परंपरा का हवाला देकर राहुल को दी राहत
राजेश त्रिपाठी
आज
कांग्रेस का पर्याय बन गयीं सोनिया गांधी संकट के मौके पर उसकी त्राता भी बन जाती हैं। यह वे अतीत में भी सिद्ध कर चुकी हैं और यही बात उन्होंने 16
जनवरी की कांग्रेस कार्यसिमिति की बैठक में भी साबित कर दी। जब सारे कांग्रेसी
राहुल गांधी का नाम प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में घोषित किये जाने की
उम्मीद किये बैठे थे उस वक्त उन्होंने यह कह कर सबको चौंका दिया कि कांग्रेस पहले से प्रधानमंत्री उम्मीदवार की
घोषणा नहीं करेगी। आगामी लोकसभा चुनाव कांग्रेस गांधी के नेतृत्व में ही लड़ा
जायेगा लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री का उम्मीदवार नहीं बनाया जायेगा। इसके लिए
उन्होंने यह तर्क दिया कि पहले से प्रधानमंत्री का नाम घोषित करने की परंपरा
कांग्रेस में नहीं है। विजयी सांसद मिल कर अपने दल के किसी एक सदस्य को दल का नेता
चुनते हैं जो प्रधानमंत्री बनता है। सारे कांग्रेसी इस बात पर राजी हो गये थे कि
राहुल गांधी को कांग्रेस का प्रधानमंत्री बता कर चुनाव लड़ा जाये लेकिन सोनिया जी
ने सबकी उम्मीदों में पानी फेर दिया। ऐसा करके उन्होंने वह मास्टर स्ट्रोक चला
जिससे कांग्रेस भी बेकार की फजीहत से बच जाये और राहुल जी भी सुरक्षित रहें।
उन्हें हार या जीत के ऊहापोह में परेशान न होना पड़े। अब जबकि वे सिर्फ कांग्रेस
के चुनाव प्रचार का नेतृत्व करेंगे तो अपने विरोधियों के कटाक्ष और हमलों से भी
सुरक्षित रहेंगे तथा हार-जीत की स्थिति में भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। पहेल अगर
उनको प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बना कर लड़ा जाता और कहीं वे असफल हो जाते तो वह
कांग्रेस की बड़ी पराजय होती।
सोनिया गांधी में राजनीतिक परिपक्वता और कौशल है यह बात उन्होंने
उस वक्त भी साबित कर दी थी जब देश के प्रधानमंत्री का पद उनके सामने था और
उन्होंने उसे ठुकरा कर अपने विरोधियों का मुंह धुआं कर दिया था। उस वक्त उनके
विदेशी होने का मुद्दा उठा कर विरोधियों ने उनके प्रधानमंत्री पद स्वीकारने पर
आपत्ति उठायी थी। उन्होंने अचानक कहा कि वे प्रधानमंत्री पद स्वीकार नहीं करेंगी
और उसी क्षण वे अपने विरोधियों से बहुत ऊंची उठ गयीं और विरोधी उनके सामने रणकौशल
में बौने नजर आने लगे। लोगों ने उनके इस त्याग को महान त्याग और राजनीतिक
विश्लेषकों को सही राजनीतिक सूझबूझ बताया। वैसा ही कौशल उन्होंने अब दोहराया है। सभी
जानते हैं कि कांग्रेस की राजनीतिक स्थिति इस समय बेहतर नहीं है। भ्रष्टाचार,
घोटालों के दाग समेटे यह पा्र्टी जन आस्था खो बैठी है। अगर ऐसा न होता तो शीला
दीक्षित से दिल्ली की सत्ता कल की 'आप' पार्टी छीनने में कामयाब न हो जाती। दिल्ली
में शीला दीक्षित का काम सबको दिखता है लेकिन उन्हें केंद्र की कांग्रेसनीत सरकार
को घोटाले और भ्रष्टाचार ने हरा दिया। काग्रेस को डर है कि 'आप' एफेक्ट के चलते
कहीं उसे लोकसभा के आम चुनावों में भी मुंह की न खानी पड़ें इसीलिए सोनिया जी
फूंक-फूंक कर कदम रख रही हैं। राहुल को कांग्रेस का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार
न बनाना भी उनकी इसी रणनीति का हिस्सा है।
राहुल गांधी पर पिछले कुछ अरसे से विरोधी खासकर भाजपा के
प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी कटाक्ष और हमले कर रहे हैं वह किसी से
