आत्मकथा
कुछ भूल गया, कुछ
याद रहा
राजेश त्रिपाठी
भाग-24
बबेरू में मेरी शिक्षा सुचारु रूप से चल
रही थी। मैं अपने प्यारे शिक्षक रामविलास तिवारी जी के अचानक इस्तीफा देकर वापस
जाने का दुख अब तक नहीं भूल पाया था। हमारे नवीं कक्षा में आते-आते हमारे विद्यालय
की नयी ब्लिडिंग बबेरू की चौगलिया या बबेरू चौराहा के पास हमारे कालेज की नयी
बिल्डिंग बन चुकी थी। अब यह कालेज काफी विकसित हो गया है लेकिन जब हम लोग थे तब तक
तीन ब्लिडिंगे ही बनी थीं। एक सबसे बड़ी जिसमें ग्यारह और बारह की कक्षाएं चलती
थीं और उसी में प्रिंसिपल का कार्यालय और
शिक्षकों का विश्राम करने का कमरा, लाइब्रेरी और कार्यालय था। एक छोटी बिल्डिंग
में प्रयोगशाला थी जहां हम लोग रसायन विज्ञान और जुलोजी के प्रयोग आदि किया करते
थे। कालेज के हर कक्ष में ध्वनि विस्तारक यंत्र लगा था जिसका नियंत्रण प्रिंसिपल
के कक्षा से होता था। प्रिंसिपल बराबर हर क्लास की ध्वनि निरंतर सुन सकते थे। जिस
कक्षा में ज्यादा शोर होता उसका नंबर उनके कक्ष के डिस्प्ले पैनल में उसका नंबर उठ
जाता था। प्रिंसिपल तुरत उसका स्विच आन कर जान लेते कि शोर क्यों चल रहा है। हम लोग भी उसी तरह शरारती थे जैसे हर कालेज के
लड़के होते हैं। हमने भी अपने अध्यापकों के नये नये नाम रख रखे थे। जैसे
दुर्गादयाल तिवारी हमारे अध्यापक थे उनका हमने अंग्रेजी में शार्ट में नाम डीडीटी
रख लिया था। जहां तक याद आता है एक शिक्षक थे ओपी गुप्ता। बहुत लंबी-लंबी टांगे
थीं उनकी। उनका तकिया कलाम था ‘डोंट टाक’। वे कक्षा में जब घुसते तो भले ही वहां सन्नाट
हो वे यह चिल्लाना नहीं भूलते ‘डोंट टाक’। एक बार ऐसा हुआ कि दुर्गादयाल तिवारी जी का
क्लास था वे आये नहीं थे तो बुंदेलखंड के लड़के क्यों चूकते मचाने लगे हुड़दंग।
जोर-जोर से चिल्लाने लगे और वाज प्रिंसिपल ज्वाला प्रसाद शर्मा जी के कक्ष में
सुनाई दी और डिस्पले पैनल में हमारी कक्षा का नंबर उठ गया। छोटे कद पर बड़े दिमाग
के हमारे प्रिंसिपल ज्वाला प्रसाद शर्मा जी हमारे कक्ष के सामने आये और पूछले लगे ‘किसका पीरियड है’ संयोग
से मैं ही सामने था मेरे मुंह से निकल गया ‘सर डीडीटी सर का’। प्रिंसिपल साहब चौंके ’किसका’ मुझे अपनी गलती समझ आ गयी मैंने तुरत सुधारा-सर
दुर्गादयाल तिवारी जी का।
प्रिंसिपल साहब वापस चले गये और उन्होंने अपने
कक्ष से शिक्षकों के विश्राम कक्ष का नंबर आन कर कहा-अगर दुर्गादयाल तिवारी जी
वहां हैं तो जल्द अपना क्लास ज्वाइन करें वहां बहुत शोरगुल हो रहा है।
कुछ देर में ही दुर्गादयाल तिवारी जी हमारी
कक्षा में आ गये और आते ही बोले-गजब कर रहे हैं आप लोग, हम लोगों को पल भर विश्राम
भी नहीं करने दोगे। आप लोगों के शोर से मुझे प्रिंसिपल साहब की झिड़की सुननी पड़ी।
