Wednesday, March 21, 2012

इस टुच्ची और पतनशील पत्रकारिता पर थू

एक आवारा मॉडल का फितूर कैसे बन गया न्यूज वैल्यू
राजेश त्रिपाठी
पत्रकारिता कभी आदर्श मानी जाती थी और लोग उस पर हद से बढ़ कर यकीन करते थे। इसकी वजह सिर्फ और सिर्फ यह थी कि तब पत्रकारिता प्रतिबद्ध और अपने सामाजिक सरोकार के प्रति पूरी तरह से सचेत थी। पत्रकारिता को यों ही लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का गौरव नहीं मिल गया। इसके लिए उसने समाज और देश के प्रति अपने दायित्व को बखूबी निभाया और यह सिद्ध किया कि गणतांत्रिक मूल्यों के पतन के खिलाफ वह एक सशक्त आवाज, एक पैना हथियार बन खड़ी है। भारतीय पत्रकारिता ऐसा बट वृक्ष है जिसे पत्रकारिता धर्म को धारण करने वाले कई मनीषियों ने सींचा और उस उत्कर्ष तक पहुंचाया जहां आज वह है। चाहे सत्ता पक्ष की स्वेच्छारिता हो या कोई सामाजिक पतन या पराभव, सजग, सशक्त और निर्भीक पत्रकारिता ने सबकी खबर ली। भारतीय पत्रकारिता का आदर्श है न दैन्यम् न पलायनम्। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से पत्रकारिता न सिर्फ दिशाहीन अपितु मूल्यहीन और उच्छृंखल होती जा रही है। यह उद्देश्य से भटक गयी है और ऐसे ऊल-जुलूल रास्ते पर चल पड़ी है जहां भटकाव और पतन तो है लेकिन शुचिता, सजगता और सार्थकता कतई नहीं। इसका मतलब यह नहीं कि सारे कुएं में भांग घुल गयी है, अभी भी कई ऐसे समर्थ और सशक्त पत्रकार हैं जो इस माध्यम में शुचिता और सार्थकता के हामी हैं। वे कभी ऐसी खबरों को नहीं छापते जो समाज और देश के हित में न हों।
      पत्रकारिता के पतन की पराकाष्ठा हाल ही में कोलकाता से प्रकाशित एक अंग्रेजी दैनिक में छपी एक तस्वीर में नजर आयी। इस तस्वीर की न कोई न्यूज वैल्यू थी, न ही इसका कोई अर्थ था फिर भी इस पत्र ने अपने टेबलाइट साइज के परिशिष्ट में यह तस्वीर छापी। तस्वीर किसी समझदार व्यक्ति ने जारी की हो ऐसा भी नहीं है। यह तस्वीर अपने टि्वटर एकांउट में उस मॉडल ने जारी की थी, जो पिछले एक साल से खुलेआम नंगी होने को बेताब है। विचारों-आचारों से भी नंगी इस मॉडल ने जो तस्वीर ट्वीट की है वह समाज के दो प्रमुख वर्गों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली है। उसके विस्तार में जाना ठीक नहीं क्योंकि अब तक सभी जान गये हैं और इसे लेकर कोलकाता में काफी बावेला भी मच चुका है । तरस उस पत्रकार पर आता है जो दिमाग से इतना पैदल है कि उसने एक आवारा और बुद्धिभ्रष्ट मॉडल के फितूर में न्यूज वैल्यू देख ली और उसे परिशिष्ट में जगह दी। उसे उसमें क्या ऐसा नजर आया जो राष्ट्रीय महत्व का था या कि जिसमें जनरंजन या मनोरंज के तत्व थे। उसमें अगर कुछ था तो सिर्फ फूहडनपन, नंगापन, अश्लीलता, अशालीनता और आवारापन। क्या समाचारपत्र अब यह कूड़ा करकट ही छापेंगे। अगर यही पत्रकारिता है तो ऐसी पतनशील पत्रकारिता पर थू। आज अपनी बिरादरी के ही एक भाई के कृत्य के चलते पत्रकारिता कठघरे में खड़ी है। यह बदतमीजी और बेहूदगीवाला कदम समाज को