हटवाया
बुलेट प्रूफ, तोड़ी लिखा भाषण पढ़ने की परंपरा
- खुद को बताया प्रधान सेवक
- · नारी सुरक्षा की बात की, कन्या भ्रूण हत्या पर जतायी चिंता
- · गांवों में महिलाओं के लिए शौचालय बनाने की बात की
- · विपक्ष को साथ लेकर चलने की बात दोहरायी
- · बहुमति नहीं सहमति के साथ काम करने की जतायी मंशा
- · सांसदों को दी साल भर में एक आदर्श गांव बनाने की सलाह
- · बलात्कार को बताय़ा शर्मनाक अपराध
-राजेश
त्रिपाठी
आखिरकार नरेंद्र मोदी का स्वाधीनता दिवस
पर लाल किले के प्राचीर से देश को संबोधित करने का सपना पूरा हो ही गया। जिन लोगों
ने भुज के कालेज में उनके लाल किले की पृष्ठभूमि वाले मंच से भाषण देने की खिल्ली
उड़ायी थी, लाल किले से देश को संबोधित करने को मुंगेरीलाल के सपने बताया था उनके
सीने पर सांप जरूर लोट गया होगा। लेकिन देश की वह आम जनता जो किसी खास राजनीति के
रंग में रंगी नहीं बल्कि अपने हित की बात सोचती है जरूर खुश हुई होगी। उसे यह जरूर
प्रीतिकर लगा होगा कि प्रधानंमत्री जैसे बड़े पद को आसीन करने वाला व्यक्ति खुद को
प्रधान सेवक कह रहा है। उन्हें लगा कि लाल किले के प्राचीर से आज एक आम आदमी के
मुंह से उनकी आवाज, उनकी आकांक्षाएं गूंज रही हैं। इससे पहले शायद ही किसी व्यक्ति
ने इस तरह से आम जन की बात इतने साफ और सीधे तौर पर की हो। मोदी ने पंद्रह अगस्त
के अपने भाषण में कई बातें पहली बार कीं। ऐसी बातें जो पिछले 67 सालों में कभी
नहीं हुईं। उन्होंने गाधी टोपी को पहन कर भाषण देने की प्रथा से अलग साफा पहन कर
भाषण दिया। भाषण में उन्होंने हर उस बिंदु को छुआ जिनका सीधा संपर्क देश के आम जन
से है और जो ऐसे लोगों के सरोकार से जुड़े हैं।
उन्होंने अपना परिचय प्रधानमंत्री के रूप
में नहीं बल्कि प्रधान सेवक के रूप में दिया। उनके इस एक शब्द ने ही उस भीड़ से
ताली पिटवा दीं जिसमें पहली बार 10 हजार से ज्यादा आमजन भी थे। ऐसा पहली बार हुआ
जब आम जनता को इतने करीब से, प्रवेश पत्र के बगैर प्रधानमंत्री का भाषण सुनने का
अवसर मिला। मोदी ने य़ह साबित कर दिया कि चुनाव प्रचार के दौरान की गयी अपनी
घोषणाओं से वे पीछे नहीं हटे और उन्हें कार्यान्वित कराने के लिए कटिबद्ध हैं।
स्वाधीनता दिवस के अपने दिन की शुरुआत उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की
समाधि राजघाट से की। वहां उन्होंने उनको श्रद्धासुमन अर्पित कर सादर उनका नमन
किया। इसके बाद लाल किले के प्राचीर से राष्ट्र ध्वज फहराने के बाद उसे भी
सम्मानपूर्वक प्रणाम किया। फिर उपस्थित जनसमूह का अभिवादन कर अपना ऐतिहासिक और
महत्वपूर्ण संबोधन प्रारंभ किया। भाषण देते वक्त वे बुलेट प्रूफ बाक्स में नहीं
खड़े हुए। उनके भाषण का अंदाज भी कुछ अलग था। उन्होंने सीधे देश की जनता से संवाद
करने की कोशिश की। उन्होंने अपने भाषण में न सिर्फ सांसदों बल्कि सरकारी नौकरशाहों
