इतना असहिष्णु क्यों होता जा रहा है समाज !
-राजेश त्रिपाठी
बुधवार की शाम तीन युवक प्रशांत भूषण के सुप्रीम कोर्ट के पास स्थित चैंबर में प्रवेश करते हैं और उन पर अचानक हमला कर देते हैं। उन पर थप्पड़-घूंसे बरसाये जाते हैं, कुर्सी से खींच कर जमीन पर पटक कर उन पर लातों से प्रहार किया जाता है। यह सब उस वक्त होता है, जब प्रशांत एक निजी टीवी चैनल से बातें कर रहे होते हैं। इस हमले के सारे विजुअल्स टीवी चैनल के कैमरे में कैद हो जाते हैं और हमला करने वाले सारे चेहरे दुनिया के सामने उजागर हो जाते हैं। सुनने में तो यह घटना बहुत सामान्य-सी लग सकती है लेकिन यह सामान्य है नहीं। इससे निकले संकेत एक बहुत ही खतरनाक और डरावने भविष्य की ओर संकेत करते हैं। भविष्य ऐसा जहां हर जुबां खामोश हो, लोग भय के साये में जीने को मजबूर हों और किसी विषय पर कुछ कहने से पहले हजार बार सोचने को मजबूर हों कि कहीं किसी सेना या संगठन के लोग नाराज न हो जायें। सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण पर जो लोग उनके चैंबर में घुस कर हमला कर सकते हैं, उनके हौसले कितने बुलंद हैं यह समझने में ज्यादा कठिनाई नहीं होनी चाहिए। इसके साथ ही उस संगठन के इरादे भी सबके सामने साफ हो गये हैं जिनसे इन हमलावरों का ताल्लुक है। हमलावर प्रशांत भूषण को धमकी दे रहे थे-तुम भारत तोड़ने की कोशिश करो, हम तुम्हारा सिर तोड़ देंगे। इस तरह की दादागीरी गांधी के देश में। प्रभु कल्याण करें। क्या हो रहा है हमारे देश को। क्यों इतना असहिष्णु होता जा रहा है हमारा समाज। अब क्या कोई विचार व्यक्त करने के लिए इन संगठनों की इजाजत लेनी पड़ेगी, क्या इस तरह के संगठन ही अब देश में यह तय करेंगे कि कौन क्या कहेगा और कब कहेगा। कल को ऐसा भी दिन आ सकता है कि ये लोग कल कहें कि कोई हमारी इजाजत बिना सांस नहीं ले सकता। क्या मजाक बना रखा है देश का। जहां जो चाहता है एक सेना बना लेता है और अपने ही लोगों से युद्ध लड़ने को आमादा हो जाता है। जो शक्ति जनसेवा, देश को गढ़ने के काम में लगनी चाहिए वह बेवजह के कार्यों में जाया हो रही है। अफसोस इस बात का है कि युवकों को गुमराह कर इस कार्य में प्रवृत्त किया जा रहा है। जो भी राजनीतिक दल या संगठन युवकों में हिंसा, द्वैष, बैर का भाव भर रहा है, वह उनकी जिंदगी तो गर्क कर ही रहा है, अपना भी बंटाढार करने पर उतारू है। क्योंकि हिंसा या बैर किसी को भी एक ऐसी अंधेरी सुरंग में ठेल देते हैं, जहां से वापसी का या तो रास्ता मिलता नहीं या फिर बड़ी मशक्कत से मिलता है।
प्रशांत भूषण पर हमला अभिव्यक्ति की उस आजादी पर हमला है जिसे खुद देश के संविधान ने देशवासियों को दिया है। हमारे संविधान में लोगों को लिखने, कहने, बोलने की पूरी आजादी है। यह और बात है कि किसी की कही बात पर कोई सहमत हो या न हो। अगर कोई किसी की बात पर सहमत नहीं तो उसे चाहिए कि वह भी तर्कपूर्ण ढंग से उसका जवाब दे, कहने वाले ने गलत कहा है तो उससे कहे कि आप यहां इस तरह से गलत हैं। यह क्या कि कोई छोटी सी बात पर किसी पर पिल पड़े और हमला कर दे। प्रशांत भूषण पर हमला उनके वाराणसी में हाल में दिये एक बयान से नाराजगी का नतीजा है। वाराणसी में बीते सितंबर में पराड़कर स्मृति भवन में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य और वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि सेना के दम पर कश्मीरियों को बहुत दिनों तक दबाव में रखना सही नहीं है। उन्होंने कहा कि कश्मीर का भविष्य तय करने के लिए जनमत संग्रह कराया जाना चाहिए। उनके इसी बयान पर नाराज तीन युवकों ने उन पर हमला बोल दिया। इनमें से कुछ राम सेना तो कुछ भगत सिंह क्रांति सेना के बताये जाते हैं। इनमें से एक