तत्कालीन ग्रह स्थितियों से हुआ प्रमाणित
राजेश
त्रिपाठी
कुछ लोग ऐसे हैं जो हर उस चीज को सिरे से नकारते हैं जिसे इतिहास
की कसौटी पर खरा न पाया जाये। इसमें कुछ भी अनुचित नहीं लेकिन मेरे विचार से ऐसे
भावों का स्तर व्यापक होना चाहिए और किसी काल विशेष या धर्म या पात्र विशेष के लिए
ही यह पैमाना नहीं प्रयोग किया जाना चाहिए। इन दिनों धारा और प्रचलित भावों के
विरुद्ध चलने का फैशन–सा चल पड़ा है। ऐसा करने वालों को और कुछ हासिल होता हो या
नहीं लेकिन उनका जिक्र जरूर होता है क्योंकि लीक पर चलना तो आम बात है जो लीक से
हट कर चलते, सोचते हैं वे खबर बनते हैं।
अयोध्या में राममंदिर –बाबरी मस्जिद विवाद का निर्णय या तो सर्व सम्मति से या
न्यायोचित ढंग से होना चाहिए यह हर वह नागरिक मानता है जो अपने गणतांत्रिक देश के
गौरव और सम्मान के प्रति सचेत है। कोई नहीं चाहता कि इसे लेकर देश में तनाव या
अशांति का वातावरण पैदा हो। यह मुद्दा नितांत स्थानीय था अगर इसे उसी स्तर पर
वर्षों पहले सुलझा लिया जाता तो शायद देश इस बड़ी उलझन से बच जाता। हमारा आशय इस
मुद्दे पर किसी भी तरह की टिप्पणी करने का नहीं है क्योंकि यह अब तक न्यायालय में
विचाराधीन है लेकिन न्यायालय ने फिर लोगों को एक मौका दिया है कि वे इसे न्यायालय
से बाहर आपसी सहमति से सुलझा लें।
यहां यह संदर्भ सिर्फ इसलिए दिया क्योंकि आजकल कुछ माहौल ऐसा बना
है कि कुछ लोग राम और कृष्ण के अस्तित्व तक को नकारने लगे हैं। इनमें वामपंथी
विचारधारा वाले तथाकथित बुद्धिजीवी सबसे आगे हैं। उनका कहना है कि राम और कृष्ण
काल्पनिक कथाओं के पात्र मात्र हैं उनका कभी इस धरा पर कोई अस्तित्व नही रहा
क्योंकि उनका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। यह सच है कि हमारे पास कोई ऐतिहासिक
प्रमाण नहीं क्योंकि जब ये अवतार हुए तब इतिहास लिखने की परंपरा थी या नहीं मालूम नहीं। थी भी तो वह संभव है समय
के साथ-साथ नष्ट हो गया हो क्योंकि न तो तब डिजिटलाइजेशन की सुविधा
थी न ही कागज की खोज हुई थी। भोजपत्र और वृक्ष के
पत्रों में लिखा जाता था। लेकिन सवाल यह है कि अगर उनको काल्पनिक मान लिया जाये तो
उनसे जुड़े जो स्थान आज भी मिलते हैं वे भी नकली ही होंगे। इस कसौटी पर तत्कालीन
अन्य विषयों को कसें तो वे भी निरर्थक और काल्पनिक ही
लगेंगे। जहां तक अपनी सामान्य बुद्धि पहुंच पायी है हमें यही समझ आया है कि
वाल्मीकि राम के समकालीन कवि थे जिनके आश्रम में सीता पलीं और जहां लव-कुश का जन्म
हुआ। सर्वप्रथम रामकथा उन्होंने ही संस्कृत में लिखी जिसके मुख्य पात्र राम रघुकुल
के राजकुमार हैं मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं। उन्होंने जहां उचित समझा राम की आलोचना
भी की। तुलसीदास की रचना रामचरित मानस इसके विपरीत है
जिसे उन्होंने दास भाव से लिखा है जिनके आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं।
स्पष्ट है इस भाव से की गयी रचना में आलोचना की गुंजाइश होने के बावजूद आलोचना का
प्रयास नहीं होता।
इस प्रसंग को ज्यादा आगे न खींचते हुए मैं अब मूल बात पर आता हूं।
जब राम के अस्तित्व पर ही लोगों ने सवाल उठाने शुरू कर दिये तो फिर मन किया कि चलो
कुछ प्रमाण तलाशें जायें। यह तलाश वाल्मीकि रामायण में ही जाकर थमी जो राम के
समकालीन थे। उन्होंने जो लिखा उसे तो प्रामाणिक माना जा सकता है।
सदियों से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जीवन चरित्र लोगों को
सही राह पर चलने की शिक्षा देता आ रहा है, लेकिन प्रश्न उठता है कि क्या भगवान राम से जुड़ी कहानी सिर्फ कथा है, क्या भगवान राम कल्पना हैं, आखिर हमारे पास
भगवान राम के सच होने का क्या कोई प्रमाण है?
