राजनीतिक अहं से बड़ी है अन्ना की जान
सर्वोच्च सांसद से एक नागरिक की विनम्र अपील
अन्ना का अनशन मंगलवार को आठवें दिन में पहुंच गया है। अब उनका स्वास्थ्य भी तेजी से गिरने लगा है कि बिना अन्न के अन्ना का शरीर कब तक उनका साथ देगा भला। अब शरीर में इंसुलिन घट रही है, रक्त में केटोन बढ़ रहे हैं। यह स्थिति ज्यादा दिन तक रही तो इसका असर उनके शरीर के महत्वपूर्ण अंगों लीवर, हृदय और दिमाग में भी पड़ सकता है। अगले 48 घंटे अन्ना के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होंगे। जहां तक अन्ना के सत्याग्रह का सवाल है वह सुशृंखल, अहिंसक और व्यवस्थित है जो बहुत ही सुखद है और यही इस आंदोलन की शक्ति है। यह आंदोलन देश से विदेश तक फैल चुका है और दुनिया भर से अन्ना के इस भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को समर्थन मिल रहा है। ह्यूस्टन हो या न्यूयार्क या फिर दुबई हर जगह लोग अन्ना के समर्थन में सड़कों पर उतर कर भ्रष्टाचार के विरोध और अन्ना के समर्थन में नारे लगा रहे हैं। बच्चे हों या बूढ़े सब इस आंदोलन शामिल हो गये हैं। दिल्ली, मुंबई में 1-1 लाख लोग तक जुट चुके हैं, जुट रहे हैं। बुद्धिजीवी, कलाकार, समाज के वरिष्ठ लोग. सरकारी कर्मचारी, वकील, आईआईटी के छात्र तक इससे जुड़ चुके हैं। आज देश का कोना-कोना अन्नामय बन गया है। हर आदमी के दिल में एक अन्ना उभर चुका है। एक तरह से जिस तरह से केंद्र सरकारी की नामसमझी और उसके कुछ ज्यादा ही प्रखर बुद्धि सलाहकारों ने इस समस्या को जटिल कर दिया है, वह देश और वर्तमान सरकार के लिए भी बहुत-बहुत खतरनाक है। आज सरकार तलवार की धार में खड़ी है जहां से संतुलन बिगड़ा तो उसे जाना भी पड़ सकता है।
अन्ना की आस्था, अपने आंदोलन से उनके लगाव और निष्ठा को कम करके आंकने की गलती कर सरकार अपनी भद पिटवा चुकी है। अब भलाई इसी में है कि वह जल्द से जल्द इसे जैसे भी हो सुलझाये। इसके लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह या कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी आगे आयें और बात बिगड़ने से पहले इस स्थिति को संभाल लें तो अब तक कांग्रेस की जो किरकिरी हुई है और हो रही है उससे दल की जो क्षति हुई है उसे कम किया जा सकता है। यह वक्त का तकाजा है कि कांग्रेस अपने इस नारे को सही साबित करे कि ‘कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ’ क्योंकि आम आदमी तो आपकी सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आया है। उसे संसद पर भले ही आस्था हो, आपके सांसदों और मंत्रियों पर नहीं रही। वह देख चुका है कि कई मंत्री भ्रष्टाचार के आरोप में तिहाड़ में विराज रहे हैं जो आपके सरकार की साथ पर बट्टा लगाने के लिए काफी है। संसद आज ही दल और मत को भुला कर देश की जनता की आवाज को सम्मान दे, जन लोकपाल पेश करे उस पर बहस की प्रक्रिया शुरू करे और बिना हीला-हवाला उसे पारित करे। समझ में यह नहीं आता भ्रष्टाचार सरकार भी मिटाना चाहती है और अन्ना की भी यही मांग है तो फिर मतभेद का प्रश्न ही कहां उठता है। दरअसल सरकार लोकपाल विधेयक लाकर श्रेय तो लेना चाहती है लेकिन उनका कागज का यह बाघ न तो काट ही सकता है और न ही डरा सकता है। जिन लोगों ने भी इसका मसविदा, इसके प्रावधान देखें हैं वह जानते हैं कि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके डर से नौकरशाह, मंत्री या सरकारी अमला भ्रष्टाचार करने से डरे। अगर अन्ना एक कड़ा जन लोकपाल विधेयक चाहते हैं जो कारगर हो और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मददगार भी तो फिर सरकार को इस पर क्या आपत्ति है। हमारी संसदीय प्रणाली में निजी विधयक पेश