डल लेक श्रीनगर (कश्मीर) |
धरती के स्वर्ग कश्मीर के वर्तमान स्वरूप, स्थिति के बारे में आप सब जानते हैं आपमें से शायद कुछ लोगों को ही इसके गौरवशाली अतीत के बारे में पता हो। कश्मीर का इतिहास बहुत पुराना है। इसका उल्लेख पुराणों और प्राचीन धर्मग्रंथों में भी है। इसके संस्थापक के रूप में जो नाम प्रमुखता से लिया जाता है वह है कश्यप ऋषि का। आइए आपको कश्मीर के शताब्दियों पुराने अतीत में ले चलते हैं। जिसके बारे में पुराण व धर्मग्रंथों में दिये गये विवरण की पुष्टि विज्ञान ने भी कर दी है।
220 वर्ष ईसा पूर्व से भी पहले से है कश्मीर। 8 वीं सदी में यहां के राजा आदित्य हुए थे जिन्होंने यहां सूर्य मंदिर बनवाया। 220 वर्ष ईसा पूर्व आदि शंकराचार्य ने श्रीनगर की पहाड़ी शंकराचार्य हिल पर शिव मंदिर बनवाया।
कश्मीर के नाम के बारे में एक पौराणिक कथा है। नीलमत पुराण के अनुसार इस क्षेत्र का नाम पहले सतिदेश था जिसका आकार किसी बांध की तरह था। इसके दोनों और विशाल पर्वत थे और बीच में बड़ी झील थी।इस झील का नाम सतिसर था। कभी एक बालक सतिदेश में आया था। इसका नाम जलोद्भव था। जलोद्भव का अर्थ है जल से जो उत्पन्न हुआ हो। जलोद्भव ने जल में रह कर ही ब्रह्मा जी की तपस्या की और उनसे वरदान मांगा कि वह जब तक जल में रहे तब तक उसे कोई मार ना सके। ब्रह्मा जी ने उसे वरदान देते हुए कहा-ऐसा ही होगा। कुछ दिन बाद जलोद्भव युवा हुआ। इसके बाद ही वह दुर्दांत हो गया लोगों को मारने लगा। वह हठी और क्रूर हो गया। सभी उसकी इस विनाशलीला से त्रस्त हो गये। जलोद्भव के पिता नील को यह बर्दाश्त नहीं था। नील ने इसकी शिकायत अपने पिता कश्यप ऋषि से की। कश्यप ऋषि ब्रह्मा जी के पास मदद के लिए पहुंचे। उन्होंने जलोद्भव के आतंक के बारे में उन्हें बताया और प्रार्थना की कि वे उसकी विनाशलीला से लोगों की रक्षा करें। कश्यप ऋषि ने ब्रह्मा के साथ ही विष्णु और शिव से प्रार्थना की कि वे जलोद्भव का अंत कर लोगों को उसके भय से मुक्त करें। विष्णु ने पहले अकेले ही उसका वध करने का प्रयत्न किया लेकिन उसे तो ब्रह्मा का वरदान प्राप्त था कि जब तक वह पानी में रहेगा उसका कोई भी कुछ बिगाड़ नहीं सकेगा। देवता जब-जब जलोद्भव को मारने आते वह सतिसर झील में जा छुपता। अब देवता चिंतित हो गये कि आखिर इसे कैसे मारा जाये। नीलमत पुराण में ऐसी कथा आती है कि देवताओं ने तय किया कि क्यों ना सतिसर को ही सुखा दिया जाये। कहते हैं कि इसके लिए बलराम जी की सहायता ली गयी जिन्होंने अपने हल से उस झील को बारह जगहों से काट दिया और उस झील से आकाश छूती जल की लहरें नीचे की ओर हरहराती हुई बहने लगीं। कहते हैं जहां बारह सुरंगों से पानी निकला था वहीं आज बारामूला बसा है। झील का जल सूख गया तो जान बचाने के लिए जलोद्भव इधर उधर भागने लगा उस वक्त विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका वध कर दिया।उसके आतंक से पीड़ित लोगों ने भी चैन की सांस ली। झील का पानी बह जाने के बाद पृथ्वी की सतह भी निकल आयी।
उसके बाद कश्यप ऋषि ने अपने पुत्र नील से कहा कि अब लोग यहां बस सकते हैं। वे कैसे और कहां बसेंगे इसका प्रबंध वह करे। कश्यप ऋषि से ब्रह्मा जी बहुत प्रसन्न हुए। उनके नाम पर ही इस स्थान का नाम कश्मीरा पड़ा।
जब यह क्षेत्र पूरी तरह समतल हो गया, वितस्ता नदी के किनारे घाट इत्यादि तैयार हो गए, तब कश्यप मुनि ने भारत के अन्य क्षेत्रों से लोगों को यहां आकर बसने का विधिवत निमंत्रण भेजा। इस निमंत्रण को स्वीकार करके भारत के कोने-कोने से सभी वर्गों एवं जातियों के लोग यहां आकर बसने के लिए तैयार हो गए. उद्योगपति, कृषक, श्रमिक, वैद्य, ग्रह एवं मार्ग बनानेवाले कारीगर आदि ने भूमि आरक्षण के लिए प्रयास प्रारंभ कर दिये।