रामायण और भगवान राम अगर कल्पना नहीं हैं तो क्या आधुनिक विज्ञान
उनके सच होने का कोई प्रमाण खोज सकता है। आखिर सदियों से घूमते समय के चक्र में,बनते बिगड़ते ब्रह्मांडीय घटनाओं के बीच हमारी
पृथ्वी पर बनती-बिगड़ती सभ्यताओं की कथाओं के बीच, आखिर
किस काल, किस वर्ष, किस
तारीख, किस वक्त में और कहां रामकथा से जुड़ी सभ्यताओं
का प्रारंभ हुआ।
आखिर किस देश काल में रामकथा से जुड़े पात्र सचमुच बोलते-चलते सशरीर
इस दुनिया में थे। अब तक इस सवाल का जवाब हमें वेदों के काल की तरफ ले जाता था।
कहा जाता है कि पांचवीं से चौथी शताब्दी ईसा पूर्व जिस काल को
ऋग्वेद का काल कहा जाता है, तभी महर्षि
वाल्मीकि ने रामायण की रचना की। लेकिन अब तक इस बात पर इतिहासकारों की राय बंटी
हुई थी, लेकिन अब इस बात के सच होने का वैज्ञानिक
प्रमाण मिल गया है।
इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदा यानी ‘आई सर्व’ नामक
संस्था ने जो दिल्ली में स्थित है लंबे वैज्ञानिक शोध के बाद चौंकाने वाला दावा किया
है। ‘आई सर्व’ ने आधुनिक
विज्ञान से जुड़ी 9 विधाओं, अंतरिक्ष विज्ञान, जेनेटिक्स, जियोलॉजी,आर्कियोलॉजी
और स्पेस इमेजरी पर आधारित रिसर्च के आधार पर दावा किया है। भारत में पिछले 10
हजार साल से सभ्यता लगातार विकसित हो रही है। वेद और रामायण में विभिन्न आकाशीय और
खगोलीय स्थितियों का जिक्र मिलता है, जिसे आधुनिक
विज्ञान की मदद से 9 हजार साल ईसा पूर्व से लेकर 7 हजार साल ईसा पूर्व तक प्रमाणिक
तरीके से क्रमानुसार सिद्ध किया जा सकता है।
‘आई सर्व’ के निष्कर्ष के
मुताबिक एक वक्त जिक्र आया है कि राम के जन्म से भी 2 वर्ष पहले राजा दशरथ ने
पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया। तब से लेकर हनुमान जी के सीता से मिलने तक करीब 25 के करीब
आकाशीय दृश्य हूबहू मिलते हैं। एस्ट्रोनॉमिकल फैक्ट है कि आज जो नक्षत्र हैं वो
25600 साल में दोहराये नहीं जाते। इसे भी वैरीफाई किया गया कि किसी और दिन तो ऐसी
स्थिति नहीं थी। इसमें वाकई सच्चाई है किसी ने देखा और ऑब्जर्व किया और रिकॉर्ड
किया या नहीं।
तो क्या हजारों साल पहले की चांद-तारों और नक्षत्रों की स्थितियों
को बताने वाले प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर और रामायण से लेकर वेदों में जिक्र
नक्षत्रों की स्थिति के तुलनात्मक अध्ययन से जाना जाना जा सकता है कि- क्या है
भागवान राम की जन्मतिथि, कब हुआ था रावण का
अंत, कब हुआ था राम का राज्याभिषेक, ‘आई सर्व’ के दावों पर यकीन करें तो इन सभी
सवालों का जवाब हां में है। आधुनिक सॉफ्टवेयर की मदद से ना सिर्फ राम की जीवनलीला
का पूरा इतिहास जाना जा सकता है अपितु यह भी जाना जा सकता है कि यह समय कब पड़ता
है।
धरती के बनने से लेकर आज तक जो कुछ भी हुआ, जो कुछ भी बीता, उसका
साक्षी है समय। और समय के साथ ही हर बनने-बिगड़ने वाली घटनाओं का गवाह रहा है-आसमान, जहां खास वक्त पर तारों-ग्रहों और नक्षत्रों की खास स्थितियां नजर आतीं
हैं। रोचक यह भी है कि वाल्मीकि रामायण में रामकथा से जुड़ी हर बड़ी घटना का जिक्र
खगोलीय स्थितियों के साथ किया गया है। आज देश में चैत्र-शुक्लपक्ष की नवमी को
भगवान राम के जन्मदिन की तरह मनाया जाता है तो इसकी वजह भी रामायण में वर्णित तारों
की स्थिति ही है।
वाल्मीकि रामायण में भगवान राम के जन्म का वर्णन इस प्रकार है-