करने की व्यवस्था है और एक सांसद जन लोकपाल को पेश कर चुके हैं, वरुण गांधी आज या कल पेश करने वाले हैं तो फिर सरकार को उस पर चर्चा करने में क्या आपत्ति है? सरकार अगर इसके प्रति गंभीर है तो फिर वह गंभीरता प्रधानमंत्री के कार्यों या बयानों में क्यों नहीं दिखती? बात-बात पर देश के कोने-कोने तक दौड़े जाने वाले राहुल गांधी आगे क्यों नहीं आते? सोनिया गांधी की अनुपस्थिति में उनका दायित्व बढ़ गया है। वे जायें और अन्ना को कोई ठोस आश्वासन दे उनका अनशन तुड़वायें और देश के लिए प्राण दांव पर लगाये इस 74 वर्षीय सेनानी को बचायें। भगवान न करे कि अगर अन्ना को कुछ हो गया तो फिर देश में भूचाल आ जायेगा। ऐसा संकेत अन्ना के साथी आनंद केजरीवाल रामलीला मैदान से दे चुके हैं। सरकार को चाहिए कि वह अपने कुछ दुराग्रहग्रस्त सलाहकारों की सलाह को परे रख गंभीरता से बिचार करे कि इस स्थिति में तत्काल क्या करना जरूरी है। मनमोहन सिंह और राहुल गांधी को अलग बैठ कर सोचना चाहिए कि क्या करना जरूरी है, सरकार बचाना है या अन्ना के प्राणों को संकट में डाले रख कर देश को अराजक स्थिति में धकेलना है जहां न तो उनकी सरकार बचेगी और न ही देश की शांति। यह न भूलें कि धीरे-धीरे जनता का धैर्य भी टूटने लगा है। सभी दलों को सांसद और सत्ता दल के मंत्रियों सांसदों का घेराव, उनके घरों पर धरना शुरू हो चुका है, जो अभी भजनों, वंदेमातरम और अन्ना के समर्थन में नारों तक सीमित है। भगवान न करे अन्ना की सेहत बिगड़ी तो पूरे देश में जो आक्रोश फैलेगा उसे थामना, संभालना मुश्किल हो जायेगा। देश के घर-घर में अन्ना-अन्ना गूंज रहा है ऐसे में कोई भी दल, कोई भी सत्ता जनशक्ति से बौनी साबित हो रही है। सांसदों, मंत्रियों की जान हलक पर अटक गयी है। यह स्थिति ज्यादा दिनों तक चली तो अनर्थ को जन्म देगी। एक सशक्त आर्थिक शक्ति के तौर पर उभरते देश के लिए यह कतई उचित या लाभदायक नहीं है।
देश के राजनीतिक दलों को भी अब यह साफ कर देना चाहिए कि वे अन्ना के समर्थन में क्या महज अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए खड़े हैं या ईमानदारी से वे भी भ्रष्टाचारमुक्त भारत चाहते हैं। अगर ऐसा है तो उन्हें संसद से सड़क तक इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करनी चाहिए। सुना यह जा रहा है कि भाजपा समेत कुछ अन्य विपक्षी दल भी पूरी तरह से अन्ना के जन लोकपाल से सहमत नहीं हैं। अब जब आप जन लोकपाल से सहमत ही नहीं है तो फिर आप पूरे मन से अन्ना के आंदोलन के साथ कैसे हो सकते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि आप बस साथ दिखना चाहते हैं ताकि आपका राजनीतिक नुकसान न हो. जनता कल को आपको अन्ना विरोधी मान कर चुनाव में खारित न कर दे, मन से आप विधेयक के समर्थक नहीं। ऐसा करना देश की जनता के खिलाफ खड़ा होना होगा जो संभव है कि कल को आपके राजनीतिक सपनों और समीकरण को भी तोड़ दे। अगर आप मन से इस आंदोलन के साथ हैं तो सारी आपत्तियां दरकिनार कर इसे पारित कराने में जी-जान लगा दीजिए। जो भी आज अन्ना के आंदोलन में खड़ा है वह भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ी जनशक्ति का अपना सगा बनता जा रहा है। हिंदू, मुसलिम, सिख, ईसाई भारत के सारे देशवासी आज अन्ना से साथ खड़े हैं ऐसे में जो भी दल इस आंदोलन से विमुख होगा वह हमेशा के लिए देश की राजनीति के हाशिए पर चला जायेगा। ऐसा न तो कांग्रेस चाहेगी, न भाजपा और न ही वाम दल क्योंकि उन्हें अपनी राजनीतिक बिसात इसी देश में बिछानी है, इस देश की जनता के वोटों की मदद से संसद में विराजना है फिर वह जनता से विमुख होकर अपना अस्तित्व कैसे बचा सकते हैं।
