भलाई इसी में है कि चीजों को उलझाने के बजाय सुलझाइए
राजेश त्रिपाठी
अन्ना हजारे को अनशन करते छह दिन हो गये लेकिन केंद्र सरकार कभी जन लोकपाल के मुद्दे पर नरम पड़ती है तो कभी फिर अपने पुराने हठी रुख पर लौट आती है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हर दृष्टि से बहुत ही भले और योग्य व्यक्ति हैं। ऐसे महान अर्थशास्त्री और प्रशासक को पाकर कोई भी देश गर्व कर सकता है। हमारी उनसे अपील है कि वे जन लोकपाल के मुद्दे पर गंभीरता से और व्यक्तिगत तौर पर विचार करें और जैसे भी हो बातचीत से बीच का रास्ता निकालें। इसे न तो सरकार और न ही सिविल सोसाईटी के बीच इस मुद्दे को स्वाभिमान या कहें इगो का मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए । ऐसा करने से चीजें सुलझने के बजाये और उलझती ही चली जायेंगी और ऐसे मोड़ तक चली जायेंगी जो न ही वर्तमान सत्ता और न देश के भले में होंगी। शनिवार को प्रधानमंत्री ने अपने बयान में कहा था कि लेन-देन का रास्ता भी खुला है। सिविल सोसाईटी के अरिवंद केजरीवाल ने भी यह संकेत दिया था कि वे बातचीत को तैयार हैं लेकिन सरकार की ओर से बातचीत के कोई संकेत नहीं मिले। रविवार को रामलीला मैदान के अनशन मंच से अरविंद केजरीवाल ने फिर सवाल किया कि हमसे कहा जा रहा है कि बातचीत का रास्ता खुला है लेकिन बातचीत के लिए कोई आगे नहीं आ रहा । हमसे बताया जाए हम कहां किससे बातें करें। इस बीच अरुणा राय एक तीसरा लोकपाल विधेयक ले कर आ गयी हैं सरकार उस पर भी विचार करने की बात कर रही है। कहीं यह अन्ना के जन लोकपाल को हाशिए पर फेंकने और चीजों को लंबे अरसे तक फंसाये रहने की चाल तो नहीं है। अगर ऐसा है तो यह स्थिति अच्छी नहीं है क्योंकि अन्ना हजारे की टीम झुकने वाली नहीं यह पता सरकार को अब तक चल ही गया होगा।
केंद्र सरकार को चाहिए कि इस मुद्दे पर वह अपना मन और मानस दोनो साफ कर दे। वह देश से बता दे कि क्या वह भ्रष्टाचार मिटाने के लिए गंभीर है या जैसा चल रहा है वैसा चलते रहने देना चाहती है। सरकार कहती है कि यह अधिकार संसद को ही है कि कोई विधेयक या कानून पास करे। तो अन्ना ने भी तो यही चाहा है कि उनका विधेयक संसद की मुहर पाकर एक सख्त कानून की शक्ल ले। अगर केंद्र सरकार भ्रष्टाचार मिटाने के प्रति गंभीर है तो फिर उसे अन्ना के विधेयक में कहां क्या आपत्तिजनक लगता है यह भी राष्ट्र को बताना चाहिए। अन्ना सिर्फ और सिर्फ यही चाहते हैं न कि भ्रष्ट व्यक्ति वह कितने भी ऊंचे आसन में क्यों न बैठा हो उसे उसके किये का दंड मिलना चाहिए। जो इसकी खिलाफत कर रहे हैं उनके भाव यही ध्वनित करते हैं कि वे भ्रष्टाचार को संरक्षण दे रहे हैं। यह कहां तक सच है। एक गणतंत्र देश में शासन तंत्र को गण यानी जनता के प्रति जववाबदेह होना चाहिए। जनता की आकांक्षा में खरा उतरना उसकी श्रेष्ठता और योग्यता की पहली कसौटी है।
हमारे कितने सांसद या विधायक ऐसे हैं जो सीने पर हाथ रख कर बेझिझक और शान से कह सकते हैं कि उन्होंने अपने क्षेत्र के लिए ईमानदारी से काम किया है। अब यह नहीं चलेगा कि आपने जनता से हाथ जोड़ कर गद्दी पा ली और उनकी ओर से मुंह मोड़ लिया। अब जनता की बात सुननी होगी और उनके लिए ही आपको काम करना होगा। जो दृढ़प्रतिज्ञ व्यक्ति रामलीला में अन्न त्याग कर बैठा है वह ऐसा-वैसा आदमी नहीं। उसके इतिहास में झांकेंगे तो आपकी सांस हलक में अटक जायेगी। वह तपस्वी और देश की जनता का सच्चा सेनानी