Thursday, August 12, 2010

किसी देश में क्या ऐसी भी आजादी होती है!


-राजेश त्रिपाठी

हजारों लाखों बलिदानी शहीदों की कुरबानियों ने हमें परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कर स्वच्छंद वातावरण में सांस लेने की आजादी दी। बरसों की गुलामी के बाद हमने आजादी पायी। हमारी वाणी आजाद हुई, हमारे विचारों पर से संगीनों के पहरे हट गये। वंदे मातरम् कहने पर हम गर्व महसूस करने लगे और फिरंगी जुल्म का साया हमारी जिंदगी से हट गया। हम आजाद हुए तो देश भी बौद्धिक और आर्थिक विकास की दिशा में आगे बढ़ा। शुरू-शुरू में देश के कर्णधारों ने परतंत्रता की बेड़ियों से बरसों जकड़े रहे जनमानस में सुरक्षा और आत्मविश्वास के भाव जगाये। देश को अपने ढंग से संवारने और विकसित करने में उन्होंने पूरा ध्यान लगाया लेकिन आजादी अपने साथ एक बुराई भी लेती आयी। धीरे-धीरे शासक वर्ग और दूसरे लोगों ने आजादी का अर्थ कुछ और ही लगा लिया। सत्ता से जुड़े कुछ लोग निरंकुश हो गये और स्वजन पोषण और भ्रष्टाचार में लिप्त हो गये। इससे दूसरे वर्ग को भी भ्रष्टाचार में लिप्त होने का प्रोत्साहन मिला। आज कुछ अपवादों को छोड़ दें तो सत्ता में हो या दूसरे क्षेत्र में निचले स्तर से लेकर शीर्ष तक भ्रष्टाचार व्याप्त है। सच कहें तो भ्रष्टाचार शीर्ष से ही निचले स्तर तक आता है। निचले स्तर के कर्मचारी तभी भ्रष्टाचार में लिप्त होने का साहस जुटा पाते हैं जब वे अपने से बड़ो को ऐसा करते देखते हैं। आज आप का कहीं भी किसी मुहकमे में काम पड़े, आप पायेंगे कि आपकी फाइल इतनी भारी हो गयी है कि वह बिना पत्रम्-पुष्पम् डाले आगे बढ़ ही नहीं पाती। हम यह नहीं कहते कि सारे अधिकारी या शासक भ्रष्ट हैं लेकिन कुछ तो हैं जो भ्रष्टाचार के पंक में आकंठ डूबे हैं। जो भ्रष्ट नहीं हैं उनका इन लोगों के बीच रहना मुश्किल हो जाता है। उन्हें या तो उनके रंग में रंगना पड़ता है या फिर खामोशी से अनीति को पनपते देखना पड़ता है। हमें इस भ्रष्टाचार अनाचार की आजादी जरूर मिल गयी है। स्थिति यहां तक पहुंची कि सरकारी स्तर के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लोकायुक्त तक की नियुक्ति करनी पड़ी। वक्त गवाह है कि लोकायुक्त ने सरकार के कई भ्रष्ट अधिकारियों की कलई खोली और उनका सच उजागर हो गया। ये वे मामले हैं जो सामने आये ऐसा न जाने भ्रष्टाचार के और कितने मामले हैं जो दब गये या इरादतन दबा दिये गये। आजादी के बाद हमने यह प्रगति जरूर की है कि राष्ट्रीय संपत्ति और आम आदमी की संपत्ति की जम कर लूट हो रही है। अंग्रेजों के शासन काल में ऐसे भ्रष्टार की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। उन दिनों इतना कड़ा शासन था कि कोई भ्र्ष्टाचार करने की सोच भी नहीं सकता था। आज तो प्रशासन के ऊंचे स्तर को साध लो फिर जो चाहे करो। हम यह लिखते वक्त यह अवश्य जोड़ेंगे कि आज भी ईमानदार अधिकारियों की कमी नहीं लेकिन वे कितने हैं और उनकी कितनी चलती है यह किसी से छिपा नहीं। ऐसे में आम आदमी और उस आदमी का भगवान ही मालिक है जिसकी पहुंच किसी असरदार व्यक्ति नहीं है।

