प्रधानमंत्री को राष्ट्रधर्म सिखाने चले थे, खुद भूल बैठे राष्ट्रधर्म!
-राजेश त्रिपाठी
बाबा रामदेव नयी दिल्ली के रामलीला मैदान गये तो थे भ्रष्टाचार के खिलाफ धर्मयुद्ध लड़ने पर युद्धक्षेत्र से जिस तरह भागे उससे आज उनकी जम कर आलोचना हो रही है। उनके विश्वास में उनके अनुयायी भी वहां गये थे जो पुलिस कार्रवाई में चोट खा बैठे लेकिन रामदेव गिरफ्तारी का साहस भी नहीं जुटा सके। वे तो अपने वहां से भागने को तर्कसंगत बताने के लिए तरह-तरह की कहानियां गढ़ रहे हैं, उनका कहना है कि उनका एनकाउंटर किया जाने वाला था। अब यह तो वही जानते होंगे कि भला उन जैसे योगी और साधुपुरुष का एनकाउंटर कोई क्यों करना चाहेगा। दरअसल रामलीला मैदान से चुपाचाप निकल भागने का कोई ठोस कारण वे पेश करना चाहते हैं जिससे उनके मैदान छोड़ने को सही और समझदारी का काम साबित किया जा सके। लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतर रही कि अगर उनमें गिरफ्तारी देने का भी साहस नहीं था तो हजारों-लाखों लोगों को वे किसलिए वहां ले गये थे। सत्याग्रही साहस के इतने कच्चे नहीं होते बाबा रामदेव जी। इतिहास गवाह है कि महात्मा गांधी से लेकर दूसरे महान देशभक्तों और स्वतंत्रता सेनानियों ने सत्याग्रह या आंदोलन के दौरान लाठियां खायीं, गिरफ्तारी दी, जेल में भी रहे और जिस तरह सोना तप कर और चमकीला होता है कुंदन कहलाता है उसी तरह उनका नाम आज भी इतिहास के पन्नों पर सुनहले अक्षरों में चमक रहा है। देश के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने को तैयार रहनेवाले इन वीरों की कीर्तिगाथा सदैव अमर रहेगी। जिस गांधी और सुभाष, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद की गाथा सुना कर आप देश के युवकों में साहस और देश पर मर मिटने का जज्बा जगाने की कोशिश करते हैं, वे भी आंदोलन में कभी पीछे नहीं हटे। कहना न होगा कि गांधी ने अहिंसक आंदोलन से अंग्रेजों की उस सत्ता को झुकने पर मजबूर किया जिसके लिए कहा जाता था कि उसके राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता। आप भी अगर उस दिन रामलीला मैदान में डटे रहते तो सच मानिए आपका कुछ नहीं बिगड़ना था, पुलिस आपको गिरफ्तार करती और संभव है कुछ समझा कर छोड़ देती जैसा कि वह दूसरे ऐसे आंदोलनकारियों के साथ करती है। माफ कीजिएगा आपको केंद्र सरकार क्यों मारना चाहेगी, उसे इससे क्या फायदा होगा। उलटे अपने इस कृत्य से आपने अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली। योग और आयुर्वेद का अच्छा-खासा कार्य चल रहा था अब आपने केंद्र सरकार को खुद के खिलाफ कार्रवाई करने को उकसा कर बर्र के छत्ते पर पत्थर मार दिया है ताज्जुब नहीं कि केंद्र की आईडी टीम कभी भी आपके हरिद्वार का रुख कर ले। माफ कीजिएगा वह वहां तीर्थाटन के लिए नहीं आयेगी, उसका मकसद कुछ और होगा जो संभव है आपके अनुकूल न हो।
आपने देश में 11000 युवकों की सेना बनाने का आह्वान कर यह साबित कर दिया है कि आप बौरा गये हैं। आप उन्हें पिस्ता, बादाम, घी खिला कर राष्ट्र के खिलाफ लड़ने को तैयार करेंगे। आप समझ रहे हैं क्या करने जा रहे हैं आप और इस तरह से आप खुद को कहां खड़े पायेंगे। गणतंत्र आपको बोलने, आंदोलन करने , अहिंसक ढंग से अपनी बात को जोरदार ढंग से पेश करने का मौका भले ही देता हो लेकिन माफ कीजिए बाबा यह किसी को गनतंत्र चलाने की इजाजत नहीं देता। ऐसी किसी राह पर चलने की गलती करेंगे तो आप भी उसी गति को प्राप्त करेंगे जो ऐसे अन्य संगठनों की हुई थी। आप प्रधानमंत्री को राष्ट्रधर्म का पाठ पढ़ा रहे थे, आप तो खुद राष्ट्रधर्म भूल बैठे। हर