Thursday, July 29, 2010

राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर अय्यर-कालमाड़ी आमने-सामने

महंगाई से जूझते देश में करोड़ों का तमाशा


-राजेश त्रिपाठी

पिछले कुछ अरसे से हमारे देश के कुछ मंत्री उत्साह में आकर या अपनी अलग सोच के चलते ऐसा कुछ कर या कह जाते हैं कि जिससे न सिर्फ उस सरकार की किरकिरी होती है जिसमें वे हैं अपितु वे खुद भी सवालों ले घिर जाते हैं। उनकी अपनी पार्टी के लोग उन्हें सवालों के कठघरे में ला खड़ा करते हैं। हाल फिलहाल यह स्थिति राज्यसभा सांसद मणि शंकर अय्यर की है जिन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों के विरोध में बयान क्या दिया, इन खेलों की आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी को अपना दुश्मन बना लिया। कलमाड़ी और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के लिए राष्ट्रमंडल खेल सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक बड़े आयोजन को सुचारु रूप से करा लेने का सुख या तमगा अपने सिर बांधने की होड़ का नाम है। गरीब और भूखे देश में 12 दिन के आयोजन के लिए हजारों करोड़ रुपये स्वाहा करने की इस ललक पर अय्यर ने सवाल उठा दिया है। ऐसा वे पहले भी कह चुके हैं कि भारत जैसे गरीब देश में इस तरह के आयोजनों का कोई औचित्य नहीं है।

वाकई अय्यर साहब के तर्क में दम है। हम जो बड़ा आयोजन करने जा रहे हैं उसमें फूंके तो करोड़ों जा रहे हैं लेकिन इससे देश को क्या हासिल होगा? सोने-चांदी के पदक तो विदेशी झटक ले जायेंगे, हमारे पल्ले क्या पड़ेगे कुछ रजत और कांस्य पदक। अब तक के देश-विदेश के कई बड़े खेल आयोजन गवाह हैं कि कहीं भी भारतीय खिलाड़ियों को वैसी कामयाबी नहीं मिली जैसी ओलंपिक वगैरह में हमसे छोटे देशों के खिलाड़ी पा जाते हैं। सिर्फ अभिनव बिंद्रा, राठौर, सुशील कुमार जैसे चंद गिने हुए कामयाब नामों का मतलब एक पूरा देश नहीं होता। इसमें दोष खिलाड़ियों का नहीं हमारे यहां उन्हें खेल के उचित साधन उपलब्ध न होने पाने का है जिसकी शिकायत कम से कम विदेशी खिलाड़ियों के मुंह से तो नहीं ही सुनने को मिलती। अभी ज्यादा अरसा नहीं बीता जब हमारे यहां के निशानेबाजों ने कहा था कि उनको अभ्यास के लिए गोलियां तक मुहैया नहीं करायी गयीं। ऐसे में आप अपने खिलाड़ियों से राष्ट्रमंडल खेलों में बड़ी कामयाबी हासिल करने का सपना पाले बैठे हैं? धन्य हैं भारत और उसके ये दिवास्वप्न देखने वाले नेता।

मणिशंकर अय्यर ने राष्ट्रमंडल खेलों में पैसे की बर्बादी और इसके निर्माण कार्य में होने वाली देरी पर नाखुशी जताते हुए कहा है कि इस खेल की रक्षा अब शैतान ही कर सकता है। कांग्रेस ने अय्यर के इस बयान को उनकी अपनी व्यक्तिगत राय बता कर पल्ला झाड़ लिया लेकिन सुरेश कलमाड़ी तो जैसे एकदम से उखड़ गये। उन्होंने तो अय्यर के बयान को राष्ट्रविरोधी तक कह डाला। वैसे अगर देखा जाये तो राष्ट्रमंडल खेलों के निर्माण की गति पहले से ही लचर और ढीली थी जिस पर खुद राष्ट्रमंडल खेलों के ब्रिटिश अधिकारी भी भारत आकर अपना असंतोष जता गये थे। उन दिनों भी कलमाड़ी को उनकी टिप्पणी अखर गयी थी और अधिकारियों और कलमाड़ी के बीच उभरे तनाव को खत्म करने के लिए बड़े नेताओं तक को बीच में आना पड़ा था। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में अब 64 दिन भी नहीं बचे। दिल्ली में 3 से 14 अक्तूबर तक ये खेल होने हैं। स्थिति यह है कि अभी तक बहुत सा निर्माण कार्य बाकी है। यहां तक स्थिति आ गयी है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को निर्माण कार्य में लगे ठेकेदारों को डराना पड़ रहा है कि अगर वे 31 अगस्त 2010 तक अपना काम पूरा नहीं करते तो उन पर जुरमाना तो लगेगा ही साथ ही उनका नाम काली सूची में लिख लिया जायेगा। इन खेलों में 70 देशों के खिलाड़ियों को ही हिस्सा लेना है और इसी में हम पस्त हुए जा रहे हैं और हमारे यहां कुछ लोग ओलंपिक जैसे आयोजनों का सपना भी देख रहे हैं। ऐसे बड़े आयोजनों को सफलता पूर्वक करा लेने वाले देश इसके लिए वर्षों पूर्व से तैयारियां करना शुरू आयोजक सरकार से 720 करोड़ रुपये और मांग रहे हैं। सरकार को उम्मीद है कि इन खेलों के दौरान दिल्ली में लगभग 1 लाख पर्यटक आयेंगे। अब इन लोगों को कमरे कम पड़ेंगे क्योंकि कुळ 35 होटल इस मकसद से तैयार होने थे जिनमें से सिर्फ 13 ही तैयार होने की स्थिति में हैं। इन 13 होटलों में सिर्फ 2500 कमरे ही उपलब्ध हो पायेंगे।

जिन राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हम इतना इतरा रहे हैं उसमें कई स्टार खिलाड़ियों ने भाग लेने से मना कर दिया है। कई देश सुरक्षा कारणों से दिल्ली के इन खेलों में हिस्सा लेने से कतरा रहे हैं और इन खेलों में हिस्सेदारी के प्रति अपनी अनिच्छा जता चुके हैं। वैसे भी इन खेलों पर लश्कर के हमले का खौफ मंडरा ही रहा है। ऐसे में आतंक के साये में हो रहा यह आयोजन कितना सफल होता है यह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा। वैसे यह हमारे देश का एक बड़ा आयोजन है , एक देशवासी के रूप में हम इसकी कामयाबी की ही प्रार्थना करेंगे वैसे इस तरह के आयोजनों का लाभ आमजन तक न कभी पहुंचा है , न इस बार पहुंचेगा। चंद होटल वालों की चांदी कटेगी। कुछ ठेकेदारों और बिचौलियों की पौबारह होगी और देश के हिस्से दो-एक सोने चांदी के पदक और ढेर सारे कांस्य पदक आ जायेंगे। अगर लोहे का पदक होता तो संभव है उसे पाने में हमारा देश अव्वल रहता। जहां न खिलाड़ियों के लिए अच्छी सुविधाएं हों न उनके प्रशिक्षण की समुचित व्यवस्था वहां उनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद करना भी उन पर ज्यादती ही है। आप अच्छी सुविधाएं दीजिए फिर देखिएगा सबके आगे होंगे हिंदुस्तानी। हम उस दिन का सपना बुन रहे हैं और राष्ट्रमंडल खेलों की रक्षा भगवान ही करें, शैतान ही नहीं यही कामना कर रहे हैं। आप भी यही कीजिए आखिर देश के भले की सोचना हर एक का कर्तव्य है।

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