ऐसा नहीं कि भारत में भ्रष्टाचार नया है इसकी फसल तो आजादी मिलने के कुछ अरसे बाद ही उग आयी थी। 1937 में कांग्रेस के कुछ भ्रष्ट मंत्रियों को देख महात्मा गांधी इतना दुखी हुए थे कि 1939 के एक बयान में उन्होंने यहां तक कह डाला था कि-‘मैं कांग्रेस में भ्रष्टाचार को सहने के बजाय इस दल को सम्मान के सहित दफना देना ज्यादा पसंद करूगा।’ उन दिनों गांधी जी की पूरी तरह से उपेक्षा की गयी और उन दिनों भ्रष्टाचार का जो बीज बोया गया आज वह विशाल वटवृक्ष का रूप ले चुका है और उसकी शाखा-प्रशाखाएं दिन पर दिन पूरे देश को अपनी गिरफ्त में लेती जा रही हैं। करोड़ो अरबों के घोटाले के मामले जब इस देश में सुनने में आते हैं तो लगता है जैसे किसी ने देश की गरीब जनता के मुंह पर तमाचा जड़ दिया है, उसकी अस्मिता पर चोट की है, उसके हिस्से की रोटी छीन ली है। यह है हमारे देश में आजादी के मायने।

कई सर्वेक्षणों तक से यह बात सामने आयी है कि भारत में राजनीतिक भ्रष्टाचार सीमाएं लांघ चुका है। कई राज्यों में सत्ता के शीर्ष तक में रहे नेताओं पर सीबीआई के मामले चल रहे हैं। यहां घोटाला, वहां हवाला देश की आज यही तसवीर बन कर रह गयी है। ऐसे में यह सवाल तो वाजिब है कि –आजादी यह कैसी आजादी!

हमें आजाद हुए बरसों हो गये लेकिन देश में आज भी किसान गरीबी और कर्ज के मार से आत्महत्या कर रहे हैं। कई जगह भुखमरी से बेहाल माताएं दिल पर पत्थर रख अपनी संतानों को बेचने को मजबूर हो रही हैं। जाहिर है कि यह किसी भी देश के लिए गर्व की बात तो नहीं हो सकती। हमारे यहां गरीबी का यह हाल है कि हमारे बिहार, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और झारखंड को लेकर 8 राज्यों में इतनी गरीबी है जितनी अफ्रीकी देशों में भी नहीं है। आक्सफोर्ड पावर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इंशिएटिव के मल्टीडाइमेन्शनल पावर्टी इंडेक्स (एमपीआई) से किये सर्वे से यह साफ हुआ है कि बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, ओड़ीशा, राजस्थान , उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की अधिकांश जनता गरीब है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या घटने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। हम गर्व कर सकते हैं कि हमारे यहां रईसों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है (अगर यह गर्व करने लायक बात हो एक गरीब देश में तो) और गरीब और भी गरीब होते जा रहे हैं। सरकारी बैंकों और निजी बैंकों से ऋण दिये जाने की चाहे जितनी भी बात की जाती हो लेकिन किसान और गरीब आज भी महाजनों से दुगने-तिगुने ब्याज दर पर कर्ज लेने को मजबूर हैं और कर्ज न चुका पाने पर उन्हें आत्महत्या तक करनी पड़ती है। इन लोगों को आजादी ने क्या दिया। हमें गर्व है कि दुनिया के रईसों में हमारे देश के भी लोगों के नाम फोर्ब्स पत्रिका में आते हैं लेकिन आजादी के सच्चे मायने और गर्व तो तब करना उचित होगा जब यह खबर आये कि भारत से गरीबी मिट गयी, समता आ गयी। जो आज के इस भ्रष्ट तंत्र (कोई भी दल सत्ता में हो किसी एक दल की बात नहीं) में दिवास्वप्न के समान है। आजादी के इतने बरसों बाद देश का हासिल यही है कि गरीब आज भी रोटी-रोटी को मुंहताज है और अमीरों की आबादी बढ़ती जाती है। आज जो लखपति है उसे अरबपति बनने में देर नहीं लगती लेकिन विकास के सारे नारे, सभी दावे गरीब की दहलीज तक जाकर ठहर जाते हैं। उसकी तकदीर नहीं बदलती।

