क्या कहें, कैसे कहें अब सहा जाता नहीं।
जुल्म का यह दौर क्यों भला जाता नहीं।।
अंधेरों की है हुकूमत मानो उजाले खो गये।
फरियाद किससे करें, हुक्मरां तो सो गये।।
हमने सोचा था नहीं ऐसा भी दिन आयेगा।
आदमी जब खुद आदमी से भी डर जायेगा।।
कोई मस्त है तो कोई जिंदगी से त्रस्त है।
न्याय का सूरज जैसे हो गया अस्त है।।
लूट,रेप,हत्या का जहां चल रहा राज है।
क्या ये गांधी का वह पावन स्वराज है।।
निर्भया हैं रो रही, हम तो शर्मसार हैं।
हर तरफ अब मचा सिर्फ हाहाकार है।।
राज दबंगों का सच्चा इंसां हैरान है।
ये प्रभु क्या यही मेरा हिंदुस्तान है।।
जिनको सिर्फ कुर्सियों से प्यार है।
उनसे उम्मीद रखना तो बेकार है।।
जिनको मुल्क से सच्चा प्यार है।
जाग जायें ये वक्त की पुकार है।।
भारतवर्ष में न्याय का उत्कर्ष हो।
होठों में मुसकान दिल में हर्ष हो।।
सुन्दर सेतु चयन बढ़िया हिंदी ब्लॉग समूह जमावड़ा । शुक्रिया हमारे ब्लॉग को संयोजित करने का।
ReplyDeleteसुन्दर आवाहन करता गीत।
जिनको मुल्क से सच्चा प्यार है।
जाग जायें ये वक्त की पुकार है।।
भारतवर्ष में न्याय का उत्कर्ष हो।
होठों में मुसकान दिल में हर्ष हो।।