योग्यतानुसार, नियमानुसार एवं क्रमानुसार कश्यप के ऋषि मण्डल ने सब को भूमि आबंटित कर दी। कश्यप मुनि की नाग जाति तथा अन्य वर्गों के लोगों ने नगर – ग्राम बसाए और देखते ही देखते सुंदर घर, मंदिर आदि बन गए।
जियो मार्फोलाजी ने भी कश्मीर पर शोध किया था जिसमें यह पाया गया कि कश्मीर पहले बड़ा जलाशय था। कुछ अरसे बाद पानी बह गया फिर उसके ऊपर पृथ्वी की सतह आयी। कश्मीर में सदियों पहले कई राजवंशों का शासन था।
कहते हैं कि प्राचीन काल में कश्मीर क्षेत्र में देवकी नदी बहती थी जो आज भी विद्यमान है। मान्यता यह है कि कश्यप ऋषि ने ही कश्मीर को बसाया था। कश्मीर के प्राचीन इतिहास को समझने के लिए जो स्रोत उपलब्ध हैं उनमें छठी से आठवीं शताब्दी के बीच लिखे गए ‘नीलमत पुराण’ का स्थान महत्वपूर्ण है।
बारहवीं सदी में कल्हण द्वारा लिखे गए प्रसिद्ध ग्रंथ ‘राजतरंगिणी’ में में भी कश्मीर का उल्लेख है।
पुराणों में जिन बातों का उल्लेख है उसका सत्यापन जियो मार्फोलोजी द्वारा कश्मीर पर किये गये शोध से भी हुआ है। उसकी खोज में भी यह सिद्ध हुआ है कि कश्मीर में अतीत में बहुत बड़ा जलक्षेत्र था। 2017 में दिल्ली में हुए अंतरराष्ट्रीय मार्फोलोजी सम्मेलन में इस विषय में विस्तृत विचार-विमर्श हुआ था। आप पुराणों या धर्मग्रंथों में दिये गये विवरण को नकार कर सकते हैं लेकिन जब विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि धर्मग्रंथों, पुराणों में कश्मीर का जैसा वर्णन है विज्ञान के अध्ययन पर भी कश्मीर अतीत में वैसा ही था।
1960 में प्रकाशित एचएच विल्सन द्वारा लिखित ‘दी हिन्दू हिस्ट्री ऑफ़ कश्मीर’ हो या फिर 1962 में पृथ्वी नाथ कौल बम्ज़ाई द्वारा लिखित ‘ए हिस्ट्री ऑफ कश्मीर’ इन सभी पुस्तकों में मथुरा के कृष्ण का जिक्र आता है।नीलमत पुराण और राजतरंगिणी में एक प्रमुख कहानी महाभारतकालीन राजा गोनंद की है। कल्हण तो यहीं से अपना इतिहास शुरू करते हैं। इन ग्रंथों के मुताबिक कश्मीर का राजा गोनंद प्रथम कृष्ण का समकालीन था और वह मगध के राजा जरासंध का रिश्तेदार था। जब यमुना के तट पर कृष्ण और जरासंध का युद्ध चल रहा था तो गोनंद अपनी विशाल सेना के साथ जरासंध की मदद के लिए पहुंचा। गोनंद ने कृष्ण के किले पर कब्जा कर कृष्ण की घेराबंदी कर दी। लंबे समय तक गोनंद की सेना ने युद्ध किया, लेकिन आखिरकार गोनंद कृष्ण के भाई बलराम या बलभद्र के हाथों मारा गया।
गोनंद के बाद उसका बेटा दामोदर कश्मीर का राजा बना। वह कृष्ण से अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए बेचैन था, उसने सही मौके की प्रतीक्षा की। थोड़े समय बाद सिंधु के तट पर गांधार के राजा ने एक स्वयंवर का आयोजन किया। इस स्वयंवर में कृष्ण ने भी अपने बाकी यदुवंशी सगे-संबंधियों के साथ भाग लिया। स्वयंवर के बाद जब दुल्हन को लेकर सभी लौट रहे थे, तो दामोदर ने इसे उपयुक्त अवसर मानकर कृष्ण पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण की अफरा-तफरी में दुल्हन मारी गई और क्रोध में आकर दूल्हे और उसके साथियों ने दामोदर की सेना को पराजित कर दिया. कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से दामोदर का अंत कर दिया।
लेकिन दामोदर की पत्नी यशोवती उन दिनों गर्भवती थी. कृष्ण ने यशोवती की चिंता दूर करने के लिए ब्राह्मणों को कश्मीर भेजा। कृष्ण ने यशोवती को कश्मीर की रानी बना दिया. यह बात दरबारियों को स्वीकार नहीं थी कि कोई महिला शासक बने। इन दरबारियों को शांत करने के लिए कृष्ण ने जो कहा उसका वर्णन नीलमत पुराण के इस श्लोक में मिलता है.