तक को जनोन्मुखी होने, जनता के साथ सहयोग करने की ताकीद की। उऩ्होंने कहा कि जनता
के काम के लिए ‘मेरा क्या’, ‘मुझको क्या’ वाला रुख नहीं चलेगा। जनता या देश का हर
सहयोग और सहकार की भावना से करना होगा।
उन्होंने पक्ष-विपक्ष के बीच आपसी सहयोग और
देश गढ़ने में सहमति के सिद्धांत पर चलने की बात की। उन्होंने देश और विश्व में
व्याप्त हिंसा पर भी अफसोस जताया और नेपाल का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह
नेपाल माओवादी हिंसा से मुक्त हो शांतिपूर्ण ढंग से विकसित हो रहा है उसी तरह
दूसरे पड़ोसी देशों को भी रहना या चलना चाहिए। इस तरह से उन्होंने सार्क देशों को यह
संकेत दिया कि उनका भविष्य, उनकी प्रगति भी शांति-अहिंसा के रास्ते पर चल कर सह
अस्तित्व के सिद्धांत को अपनाते हुए बही संभव है। उन्होंने माओवादियों,
नक्सलवादियों से अपील की कि वे धरती को खून से रंगना बंद करें। हिंसा की राह छोड़
विकास में सहभागी बनें। उन्होंने कहा कंधे पर हथियार नहीं हल थामिए। धरती को लाल
रंग से नहीं हरियाली से लहलहा दीजिए। इससे आपका भी जीवन सफल होगा, देश का भी विकास
होगा।
देश में बढ़ती बलात्कार की घटनाओं से वे विचलित
दिखे। उन्होंने उन माता-पिताओं को कोसा जो बेटी पर तो लाख बंदिशें लगाते हैं,
उन्हें सवालों की जंजीरों से बांधते हैं लेकिन बेटे को खुला छोड़ देते हैं।
उन्होंने कहा बेटियों से तो बहुत सवाल करते हैं कभी बेटों पर भी नजर डालिए। उनसे
भी पूछिए वे कहां जा रहे हैं, क्या कर रहे हैं। उन पर नियंत्रण होगा तो वे गलत राह
में जाने, पाप कर्म करने से बच सकते हैं।
ग्रामीण महिलाओं की समस्याओं पर बोलते हुए
उन्होंनें कहा कि महिलाओं को देहात में शौच जाने में बड़ी कठिनाई होती है। उन्हें
अंधेरे का इंतजार करना पड़ता है और इस तरह तमाम तरह की पीड़ाओं को झेलना पड़ता है।
उनके लिए शौचालय की व्यवस्था होनी बहुत जरूरी है। इसके साथ ही उन्होंने देश के हर
स्कूल, विद्यालय में लड़को और लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाने की बात कही ताकि
लड़कियां इस भय से कि वहां अलग शौचालय नहीं स्कूल जाना न छोड़ दें। उन्होंने कहा
कि यह काम एक साल में पूरा कर लिया जाना चाहिए।
उन्होंने अपने सांसदों (राज्यसभा, लोकसभा) को
निर्देश दिया कि वे एक साल की अवधि में अपने संसदीय क्षेत्र के किसी एक गांव को
आदर्श गांव के रूप में विकसित करने का संकल्प लें। ऐसा करने से धीरे-धीरे हर साल
कई गांवों का सुधार होता जायेगा। पास का गांव विकसित होगा तो पड़ोसी गांव भी इससे
प्रभावित हो अपने यहां विकास की गतिविधियों को तेज करने की प्रेरणा लेंगे।
2019 में गांधी जी की 150 वीं जन्मजयंती देश
मनायेगा। मोदी का संकल्प है कि वे तब तक भारत को स्वच्छ देश बना दें क्योंकि
