Wednesday, January 12, 2011



Sunday, December 12, 2010

एक राजा का 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला कांग्रेस की नाक में दम किये ही हुए था कि एक दूसरे राजा ने उसकी मुसीबत और बढ़ा दी। ये हैं दिग्गी राजा के नाम से पहचाने जाने वाले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह। दिग्गी राजा’ ने हाल ही एक बयान देकर न सिर्फ अपने दल कांग्रेस को विवादों के एक और दलदल में धकेल दिया है, बल्कि यह कहें कि देश को ही एक अजीब उलझन और मुश्किल में ला खड़ा किया है। 26-11-2008 का मुंबई हमला शायद अब तक का देश पर हुआ सबसे बड़ा आतंकवादी हमला है, जिसमें पड़ोसी देश पाकिस्तान का हाथ ही नहीं पूरा शरीर और दिमाग होने की बात साबित हो चुकी है। उसके नागरिकों के शामिल होने के पक्के सबूत तक मिल गये हैं। आगे पढें---


देश जब आजादी से सिर्फ तीन कदम दूर था,पश्चिम बंगाल का कलकत्ता महानगर मानवता से कोसों दूर जा चुका था। हिंदू-मुसलिम दंगों का दावानल नगर के कोने-कोने को भस्म कर रहा था और हर तरफ हो रहा था मानवता का हनन। यह 1947के अगस्त महीने की बात है। देश के इस पूर्वी भाग को अंधी हिंसा ने अपनी गिरफ्त में ले लिया था। मानवता को इस कदर वहशी होते देख अंतर तक विचलित हो गये थे शांति के हिमायती, अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधीआगे पढ़ें....


वर्षों से कराहते, उपेक्षा का शिकार बने और दूसरों के उकसावे में हिंसा से उबलते कश्मीर की कराह देर से ही सही केंद्र ने सुनी तो। केंद्र का कश्मीर के घावों पर मरहम लगाने और उसे मदद देने की घोषणा सराहनीय है। देश की राजनीति का एक शुभ संकेत है कि धुर वामपंथी नेता सीताराम येचुरी तक ने केंद्र की इस कदम की प्रशंसा की है। दूसरी विपक्षी पार्टियों ने भी इस सार्थक पहली को सराहा है। काश यह प्रयास कुछ पहले हो जाते तो शायद बहुत सी अमूल्य जिंदगियां कश्मीर में चल रहे आंदोलन का शिकार होने से बच जातीं। आगे पढ़ें--

हिंदी की अपने ही घर में दुर्दशा पर चिंता जाहिर करने के पहले एक घटना का जिक्र करना जरूरी समझता हूं जो हिंदी दिवस नामक रस्मअदायगी या प्रहसन को तार-तार करने के लिए काफी है। घटना एक अखबार के कार्यालय की है जहां किसी विद्यालय की एक युवती आती है और संपादक से कहती है-‘हम हिंदी डे सिलबरेट कर रहे हैं,सर आप जरूर आइएगा।’ अब सर हक्का-बक्का शायद उन्होंने कभी अपनी जिंदगी में हिंदी का हैप्पी बर्थडे तो नहीं मनाया होगा। आगे पढ़ें....

                                     मरने को अभिशप्त है भारत का हर नत्था
फिल्म ‘पीपली लाइव’ का ‘नत्था’ भले ही न मरता हो और उसकी मौत का इंतजार करते मीडिया को भले ही निराशा हुई हो लेकिन हकीकत कुछ और ही है। फिल्में अक्सर सुखांत होती हैं,इनमें करो़ड़ों रुपया लगा होता है इसलिए ऐसा करना व्यावसायिक मजबूरी है लेकिन सच्चाई इससे परे है। भारत का हर वह ‘नत्था’ जो वर्षों से सूखे,अकाल की मार और ऋण का बोझ झेल रहा होता है, उसे एक न एक दिन मरना ही पड़ता हैआगे पढ़ें.....