कश्मीराः पार्वती तत्र राजा ज्ञेयो हरांशजः।
नावज्ञेयः स दुष्टोपि विदुषा भूतिमिच्छता।।
पुंसां निर्गौरवा भोज्ये इव याः स्त्रीजने दृशः।
प्रजानां मातरं तास्तामपश्यन्देवतामिव।।
अर्थात् कश्मीर की धरती पार्वती है। यह जान लो कि उसका राजा शिव का ही एक अंश है. वह यदि दुष्ट भी हो, तो भी विद्वतजनों को चाहिए कि राज्य के कल्याण के लिए उसका अपमान न करें। स्त्री को भोग की वस्तु माननेवाला पुरुष भले ही उसका सम्मान करना न जानता हो, लेकिन प्रजा उसमें अपनी माता या एक देवी को ही देखेगी।
कृष्ण के ऐसा कहने पर दरबारी या मंत्रीगण शांत हो गए और यशोवती को कश्मीर की रानी, देवी और प्रजा की माता की तरह मानने लगे. थोड़े समय बाद यशोवती ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम गोनंद द्वितीय रखा गया. बचपन में ही उसका राज्याभिषेक कर दिया गया. जब महाभारत का युद्ध लड़ा जा रहा था तो गोनंद द्वितीय बहुत छोटा था, इसलिए उसे कौरव या पांडव किसी की ओर से आमंत्रित नहीं किया गया. यही कारण है कि महाभारत युद्ध के दौरान विभिन्न राज्यों का जिक्र तो मिलता है, लेकिन कश्मीर का नहीं मिलता।
परीक्षित पुत्र जनमेजय ने ऋषि वैशंपायन से यही प्रश्न किया था कि महाभारत युद्ध में सभी जगह के राजा हमारी मदद के लिए आये पर कश्मीर नहीं आया। तब वैशंपायन ने बताया था कि वहां का राजा छोटा था इसलिए कश्मीर को महाभारत के युद्ध में आमंत्रित ही नहीं किया गया था।
कल्हण ने अपनी राजतरंगिणी में 35 वर्षों तक राज करने वाले गोनंद तृतीय को एक महान राजा बताते हुए उसकी तुलना अयोध्या के महान राजा राम से की है।
मत्स्य पुराण में अच्छोद सरोवर और अच्छोदा नदी का जिक्र मिलता है जो कि कश्मीर में स्थित है।
अच्छोदा नाम तेषां तु मानसी कन्यका नदी ॥
अच्छोदं नाम च सरः पितृभिर्निर्मितं पुरा ।
अच्छोदा तु तपश्चक्रे दिव्यं वर्षसहस्रकम्॥
मरीच पुत्र कश्यप के नाम से पूर्व मेँ कश्यपमर या कशेमर्र नाम था। इससे भी पूर्व मत्स्य पुराण में कहा गया है- मरीचि के वंशज देवताओं के पितृगण जहां निवास करते हैं वे लोग सोमपथ के नाम से विख्यात हैं। यह पितृ अग्निष्वात्त नाम से ख्यात है। जिनके सौन्दर्य से आकर्षित होकर इन्हीँ पितरोँ की मानस कन्या अमावसु नामक पितर युवक के साथ रहना चाहती थी। जिस दिन अमावसु ने अच्छोदा को मना किया। तब से वह तिथि अमावस्या नाम से प्रसिद्ध हुई और अच्छोदा नदी रूप हो गई। अमावस्या तभी से पितरोँ की प्रिय तिथी है।
इससे पहले काश्मीर को 'सती 'या 'सतीसर' कहते थे। यहां सरोवर में सती भगवती नाव में विहार करती थीं।
श्रीनगर जिसका पुराना नाम प्रवर पुर है, इसी शहर की दोनों ओर हरीपर्वत और शंकराचार्य पर्वत हैं आदि शंकराचार्य ने इसी पहाड़ी पर भव्य शिवलिंग, मंदिर और नीचे मठ बनाया। माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्यप सागर (कैस्पियन सागर) और कश्मीर का प्राचीन नाम था। शोधकर्ताओं के अनुसार कैस्पियन सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप के कुल के लोगों का राज फैला हुआ था। कश्यप ऋषि का इतिहास प्राचीन माना जाता है। कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही दक्ष राजा का भी साम्राज्य भी था। जम्मू का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। अखनूर से प्राप्त हड़प्पा कालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्त काल की कलाकृतियों से जम्मू के प्राचीन इतिहास का पता चलता है।
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