वक्त आ गया है माकूल जवाब देने का
-राजेश त्रिपाठी
जम्मू-कश्मीर
के पुंछ क्षेत्र में नियंत्रण रेखा को पार कर पांच भारतीयों का कत्ल करने की जो
हरकत पाकिस्तानी सेना ने की है, उस पर हम दुखी और शर्मिंदा हैं लेकिन हतप्रभ नहीं।
कारण पाकिस्तान आजादी के बाद से मुसलसल यही तो करता आया है। उसने आजादी के तुरत
बाद कश्मीर पर सशस्त्र कबालियों को छोड़ दिया जिन्होंने श्रीनगर में तबाही मचानी
शुरू कर दी। वह तो भारतीय सेनाओं ने पहुंच कर श्रीनगर और कश्मीर को बचा लिया, वरना
पता नहीं क्या हुआ होता। उस वक्त पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री थे वे कश्मीर
मुद्दे को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ में चले गये और इस तरह एक भूल से दो देशों के
बीच का मुद्दा कश्मीर अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन गया। उसके बाद से लगातार पाकिस्तान
हर मंच पर कश्मीर का राग अलापता रहता है और चाहता है कि जैसे भी हो भारत के इस
इलाके को अशांत रखे। वह ऐसा कर के अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने यह जाहिर करना
चाहता है कि भारत के इस हिस्से में सब कुछ सही नहीं है और वहां के लोगों को यह
अधिकार मिलना चाहिए कि वे यह तय कर सकें कि उन्हें भारत में रहना है या पाकिस्तान
में। पाकिस्तान हमेशा भारत को परेशान करने की ताक में रहा है। 1947, 1965 और 1999
(कारगिल) युद्ध को छोड़ दें तो पाकिस्तान भारत पर हमेशा छाया युद्ध चलाता रहा है।
वह अपने यहां आतंकवादियों को पनपने, प्रशिक्षण लेने और भारत को पस्त करने के लिए
प्रोत्साहित करता रहा है। अकेले कारगिल युद्ध में हमने 524 सैनिकों को गंवाया 1363
इस युद्ध में घायल हुए।
हम
हमेशा यही कहते रहे हैं कि हम बातचीत का सिलसिला जारी रखना चाहते हैं लेकिन
पाकिस्तान जैसे बेईमान, विश्वसघाती देश से कोई बात तब तक नहीं करनी चाहिए जब तक वह
अपने य़हां से भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को बंद कराने का काम नहीं करता।
जो इन विपरीत परिस्थितियों पर भी पाकिस्तान से बातचीत जारी रखने के पक्षधर हैं
उनसे विनम्र निवेदन है कि अब तक की बातचीत से हमें क्या हासिल हुआ-घुसपैठ, आतंकवाद
की मार, छिप कर सैनिकों पर वार, उनके सिर काटना और इसी तरह के और भी तमाम झटके और
दुख। ताली एक हाथ से नहीं बजती। आप बातचीत के लिए बेकरार हैं , पाकिस्तान के सामने
बिछे जा रहे हैं और वह आपको लतिया रहा है। यह तो कोई बात नहीं हुई। अगर दोनों
देशों के बीच और शांति –सौहार्द लाना है तो पाकिस्तान को भी वैसी ही पहल करनी चाहिए
जैसी भारत करता आ रहा है।
