वे संसद की गरिमा पर चोट करने लगे हैं
-राजेश त्रिपाठी
जब अन्ना ने भ्रष्टाचार और घूसतंत्र के खिलाफ अहिंसक जन-प्रतिरोध का धर्मयुद्ध छेड़ा था, सारा देश तन-मन-धन से उनके साथ जुट गया था। उनमें लोगों को दूसरा गांधी नजर आने लगा था। वैसे यह सच है कि कोई कितना भी बड़ा हो जाये, वह गांधी नहीं हो सकता, सच्चा गांधीवादी भले हो जाये। गांधी एक व्यक्ति नहीं ऐसा विचार है जिसकी जड़ें भारतीय जनमानस और माटी में गहरे पैठ गयी हैं। यही नहीं विश्व भर के लोगों ने उनकी सत्य-अहिंसा की तपस्चर्या का लोहा माना है। अन्ना ने उनके सत्याग्रह की राह पकड़ कर अपना संघर्ष शुरू किया और उन्हें अपार जन समर्थन मिला। लोगों की अन्ना पर आस्था इसी बात से साबित होती है कि उनके साथ पूरे देश में सैकड़ों लोग अनशन पर बैठ गये थे। अन्ना का अतीत गवाह है कि इस अदम्य सेनानी ने कई बार अनशन और प्रतिरोध के बल पर की लड़ाइयां जीतीं और कई भ्रष्ट अधिकारियों, प्रशासकों को अन्ना के प्रयास के चलते अपनी नौकरियां खोनी पड़ीं हैं। अन्ना का निस्वार्थ भाव सारे देश को भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रेरित-उद्वेलित करने का कारक बना। यह शुभ संकेत है क्योंकि स्थितिप्रज्ञता या जो चल रहा है चलने देने का भाव व्यक्ति और विचारधारा को भी जड़ बना देता है। यदि आवश्यक हो तो परिवर्तन अवश्य होना चाहिए, वही अन्ना चाहते हैं। व्यवस्था में परिवर्तन ताकि भ्रष्टाचार रोका जा सके जिससे आज जन-जन पीड़ित है। अन्ना सही हैं लेकिन उनके साथी लगता है अब बहकने लगे हैं। अरविंद केजरीवाल का यह बयान कि अन्ना संसद से ऊपर हैं न सिर्फ उनकी अहमन्यता और दंभ का परिचायक है अपितु इसमें अतिवादिता की भी गंध आती है। हमारे संविधान ने संसद को सर्वोच्च स्थान दिया है और उसकी गरिमा को प्रतिपादित किया है फिर कोई व्यक्ति, चाहे वह कितना भी श्रेष्ठ, गणमान्य या गौरवशाली क्यों न हो उसे संसद की गरिमा और उसकी श्रेष्ठता व सर्वोच्च सत्ता को चुनौती देने का अधिकार नहीं है। अन्ना ने भी अपने बयान में कभी स्वयं को संसद से ऊपर नहीं माना। अब अगर उनके सहयोगी उनके विचारों के विपरीत संसद की गरिमा पर चोट करने लगे हैं तो जाहिर है यह कांग्रेस के पक्ष में और अन्ना के सत्-महत उद्देश्यों के खिलाफ जायेगा। कांग्रेस इस बयान को अपने पक्ष में करने की कोशिश करेगी। वह कह सकती है कि जो लोग संसद की गरिमा को नहीं मानते क्या देश उनका साथ देगा? जाहिर है इसके बाद संभव है कि आज जो अन्ना के समर्थन में खड़े हैं उनका एक हिस्सा इस तरह के बयानों के बाद उनसे कट जाये। अन्ना को चाहिए कि वे अपने सहयोगियों, प्रमुख सिपहसालारों को वाणी और भावों में संतुलन, संयम बरतने की सलाह दें ताकि उन्होंने अपना शरीर तपा कर आंदोलन से देश को जो एक दिशा दी है कहीं वह फिर खो न जाये।
जहां तक टीम अन्ना का सवाल है उनके कुछ सदस्यों के बारे में पहले भी कई तरह के विवादों की खबर आती रही है। यह बात अलग है कि इनमें से कुछ के बारे में लोगों का खयाल है कि आंदोलन को दबाने या असफल करने के लिए कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने इस तरह की खबरें उड़ायी थीं। अब अगर उनकी टीम के सदस्य बेवजह बढ़-चढ़ कर अनर्गल बातें करेंगे, इस कदर बहकने लगेंगे कि उन्हें संसद की मर्यादा का भी ख्याल नहीं रहेगा तो इससे जनता