पुण्य धरा भारत भूमि में भगवान ने समय-समय पर विविध अवतार ग्रहण कर सज्जनों के कष्टों का निवारण और दुर्जनों का संहार किया है। इन अवतारों में कृष्णावतार की महत्ता कहीं अधिक है क्योंकि इसमें प्रभु श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म युद्ध के लिए प्रवृत्त करने हेतु जिस गीता का गान किया,उसका दर्शन विश्व के लिए एक पाथेय बन गया। उसके आलोक में विश्व को इस बात का ज्ञान हुआ कि जीवन-धर्म क्या है, सत्य क्या है,जीवन क्या है,मृत्यु क्या है। आगे पढ़ें--->
हमारा देश कई मामले में महान है। यहां सरकार को चुननेवाली जनता का बड़ा हिस्सा फटेहाल, बदहाल और दिनोंदिन बेलगाम बढ़ती महंगाई से बेहाल है। कर्ज में डूबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। हमें शर्म और बेहद कष्ट के साथ कहना पड़ रहा है कि भुखमरी, तंगहाली आज भी देश के किसी न किसी कोने में माताओं को अपने बच्चों तक को मजबूर कर रही है। देश का अन्न भंडार सड़ रहा है और गरीब एक-एक निवाले को तरस रहे हैं। आगे पढ़ें---
 
किसी देश में क्या ऐसी भी आजादी होती है!
हजारों लाखों बलिदानी शहीदों की कुरबानियों ने हमें परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कर स्वच्छंद वातावरण में सांस लेने की आजादी दी। बरसों की गुलामी के बाद हमने आजादी पायी। हमारी वाणी आजाद हुई, हमारे विचारों पर से संगीनों के पहरे हट गये। वंदे मातरम् कहने पर हम गर्व महसूस करने लगे और फिरंगी जुल्म का साया हमारी जिंदगी से हट गया। हम आजाद हुए तो देश भी बौद्धिक और आर्थिक विकास की दिशा में आगे बढ़ा।आगे पढ़ें---


नहीं मुझे छल छद्म सुहाता,  मैं सत्पथ का राही,
वही लिखूं, जो मन को भाता, कलम का एक सिपाही।।

                                                                    भोपाल हम शर्मिंदा हैं

भोपाल गैस त्रासदी पर न्यायालय के निर्णय पर कोई टिप्पणी करने का हमें अधिकार नहीं। हम गणतंत्र देश के वासी हैं, जहां हर तरह की आजादी है लेकिन सत्ता और न्याय के सर्वोच्च पद इतने ऊंचे हैं कि वहां आम भारतीय के ये अधिकार भी बौने लगते हैं। इन पर उंगली उठाना यानी अपनी सामत बुलाना। आगे पढ़ें....

 छिन रहा है बच्चों का बचपन
एक जमाना था जब बच्चे दादी-नानी की गोद में परी कथाओं की रंगीन दुनिया में खो जाते और नींद में ही रच लेते थे सपनों का एक सुनहरा संसार। बूढ़ी दादी-नानी उन्हें कभी परी की तो कभी राक्षस के चंगुल में फंसी राजकुमारी की कहानी सुनातीं, जिसे कोई भला राजकुमार उस राक्षस के जाल से छुड़ाता, जिसकी जान किसी पिंजड़े में बंद तोते में बसी होती। आगे पढ़ें....


                                                    पत्रकारिता के नाम पर कलंक
                                          (संदर्भ ‘अंबेडकर टुडे’ पत्रिका में ईश निंदा)

कुछ मंद बुद्धि (इसे दुष्ट बुद्धि या कुंठाग्रस्त कहना ज्यादा उचित होगा) लोग आगे बढते समाज को जबरन मध्ययुगीन बर्बरता और आदिम सोच की ओर खींच ले जाना चाहते हैं। यह काम कोई अनपढ़ जाहिल आदमी करता तो समझा जाता कि उसकी अल्पबुद्धि से यह गलती हो गयी। यह काम तो पढ़े-लिखे एक जाहिल ने किया है।जिसके बौद्धिक दिवालियेपन का जायजा उसकी सोच से ही मिलता है। आगे पढ़ें....



सम्मान के लिए हत्या’ या सम्मान की हत्या?
इनसान की प्रगति के कदमों ने चांद की सतह तक को छू लिया है। अब उसकी परवाज दूसरे अजाने ग्रहों के रहस्य भेदने की ओर है लेकिन उनका अपना खूबसूरत ग्रह धरती कुरीतियों, कुसंस्कारों और रूढ़ियों से दिन ब दिन कलुषित और मलिन होता जा रहा है। 21 वीं सदी में भी हमारे देश में अब भी कई अंचल ऐसे हैं जहां जहालत का अंधेरा है और वहां लोग मध्ययुगीन बर्बरता के बीच जी रहे हैं। आगे पढ़ें....




               लो                    लो भाई, मैने चुका दिया एसपी का कर्जा
इस युग में हिंदी पत्रकारिता को एक सार्थक आयाम देने और उसे तथ्यपरक, सशक्त और बोधगम्य बनाने में सुरेंद्र प्रताप सिंह का बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे हिंदी के प्रबल हिमायती थे और कभी भी उनको यह पसंद नहीं था कि उनकी सक्षम भाषा को अंग्रेजी की बैसाखी थमायी जाये। आगे पढ़ें...


