-राजेश त्रिपाठी
मेरे देश को आज क्या हो रहा है।
हंसते हंसते यहां आदमी रो रहा है।।
न अमराइयों में पड़ें आज झूले।
पनघट भी गांवों के अब गीत भूले।।
न कजरी की तानें न बिरहा की बोली।
चले बात ही बात में आज गोली ।।
बारूदी गंधों में डूबी दिशाएं।
गांधी का सपना दफन हो रहा है।। (हंसते हंसते)
कोई मंदिरों के लिए है परेशां।
किसी को फकत मसजिदों की फिकर है।।
वहां सरहदों पर , बवंडर उठे हैं।
तनीं देश पर, दुश्मनों की नजर है।।
बगावत के ब्यूहों को, अब कौन तोड़े।
भारत का अभिमन्यु जब सो रहा है।।
बचपन से ये सीख है हमने पायी।
इंसानियत का , धरम है भलाई।।
लग रहा आज, ये पाठ उलटा पढ़ा है।
सूली पे हर सदी का मसीहा चढ़ा है।।
चाटुकारों की चांदी जहां कट रही।
सच्चा इंसा वहां हाशिया हो रहा है।। (हंसते हंसते)
सियासत के सरमायेदारों, करम हो।
बहुत हो चुका, अब कुछ तो शरम हो।।
इंसा को वोटों में, तुमने है ढाला।
मिल्लत की छाती पर, भोंका है भाला।।
छोटे कदम अब , बहकने लगे हैं।
संभालो इन्हें अब, गजब हो रहा है।। (हंसते हंसते)
हवाओं में बढ़ती तपिश कह रही है।
बगावत की आंधी यहां उठ रही है।।
न अब जहर घोलो, न नफरत बढ़ाओ।
मुल्क के रहनुमा, वक्त है चेत जाओ।।
दहशत ही दहशत , कदम दर कदम है।
हर दिशा से ये कैसा धुआं उठ रहा है।।
मेरे देश को आज क्या हो रहा है।
हंसते हंसते यहां आदमी रो रहा है।।
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प्रभावशाली कविता. धन्यवाद!
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