उद्वेलित और उत्तेजित कर चुका है। क्या हमारे काबिल (?) पत्रकार दोस्त यह बतायेंगे कि इस आवारा लड़की की आवारगी को मंच देकर उन्होंने पत्रकारिता का क्या कल्याण किया?, या अपनी पत्रकारिता की भूमिका में क्या गौरव जोड़ लिया। उन्होंने ऐसा किया है जिससे आज पूरी पत्रकार बिरादरी शर्मसार और सन्न है कि इसकी क्या जरूरत थी। वह विवादास्पद फोटो नहीं छपाते तो समाचारपत्र का क्या बुरा हो जाता। जो तस्वीर छापी गयी उससे अगर कुछ है तो लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचने के अलावा और कुछ नहीं होता। ऐसा करके पत्रकार ने उस समाचारपत्र को ही मुसीबत में डाल दिया है जिसे लगातार दो दिन तक अपने पहले पृष्ठ पर पत्रकार की इस काली करतूत के लिए प्रमुखता से माफी मांगनी पड़ी है।
      पत्रकार की इस एक गलती ने कोलकाता महानगर के माहौल को इस कदर बिगाड़ दिया कि कई अंचलों में रास्ता, जाम व हिंसक प्रदर्शन तक हुए। कई जगह प्रदर्शनकारियों ने मीडियावालों से हाथापाई तक की। नौबत यहां तक आ गयी कि राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को समाज के सभी वर्गों से सामाजिक सौहार्द बनाये रखने की अपील करनी पड़ी। ऐसी ही अपील वाममोर्चा के अध्यक्ष विमान बोस को भी करनी पड़ी। अगर यह खबर पत्रकार ने इरादतन छापी हो तो उसकी बुद्धि पर तरस आता है। उसे अच्छी तरह से इस बात का एहसास रहा होगा कि इस तस्वीर का परिणाम अच्छा नहीं होगा, अगर यह  जानते हुए भी उसने इसे छापा तो इससे तो यही स्पष्ट होता है कि उसकी मंशा कुछ और थी। आज इसे लेकर जो भी प्रदर्शन हो रहे हैं वे समाज के लिए अच्छे नहीं हैं। ऐसे संवेदनशील मामलों में पत्रकारों को सावधान रहना चाहिए। कुछ भी छापने से पहले यह जरूर जांच लेना चाहिए कि इसका समाज या देश पर क्या असर पड़ेगा। आज जब देश भर में तरह-तरह की समस्याएं हैं उस समय कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए जो यहां के सामाजिक धार्मिक सौहार्द के ताने-बाने पर चोट करे।
      पिछले कुछ अरसे से समाचारपत्रों पर कई तरह के लांक्षन लगते रहे हैं। चाहे पेड न्यूज का मुद्दा हो या पत्रकारिता में क्षीण होते निष्पक्षता और शुचिता के गुण की। पत्रकारिता आज दिशाहीन सी हो गयी है। तात्कालिक लोकप्रियता पाने या पाठकों में सिहरन जगाने उन्हें उत्तेजित करने के लिए कुछ समाचारपत्र वह कर रहे हैं जो टुच्चई के अलावा और कुछ नहीं हो सकता। इस तरह के गिमिक का ही हिस्सा है कोलकाता के उस अंग्रेजी दैनिक में छपी मॉडल की मार्फिंग की गयी तस्वीर। जिससे लोगों को ठेस पहुंची है।  