पकड़ा गया है, पुलिस ने अस्पताल में प्रशांत का बयान दर्ज कर प्राथमिकी भी दर्ज कर ली है। केंद्रीय गृहसचिव आर. के. सिंह ने कहा कि मामले की जांच की जा रही है। गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने भी हमले की कड़े शब्दों में निंदा की है और दिल्ली पुलिस को आदेश दिया है कि वह अपराधियों को जल्द से जल्द पकड़े। टीम अन्ना के सदस्य और प्रशांत भूषण के पिता शांतिभूषण ने भी हमले निंदा की है और कहा है कि अगर कुछ लोग यह समझते हैं कि प्रशांत इस हमले से डर जायेगा, तो वे गलत हैं, प्रशांत डरने वाला नहीं।
टीम अन्ना की एक और सक्रिय सदस्य किरण बेदी ने भी इस हमले कि निंदा की और कहा कि प्रशांत देश के लिए अच्छा काम कर रहे हैं समझ में नहीं आता कि उन पर हमला क्यों किया गया। देश भर में कई प्रबुद्ध लोगों ने इस फासीवादी हमले की निंदा की है। हमलावर चाहे किसी भी संगठन के हों उनका मकसद साफ है कि अगर किसी का कहा उनके मन का नहीं है तो उस पर हल्ला बोल दो। जिन युवकों को भ्रष्टाचार, समाजिक कुरीतियों, राजनीति के अपराधीकरण के विरुद्ध खड़ा होना चाहिए आज वे लड़ाई भी लड़ रहे हैं तो कैसी। वे अभिव्यक्ति की आजादी पर चोट कर रहे हैं, उन्हें अगर कुछ पसंद नहीं तो उसके खिलाफ खड़े हो रहे हैं। यह गणतंत्र देश है जहां हर व्यक्ति कहीं भी रहने, अपने विचार व्यक्त करने को स्वतंत्र है। अगर उसे कोई अपराध किया है तो उसका दंड देने के लिए देश का कानून पर्याप्त और सक्षम है। इस तरह हर एक व्यक्ति कानून अपने हाथों में लेने लगा तो देश में अराजकता का ऐसा दौर आयेगा, जो पता नहीं इसे कहां ले जायेगा।
इस हमले के बाद फिर वही राजनीतिक चालें शुरू हो गयी हैं। कांग्रेस का कहना है कि यह हमला भाजपाइयों की करतूत है। इसका पलट जवाब देते हुए भाजपा ने कह दिया कि ऐसे काम कांग्रेस करती है। यानी एक गंभीर मामले का राजनीतिक इस्तेमाल शुरू हो गया। हमले के पीछे किसी राजनीतिक या सामाजिक संगठन का हाथ क्यों न हो यह हमला हर हाल में निंदनीय है और जो राजनीतिक दल या संगठन युवकों इस तरह के पाप कर्म में प्रवृत्त कर रहे हैं उन्हें पहचानने और उनका हमेशा के लिए बहिष्कार करने का समय आ गया है। यह राजनीति के परिष्कार का पहला कदम होगा जो अब दिन पर दिन जनविमुख और गंदी होती जा रही है।
अब प्रशांत के कश्मीर पर दिये बयान पर आते हैं। उनके इस बयान पर कि कश्मीर को बंदूकों से ज्यादा दिन तक दबाये नहीं रखा जा सकता कई लोग सहमत हो सकते हैं क्योंकि वहां से दमन की कई तरह की खबरें गाहे-बगाहे आती रही हैं। लेकिन उनके जनमत संग्रह कराने की बात पर शायद ज्यादातर लोग असहमति रखते हों पर इसका मतलब यह तो नहीं कि उन पर हमला कर दिया जाये। वे अपनी तरह से सही हो सकते हैं कि वर्षों से आतंकवाद की पीड़ा झेलते, हजारों लोगों की कुरबानी झेल झुके इस प्रांत के लिए यह जरूरी हो गया है कि उसके नागरिकों से जनमत लिया जाये कि वे क्या चाहते हैं। ऐसा कहने में कोई हर्ज तो नहीं अब जनमत संग्रह तो सरकार को कराना है , वह कराये या नहीं। अगर हमला करने वाले युवकों को प्रशांत के बयान पर एतराज था तो देश के मीडिया में आकर वे उनके बयान की खिलाफत कर सकते थे। उन पर हमला कर उन्होंने खुद को और जिस किसी भी संगठन से वे आते हैं उसको बदनाम कर दिया है। यह भारत है, एक सहिष्णु और शांतिपूर्ण देश, न जाने पिछले कुछ वर्षों से इसे किसकी नजर लग गयी है कि विदेशी तो विदेशी देश की कुछ शक्तियां तक इसे अस्थिर, अशांत बनाये रहने पर तत्पर हैं। यह देश के लिए बहुत ही खतरनाक बात है। प्रभु सबको सदबुद्धि दें, लोग हिंसा का पथ छोड़े और सहिष्णुता का भाव सबमें जगे तभी होगा मेरा भारत महान।
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