के बीच गलत संदेश जायेगा। वे जिनका विरोध करने निकले हैं ये बातें उनके पक्ष में जायेंगी। अन्ना का संघर्ष किसी एक दल विशेष के खिलाफ न होकर उस व्यवस्था के खिलाफ होना चाहिए जो भ्रष्टाचार को जन्म देती है। अगर कोई दल राज्य या देश की सत्ता में है तो इसलिए है कि देश की जनता ने ऐसा चाहा है। अगर वह जनविरोधी कार्य करता है तो उसे हटाने का अधिकार देश की जनता को है। अन्ना और उनकी टीम के लिए सही यही होगा कि वह देश के जनमानस को बदलें, उसे तैयार करें कि देश की सत्ता भविष्य में ऐसे लोगों के हाथ में दी जाये जिसके लिए स्वजन पोषण, भ्रष्टाचार से अहम हो जनहित। किसी दल विशेष को किसी एक सीट पर हराना इसके लिए काफी नहीं होगा। इसके विपरीत परिणामों के बारे में भी सोचना चाहिए। अरविंद केजरीवाल ने एक निजी चैनल को दिये साक्षात्कार में इस बारे में भी अपनी बात साफ की। पत्रकार ने पूछा कि हिसार में आप जिस कांग्रेसी प्रत्याशी के खिलाफ प्रचार कर रहे हैं, अगर वह जीत गया तो आपके विरोध का क्या होगा। इससे क्या संदेश निकलेगा। केजरीवाल का कहना था कि अगर कांग्रेस का प्रत्याशी जीतता है तो इसका मतलब है कि उस क्षेत्र की जनता अन्ना के जन लोकपाल के साथ नहीं है। अगर हारता है तो इसका मतलब है कि वह हमारे साथ है। यह तर्क अपने गले तो नहीं उतर रहा किसी क्षेत्र विशेष में हारजीत क्या मतलब रखती है, जब सारा देश अन्ना के साथ खड़ा है तो फिर पूरे देश में विजय की क्यों नहीं सोचते । इस तरह की बातें कहीं आपको आंदोलन के मूल उद्देश्य से ही दूर न ले जायें। सीधे तौर पर कहें तो इस तरह के कार्य यह दरशाते हैं कि लक्ष्य भ्रष्टाचार से लड़ना न होकर कहीं कुछ और होता जा रहा है। जिनके खिलाफ मुहिम चलायी जा रही है वे अभी से यह दावा कर रहे हैं कि अन्ना का आंदोलन कुछ संगठनों और राजनीतिक दलों के हाथ की कठपुतली बनता जा रहा है।
अन्ना आपसे आग्रह है कि आप इस बात का जोरदार ढंग से खंडन करें कि आप किसी राजनीतिक दल की शह पर अपना आंदोलन चला रहे हैं क्योंकि यह आंदोलन अब सिर्फ आपका नहीं देश का हो गया है। देश आपके साथ खड़ा है तो वह यह सोच कर खड़ा है कि आप पंथ निरपेक्ष, दल निरपेक्ष,स्वार्थ और किसी भी तरह की महत्वाकांक्षा से परे हैं। आपको लेकर देश बड़ा सपना देख रहा है, सपना भ्रष्टाचारमुक्त भारत का, सपना गांधी के उस सच्चे रामराज्य का जो उनका काम्य था और जिसके बारे में अब तक किसी दल या सत्ता ने गंभीरता से सोचा ही नहीं। सपना ऐसे भारत का भी जिसमें गांवों को उनका सम्मान, उनको मिलने वाली उचित सुविधाएं मिलें, गरीब किसान के लिए दिल्ली से चले धन की बिचौलिये जहां बंदरबांट न कर सकें। ऐसा भारत जहां गांव आत्मनिर्भर हों, लोगों को रोजी-रोटी के लिए अपनी जड़ों से उखड़ कर महानगरों की भीड़ में न खोना पड़े, फुटपाथों या चालों में जिंदगी न गुजारनी पड़े। अन्ना साहब, आपमें देश ने बड़ी संभावनाएं देखी हैं। उन्हें लगता है कि गांधी का सपना आप सच कर सकते हैं। देश ने अगर भ्रष्टाचार के अंधेरे में आपको उम्मीद की किरण के रूप में देखा है तो आप उसकी इस भावना की कद्र करें और उसके अनुरूप ही आपके और आपकी टीम के कार्य भी होने चाहिए। यह उपदेश नहीं, वह सच है जो शायद आप और आपके साथी भी मानना चाहेंगे। आपको भी पता है कि देश आपके साथ है तो आपका आंदोलन है, देश से परे या देश