कालेज की एक बड़ी फील्ड थी जहां खेल कूद होते थे। एक बार वहीं हाकी के खेल के दौरान हाकी लग कर मेरा होंठ फट गया था। वहां प्रयोगशला के सामने के मैदान में हम लोग पोल वाल्ट का अभ्यास किया करते थे। यहां हमारे गांव के बी एल यादव भी हमारे सहपाठी थे जो अब जज के पद से सेवानिवृत होकर जनपद बांदा में रहते हैं।
अपने
कालेज से ही मैंने एसीसी का सार्टिफिकेट प्राप्त की थी। इसी कालेज से मैंने नेशनल
फिजिकल एफिसिएंसी के उत्तर प्रदेश शाखा की शारीरिक दक्षता परीक्षा पास कर थ्री
स्टार जीते थे। यह परीक्षा मैंने अपने कालेज की ही फील्ड से जीती थी। जहां तक याद
आ रहा है इसमें सौ मीटर की दौड़, चार सौ मीटर की दौड़, पोल वाल्ट, लांग जंप, हाई
जंप, जैबलन थ्रो, आठ सौ मीटर की दौड़ आदि में टाप आना था। सारी प्रतियोगिताएं तो
मैंने सफलता से पूरी की बस आठ सौ मीटर की आखिरी लैप में मेरा दम फूलने लगा था।
मेरी यह स्थिति देख कर हमारे शिक्षक इनायत हुसैन खान चिल्लाये –रूमाल निकाल कर
मुंह में रखो दम फूलना बंद हो जायेगा।‘ मैंने वैसा ही किया
और जब लैप पूरा हुआ तो सामने खान साहब ही थे जिन्होंने अगर मुझे बांहों में ना थाम
लिया होता तो मैं गिर ही जाता। उन्होंने मुझे छाती से लगा लिया और बोले-तुमने
कालेज का मान रख लिया। तुम जीत गये थ्री स्टार।
मुझे बाद में पता चला कि नेशनल फिजिकल
एफिसिएंसी सरकारी संस्था थी जिसका मैं थ्री स्टार विनर बन चुका था।
यहां चह बताता चलूं कि तब तक हमारे भैया
अमरनाथ द्विवेदी इलाहाबाद से अपनी पढ़ाई पूरी कर वापस आ गये थे। खुशी की बात यह थी
कि वे जुलोजी और बाटनी के लेक्चरर के रूप में हमारा इंटर कालेज बबेरू ज्वाइन कर
चुके थे। कुछ अरसे में ही वे हमारे प्रिंसिपल ज्वाला प्रसाद शर्मा जी के बहुत ही
प्यारे बन गये थे। शर्मा जी एक पुत्री भर थी कोई पुत्र नहीं था। अगर यह कहें कि वे
भैया अमरनाथ जी से पुत्रवत स्नेह करते थे तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। वे उनके लिए
‘मुश्किल आसान’ भी थे। हम लोग
विज्ञान विभाग में थे। कालेज में एक कक्ष ऐसा था जो सीढ़ीदार था। पीछे से ऊंची
सीढ़िया क्रमश: नीची होते हुए सामने की ओर आती थीं। सामने एक
स्टेज जैसा था जिस पर खड़े होकर शिक्षक साइंस का कोई प्रयोग दिखाते थे जो पीछे की
पंक्ति में बैठे छात्र तक को साफ-साफ दिखाई देता था। एक बार हमारे शिक्षक ने
प्रिंसिपल साहब से अनुरोध किया कि वे बारहवीं कक्षा के छात्रों को एक घंटे के लिए
किसी और कक्षा में बैठा दें तो वे अपनी कक्षा के छात्रों को सीढ़ी वाले क्लास में
विज्ञान का प्रयोग दिखा सकें। प्रिंसिपल से लेकर कई अध्यापकों ने तक ने जोर लगा कर
देख लिया लेकिन बारहवीं के लड़के एक घंटे के लिए भी क्लास छोड़ने को तैयार नहीं