हमने प्रगति की है। कहते हैं पहले हम सुई तक विदेश से मंगाते थे आज विमान भी बनाने लगे हैं। आणविक शक्ति बन गये हैं लेकिन जो प्रगति, जो विकास सीमांत किसानों या देश के गरीब का हित न करता हो वह बेमानी है। आप गांवों में जाइए वहां आज भी सामान्य स्वास्थ्य सुविधाएं, पीने का पानी तक नहीं है। बिजली भले ही शहरों में बाबुओं के घरों को ठंडा रखती हों लेकिन बिहार, उत्तर प्रदेश व ऐसे ही अन्य कई राज्यों के लोगों से पूछिए कि बिजली का कितना सुख वे भोग पाते हैं। वहां दिन में मुश्किल से तीन-चार घंटे को बिजली आती है ऐसे में न तो कृषि कार्य में इसका उपयोग हो पाता है और न ही कल-कारखाने ही सुचारू रूप से चल पाते हैं। गरमी के दिनों में इन प्रदेशों के लोगों की बेचैनी वही जान सकता है जिसने वह दुख उनके साथ भोगा हो दिल्ली में बैठे वे शासक या अधिकारी नहीं जिन्हें 24 घंटे एयरकंडीशंड माहौल में रहने की आदत पड़ गयी है। वाकई व्यवस्था यह होनी चाहिए कि ये लोग भी जनता का दुख जानने के लिए कभी उनकी स स्थितियों को जीयें ताकि इन्हें पता चल सके कि देश की कितने प्रतिशत जनता खुशहाल है। अक्सर होता यह है कि गरीबों का हाल या तो सत्ता तक पहुंचता नहीं या फिर अधिकारी अपने आकाओं को खुश करने के लिए गलत आंकड़े देकर विकास का ऐसा नक्शा खींच देते हैं कि देश खुशहाल और तरक्की करता नजर आता है।हम फिर यह कहेंगे कि सभी अधिकारी और शासक ऐसे नहीं लेकिन क्या करें यह हमारा दुर्भाग्य है कि देश में कहीं तो कुछ गड़बड़ है वरना आज महंगाई सिर चढ़ कर नहीं बोल रही होती। जो चीजें आयात होती हैं उनकी कीमतें बढ़ना तो लाजिमी है लेकिन देश में उत्पादित या पैदा होने वाली वस्तुओं की कीमतों का आकाश छूना अजीब ही नहीं बेमानी लगता है।

स्वाधीनता दिवस के पावन पर्व में हम अपनी वीर शहीदों को नमन करते हैं और उनकी शहादत के उस जज्बे को सलाम करते हैं जिसके चलते आजादी के लिए उन्होंने अपनी कुरबानी दी। हमें दुख है कि जिस भारत का सपना उन्होंने देखा था वह पूरा नहीं हो सका और देश न जाने किस राह में भटक गया। हम यह नहीं कहते कि सब कुछ अशुभ ही अशुभ है शुभता देश में झलक रही है। हम प्रगति कर रहे हैं लेकिन सच यह भी है कि हमें देश और देश के बाहर भी न जाने कितने-कितने दुश्मनों से लोहा लेना पड़ रहा है। हम चाहते हैं कि देश में आजादी को सच्चे अर्थों में लिया जाये जिसका अर्थ हो देश के गरीब से गरीब तबके तक विकास का लाभ पहुंचाना। उस तक सत्ता की सीधी पहुंच और सही तौर से उसकी उन्नति के प्रयास। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक स्थिति बड़ी दयनीय होगी और जाने-माने मशहूर संवाद लेखक स्वर्गीय ब्रजेद्र गौड़ की कविता की ये पंक्तियां हमें और हमारे शासकों को धिक्कारती रहेंगी-‘साम्यवाद के जीवित शव पर मानवता रोती है, किसी देश में क्या ऐसी ही आजादी होती है।’उम्मीद पर दुनिया कायम है और हमें भी इंतजार है जब देश का हर नागरिक खुशहाल होगा, किसान आत्महत्या को मजबूर नहीं होंगे, आतंकवाद से तेश मुक्त होगा, सबमें भाईचारा होगा और देश सभी को प्यारा होगा। हमें इंतजार है-वह सुबह कभी तो आयेगी। आप भी यही कामना कीजिए। जय जवान, जय किसान, जय हिंदुस्तान।


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