड़ा-थोड़ा हिलाने-डुलाने लगे थे।
एक महीने बाद कृष्णानंद काफी
कोशिश कर खड़े होने लगे पर जो पैर जख्मी हो गया था उसमें जोर नहीं मिल रहा था।
मंगल प्रसाद ने वैद्य से सलाह ली तो उन्होंने कहा कि इनके लिए बैसाखियां ले आइए अब
ये जिंदगी पर उन्हीं के सहारे चल पायेंगे।
सारा इंतजाम कर और रामकुमार
को उनकी देखभाल करने की सलाह देकर मंगलप्रसाद ने उसे समझाया कि स्वामी जी के बारे
में कुछ भी संदेश हो तो हमारे रिश्तेदारों को बता देना हमें खबर मिल जायेगी। उसके
बाद उन्होंने अपने रिश्तेदारों का नाम उसे बता दिया और जुगरेहली लौट आये।
दिन गुजरने लगे। मंगलप्रसाद
हर हफ्ते भाई को देख आते। स्वामी कृष्णानंद अब बैसाखी के सहारे चलने लगे थे।
रामकुमार अच्छी तरह से उनकी सेवा कर रहा था। इस तरह धीरे-धीरे आठ माह गुजर गये।
इधर मंगलप्रसाद तिवारी अपनी गृहस्थी संभालने में लगे थे। उन्हें जब भी
कोई परेशानी होती वे गंगाप्रसाद जी के पास जाते और वहां से उन्हें कभी भी खाली हाथ
नहीं लौटना पड़ा।
रहने को घर और आसरे के लिए
जमीन का एक भूखंड मिल गया है यह जान कर मंगल प्रसाद तिवारी की पत्नी भी खुश थी।
सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक एक दिन बिलबई से एक आदमी आया जिसने
आते ही मंगलप्रसाद से कहा कि-आपके भाई स्वामी कृष्णानंद जी नहीं रहे। कल सुबह वे
बैसाखी के सहारे चल रहे थे अचानक उनका शरीर कांपने लगा और वे गिर गये। कुछ देर में
ही उनका शरीर शांत हो गया. हम लोग तुरत वैद्य जी को बुला लाये जिन्होंने उन्हें देख कर कहा कि उनको दिल का दौरा पड़ा था
जिससे वे चल बसे। आपके कहे अनुसार हमने आपके रिश्तेदारों को खबर कर दी लेकिन जब
दिन बीतने पर भी कोई नहीं आया तो हम चिंता में पड़ गये। अब आपको बताये बगैर तो हम
उनकी अंत्येष्टि भी नहीं कर सकते थे। हमने आपके रिश्तेदारों से आपके गांव का नाम
पूछा और आपको संदेश देने आ गये।
मंगलप्रसाद को काटो तो खून नहीं वे जोर-जोर से रोने लगे फिर उसी आदमी
के साथ बिलबई चल दिये। रास्ते भर वे अफसोस कर रहे थे कि रिश्तेदारों ने दुश्मनों
सा काम किया। एक दिन बीत जाने के बाद भी भाई की मृत्यु की खबर देने नहीं आये।
जब मंगलप्रसाद बिलबई पहुंचे
तो उन्होंने देखा कुटी के अंदर स्वामी कृष्णानंद का शव पड़ा है उस पर चीटें चढ़
गये हैं। भाई की यह दुर्दशा देख वे रो पड़े और उन रिश्तेदारों पर लानत भेजने लगे
जिन्होंने ना उनके भाई की देखभाल की और ना ही उन तक उनकी दुर्घटना की खबर ही
पहुंचाई। उनके निधन की खबर भी एक दिन बाद उन तक पहुंची। उन्होंने पाया कि स्वामी
जी की कुटी में रखे वेद, पुराण, योगवशिष्ठ व संहिता आदि सब वही रिश्तेदार उठा ले
गये थे। वे लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर हैं वे उनमें तंबाकू लपेट-लपेट कर उन महान ग्रंथों
का अपमान ही करेंगे इसके सिवा और कुछ नहीं।
स्वामी कृष्णानंद के शव के
पास बैठा रामकुमार रो रहा था। उसने बताया कि- जब हमने आपके रिश्तेदारों को स्वामी