थे। विरोध का नेतृत्व एक ठाकुर का लड़का कर रहा था। जब सभी हार गये तो प्रिंसिपल
साहब ने एक शिक्षक से कहा -द्विवेदी को बुलाओ, द्विवेदी अर्थात हमारे भैया अमरनाथ
जी।
हमारे गांव जुगरेहली में भैया अमरनाथ (लाल स्वेटर में दायें) , बीच में मैं और बायें हमारे सहपाठी बी एल यादव (सेवनिवृत जज) |
उस ठाकुर लड़के ने बड़े गुरूर से कहा- जी मैंने।
भैया अमरनाथ ने आव देखा ना ताव झन्नाटेदार
तमाचा उसके गाल पर जड़ते हुए बोला-अभी इसी वक्त एक घंटे के लिए क्लास खाली करो
नहीं तो कल से कालेज में भी घुसने नहीं दिया जायेगा।
उस लड़के को इस तरह के जवाब की स्वप्न में
भी उम्मीद नहीं थी। कुछ मिनट में ही बारहवीं की क्लास खाली हो गयी और हमारी
विज्ञान प्रयोग की क्लास वहीं लगी।
भैया अमरनाथ जी का जिक्र आया है तो फिर
उनकी हिम्मत की भी बात करते चलते हैं। कालेज में नयी ब्लिडिंग बनाने के लिए ईंटें
रखी थीं। बरसात का महीना था। एक बार लड़कों ने ईंट के ऊंचे ढेर के नीचे एक सांप को
झाकते देखा और दौड़ कर भैया अमरनाथ को यह खबर दी। और क्लोराफार्म और एक जार लेकर
दौड़े-दौड़े आये और यह सोच कर कि बच्चों को पढ़ाने के लिए अच्छा स्पेसिमेन मिल
जायेगा सांप को पकड़ने की कोशिश करने लगे। इसी दौरान सांप ने उन्हें काट लिया।
उन्होंने लड़कों से कहा-इस पर क्लोरोफार्म डाल कर इसे बेहोश करो और किसी तरह से
जार में रखो मुझे इसने काट लिया है मैं सरकारी अस्पताल इंजेक्शन लेने जा रहा हूं।
वे दौड़े-दौड़े अस्पता गये जो कालेज से तकरीबन आधा मील दूर था।
अस्पताल में पहुंचते ही उन्होंने एक डाक्टर से
कहा- मुझे जल्दी एंटी स्नेक वेनम इंजेक्शन लगाइए सांप ने काट लिया है।
एक सांप काटे व्यक्ति को इस तरह निर्भीकता से
बोलते देख डाक्टर हक्का-बक्का रह गये।
इस पर भैया अमरनाथ ने डांटा-यार इंजेक्शन
लगाओ मार डालोगे क्या, सांप ने मुझे काटा है तुम्हें नहीं।
डाक्टरों ने तुरत उन्हें इंजेक्शन लगाया और
तकरीबन आधा घंटा बैठा कर रखा।
जब तक भैया अमरनाथ सकुशल कैलेज नहीं लौट आये मैं
बहुत घबराया हुआ था। मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि –हे प्रभु मेरे
भैया की रक्षा करना।
भैया सकुशल वापस आये और अस्पताल का हाल बताया-
अरे यार सांप ने मुझे काटा और यह सुनते ही डाक्टरों के हाथ-पांव फूल गये। मैं
डांटता नहीं तो शायद वे हिम्मत ही नहीं कर पाते।
जब वे वापस आये उन्हें काटनेवाला सांप स्पेसिमेन
बन कर जार में स्थापित हो अपनी जान गंवा चुका था।
यहां एक बार और बताता चलूं कि कालेज में मेरे
अभिभावक थे भैया अमरनाथ जी। अब जब मेरे अपने सभी अभिभावक नहीं रहे तो गांव में
अपना अभिभावक कहा जानेवाला कोई रह गया है तो सिर्फ और सिर्फ भैया अमरनाथ। (क्रमश:)
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