कांग्रेस के पास अभी एक बड़ा अवसर है कि वह देश की जनता का दिल जीत कर हमेशा के लिए उसको अपने पक्ष में ले ले। आज अधिकांश जनता केंद्र की कांग्रेसी सरकार से खफा है क्योंकि वह अन्ना की आवाज नहीं सुन रही। उसने अन्ना को बेवजह गिरफ्तार किया , उसके नेता, मंत्री अन्ना के खिलाफ अशालीन भाषा में टिप्पणी करते रहे। आज या फिर कल प्रधानमंत्री संसद से कोई ऐसा एलान कर के जिससे जनता का गुस्सा ठंड़ा हो, अन्ना के प्राण बचें, अपना, अपने दल का गौरव और देश को किसी मुसीबत में पड़ने से बचा सकते हैं। अगर हमारे यहां वाकई सच्चा गणतंत्र है, हम जनता की, जनता के लिए, जनता के द्वारा चुनी गयी सरकार की प्रणाली को सम्मान देते हैं तो फिर सड़कों पर उतरी जनता की आवाज सुनी जाये और संसद देश को इस सांसत से बचाये। सरकारी लोकपाल विधेयक वापस हो जन लोकपाल विधेयक को सम्मान के साथ पारित किया जाये क्योंकि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं जिसके लागू होने से अनर्थ हो जायेगा या देश की सार्वभौमिकता या किसी बड़े पद की मर्यादा पर कोई आंच आयेगी। इससे अगर किसी को डरना है तो भ्रष्टाचारी को चाहे वह कितने भी ऊंचे ओहदे पर क्यों न हो। ऐसे में अगर कोई जन लोकपाल विधेयक (जो भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सशक्त हथियार है) के खिलाफ खड़ा है तो इसका मतलब है कि वह भ्रष्टाचार के साथ खड़ा है। अब देश की जनता को तय करना है कि उसे किसे चुनना है –भ्रष्टाचार मुक्त भारत को या भ्रष्टाचार के कीचड़ में दिन ब दिन धंसते जा रहे एक ऐसे देश को जहां सीमांत किसान दुखी हैं, आत्महत्या कर रहे हैं, छोटा-सा कर्ज बैंक से लेने वाले किसान को कभी-कभी ऋण का आधी रकम घूस के रूप में झोंक देनी पड़ती है तब कहीं उसे वह मिल पाता है। या फिर नौकरशाहों की दबंगई और भ्रष्टाचार से पिसते उस आम आदमी का देश जो आज हाशिए में पड़ा है और उसके वोटों से मंत्री बने नेता सत्ता सुख पाकर उसे भूल बैठे हैं। ईश्वर करे मेरा देश अस्थिर होने से बचे, अन्ना स्वस्थ रहें, नेताओं और प्रशासकों को प्रभु सद्बुद्धि दें ताकि वे दल और अपना भला सोचने से पहले उस देश के भले की बात सोचें जिसने उन पर भरोसा किया है और जिसकी जनता के प्रति वह जवाबदेह हैं। यह वक्त का तकाजा है और आज की सबसे बड़ी प्राथमिकता। भगवान के लिए मनमोहन जी और राहुल भैया अन्ना को बचाइए और देश को भी।
आज 23 - 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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बिलकुल सच कहा आपने ७४ साल के बुजुर्ग जो अपने लिए नहीं देश की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार के लिए अपने शारीर को इतना कष्ट दे रहे हैं /और कान्ग्रेशी अपने कानों मैं उंगली डाले बैठें हैं /जनता की आवाज भी नहीं सुन रहे /अगर अन्नाजी को कुछ हो गया/तो इस जनता के जूनून को रोकने वाला कोई नहीं होगा/फिर इन नेताओं का क्या हस्र होगा ये तो भगवान् ही जाने /भगवान् इन नेताओं को सदबुद्धी दे बस यही कामना है /बहुत ही सार्थक लेख लिखा आपने /बहुत बधाई आपको/
ReplyDeleteplease visit my blog.thanks
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बहुत सशक लेख ... ऐसे आन्दोलन की उम्मीद नहीं की होगी सरकार ने ...
ReplyDeleteagar ab bhi sarkar aankhe na khole to ye us sarkar ki badkismati hogi.
ReplyDeleteprabhavi lekh.
इन भ्रष्ट राजनीतिज्ञों को खुद पर यकीन नहीं है तो दूसरे पर कैसे यकीन कर लें. अन्ना के आन्दोलन से ये सब भागे-भागे फिर रहे हैं पर ये भूल गए हैं कि कम से कम एक व्यक्ति की जान तो बचा ले.
ReplyDeleteजय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड