Sunday, April 19, 2009
ये देने पांच सालों का हिसाब आये हैं
किसी फिल्म (नाम याद नहीं) का एक गाना था -`एहतराम कीजिए, आली जनाब आये हैं, ये देने पांच सालों का हिसाब आये हैं।' यह गाना उस फिल्म में चुनाव के संदर्भ में ही था और उन नेताओं को लेकर था जो पांच साल बाद जनता से वोट याचना के लिए आये थे। गाने में साफ संकेत थे जो वोट याचक आपके गांव-द्वार आये हैं पहले उनसे उनके पिछले पांच सालों का हिसाब लीजिए फिर मन में जांचिये-परखिये और फिर कीजिए अपने बहुमूल्य वोट का इस्तेमाल। आज फिर वही माहौल है। विविध रंगों में रंगों में रंगे, वादों की पोटलियां लिये नेता आपके सामने हैं। कुछ की तकदीरें ईवीएम में बंद हो चुकी हैं और कुछ को दिल्ली दरबार तक पहुंचने के लिए आपकी वोट की दरकार है। आपको याद होगा पिछली बार भी ये चेहरे आपके सामने आये होंगे और उन्होंने वादों के पुलिंदे खोले होंगे लेकिन शायद ही उनमें से एक भी पूरे हो पाये होंगे। वादों का छोड़िए जीतने के बाद नेता जी क्षेत्र की जनता को धन्यवाद देना भी भूल गये होंगे। दिल्ली की सुख-सुविधाओं को फिर से पांच सालों के लिए अपने नाम करने के वास्ते एयरकंडीशंड कमरों में बैठ कर देश के सुधार के सपने रचने वाले आज लू के थपेड़े सह रहे हैं, रास्तों की धूल फांक रहे हैं। इन्हें पता है की कष्ट से ही कृष्ण (इनके लिए संसद की सीट या भाग्य बली हुआ तो मंत्री पद) मिलते हैं। इसके लिए ये तरह-तरह के रूप धर रहे हैं। जिन्हें गरीबी से घृणा है, दि्ल्ली पहुंचने के बाद जिन्हें मैले-कुचैले कपड़ों वाले देहातियों से बू आती है और वे मिलना तक नहीं चाहते वे आज उनके नाक टपकाते बच्चों को दुलार रहे हैं। उनके घर प्याज-रोटी खा छप्पन भोग का आनंद पा रहे हैं। मन कचोटता है उनका कि सत्ता-सुख के लिए क्या-क्या भोगना पड़ रहा है लेकिन तभी खयालों में उभरती है लाल बत्ती की गाड़ी, चपरासी, एयरकंडीशंड घर और मंत्री हैं तो उसका रुतबा और प्याज रोटी में उन्हें मालपुए का आनंद मिलने लगता है और गरीबों की दुर्गंध भरे मैले-कुचैले कपड़ों से चंदन की खुशबू। जिन्होंने दिल्ली दरबार का सुख भोगने के बाद कभी गांवों की ओर रुख भी नहीं किया होगा वे आज वहां की धूल छान रहे हैं तो देश -सेवा के भाव से नहीं बल्कि संसद की एक अदद सीट के लिए लोगों को फिर एक बार झांसा देकर वोट पाने के लिए। वोट जो देता है उन्हें अनंत सुख की गारंटी। अब भले ही उनके वादे के मुताबिक गांव में बिजली न आये, 24 घंटों में सिर्फ 4 घंटे ही तारों पर बिजली दौड़े और किसानों की फसलें पानी के अभाव में सूखती रहें और वे आत्महत्या करते रहें लेकिन उनका काम तो बन गया, वोट मिला, वे जीते और सुख के अधिकारी हो गये। भले ही उनको वहां तक पहुंचाने वाले गरीब और गरीब , भिखारी हो गये।
ये जो वोट के याचक आपके द्वार आये हैं इन्हें इनकी मजबूरी आप तक ले आयी है। सौभाग्य या दुर्भाग्य कुछ भी कहें आप गणतंत्र देश के वासी हैं और देश के संविधान ने आपको यह दायित्व दिया है कि आप अपनी सरकार खुद चुनें। अगर ऐसा न होता तो शायद इनके दर्शन भी आपको न होते। अब अगर आपका एक वोट इतना मूल्यवान है कि किसी का भाग्य संवार या बिगाड़ सकता है तो फिर आप उसे बेकार क्यों जाने दें। आप यह देखिए कि जो व्यक्ति आपके पास वोट की याचना के लिए आया है क्या वह वाकई इसके लिए योग्य पात्र है? सभी दल अपने घोषणापत्रों में बढ़-चढ़ कर और ऐसी घोषणाएं करते हैं जो उनकी आने वाली सात पीढि़या भी शायद ही पूरी कर सकें। लेकिन यह रिवाज है कि जितना हो सके घोषणापत्र में डींग हांको, दाना ऐसा लजीज फेंको की वोटर रूपी चिड़िया उसमें फंसे ही फंसे। साफ है कि किसी भी दल पर घोषणापत्र में किये वायदों को पूरा करने की तो बाध्यता होती नहीं फिर क्यों न लंबी-चौड़ी हांकी जाये। वायदे भी क्यों न हिमालय से ऊंचे किये जायें। ऐसे में कम से कम प्रबुद्ध वोटर को चाहिए कि वह इन दलों का घोषणापत्र संभाल कर रखें और पिछला घोषणापत्र उनके सामने कर सवाल करे - कि भैये पहले पिछले वादे तो पूरे करो, .