छिपा नहीं है। अब इसमें एक और नाम जुड़ गया है 'आप' के कुमार विश्वास का। मानाकि
अमेठी में राहुल के सामने कुमार विश्वास की कोई बिसात न हो ऐसा लोग मानते हैं
लेकिन बदली हुई स्थितियों में कब क्या हो, कहा नहीं जा सकता। कांग्रेस को इस बात
का भी ज्ञान और ध्यान है। अब चुनाव में अगर संप्रग की अधिक सीटें आती हैं तब तो
कांग्रेस के लिए कोई चिंता की बात नहीं होगी इसीलिए अभी से वह प्रधानमंत्री पद के
उम्मीदवार का नाम सार्वजनिक करने का दाव नहीं खेलना चाहती। संभव है यह दांव उलटा
पड़ जाये।
कांग्रेस ने तो एक रणनीति
के तहत ऐसे किया है लेकिन विरोधी इसे भी भुनाने में लग गये हैं। उनका कहना है कि
हार के भय से ही कांग्रेस ने राहुल का नाम घोषित नहीं किया। जहां तक 'आप' के
भविष्य का सवाल है तो अभी कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि उसके घर में भी बगावत के
स्वर तेज होने लगे हैं। अल्पमत की यह पार्टी जो कांग्रेस के समर्थन की बैसाखी पर
टिकी है कब तक टिक पायेगी कहा नहीं जा सकता। इससे जुड़े लोगों को सत्ता और उसकी
व्यावहारिक दिक्कतों का ज्ञान नहीं है इसलिए ये हड़बड़ी में गड़बड़ी भी कर बैठते
हैं। वैसे इनके लिए शुभ यही है कि पूरे देश में इनको अपार जनसमर्थन मिल रहा है। अब
अगर ये खुद को संभाल पाये तो इनका कल्याण है वरना इनका बंटाढार होने में देर नहीं
लगेगी। विरोधी इन्हें परास्त होते देखने को लालायित और कमर कसे बैठे हैं।
राहुल गांधी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार न घोषित किया जाना
उनके पक्ष में ही जाता है। वे आजकल भाषण अच्छा देने लगे हैं लेकिन उनके भाषण में
वह पैनापन या आक्रामक तेवर नहीं हैं जो उनकी दादी इंदिरा गांधी में था या उनकी मां
सोनिया गांधी मे है।आजकल चुनाव एक गणतांत्रिक प्रक्रिया से ज्यादा एक समर हो गया
है जहां राजनीतिक दल अपने विरोधियों पर हर तरह के हथियार इस्तेमाल करते हैं जिसमें
कटाक्ष और दोषारोपण भी शामिल है। ऐसे में जरूरी होता है कि उसका माकूल जवाब दिया
जाये। आप माकूल जवाब दे पाये तो ठीक, खामोश रहे तो इसे आपकी कमजोरी समझा जायेगा।
राहुल में अभी तक मोदी के कटाक्ष का जवाब देने का हुनर आया नहीं क्योंकि यह उनके
खून में नहीं है। उनके पिता राजीव गांधी सीधे-सादे थे, कभी किसी को कटु वचन नहीं
कहते थे वही संस्कार उन्हें मिले हैं। वे चाह कर भी उग्र नहीं हो पाते और इसे उनके
विरोधी उनकी कमजोरी समझते हैं। ऐसे में यही सही है कि संप्रग की अधिक सीटें आयीं
तो उनको प्रधानमंत्री बनने से कोई नहीं रोक सकेगा। कांग्रेस सभी उन्हें इस रूप में देखना चाहते हैं। 16
जनवरी की घोषणा उनके पक्ष में ही जायेगी।
यह भी तय हा कि आज नहीं तो कल प्रियंका गांधी को भी कांग्रेस में
एक प्रंमुख भूमिका मिलनेवाली है। अगर प्रियंका मन बना लें तो कांग्रेस का भविष्य
बन सकती हैं लेकिन उनकी अपनी पारिवारिक विवशषताएं हैं दूसरी बात यह कि राहुल के
रहते वे प्रमुख पद लेना नहीं चाहेंगी क्योंकि इसका सीधा अर्थ यह लगाया जायेगा कि
राहुल असफल हो गये हैं इसीलिए प्रियंका का सहारा लिया जा रहा है। राजनीति की डगर
आसान नहीं है यह पता राहुल, सोनिया और प्रियंका को भी है इसीलिए सभी फूंक-फूंक कर
पैर रख रहे हैं। राहुल के विऱोधियों को भी अब खामोश होना पड़ेगा क्योंकि वे तो
मैदान मे हैं ही नहीं , हवा में कौन और कब तक तीर चलायेगा।
rajneeti ki sahi tasveer pesh ki aapne ,bahut badiya sir.
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