साहित्य, समसामयिक, सामाजिक सरोकार
आत्मकथा- 73
सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। जनसत्ता दिनोंदिन लोकप्रियता की ऊंचाइयां चढ़ रहा था। समाचार पत्र को बढ़ते और पाठकों में अपनी गहरी पैठ बैठाते देख हम सब बहुत उत्साहित और प्रसन्न थे। पाठकों के मध्य दिनोंदिन बढ़ती इसकी स्वीकारता से भी हम सब खुश थे। लेकिन कहते हैं ना कि सदा दिन जात ना एक समान। एक दिन संकट आ ही गया। संकट आया क्या यह समझिए कि लाया गया। हमारे कुछ साथी जानबूझ कर नाइट ड्यूटी करा लेते थे। काम खत्म हो जाने पर भी वे कंप्यूटर से चिपके रहते थे। एक दिन सभी कंप्यूटरों में वायरस अटैक हो गया। फाइनल पेज बन गये थे लेकिन वायरस अटैक के कारण वे भी गायब हो गये थे। अखबार नगर से दूर सबर्ब के एक प्रेस में छपता था वहां पेजेज भेजने का टाइम गुजरने वाला था।
सिस्टम इंजीनियर से मैने पूछा –वायरस अटैक हुआ कैसे, क्या बाहर से आयी कोई सीडी चलायी गयी। इस पर इंजीनियर ने जो बात बतायी उससे मैं चौंक गया। इंजीनियर ने बताया कि वायरस अटैक किसी सीडी के चलाने से नहीं बल्कि अश्लील पोर्न साईट्स से हुआ मैंने जानना चाहा कि यह पोर्न साइट्स कौन और क्य़ों खोलता है। इसे तो लेटेस्ट खबरे देखने के लिए उपलब्ध कराया गया है।
इंजीनियर ने बताया-दादा बुरा मत मानिएगा, आपके कुछ साथी केवल इसलिए रात ड्यूटी करते हैं ताकि वे ड्यूटी खत्म होने के बाद गंदी साइट्स देख सकें। यहां यह बताते चलें कि ऐसी साइट्स ना सिर्फ मानस को दूषित करती हैं अपितु लत भी लगा देती हैं। ऐसी साइट्स के चलते विदेशों में बच्चे तक बरबाद हो रहे हैं जिसे लेकर माता पिता परेशान हैं। उन्हें इस दुर्गुण से बचाने के लिए उनको अपने बच्चों पर निगरानी रखनी पड़ती है और ऐसी साइट्स ब्लाक करनेवाले साफ्टवेयर्स का सहारा लेना पडता है।विदेश में पोर्न साइट्स और पोर्न फिल्मों का अच्छा खासा व्यापार है।
मुझे पता था कि क्वार्क एक्सप्रेस जिसमें पेज बनाये जाते थे उसमें एक फोल्डर ऐसा होता है जहां डुप्लीकेट पेजेज सेव होते हैं। खोजने पर वहीं सारे पेज मिल गये। इसके बाद उन पेजेज की प्लेट बना कर छपने के लिए प्रेस भेजा गया। उसी दिन दिन इंजीनियर से मैंने कहा कि ऐसा करते हैं कि कोई साफ्टवेयर इंस्टाल कर दिया जाये जो गंदी पोर्न साइट्स को ब्लाक कर सके। इंजीनियर ने खोज कर वह साफ्टवेयर इंस्टाल कर दिया। वह साफ्टवेयर काम करता है या नहीं यह भी चेक कर लिया गया। पोर्न वेबसाइट्स का ऐड्रस सर्च बार पर डालने ,से वह उस साइट्स को नहीं खोलता था। जब यह प्रयोग सफल रहा तो मैंने इंजीनियर से कहा कि जो लोग ऐसी साइट्स के लिए रात डयूटी करते थे वे वैसी साइट्स ना खुलने पर आप से शिकायत कर सकते हैं कि कुछ साइट्स नहीं खुलतीं। आप तुरत उनको समाचार से जुड़ी सारी साइट्स खोल कर दिखा देना और कहना सारी न्यूज साइटस तो खुल रही हैं।