ततो ब्रूयो समाप्ते तु ऋतुना षट् समत्युय: ।
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ॥
नक्षत्रेsदितिदैवत्ये
स्वोच्चसंस्थेषु पंचसु ।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह॥
प्रोद्यमाने जनन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम् ।
कौसल्याजयद् रामं दिव्यलक्षणसंयुतम् ॥
राम के जन्म के वक्त का वर्णन करने वाले वाल्मीकि रामायण के इस
श्लोक का भावार्थ यह है कि चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु
नक्षत्र और कर्क लग्न में रानी कौशल्या ने दिव्य लक्षणों से युक्त सर्वलोकवन्दित
श्री राम को जन्म दिया। अर्थात जिस दिन भगवान राम का जन्म हुआ उस दिन अयोध्या के
ऊपर ग्रहों की सारी स्थिति का इस श्लोक में साफ-साफ जिक्र है।
अब अगर रामायण में जिक्र गये नक्षत्रों की इस स्थिति को नासा
द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सॉफ्टवेयर प्लैनेटेरियम गोल्ड में उस वक्त के
ग्रहों की स्थिति से मिलाया और तुलना की जाये तो उसका परिणाम यह निकलता है-
सूर्य मेष राशि (उच्च स्थान) में। शुक्र मीन राशि (उच्च स्थान) में। मंगल
मकर राशि (उच्च स्थान) में। शनि तुला राशि (उच्च स्थान) में।बृहस्पति कर्क राशि
(उच्च स्थान) में। लगन में कर्क। पुनर्वसु के पास चन्द्रमा मिथुन से कर्क राशि की
ओर बढ़ता हुआ।
शोध संस्था ‘आई सर्व’ के मुताबिक वाल्मीकि रामायण में वर्णित श्री राम के जन्म के वक्त
ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति का सॉफ्टवेयर से मिलान करने पर जो दिन मिला, वो दिन है 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व।
उस दिन दोपहर 12 बजे अयोध्या के आकाश पर सितारों की स्थिति
वाल्मीकि रामायण और सॉफ्टवेयर दोनों के अनुसार एक जैसी पायी गयी है। इससे
शोधकर्ताओं ने यह परिणाम निकाला कि राम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को हुआ।
‘आई सर्व’ के शोधकर्ताओं
ने जब धार्मिक तिथियों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले चंद्र कैलेंडर की इस तिथि को
आधुनिक कैलेंडर की तारीख में बदला तो वो ये जान कर हैरान रह गये कि सदियों से
भारतवर्ष में राम का जन्मदिन बिल्कुल सही तिथि पर मनाया जाता रहा है। इससे जो
जन्मतिथि आती है वो है 10 जनवरी 5114 बीसी जब इसे चंद्र कैलेंडर में परिवर्तित
किया गया तो वह चैत्र मास का शुक्ल पक्ष का नवमी निकला। सभी को विदित है कि चैत्र
शुक्ल की नवमी को राम नवमी मनाते हैं, तो वही दोपहर को
12 से 2 बजे के बीच समान तिथि निकली है।
सॉफ्टवेयर की मदद से शोधकर्ताओं ने भी ये भी पता लगाया की राम के
भाइयों की जन्मतिथि कब पड़ती है। भरत का जन्म पुष्प नक्षत्र तथा मीन लग्न में 11
जनवरी 5114 ईसा पूर्व को सुबह चार बजे लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म अश्लेषा
नक्षत्र एवं कर्क लग्न में 11 जनवरी 5114 ईसा पूर्व को 11 बज कर 30 मिनट पर हुआ।
वल्मीकि रामायण में उस दिन का भी जिक्र मिलता है जब राजा दशरथ भगवान राम का
राज्याभिषेक करना चाहते थे, लेकिन वो तिथि
वनवास की तिथि में बदल गयी।
बेल्जियम में जन्में फादर कामिल बुल्के भारत आये तो रामकथा से इतने प्रभावित हुए कि
उन्होंने इसके गहन अध्ययन के लिए न सिर्फ हिंदी सीखी अपितु राम पर शोध ग्रंथ भी