धाकड़ पत्रकार, हंसमुख इनसान और मस्तमौला थे उदयन जी

एक दिन की बात है (सन और तारीख अब याद नहीं) कलकत्ता स्थित आनंद बाजार पत्रिका के भवन में हम आनंद बाजार प्रकाशन समूह के चर्चित हिंदी साप्ताहिक `रविवार' के कार्यालय में कार्य कर रहे थे कि तभी हमारे संपादक सुरेंद्र प्रताप सिंह (एसपी के नाम से परिचितों में जो ख्यात थे) एक हट्टे-कट्टे औसत कद के व्यक्ति के साथ कार्यालय में दाखिल हुए। आगे पढ़ें....


                                                                                 कहानी /  वसीयत

रीना, शीलू, पंपा और चंपा के सिर पर प्रेम से हाथ फेरते हुए काली बाबू कहते, ' छक कर खाओ मां, संकोच मत करो। अरे, शीलू तू आज ठीक से क्यों नहीं खा रही ? देख, तेरी तीनों बहनें कैसा स्वाद लेकर खा रही हैं। ठीक से नहीं खायेगी तो दुबली हो जायेगी। अरे, रीना बेटी, चंपा बेटी को पंजा क्यों मार रही है?उसने क्या बिगाड़ा है तेरा? जाने क्यों तू अकसर उससे लड़ती रहती है। आगे पढ़ें...

 आपने भी ईश्वर को देखा है!
अपने जीवन में इस यक्ष प्रश्न का सामना हर व्यक्ति को करना पड़ा है कि क्या वाकई ईश्वर हैं ? ब्रह्मज्ञानियों ने परम तत्व या परमात्मा अर्थात ईश्वर का विवेचन विविध भांति से किया है। कुछ के लिए वह अजन्मा, निराकार स्वरूप है तो कुछ के लिए साकार और मानव की भांति जन्म लेने और मृत्यु को प्राप्त करने वाला। आगे पढ़ें...
 

                                                     घुट रहा है गंगा का दम
पुण्य सलिला सुरसरी, पतितपावनी, जगउद्धारिणी गंगा जिसका हर भारतवासी से जन्म से लेकर मरण तक का अटूट नाता है। जिसे श्रद्धा से गंगा मैया कह कर बुलाते हैं और जो जाने कितनी संस्कृतियों की साक्षी और इतिहास की गवाह है। जिसके तट पर संस्कृतियां जन्मी, जिसने सदियों से जमाने का हर दर्द सहा फिर भी लोगों में बांटती रही अमृत। आगे पढ़ें...

                                                 
                                       कृपया भाषा से खिलवाड़ तो मत कीजिए!

इन दिनों कुछ तो हिंदी में बुरी तरह से घुसपैठ कर रही अंग्रेजियत और कुछ भाषा के अज्ञान के चलते बड़ा अनर्थ हो रहा है। हमारी वह भाषा जो एक तरह से हमारी मां है, हमारी अभिव्यक्ति का जरिया है और जिसकी बांह थाम हम अपनी जीविका चलाते हैं आज उसका जाने-अनजाने घोर निरादर और पमान हो रहा है। आगे पढ़ें...


हिंदी को सालाना सरकारी श्राद्ध की नहीं, श्रद्धा की जरूरत
भाषा न सिर्फ अभिव्यक्ति का साधन अपितु किसी देश, किसी वर्ग का गौरव होती है। यही वह माध्यम है जिससे किसी से संपर्क साधा जा सकता है या किसी तक अपने विचारों को पहुंचाया जा सकता है। भारतवर्ष की प्रमुख भाषा हिंदी तो जैसे इस देश की पहचान ही बन गयी है। आगे पढ़ें...

                                                         कहां गये वे गांव

गांव यानी भारत की आत्मा। न जाने कितनी खट्टी-मीठी यादों से जोड़ देता है हमें यह शब्द। यादें खिले कमलों औल पुरइन पात से भरे तालाब की। यादें आम के बोझ से झुकी अमराइयों और कोयल की मीठी कूक की। कजरी का त्योहार, जंगल में आग की लपटों का एहसास देते टेसू (पलाश ) के फूल, होली का हुड़दंग और हुलास, मस्ती, फाग। चैत में महुआ वन की मादक महक।फूली सरसों के खेत, दीवाली , तीज-त्यौहार और भी न जाने कितनी उजली यादें। आगे पढ़ें...


                                     
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