महात्मा गांधी को स्वच्छता बहुत पसंद थी। इसी साल 2 अक्टूबर से स्वच्छता का यह
अभियान प्रारंभ कर दिया जायेगा।
मोदी ने अपने भाषण में एक जो सबसे बड़ी घोषणा की वह
है योजना आयोग को समाप्त करना । इसकी जगह कोई अलग संस्था बनाने के संकेत भी
उन्होंने दिये। एक और बड़ी योजना की बात उन्होंने की वह है प्रधानमंत्री जन धन
योजना। प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत गरीबों
के बैंक खाते खुलेंगे। डेबिट कार्ड दिया जाएगा। एक लाख रुपए का बीमा होगा।
इसके अलावा प्रधानमंत्री ने मेड
इन इंडिया, कम
मेक इन इंडिया का नारा दिया। भारत को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का हब बनाने का एलान
किया। उन्होंने कहा कि हमारे यहां कौशल और श्रेष्ठ प्रतिभाओं की कमी नहीं फिर हम
विदेशों के मुंहताज क्यों रहें। हम सारी चीजें अपने यहां ही क्यों न बनायें। हम
ऐसी वस्तुओं के आयात के बजाय निर्यात करें।
प्रधानमंत्री
नहीं प्रधान सेवक
जनता से सीधे संवाद में न कभी वे
हिचकिचाये और ना ही कभी विषयांतर या अतिरेक ही उनकी वाणी में नजर आया। खुद को
प्रधान सेवक कह कर ही उन्होंने अपने आपको आम जन से सीधा जोड़ लिया। उन्होंने कहा-'मैं प्रधानमंत्री के रूप में
नहीं प्रधानसेवक के रूप में आपके बीच हूं। राष्ट्रीय पर्व राष्ट्रीय चरित्र
को निखारने का अवसर होता है। राष्ट्रीय पर्व से प्रेरणा लेकर जन-जन का
चरित्र जितना निखरे उतना अच्छा। यह देश किसान,
युवाओं, सैनिकों, वैज्ञानिकों, ऋषि मुनियों ने
बनाया। यह देश के लोकतंत्र की ताकत है। मैं
भारत के संविधान के निर्माताओं को नमन करता हूं।भाइयों और
बहनों, देश
की आजादी
के बाद भारत आज जहां भी पहुंचा हैं,
उसमें सभी सरकारों,
सभी राज्य
सरकारों का योगदान है। मैं सभी पूर्व सरकारों को, सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों के प्रति इस पल आदर का
भाव प्रकट करना चाहता हूं। यह देश पुरातन
सांस्कृतिक धरोहर की उस नींव पर खड़ा है, जहां हम साथ चलें, मिलकर सोचे, मिलकर संकल्प करें और देश को आगे
बढ़ाएं।'
ये
कहां आ गये हम
अब तक सरकार के बीच सरकार शासन-प्रशासन के टकराव से भी वे चिंतित दिखे।
उनके भाषण में यह चिंता भी साफ झलकी। उन्होंने कहा-'कल
ही नई सरकार की प्रथम संसद सत्र का समापन हुआ। मैं गर्व के साथ कह सकता
हूं कि संसद हमारी सोच की परिचायक है। हम बहुमत के आधार पर आगे बढ़ना नहीं
चाहते। हम सहमति के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं। देश ने देखा होगा कि सभी
को साथ लेकर चलने में हमें अभूतपूर्व सफलता मिली है। उसका यश सरकार को नहीं
जाता। उसका श्रेय प्रतिपक्ष को, उसके
नेता को भी जाता है। मैं सभी
सांसदों और सभी राजनीतिक दलों का धन्यवाद करता हूं। मैं दिल्ली
के लिए आउटसाइडर
हूं। मैं दिल्ली की दुनिया का नहीं हूं। यहां की एलीट क्लास से अछूता
रहा। लेकिन एक बाहर के व्यक्ति ने,