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जनसत्ता के साथ रविवार को मुफ्त दी जानेवाली पत्रिका सबरंग में मैं कुछ ना कुछ लिखता रहता था। इसमें ज्यादातर फिल्मों से संबंधित लेख होते थे। कभी कभी तो फिल्म के विषय को लेकर कवर स्टोरी भी होती थीं। पाठकों के बीच सबरंग पत्रिका बहुत लोकप्रिय थी। रविवारी जनसत्ता के साथ रविवारीय परिशिष्ठ के साथ एक पत्रिका सबरंग मिलना बंगाल के पाठकों के लिए नयी बात थी।
स्टूडियो कवरेज और फिल्मों से जुड़े सभी पक्षों का कवरेज मैं निरंतर करता रहा। कभी सोचा ना था कि कभी इस काम के लिए मुझे सम्मान भी मिल सकता है। ऐसा अवसर आया मुझे श्रेष्ठ फिल्म पत्रकार के रूप में नगर की एक सांस्कृतिक संस्था कलाकार एवार्ड ने सम्मानित करने का निर्णय लिया। मेरे साथ बांग्ला दैनिक वर्तमान के पत्रकार सुमन गुप्त को भी सम्मानित करने की घोषणा की गयी। पत्रकारिता करते हुए कई वर्ष बीत जाने के बाद मुझे मिलने वाला पहला सम्मान था।
तय दिन को महानगर के एक प्रसिद्ध सभागार में सम्मान समारोह आयोजित किया गया। पत्रकारों को सम्मानित करने के लिए संस्था ने मुंबई से जाने माने फिल्म निर्माता शक्ति सामंत को बुलाया था। जो नहीं जानते उन्हें बता दें कि शक्ति दा ने कई फिल्में बनायी थीं जिनमें उनकी मशहूर फिल्म ‘आराधना’ भी शामिल है। खचाखच भरे बिड़ला सभागार में जब मंच से मेरा नाम पुकारा गया-जनसत्ता के श्री राजेश त्रिपाठी कृपया मंच पर आये। इस घोषणा से मन पुलकित हो गया। मुझे पहली बार एक बड़े समारोह में सम्मानित किया जा रहा था। मैं मंच पर पहुंचा शक्ति दा को नमस्कार किया। कार्यक्रम के एनाउंसर शकील अंसारी ने कहा-अब शक्ति सामंत जी जनसत्ता के पत्रकार श्री राजेश त्रिपाठी को श्रेष्ठ फिल्म पत्रकार के रुप में सम्मानित करेंगे। शक्ति दा आगे बढ़े और मेरे हाथों में सम्मान की ट्राफी थमा दी। मेरे गले में एक उत्तरीय पहना दिया गया। मैं मुड़ कर मंच से नीचे उतरने को ही था कि मेरे उत्तरीय का एक कोना वहां फूलों का गुलदस्ता लिए खड़ी एक लड़की के गुलदस्ते में फंस गया। अपनी हाजिरजवाबी के लिए प्रसिद्ध शकील अंसारी की नजरों से यह दृश्य छिप नहीं सका। वे बोले – हम आपको ऐसे नहीं जाने देंगे। हम आपसे कुछ सुनना चाहते है। मुझसे जो बन पड़ा वह बोला। अपने वक्तव्य में मैं यह बोला कि कभी मैं ऐसे सम्मान समारोहों का अरसे से कवरेज करता रहा और सोचता था कि मंच के सामने तो अक्सर स्वयं को पाता रहा, दूसरों को सम्मानित होते देखता और उनकी खबर बनाता रहा। सोचता था कि क्या कभी ऐसा भी दिन आयेगा जब मैं स्वयं को भी सम्मानित होते देखूंगा। मुझे अच्छी तरह याद है जनसत्ता के लिए इस समारोह से संबंधित समाचार बनाते हुए जनसत्ता में हमारे साथी जयनारायण प्रसाद ने मेरे वक्तव्य के उसी अंश को उद्धृत किया था। अपने जीवन का पहला सम्मान पाकर में बहुत खुश था। (क्रमश:)
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