से अलग किसी आंदोलन की न कोई अहमियत होती है और न ही प्रासंगिकता। देश आपको साथ खड़ा है तो आप भी देश की ही सोचिए और एक बड़े परिवर्तन का शंखनाद अब कर ही दीजिए। आपको राजनीति से परहेज सही पर देश की असंख्य जनता जो आपके साथ आज खड़ी है, वह संसदीय प्रणाली, शासन प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन चाहती है। आपने एक लहर तो ला दी है अब उसके आंधी बनने की देर है। आप कई तरह के सर्वे करा रहे हैं एक सर्वे यह भी करा लीजिए कि कितने लोग यह चाहते हैं कि अन्ना के समर्थक नेक इरादे से राजनीति में आयें, संसद में जायें और जनहित की योजनाओं को पारित करायें। आप पायेंगे कि अनेक लोग इस पक्ष में खड़े होंगे। अगर देश चाहता है कि आपका कोई दल हो और वह संसद में बहुमत से आये तो फिर इसमें झिझक कैसी। गणतांत्रिक प्रणाली हमारे देश की गरिमा और गौरव है जिसका पूरा विश्व कायल है। आप चाहते हैं कि देश की दशा –दिशा बदले, शासन स्वच्छ हो स्वेच्छाचारी नहीं तो फिर इसमें आपके विचारों के पक्षधर लोगों की भागीदारी आवश्यक है। युद्ध में किनारे खड़े रह कर विजयश्री नहीं मिलती, कोई युद्ध जीतना है तो लड़ना आवश्यक है। आप साहसी हैं, सैनिक हैं, अदम्य और अटल इरादों वाले हैं फिर राजनीति को अपना हथियार बनाने से गुरेज क्यों करते हैं। लोहा लोहे से कटता है जाहिर है कि राजनीति का परिष्कार करना है तो फिर आपको उसे ही अपना हथियार बनाना पड़ेगा। आपके साथी केजरीवाल जी अक्सर यह कहते हैं कि- ‘यह अजीब बात है कि हमसे कहा कहा जाता है कि कोई बात मनवानी है तो चुनाव लड़ कर संसद में आओ, वहां अपनी बात कहो।’ उनका कहना सच है लेकिन यह भी सच है कि देश में संसद ही सर्वोच्च है, वही विधायिका है, कानून वही बनाती है। व्यक्ति को अपनी बात कहने की आजादी है लेकिन वह कानून तो बना नहीं सकता। उसे इसके लिए संसद का ही सहारा लेना पड़ेगा। फिर उस संसद में आने से गुरेज क्यों। हमने यही बात बाबा रामदेव के लिए भी कही थी जिनके भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को भी देश का समर्थन मिला था और यही अन्ना और उनकी टीम से कह रहे हैं कि अगर देश आपके साथ खड़ा है तो फिर आगामी चुनावी समर में नेक इरादे से शामिल हो जाइए, पूरा विश्वास है कि जब देश को सही लोग सामने दिखेंगे तो वह दागी लोगों के बजाय उन्हें ही चुनेंगे। जब संसद में आपका बहुमत होगा तो आपको अपने सपनों का, भ्रष्टाचारमुक्त भारत गढ़ने की आजादी होगी। तब आपको उन लोगों का मुखापेक्षी नहीं होना होगा जिनसे आज आप चिरौरी कर रहे हैं कि वे आपका जनलोकपाल विधेयक पारित कर दें। आपकी सबसे बड़ी शक्ति है जनशक्ति जो आपके आंदोलन के साथ जी जान से खड़ी थी। देश आपके साथ है। अभी आपके लिए उचित यही है कि अपने आंदोलन को देश के कोने-कोने तक ले जाइए। लोकसभा के आगामी आम चुनावों तक इस आंदोलन को पूरे जोश-खरोश के साथ जिंदा रखिए और देश के हर चुनाव क्षेत्र से अपने योग्य समर्थकों की टीम बना कर उन्हें चुनाव लड़वाइए। संसद में आइए ,यह न पाप कर्म है, न ही अधर्म यह तो धर्म है, वह धर्म जो संसद को जनहितैषी कार्यों के लिए प्रेरित करेगा। राजनीति से नीति का विलोप हो गया है। आपके जैसे निस्वार्थ लोग अगर इसे पुनः प्रतिष्ठा और गरिमा देना चाहते हैं तो वे राजनीति में क्यों नहीं आते। बाधा और बंधन कहां हैं, क्या हैं?