जी के निधन की खबर सुनायी तो उनमें से एक दौड़ा हुआ आया और कुटी में कुछ खोजने
लगा। शायद वह रुपया पैसा खोज रहा था। लेकिन स्वामी जी तो कुटी के पास से गुजरते
भक्तों के दिये पैसे से गुजारा करते थे। उनके पास कोई खजाना तो था नहीं। जब कुछ
नहीं मिला तो वे स्वामी जी के संस्कृत के ग्रंथ उठा ले गये। हमने उनसे कहा था कि
वे स्वामी जी के निधन की खबर आप तक पहुंचा दें लेकिन जब शाम तक कोई नहीं आया तो
हमने दूसरी सुबह आपके रिश्तेदारों से आपके गांव का नाम पूछा और संदेश देने के लिए
अपना आदमी भेजा।
एक बार मंगलप्रसाद का मन हुआ
कि उन बेईमान रिश्तेदारों को जम कर कोसें और खरी-खोटी सुनायें फिर यह सोच कर कि
इससे मेरा भाई तो जीवित नहीं हो जायेगा। मैं अब उन मनहूसों का मुंह भी नहीं
देखूंगा। वे चुप रह गये।
बिलबई के उनके वे रिश्तेदार
मंगलप्रसाद तिवारी से इसलिए खफा थे कि वे उनके चंगुल से उनके भतीजे रामखिलावन को
सुरक्षित छुड़ा ले गये जिसे मार कर वे उसकी सारी संपत्ति हड़पना चाहते थे। गांव के
कुछ लोगों की मदद से मंगलप्रसाद ने अपने भाई स्वामी कृष्णानंद का अंतिम संस्कार
किया और भारी मन से जुगरेहली लौट आये।
समय पंख लगा कर उड़ता गया। धीरे-धीरे कृष्णानंद जी के निधन के आठ
महीने बीत गये। बांदा में अपनी दो संताने खो चुकी मीरा त्रिपाठी फिर उम्मीद से थी।
पहले की दो संताने गर्भ में ही नष्ट हो गयी थीं।
गर्मी की दोपहर थी मीरा त्रिपाठी सोने के लिए
लेटी थी। कुछ देर में उन्हें झपकी आ गयी। नींद में ही
उन्होंने देखा उनके देवर स्वामी कष्णानंद उन्हें पुकार रहे हैं-भाभी बहुत भूख लगी है, मुझे कुछ खाने को दो। मीरा त्रिपाठी को समझ नहीं आ रहा था कि इस वक्त स्वामी कृष्णानंद को क्या खिलाये।
जब कुछ समझ ना आया तो उसने गुड़ देकर उनको पानी पिला दिया। पानी पीकर चेहरे पर मुसकान लिये स्वामी कृष्णानंद लौट गये। यह सपना इतना सच सा था कि मीरा त्रिपाठी की नींद खुल गयी। वह सोचने लगी देवर जी तो कभी मेरे सपनों में नहीं आये। इस सपने का मतलब क्या है। इसी उधेड़बुन में वह दिन बीत गया।
दूसरी सुबह उसने सपने की बात पति मंगलप्रसाद तिवारी को बतायी। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा।
मीरा त्रिपाठी ने अपने सपने की बात गांव की बड़ी बूढ़ी
महिलाओं से बतायी। उन्होंने उससे कहा-यह इस बात की ओर इशारा है कि अपने वंश का कोई
तुम्हारे घर तुम्हारी संतान बन कर आना चाहता है।
इसके बाद जब मीरा त्रिपाठी ने स्वामी कृष्णानंद के गुजरने की सारी बात
बतायी तो उन महिलाओं ने कहा-देखो प्राण त्यागने के बाद वह तुम्हारे सपनों में आये
इसका मतलब वे भले स्वामी रहे हों पर धरती का मोह नहीं छूटा वे तुम्हारे घर अवश्य
आयेंगे। छोटे भाई को खोकर मंगलप्रसाद उदास हो गये थे। पत्नी गर्भवती है यह खबर भी
उनकी उदासी दूर ना कर सकी। (क्रमश: )
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