अनेकों भ्रष्टाचारियों को उनकी औकात बता चुका है। अब उसके मंच से उनके सिपहसालार अरविंद केजरीवाल ने ललकार लगायी है कि जनता अपने-अपने इलाकों के सांसदों से पूछे कि वे किसके साथ हैं भ्रष्टाचारियों के या देश की जनता के साथ भ्रष्टाचार के उन्मूलन के उनके पुण्य यज्ञ के साथ। आखिर अन्ना के जन लोकपाल में ऐसा क्या है जिससे न सिर्फ केंद्र सरकार बल्कि दूसरे कई लोग इस तरह से डरते हैं जैसे जहरीला सांप देख लिया हो। आइए देंखें क्या है सरकार के कमजोर लोकपाल विधेयक और सिविल सोसाइटी के जन लोकपाल विधेयक में।
सरकारी लोकपाल विधेयक
|
सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर खुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरू करने का अधिकार नहीं होगा।
|
सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्शदात्री संस्था बन कर रह जाएगी।
|
सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी।
|
सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा।
|
लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे।
|
सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति। प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनों सदनों के विपक्ष के नेता, कानून और गृहमंत्री होंगे।
|
जनलोकपाल विधेयक
|
प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल खुद किसी भी मामले की जांच शुरू करने का अधिकार रखता है।
|
जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी।
|
जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फोर्स भी होगी।
|
जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश (अब इस वर्ग को छोड़ने को सिविल सोसाइटी तैयार है)
सभी आएंगे।
|
जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा। चार की कानूनी पृष्ठभूमि होगी। बाक़ी का चयन किसी भी क्षेत्र से होगा।
|
प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे।
|
उल्लेखनीय है कि जनलोकपाल विधेयक को सेवानिवृत्त जस्टिस संतोष हेगड़े, कानूनविद प्रशांत भूषण, समाजसेवी अरविंद केजरीवाल ने तैयार किया है।
अब सवाल यह उठता है कि अगर सरकार भी कहती है कि वह सशक्त लोकपाल विधेयक लाने के पक्ष में है तो फिर उसे अन्ना के जन लोकपाल पर विचार करने में क्या आपत्ति है। जन लोकपाल को निजी विधेयक के तौर पर संसद में पेश भी किया जा चुका है। लगता यह है कि सरकार में ही दो पक्ष हो गये हैं। प्रधानमंत्री कुछ और कहते हैं उनके मंत्री कुछ और। ऐसे में तो चीजें सुलझने के बजाय और उलझती ही जायेंगी। संसद सर्वोच्च है लेकिन इसका अर्थ यह तो कभी नहीं होता कि जनाकांक्षा नगण्य है और उसे हर बार जोर जबरदस्ती कुचलने की साजिश की जाये। भारत ऐसा महान देश है जिसने दुनिया में हमेशा अपनी महानता और शांतिदूत होने की मिसाल दी है। अन्ना का आंदोलन पूरी तरह से अहिंसक और शांत है और उम्मीद है कि यह अंत तक ऐसा ही रहेगा क्योंकि इसका नेतृत्व एक ऐसा संत कर रहा है जो अपने प्यारे देश में भ्रष्टाचार का अंत देखना चाहता है। यह नहीं भूलना चाहिए कि अन्ना सेनानी रहे हैं और सेनानी हमेशा यही शपथ लेता है कि जो कार्य पूरा किया है आखिरी सांस तक उसे पूरा करने के लिए संघर्ष करना है। अन्ना भी रामलीला मैदान से बार-बार अपना यह संकल्प दोहरा रहे हैं। अब देश और उसके कर्णधारों पर है कि उनके कानों तक कब पहुंचती है अन्ना की सही आवाज।
No comments:
Post a Comment