देशवासी राष्ट्र की अक्षुण्णता, एकता, प्रगति सुरक्षा में समान रूप से भागीदार बने, सत्य निष्ठा से देश के नागरिक की भूमिका निभाये, कोई भी राष्ट्रविरोधी कार्य न करे। शायद यही होता है राष्ट्रधर्म पता नहीं आप इसकी कैसी व्याख्या करते हैं या आपकी नजरों में राष्ट्रधर्म के मायने क्या हैं पर सेना बनाने की आपकी घोषणा किसी भी तरह से प्रशंसनीय नहीं है बल्कि इस तरह के कदम की जितनी निंदा की जाये कम है। वैसे अभी से सुनने में आने लगा है कि खुद आपके अनुयायी भी आपके इस कदम का दिल से समर्थन नहीं कर रहे। वे राष्ट्र के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष छेड़ने के पक्ष में नहीं हैं। आपको यह समझना चाहिए कि 11000 सेना बनाने का आपका निश्चय नासमझी के अलावा और कुछ नहीं। आंदोलन तो अन्ना हजारे भी कर रहे हैं पर वे बार-बार यही कहते हैं कि हम अहिंसा के ही पथ पर चलेंगे और कामयाब होंगे। आपने देखा होगा कि देश के युवा वर्ग से लेकर सभी वर्ग के लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ धर्मयुद्ध लड़ रहे उस सत्यनिष्ठ और निस्वार्थ सेनापति के साथ जुड़ रहे हैं। लोग उन्हें दूसरे गांधी के रूप में देख रहे हैं तो इसमें कोई ताज्जुब नहीं। उनका मकसद साफ है, उनके साथ स्वार्थी और राजनीतिक लाभ के लिए लालायित लोग नहीं जुड़ पा रहे या कहें उनके यहां से दुत्कार कर भगाये जा रहे हैं तो इससे उनका कद और सम्मान दोनों बढ़ रहा है।
माफ करें आपने यह ध्यान नहीं रखा कि आपके आंदोलन से कैसे-कैसे तत्व जुड़ रहे हैं। यह भी नहीं सोचा कि आपका जो मकसद है क्या उनके विचार उससे मेल खा रहे हैं या वे इसका राजनीतिक फायदा लूटने आपके साथ आ जुटे हैं क्योंकि सौभाग्य से जन समर्थन तो आपके साथ था। पता नहीं अब कितने लोग आपके साथ खड़े रह पायेंगे क्योंकि व्यामोह में जीते बहुत से लोगों का मोहभंग रामलीला में हुई लीला से भंग हो चुका होगा। कई लोग आपके आंदोलन में सिर्फ इसलिए जुड़े हैं क्योंकि अपने राजनीतिक लाभ के लिए उन्हें किसी अच्छे और क्लिक कर जाने वाले मुद्दे की तलाश थी। उन्हें वह मुद्दा मिल गया लेकिन जाहिर है कि केंद्र सरकार भी इतनी नासमझ नहीं कि उन्हें ऐसा कोई फायदा उठाने देगी। कांग्रेस के कुछ प्रवक्ता रामलीला की घटना के बाद से बाबा और उनके समर्थन में खडे़ राजनीतिक दलों पर कटाक्ष करने से नहीं चूक रहे। शायद भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े किसी भी आंदोलन को परिणति तक पहुंचने से पहले कुचल देने की यह सोची-समझी साजिश हो।वैसे ये कटाक्ष कभी शालीनता की सीमा तक लांघ जाते हैं जो हर हाल में निंदनीय हैं।
कुछ लोगों का ऐसा भी अनुमान है कि कुछ ऐसी शक्तियां हैं जिन्होंने बाबा रामदेव को उत्साहित कर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में आगे बढ़ा दिया है। ये शक्तियां नहीं चाहतीं कि भ्रष्टाचार की कोई लड़ाई कामयाब हो इसलिए रामलीला मैदान की घटना के बाद आंदोलन की जो परिणति हुई उससे उन्हें ही मदद मिलेगी। पूरा देश और खुद केंद्र सरकार जानती है कि देश में ऐसी ताकतें हैं जो भ्रष्टाचार और काला धन के खिलाफ संघर्ष को किसी भी कीमत पर कामयाब नहीं होने देना चाहतीं। साफ है भ्रष्टाचार और कालेधन के धत्कर्म में ये ताकतें शामिल हैं। बाबा रामदेव ने सुनियोजित ढंग से आंदोलन नहीं किया जो एक सही परिणति को प्राप्त होता । आंदोलन विफल होने से उन शक्तियों को ही बल मिलेगा जो ऐसे आंदोलन के खिलाफ हैं। केंद्र सरकार भी भ्रष्टाचार मिटाने के प्रति कितनी कटिबद्ध है यह तो उसके इस दिशा में उठे किसी ठोस कदम से ही जाहिर होगा। लोकपाल विधेयक अगर अन्ना हजारे के जन लोकपाल विधेयक के रूप में आता है, सत्ता के सर्वोच्च शिखर तक पर सवाल उठाने का प्रावधान उसमें होता है तो संभव है कुछ सार्थक काम हो सके वरना यह कागजी बाघ बन कर रह जायेगा।
बाबा रामदेव ने शास्त्र और शस्त्र की नयी थ्योरी का जिक्र कर एक नया विवाद छेड़ दिया है। इससे उनके समर्थक तक विरोधी बन गये हैं। स्वामी अग्निवेश तक ने इसे बाबा का नासमझी भरा कदम बताया है। उधर उनके सेना बनाने के एलान के तत्काल बाद केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने चेतावनी दे डाली है कि अगर बाबा सेना बनाते हैं तो फिर इससे देश के कानून के तहत निपटा जायेगा। शायद इस चेतावनी से बाबा रामदेव डर गये क्योंकि अब सुना जा रहा है कि वे सेना नहीं अपने अंगरक्षकों की टीम बना रहे हैं। सवाल यह उठता है कि बाबा के इतने दुश्मन कहां से और क्यों बन गये कि उन्हें अंगरक्षकों की फौज खड़ी करनी पड़ रही है। बाबा आपने ऐसा क्या किया है? आप ठहरे साधु, योग प्रशिक्षक आपके लिए भला कौन और क्यों खतरा बन सकता है? इन क्यों और कौन का जवाब तो आपके पास ही है आपको यह जवाब देकर जनता को बताना चाहिये ताकि आप पर उठने वाले सवालों का सिलसिला खत्म हो। सारा देश आपको गंभीरता से, श्रद्धा से सुन रहा था, आपने भारत स्वाभिमान नामक अपना महत्वाकांक्षी दल भी बना रखा है जो संभव था की तीन साल बाद आपके लोगों को संसद में पहुंचाने में भी कामयाब हो जाता। कारण, जनता आपके और आपके विचारों के साथ थी लेकिन बाबा आपने यह क्या कर डाला। अब तो आपकी पार्टी, आपके आंदोलन का भगवान ही मालिक है। हम आपके सुस्वास्थ्य और सुखद-सुरक्षित भविष्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं क्योंकि केंद्र सरकार से आपने पंगा लिया है और उसकी दृष्टि आप पर पड़ गयी है। अगर समाचारपत्रों की खबरों पर यकीन करें तो निकट भविष्य में आपके गिर्द कई तरह के संकट के बादल घिरनेवाले हैं। आपके विरोधी इस नाजुक वक्त का फायदा उठाने की ताक में हैं आपको जल्द से जल्द इस मुसीबत का कोई न कोई समाधान खोजना होगा। कहीं ऐसा न हो कि देर हो जाये और आपके आंदोलन में बाधा पड़े। हम आपके शुक्रगुजार हैं कि आपने अपने आंदोलन से देश में भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ सशक्त अभियान छेड़ने का पुण्य प्रयास किया। सोये देश को जगाने का काम किया लेकिन पता नहीं क्यों आपने अपने आंदोलन को हाईजैक हो जाने दिया और इससे पहले कि वह किसी ठोस परिणति को पहुंचे वह टांय-टांय फिस्स हो गया। यकीन मानिए किसी देशवासी ने इस दिन की न तो कल्पना की थी और न ही कभी चाहा था कि रामदेव असफल हों। उनके रूप में तो उन्हें भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का एक ध्वजवाहक मिला था पर उसे भी आपके आंदोलन के इस तरह खत्म होने (खत्म किये जाने भी कह सकते हैं) पर निराशा है। हम नहीं चाहेंगे कि जनता के हित के किसी आंदोलन में किसी भी शलाका पुरुष का वह हस्र हो जो स्वामी रामदेव का हुआ (या किया गया)। देश का हर नागरिक सम्मान का हकदार है उसे उसका उचित सम्मान मिलना चाहिए चाहे वह संत हो या आम आदमी। कारण ऐसा नहीं हुआ तो देश में अनाचार, अराजकता और आतंक का राज होगा जो जाहिर है कोई सच्चा देशवासी नहीं चाहता। प्रभु (जिन्हें प्रभु या ईश्वर पर आपत्ति है वे सर्वशक्तिमान समझ लें) इस देश और देशवासियों का कल्याण करें, शासकों को सद्बुद्धि दें यही कामना है।
सभी बौराये बैठे हैं जी...पूरे कुएं में भांग जो घुली है
ReplyDeleteहंसी के फव्वारे
अभी अभी जी न्यूज पर खबर आई है कि मंत्रियो की बाबा को 1 जून को ही तड़ीपार करने की योजना थी.
ReplyDeleteफिर पीएम ओ से फोन आया और रणनीति बदल गयी.
बात केवल इतनी है कि बाबा भोले भाले है और वो कांग्रेस का षडयंत्र नही समझ पाये.
बाकि उनमे कोई कमी नही है.
बहुत अच्छा विस्श्लेशन किया है आपन। 10 सालों मे इतनी दौलत इकट्ठी हो गयी है कि बाबा का बौराना ज़ायज़ ही है अब उन्हें प्रधानमन्त्री की कुर्सी दिखाई देने लगी है। वो स्शत्र सेना बना कर इस देश को भी पाकिस्तान बना देना चाहते हैं अब बाबा का असली चेहरा समने आ गया है। इस धार्मिक भ्रष्टाचार पर भी लगाम कसी उजानी चाहिये और बाबा और बालकिशन की सम्पति की पूरी जाँच होनी चाहिये\ इनकी घटिया दवायें बाहर से वापिस आ रही हैं वहाँ भारतीये नही हैं जो बाबा की भभूत खा लेंगे। एक सन्यासी हद दर्जे का झूठ और उग्रता? कहते 50000 मोब्क़ाई करोदों रुपये हमारे छीन लिये गये इसकी जाँ छोनी चाहिये ताकि लोगों को पता चले बाबा कितना झू9ठ बोल सकता है 5 को 50000 कहना मतलव साफ है इतने गुणा झूठ। लोकतान्त्रिक सरकार के लिये बाबा चाहते हैं कि सिर्फ उनके इशारे पर चले। ये स्दब क्यों हो रहा है सब लोग जान गये हैं शिव सेना आर एस एस बीजेपी इन सब को भ्रष्टाचार से कुछ लेना देना नही इन्हें तो बस अपनी कुर्सियाँ मिलती नज़र आने लगी है और वो खुशी छुपाये नही छुप रही ये सुशमा के नाच ने बता ही दिया। हम भी चाहते हैं भ्रष्टाचार मिटे और सरकार को इओसके लिये कदम उठाने ही पडेंगे क्यों कि आम आदमी बहुत त्रस्त है। माफ कीजिये मै तो पूरा आलेख लिखने ही बैठ गयी। धन्यवाद।
ReplyDeleteइतने बडे बाबाजी हैं जी, कुछ भी कर सकते हैं।
ReplyDelete:)
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बाबूजी, न लो इतने मज़े...
चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।
आदरणीय पण्डित जी,
ReplyDeleteइस लेख के आपके शीर्षक से लेकर अंतिम शब्द तक एक एक बात एक्दम और एक्दम सही है। बहुत सुव्यवस्थित विश्लेषण किया आपने। काश आपका यह लेख बाबा तक पहुँचे और उन्हें यह मालूम हो कि प्रीमैच्योर अटैक करने के चक्कर में उन्होंने अपना वजीर पिटवा लिया है और अब पिद्दल को वजीर बना पाना उनके लिये मुमकिन नहीं।
समालोचना की यह तक्नीक और तहजीब, सभी ब्लागरों को आपसे सीखना चाहिये। धन्यवाद।
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