अधूरी जानकारी क्यों दी। हमारे पांच जवान इस हमले में शहीद हुए और आप इसे इतने हलके में ले रहे हैं। आप लोग जो इतने जिम्मेदार पदों पर बैठे हैं उन्हें सब कुछ सोच-समझ कर बोलना और करना चाहिए। क्या आपकी उस देश के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं जिसने आपको यह पद दिया है।कुछ तो गंभीर होइए। देश आपसे बड़ी उम्मीद लगाये है। इस वक्त दृढ़प्रतिज्ञ इंदिरा गांधी की याद आती है। आज हमें उस तरह के प्रशासक की जरूरत है जो दुश्मनों के खिलाफ कड़ा से कड़ा निर्णय लेने का साहस रखता हो। इंदरा गांधी ने दिखा दिया कि उनमें दृढ़ इच्छाशक्ति थी और उन्होंने बंगलादेश बना कर एक नया इतिहास रचा।
मानाकि
युद्ध किसी समस्या का हल नहीं और युद्ध किसी भी देश के लिए हितकर नहीं। युद्ध से
किसी भी देश का विकास या प्रगति वर्षों पीछे चली जाती है। युद्ध हम भी नहीं चाहते
लेकिन क्या हम आत्मरक्षार्थ कदम भी नहीं उठा सकते?दुश्मन को मार नहीं सकते तो कम
से कम इस तरह दहाड़ तो सकते हैं कि उसे इस बात का एहसास हो जाये कि समानेवाला
मरा-गुजरा नहीं है। वह भी माकूल जवाब देने की कूवत रखता है।
पुंछ में
पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम का उल्लंघन करने और उसमें हमारे 5 सैनिकों के शहीद
होने पर हम मर्माहत और शर्मसार हैं। यह कैसा निजाम है, कैसा प्रशासन है जो देश की सीमाओं
तक की रक्षा नहीं कर सकता। कभी चीन हमें घुड़क रहा है तो कभी दूसरा पड़ोसी देश आंखें
दिखा रहा है। हम बस एक रूटीन आपत्ति दर्ज करा कर चुप बैठ जाते हैं। यह अरसे से चला
आ रहा है कि हम बार-बार धोखा खा रहे हैं, पीटे जा रहे हैं और दिल्ली के हमारे नाकारा और पंगु प्रशासक
हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं। अगर दुश्मन बार-बार आप पर चोट कर रहा हो और आप उससे
लगातार विनय दिखाते रहेंगे तो इसे वह आपकी कमजोरी समझेगा। आपको कम से कम ऐसी घटनाओं
का माकूल और सशक्त जवाब देना चाहिए। ऐसा जवाब कि उसके बाद कोई देश पर आंख तरेरने की
हिम्मत न कर सके। चीन हमारे सैनिकों को अपनी ही जगह से भगा देता है यह कह कर कि यह
उसकी जमीन है। वह इस क्षेत्र में अपने को सर्वशक्तिमान साबित करने के लिए भारत जैसे
बड़े देश को हर हाल में हड़काये रखना चाहता है। उधर वह पाकिस्तान के हाथ मजबूत कर रहा
है ताकि वह भारत से सीनाजोरी करता रहे। इस तरह से हम ऐसे दुश्मनों से घिरे हैं जो हमसे
सीधे युद्ध शायद न करें लेकिन परोक्ष में वे छाया युद्ध चला रहे हैं। पाकिस्तानी सेना
किस तरह आतंकवादियों की मदद कर उनकी घुसपैठ हमारे देश में कराती रही है यह बात किसी
से छिपी नहीं है। कुछ अरसा पहले पाकिस्तानी
सैनिक हमारे सैनिकों के सिर काट ले
गये और हम बस एक आपत्ति दर्ज करा कर रश्म अदायगी कर बैठ गये। सैनिक युद्ध लड़ कर शहीद
हों तो उनके और राष्ट्र के लिए गर्व की बात होगी लेकिन इस तरह से अगर किसी सैनिक को
मार दिया जाता है तो यह दुर्भाग्य की बात है। हम कब तक पिटते रहेंगे। क्या हमारे पास
इन घटनाओं का वैसा ही जवाब देने की ताकत नहीं है। हम इतने गये गुजरे हो गये हैं। अगर
हम अपनी सीमाओं और सैनिकों की रक्षा करने काबिल नहीं रह गये तो फिर इस देश का तो ईश्वर