एक आउटसाइडर ने दिल्ली आकर के एक इनसाइडर व्यू लिया। यह मंच राजनीति का
नहीं, राष्ट्रनीति
का है। मेरी बात को
राजनीति के रूप में न लिया जाए। मैंने जब दिल्ली आकर के एक इनसाइडर व्यू किया, तो चौंक गया। मुझे लगा कि एक सरकार में
कई सरकारें चल रही हैं। मुझे
बिखराव नजर आया,
जैसे सभी की जागीरें हैं। एक डिपार्टमेंट दूसरे से लड़ रहा
है। यह बिखराव, यह
टकराव, एक
ही देश के लोग। इसलिए मैंने कोशिश प्रारंभ
की है, उन
दीवारों को गिराने की। सरकार असेंबल्ड यूनिट नहीं,
ऑर्गेनिक
यूनिट बने। सरकार ने एक गति,
एक मति बनाने की कोशिश की। मोदी की सरकार आ गई, अफसर लोग समय पर ऑफिस जाते हैं। मैं देख
रहा था कि हिंदुस्तान का नेशनल
मीडिया, टीवी
खबरें चला रहे थे कि सब समय पर आते हैं। मुझे आनंद आना चाहिए,
लेकिन मुझे आनंद नहीं आया। क्या इस देश में सरकारी अफसर समय पर
जाएं तो
वह क्या न्यूज होती है। अगर वह न्यूज होती है तो वह इस बात का सुबूत है कि
हम कितने नीचे गए हैं। इससे पता चलता है कि पूर्व की सरकारों ने कैसे काम
किया है।’
'जन
आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए जो शासन व्यवस्था नाम की मशीनरी है, उसे धारदार बनाना है। सरकार में बैठे
लोगों के पास सामर्थ्य है। मैं उस
शक्ति को जोड़ना चाहता हूं। हम उसे करके रहेंगे। हमारे
महापुरुषों ने आजादी दिलाई।
क्या उनके सपनों को पूरा करने के लिए हमारी जिम्मेदारी है कि नहीं? क्या हम जो दिन भर कर रहे हैं, क्या कभी शाम को अपने आप से पूछा कि
क्या उससे
गरीबों का भला हुआ, देश
का भला हुआ? दुर्भाग्य
से आज देश में माहौल बना
हुआ है कि किसी के पास कोई काम लेकर जाओ तो वह पूछता है कि इसमें मेरा क्या? जब उसे पता चलता है कि उसमें उसका कुछ
नहीं है तो वह कहता है मुझे
क्या? हर
चीज अपने लिए नहीं होती। कुछ चीजें देश के लिए भी होती हैं। हमें देश
हित के लिए काम करना है। हमें यह भाव जगाना है।'
बेटों पर भी रखें नजर
'आज
हम जब बलात्कार की घटनाएं सुनते हैं,
तो हमारा माथा ठनक जाता है। हर कोई अपने-अपने तर्क देते हैं। मैं आज
इस मंच से हर मां-बाप से पूछना
चाहता हूं जब लड़की 10
साल की होती है तो मां-बाप पूछते हैं कहां जा रही हो? वे चिंतित रहते हैं। रेप करने वाले
लड़कों के मां-बाप को अपने बेटे से
भी पूछना चाहिए। हिंसा के रास्ते पर जाने वाले नौजवानों से
पूछना चाहता हूं कि
भारत मां ने आपको कुछ दिया होगा। आपके कंधे पर बंदूक होगी तो धरती को लाल
कर सकते हो। अगर आपके कंधे पर हल होगा तो धरती पर हरियाली फैलेगी। नेपाल
में एक समय था, जब
लोग हिंसा के रास्ते पर चल रहे थे। अब वहां लोग संविधान की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
भाइयों, बहनों
अगर बुद्ध की भूमि नेपाल संदेश
दे सकती है तो क्या भारत की धरती अहिंसा का संदेश नहीं दे सकती है?'