ये नये क्यों ले आये बेवकूफ बनाने के लिए। यकीन मानिए अगर आप इन नेताओं से पिछले पांच सालों का हिसाब मांगने लग जायेंगे तो ये शर्म से बगलें झांकने लगेंगे, इन्हें भागना ही पड़ेगा या छल -छद्म और झूठ का दामन त्यागना ही पड़ेगा। आप जानते हैं क्या होगा। चुनाव परिणाम आने के बाद ये छोटी-छोटी थालियों के मेढ़क उन बड़ी थालियों में जा बैठेंगे जहां सत्ता-सुख का अवसर मिलने का मौका नजर आयेगा। तब इनके सारे वायदे, सारे वाद और विचार धरे के धरे रह जायेंगे और सुविधावादी ये नेता सारे सिद्धांत भुला सत्ता की दौड़ में शामिल हो जायेंगे। हर बार ऐसा होता रहा है और इस बार भी होगा। आज जो जिस नेता को गाली दे रहा है कल वही उसके साथ सरकार में बैठने में तनिक भी नहीं शर्मायेगा। तब उसे उस दानव में भगवान नजर आने लगेंगे। और आयें भी क्यों नहीं, उनके साथ होने से उन्हें सत्ता-सुख जो मिल रहा है। इस परमानंद के आगे सिद्धांत, वाद,विचार की ऐसीतैसी। इन्हें चाहिए तो बस दिल्ली का दरबार, दूसरा न कोई। कारण, उस दरबार के लिए ही तो इन्होंने इतनी तपस्या की है। सिद्धांत आज कोई मायने नहीं रखते, अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब एक बड़े कद के नेता ने सत्ता के केंद्र की एक बड़ी हस्ती पर दोषारोपण किया और जब लगा कि उसकी शरण बिन काम नहीं बनता तो सारे गिले-शिकवे भूल कह दिया - जाऊं कहां... और उस सदाशयता की महान मूर्ति ने भी सारे अवगुण भुला उस नेता को बड़ा पद दे दिया। अब उन वोटरों का क्या जिनसे इस नेता ने उस महान हस्ती के विरोध पर वोट मांगे थे। वह जनता तो बेचारी पूरी तरह से ठगी गयी। आपने जिसका विरोध कर उससे वोट मांगे, सत्ता-सुख के लिए उसी के साथ जा बैठे। अब वक्त आ गया है कि ऐसे मिथ्यवादियों को उनकी औकात बतायी जाये। और आपके देश की चुनाव पद्धति ने आपको वह मौका दिया है तो सच्चे भारतीय बनिये और वोट उसी को दीजिए जो इसके लायक हो। जरा देखिए जो आपसे वोट मांगने आया है क्या कभी उसने देश के लिए, समाज के लिए , अपने गांव या कस्बे के लिए ऐसा काम किया है कि उसे वोट दिया जाये, उस पर भरोसा किया जाये। इसीलिए जांचिए, परखिये फिर अपने कीमती वोट का सही व्यक्ति के पक्ष में इस्तेमाल कीजिए। ये आली जनाब आयेंगे आपको भरमायेंगे आप इनकी सुन लीजिए, इनके सामने हां भी कर लीजिए लेकिन कीजिए वही जिसके लिए आपका मन गवाही दे।
-राजेश त्रिपाठी (19 अप्रैल 2009)
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प्रिय बन्धु
ReplyDeleteखुशामदीद
स्वागतम
हमारी बिरादरी में शामिल होने पर बधाई
मेरी सबसे बड़ी चिंता ये है कि आज हमारे समाज का शैक्षिक पतन उरूज पर है पढना तो जैसे लोग भूल चुके हैं और जब तक आप पढेंगे नहीं, आप अच्छा लिख भी नहीं पाएंगे अतः सिर्फ एक निवेदन --अगर आप एक घंटा ब्लॉग पर लिखाई करिए तो दो घंटे ब्लागों की पढाई भी करिए .शुभकामनाये
अंधियारा गहन जरूरत है
घर-घर में दीप जलाने की
जय हिंद
Aisa nahi hai ki hum sthitiyon se anjan hain.Saari baatein sabhi samajhte hain ....par jab nirnay lene ki baat aati hai to jatigat samikarn ka bhag banana hi hamari prathmikata ho jaati hai.Abhi jo sthitiyan hai unke liye kahin na kahin hum bhi jimmewar hai.Jab se meri samajh hui hai char alag alag partiyon ko sarkar chalate dekh chuka hoon. Do baar matdan ka upayog bhi kiya hai. Par ab na jaane kyon mera man vote dalne ka bhi nahi hota jabki ye mera adhikar hai.Ab likhakon ke haathon me hi jimmedari hai we hi nayi peedhi ki disha tay kar sakte hain. Achchha likha hai aapne.
ReplyDeleteNavnit Nirav
wah janab wah! narayan narayan
ReplyDeleteहुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं ............
ReplyDeleteइधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteअच्छा लिखा है। सवाल यह है कि देश को इस कुचक्र से बाहर निकालने का रास्ता क्या है? लोकतंत्र के नाम पर जो षड़यन्त्र किया जा रहा है उसे तोड़ने का तरीका क्या है?
ReplyDeleteकल चीनी लेने गया था 30 रूपये किलो हो गई है
ReplyDeleteब्लोग जगत मे आपका स्वागत है। सुन्दर रचना। मेरे ब्लोग ्पर पधारे।
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