अन्ना आपसे एक और आग्रह है। आपके आंदोलन को विफल करने के लिए तमाम तरह की साजिशें रची जा रही हैं, रची जायेंगी। आपके खिलाफ तरह-तरह की कटु बातें, चुभने वाले बयान दिये जायेंगे। आपके लिए यह आवश्यक है कि आप इन बयानों, बातों पर ध्यान न दें। हर एक के कहे का जवाब देना जरूरी नहीं। ऐसा करके आप उस व्यक्ति के महत्व को बढ़ा रहे होंगे। ऐसे बयानों का जवाब देकर अपना अनभला कर रहे होंगे। लोगों को जो कहना है कहने दीजिए, देश की जनता आपके साथ है कोई व्यक्ति विशेष या दल विशेष आपके साथ हो न हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आप देश की जनता के प्रति जवाबदेह हैं जिसने आपके आंदोलन का हृ्दय से साथ दिया है किसी और के लिए नहीं। इसलिए हर एक के सवाल का जवाब देना बंद कीजिए क्योंकि इससे उसे और अधिक महत्व मिल जायेगा जो संभवतः आपको वह कहलवाने के लिए उकसा रहा हो जो आप नहीं कहना चाहें। उम्र में आपसे बहुत छोटा हूं , आप जैसे महान आत्मा और संग्रामी को राय देने की शक्ति मुझ जैसे अकिंचन में कहां जो अब तक समाज का कोई भला नहीं कर सका। लेकिन आपके आंदोलन और आपसे श्रद्धा रखता हूं इसलिए नहीं चाहता कि वह अपने उद्देश्य से बहके या उसको लेकर देखा गया सपना पूरा होने से पहले ही टूट जाये। यकीन मानिए इस आंदोलन को असफल करने के लिए तमाम ताकतें एकजुट हो गयी हैं या हो रही हैं। ये ताकतें कौन हैं, आप भी पहचानते हैं और देश भी। क्या आप नहीं चाहेंगे कि जीत आपकी हो और इनकी पराजय। अब तो यहां तक कहा जा रहा है कि कोई दल विशेष आपको राष्ट्रपति बनाने का सपना दिखा रहा है इसलिए आप कांग्रेस और संप्रग सरकार के खिलाफ अभियान छेड़े हुए हैं। कोई कुछ भी कहे हमें पता है कि सच्चा गांधीवादी पद के लिए नहीं प्रतिष्ठा के लिए जीता है। प्रतिष्ठा ऐसी जो जनसेवा से हासिल की गयी हो। आप और आपका आंदोलन सफल हो, भारत सच्चे मायने में भ्रष्टाचारमुक्त, भयमुक्त देश बने। ऐसा देश जहां हर नागरिक के अधिकारों और गरिमा का सम्मान हो और सही अर्थों में मेरा भारत महान हो। ऐसा तभी हो सकता है जब सच्ची निष्ठा, नीति और विचारोंवाले लोगों का प्रतिनिधित्व संसद में होगा। इस पुनीत कार्य के पुरोधा अन्ना बनें तो क्या बुरा है। उन्हें क्या चाहिए, जन समर्थन, यह उनके साथ है इसका पता तो उन्हें चल ही गया है। बस अब उन्हें इस दिशा में कदम बढ़ा ही देना चाहिए। संसद में अगर उनके समर्थक पहुंचते हैं तो उन्हें तमाम उन सवालों से नहीं घिरना पड़ेगा, जो आज उन पर कई तरफ से दागे जा रहे हैं। तब उन लोगों की बोलती भी बंद हो जायेगी जो उन्हें पागल करार दे रहे हैं। ऐसों को परास्त करने के लिए जरूरी है कि अन्ना समर्थक गणतांत्रिक और संसदीय प्रणाली को सम्मान दें, उसमें सक्रिय भागीदारी करें।
यह लिखना इसलिए जरूरी समझा क्योंकि अगर अन्ना के साथी यों ही बहकने लगे तो उनके आंदोलन के खिलाफ खड़ी शक्तियों को बल मिलेगा और यह आंदोलन सफल होने से पहले विफलता के गर्त में चला जायेगा। जानता हूं इससे तालियां कम गालियां ज्यादा मिलेंगी लेकिन शायद यह कहना-लिखना जरूरी था इसलिए परिणाम की परवाह किये बिना लिखा। अब चाहे फूल मिलें या शूल अपने मन की पीड़ा और अकुलाहट को शब्द देना जरूरी था, सो दिया। वक्त रहते चीजें संभल जायें, वाणी बहके नहीं, कदम सही राह पर चलें हमने अन्ना के आंदोलन को लेकर यही कामना की है।उनके साथी भी इसका ध्यान रखें तो अति उत्तम।
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