हम लंबे समय से
सांप्रदायिक हिंसा झेल रहे हैं। देश का विभाजन हो गया। किसी को कुछ नहीं मिला। भारत मां
के अंगों पर दाग के सिवा कुछ नहीं
मिला। जातिवाद,
संप्रदायवाद से छुटकारा पाना होगा। 10 साल तक ऐसा करके देखो। देश को आगे ले जाने का संकल्प
लें। मुझे विश्वास है कि हम ऐसा कर
सकते हैं।'
गर्भ में पलती बेटियों को मत मारो
'भाइयो, बहनो आज सेक्स रेश्यो की क्या स्थिति है? मैं डॉक्टरों से अपील करता हूं कि पैसे के लिए किसी मां
के गर्भ में पल रही बच्ची को न
मारें। मां-बाप से कहना चाहता हूं कि बेटी को गर्भ में न मारो।
बेटी अपने सपनों
को बलि चढ़ाती है, शादी
नहीं करती। मां-बाप की सेवा करती है। यह
असमानता, मां
के गर्भ में बेटियों की हत्या, इससे
हमें मुक्ति लेनी होगी। राष्ट्रमंडल
खेलों में भारत के खिलाड़ियों में 29
बेटियां हैं, जिन्होंने मेडल
जीते हैं। उन बेटियों के लिए ताली बजाइए। भारत की आन बान और शान में बेटियों
का योगदान है। सामाजिक जीवन में जो बुराइयां आईं हैं, उन्हें दूर करना होगा। भाइयों, बहनों देश को आगे ले जाने के लिए गुड
गवर्नेंस और डेवलपमेंट
को साथ-साथ आगे ले चलना होगा। कोई प्राइवेट संस्थान में नौकरी करता
है तो वह कहता है कि वह जॉब करता है। सरकारी नौकरी करने वाला कहता है मैं
सर्विस करता हूं। सरकारी सेवा में लगे लोग जॉब नहीं,
सर्विस कर रहे
हैं।'
यह नेरंद्र मोदी का चुनावी भाषण नहीं बल्कि एक प्रधानमंत्री का लाल
किले के प्राचीर से राष्ट्र को दिया संदेश था। इसे उसी परिप्रेक्ष्य में गंभीरता
से लेना चाहिए। जो साठ दिनों में ही वर्तमान केंद्र सरकार को असफल बता रहे हैं
उन्हें यह सोचना चाहिए कि एक नाकारा और लाचार व्यवस्था को दुरुस्त करने में समय
लगता है। चीजें ढर्रे पर आने लगी हैं, सब्र कीजिए अगर मोदी जी ने अच्छे दिनों का
वादा किया है तो अच्छे दिन जरूर आयेंगे। एक बात तो हुई कि नौकरशाह, मंत्री सभी समय
से आने लगे, तय समय से ज्यादा काम करने लगे। यह क्या बड़ी बात नहीं। मोदी मौन रहनेवाले
नहीं, वे अनाचार, कदाचार और उदासीनता को पसंद नहीं करते ऐसे में उनके साथ जुड़े हर
मंत्री हर नौकरशाह को काम करना ही होगा। और राष्ट्र का काम होगा तो कोई वजह नहीं
कि वह प्रगति न करे। कुछ लोग जिन्हें मोदी का सत्तारूढ़ होना अब तक साल रहा है वे
उनके इस भाषण की भी आलोचना करने लगे हैं। वे करें लेकिन राष्ट्र ने सुना कि पहली बार किसी ने खुद को प्रधान सेवक कह कर
संबोधित किया और सीधे आम जन से जुड़ गया। देश में यह बदलाव उल्लेखनीय है जिनके
आंखें यह नहीं देख पातीं उन पर दुराग्रह, पूर्वाग्रह का चश्मा चढ़ा है। इस चश्में
की खासियत यह है कि यह सिर्फ और सिर्फ एक खास तरह की दुनिया ही देख पाता है। वह
सीमित और दुराग्रह ग्रंथियों से भरी दुनिया उन्हें मुबारक। देश का जनमानस अब
जागरूक हो गया है तभी उसने एक दल को पूर्ण बहुमत से अपने देश का भाग्य विधाता बना
कर भेजा है। निश्चित है कि अब देश का भाग्य बदलेगा ही। एवमस्तु।
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