जग के बंधन तोड़ कर, अलविदा आप यों कह गये।
अब दुख के तूफानों में, हम
अकेले रह गये।।
सर पे साया आपका था, आशीष का शुभ हाथ था ।
आपके रहते हमें कुछ न होगा, ये अटल विश्वास था।।
वटवृक्ष थे आप जिसके सहारे, हम तृण सदृश पलते रहे।
राह सच्ची दिखाई आपने, हम बांह थामे सदा चलते रहे।।
जो भी सीखा आपसे, जो भी जाना वह भी आप से।
आपके जाने से अब, लड़ना है अकेले जग के हर संताप से।।
आपने हमको सिखाया, आदमी गर कर ले दिल में हौसला।
उसको हिला सकता नहीं, तब दुनिया का कोई जलजला।।
आपका हर शब्द ही हम सबके लिए जीवन-मंत्र था।
आपसे बेधड़क हर बात करने को, परिवार भी स्वतंत्र था।
आपसे सर्वदा हमको मिलता रहा, जो असीम
प्यार है।
अब तो बस जिंदगी
जीने का, इक वही आधार है।।
आपकी हर सांस में,
बस इक यही परिवार था।
नेक अभिभावक के जैसा, हर एक से व्यवहार
था।।
आपके जाने से जानें, कितनी आंखें नम
हुईं।
हमसे पूछे आके आपके जाने का क्या है गम कोई।।
इक शाम सहसा जिंदगी में, गहरा अंधेरा
छा गया।
जिंदगी में आपकी यादों का, बस केवल सहारा रह गया।।
आपको अश्रुपूरित नयन से हम
सादर नवाते शीश हैं।
जिंदगी के हर कदम पर, साथ केवल आपके आशीष हैं।।
राजेश जी ये आपके संस्कार ही हैं जो आज आप उनको याद कर रहे हैं,उनको नमन कर रहे हैं !
ReplyDeleteशत शत नमन !