ही मालिक है। बहुत हुआ अब और नहीं हमें सीना तान कर चट्टान की तरह खड़ा होना है और
देश की ओर बढ़ती किसी भी नापाक नजर को नोच कर फेंक देना है। पाकिस्तान हमेशा से भारत
के साथ विश्वासघात करता आया है और हम उससे बातें करने, दोस्ती करने के लिए मरे जा रहे हैं।
पाकिस्तान से दो्स्ती? यह तो असंभव से भी बड़ा असंभव है। जिसकी सारी बिसात ही भारत
के विरोध को लेकर बिछी है उससे दोस्ती की उम्मीद करना दिवास्वप्न से अधिक कुछ नहीं।
यह कहां का रिवाज है कि हम उसके सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाये और वह हमारे सैनिकों के
सिर काटता रहे, उन्हें बेरहमी से मारता रहे। वक्त आ गया है कि हमें देश की रक्षा के लिए पूरी तरह
चाक-चौबंद होना चाहिए। दिल्ली में बैठे मुल्क के आका नींद से कब जागेंगे। उनकी आंखें
खोलने के लिए और कितने जवानों को शहीद होना पड़ेगा।
अगर हम
एक सशक्त और अपनी सीमाओं की रक्षा करनेवाले देश हैं तो हमें अपने आचरण और व्यवहार
में भी वैसा ही दिखना होगा। अग हम ऐसे ही लुंज-पुंज और नाकारा रहे तो आता-जाता कोई
भी हम पर हमला करता रहेगा और हमेशा हमारी सीमाएं असुरक्षित रहेंगी। अभी भी चीन
हमारी भूमि का बड़ा हिस्सा दबाये बैठा है और अब हमारी जमीन में घुस कर उसे अपना
बता रहा है। जाहिर है उसका इरादा नेक नहीं है। चीन और पाकिस्तान पर हम यकीन नहीं
कर सकते। आज तक इनका कोई भी रवैया ऐसा नहीं रहा जिससे यह माना जा सके कि हमसे
रिश्ते सुधारने में ये भी गंभीर हैं। अटल बिहारी वाजपेयी रिश्ते सुधारने पाकिस्तान
गये उन लोगों ने बदले में हम पर करगिल का युद्ध थोप दिया। उस वक्त कहा जा रहा था
कि करगिल का युद्ध जनरल परवेज मुशर्रफ की शरारत थी लेकिन अब जो तथ्य सामने आ रहे
हैं उनसे पता चल रहा है कि इस बारे में उस वक्त के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पूरी
जानकारी थी। ऐसे में आप शरीफ साहब की शराफत पर भी कितना यकीन कर सकते हैं? हमें जो
भी करना है कापी सोच-समझ कर और देश के हित को आगे रख कर करना है। हमें पहले देश के
बारे में सोचना है उसके बाद किसी और बात पर ध्यान देना है क्योंकि अगर दुश्मनों की
हरकतों से देश ही न बच सका तो हम कहां होंगे और कैसे होंगे?
पाकिस्तान और चीन की शरारतों का जवाब उन्हीं की भाषा
में देने का वक्त आ गया है। देश के निजाम को या तो अपना रवैया बदलना होगा या फिर इस
देश को इससे भी बड़े हमले झेलने के लिए अभिशप्त रहना होगा। हमसे छोटे देश इजराइल ने
आतंकवाद को पस्त कर दिया हम यों ही महाशक्ति बनने का ढोंग कर रहे हैं। बहुत हुआ अब
और सहा नहीं जाता। जो जवान शहीद हुए हैं उन्हें हमारी सश्रृद्ध श्रद्धांजलि और उनके
परिवार वालों के प्रति सहानुभूति। दिल्ली वालों अगर आपकी आंखों में आंसू बचे हैं तो
इन शहीदों के लिए उन्हें बहाओ। देश की रक्षा में उन्होंने प्राण गंवाए हमें उन पर गर्व
है, हम उनको
नमन करते हैं।
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