लिखा। वैज्ञानिकता पर आधारित "रामकथा: उत्पत्ति और विकास" नामक अपने शोध के द्वारा उन्होंने 300 ऐसे प्रमाण पेश किए थे जिनके आधार पर राम के जन्म की घटना को सत्य
कहा जा सकता है। भगवान राम से जुड़ा एक अन्य शोध चेन्नई की एक गैर सरकारी संस्था
द्वारा किया गया, जिसके
अनुसार राम का जन्म 5,114 ईसा पूर्व
हुआ था। बुल्के ने लिखा कि वाल्मीकि के राम कल्पित पात्र नहीं, इतिहास
पुरुष थे। तिथियों में थोड़ी बहुत चूक हो सकती है। बुल्के के इस शोधग्रंथ के
उद्धरणों ने पहली बार साबित किया कि रामकथा केवल भारत में नहीं, अंतरराष्ट्रीय कथा है। वियतनाम से इंडोनेशिया तक यह कथा फैली हुई है। इसी प्रसंग में फादर बुल्के अपने एक मित्र
हॉलैन्ड के डाक्टर होयकास का हवाला दिया है। डा० होयकास संस्कृत और इंडोनेशियाई
भाषाओं के विद्वान थे। एक दिन वह केंद्रीय इंडोनेशिया में शाम के वक्त टहल रहे थे।
उन्होंने देखा एक मौलाना जिनके बगल में कुरान रखी है, इंडोनेशियाई रामायण पढ़ रहे थे। होयकास ने उनसे पूछा,- मौलाना आप तो मुस्लिम हैं, आप रामायण
क्यों पढ़ते हैं। उस व्यक्ति ने केवल एक वाक्य में उत्तर दिया- ‘और भी अच्छा मनुष्य बनने के
लिए! ‘ रामकथा के इस विस्तार को फादर बुल्के वाल्मीकि की दिग्विजय कहते थे, भारतीय संस्कृति की दिग्विजय!
एक तरफ श्रीलंका का इंटरनेशनल रामायण रिसर्च सेंटर है जो वहां के पर्यटन मंत्रालयसे मिल कर रामायण से जुड़े ऐसे 50 स्थल ढूंढ चुका है जिनका पुरातात्विक और ऐतिहासिक
महत्व है और जिनका रामायण में भी उल्लेख
मिलता है। वह इनका संरक्षण
कर रहा है दूसरी हमारे यहां के कुछ तथाकथित विद्वान हैं जो राम के अस्तित्व को भी
नकारते हैं। तब तो हमें रामकथा से जुड़े अय़ोध्या (तत्कालीन साकेत), चित्रकूट,अनुसूया
आश्रम,भरतकूप, पंचवटी, शृंगवेरपुर, प्रयाग व रामकथा में वर्णित अन्य स्थलों
को भी अस्तित्वहीन मानना पड़ेगा। लेकिन ये तो आज भी हैं और श्रद्धावान इन्हें
रामकथा से जुड़े स्थलों के रूप में पूजते हैं।
ये संदर्भ मिले हैं अब जिन्हें इनको मानना है मानें, नहीं मानना नहीं माने। यह अवश्य है कि जिनके
रोम-रोम में राम हैं वे उनकी प्रामाणिकता खोजने नहीं बैठते। आस्था के प्रश्न
इतिहास की कसौटी में नहीं श्रद्धा और निष्ठा के पैमाने में कसे जाते हैं। जहां
निष्ठा और आस्था है वहां प्रश्न की कोई जगह नहीं। लोगों की आलोचनाओं से मन व्यग्र
और उद्वेलित हुआ इसलिए लिखा अब जिसे इसे जिस संदर्भ में लेना है, जो अर्थ निकालना है निकाले, हमारी आस्था न डिगी है न
डिगेगी। बाबा तुलसीदास लिख ही गये हैं-जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन
तैसी।
तो
आपको आपकी शंकाओं की ग्रंथियां मुबारक, वह आपके सोचने
का ढंग है। हम हर बात को प्रश्नों के तराजू में नहीं तौलते, आस्था
बड़ी चीज है हम उसी के धरातल पर खड़े हैं और हमें इस पर गर्व है। आप इतिहास की
परतें उधेड़िये लेकिन आपके यह भाव एकपक्षीय नहीं होने चाहिए हर पूजनीय या
श्रद्धास्पद पात्र को इतिहास की कसौटी पर कसिये देखिएगा आपको निराशा ही हाथ लगेगी।
कारण, आपका इतिहास लाखों वर्ष पुराना नहीं है कम से कम
पौराणिक काल तक पुराना तो नहीं ही है। इसलिए चीजों को समष्टि में देखिए किसी पात्र
विशेष को कठघरे में मत खड़ा कीजिए ,ऐसा कर के आप करोड़ों
लोगों की श्रद्धा पर आघात कर रहे होंगे जो संभवत: किसी
का अभीष्ट नहीं होगा।
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