हमारा देश सर्व धर्म समभाव और विविधता में एकता का ऐसा उदाहरण है जो विश्व में अनोखा और अनुकरणीय है। इस तरह के कुकृत्य (विवादास्पद तस्वीर छापने का काम) हमारे देश के इस महान भाव को क्षतिग्रस्त करने का कार्य है जो निंदनीय है। सारी पत्रकार बिरादरी को इस तरह की करतूतों के खिलाफ खड़ा होना चाहिए क्योंकि यह उनका ही दामन दागदार करता है। विदेशों में हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरें चप्पलों, अंतरवस्त्रों में अपमानजनक ढंग से इस्तेमाल करने की कई घटनाएं हुई हैं जिसका जम कर विरोध भी हुआ। दूसरे धर्म के अनुयाइयों को ठेस पहुंचाने की घटनाएं भी होती रही हैं। विरोध इनका भी हुआ। कोलकाता के अंग्रेजी दैनिक ने जो फूहड़ तस्वीर छापी है, उससे बहुतों को दुख और आघात पहुंचा है। इसके खिलाफ विरोध भी प्रकट किया गया है। सदियों से ये यहां सभी वर्ग भाईचारे और प्रेम से रह रहे हैं जो हमारे लिए गर्व का विषय है। इसमें जो भी बाधा डालता है वह देश का शत्रु है, उससे सावधान रहने और उसका सामाजिक बहिष्कार करने की जरूरत है। समाचारपत्र को सोचना चाहिए कि आखिर ऐसी नौबत क्यों आयी। पत्रकारों को अपनी एक आचार संहिता बनानी चाहिए कि क्या छापना समाजिक या राष्ट्रीय हित में है और क्या नहीं। इस संहिता का पालन गंभीरता से होना चाहिए। समाचारपत्र का अपना आदर्श या सिद्धांत होता है। इसमें यह संभव नहीं कि जिसकी जो इच्छा वह छपवा ले।
      इस तरह के कृत्य यह दरशाते हैं कि या तो ऐसी तस्वीर छापने वाली की बुद्धि भ्रष्ट हो गयी है या फिर राज्य में अभी चल रहा शांति का वातावरण किसी की आंखों में खटक रहा है। वह चाहता है कि हंगामा हो, राज्य सरकार परेशान हो जो अभी वैसे ही कई तरह की परेशानियों से तबाह है जिनमें केंद्र से आर्थिक पैकेज का न मिलना भी शामिल है। यह भूल से भी हुआ हो तो भी निंदनीय है और अगर इरादतन किया गया हो तो अक्षम्य है। जिस मॉडल को इतना महत्व दिया जा रहा है उसकी औकात क्या है। वह एक बड़ी कंपनी के कैलेंडर में नंगी तस्वीर दे चुकी है और पिछले कुछ अरसे से नंगी होने को बेताब है। अपनी इस कुत्सित और दूषित भावना को वह कुछ इस तरह पेश कर रही है जैसे कोई देशहित और जनकल्याण का कार्य करना चाहती है।
      किसी ने यह स्वप्न में भी नहीं सोचा होगा कि एक मामूली मॉडल का फितूर किसी महानगर को हिला देगा। वहां रोज रास्ता जाम और प्रदर्शन शुरू हो जायेगा। अभी परीक्षाएं चल रही हैं और इस तरह के प्रदर्शनों और रास्ता जाम से परीक्षार्थियों को परेशानी हो रही है। उन्हें होनेवाली परेशानी की भरपाई कौन करेगा वह पत्रकार या फिर उसका संस्थान। अगर कुछ लोग इस तस्वीर के छापने में राजनीतिक कोण देखने लगे तो ताज्जुब नहीं क्योंकि इस तस्वीर को छापने का कोई प्रयोजन ही समझ नहीं आता। जो भी देखेगा वह यही समझेगा कि यह तस्वीर सिर्फ और सिर्फ धार्मिक भावनाओं को भड़काने के लिए ही छापी गयी है। यह अच्छा है कि समाचारपत्र की ओर से समय रहते ही माफी मांग ली गयी। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कहा कि-‘कुछ लोग राजनीतिक प्रभाव में आकर महानगर में समस्या पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। मेरी उनसे अपील है कि वे किसी के उकसावे में न आयें और महानगर में सामाजिक सौहार्द बनाये रखें।’ उन्होंने विपक्ष का नाम लिये बगैर कहा कि कुछ लोग आग में घी डालने का काम कर रहे हैं लेकिन उनकी यह कोशिश बरदाश्त नहीं की जायेगी।
      जिस मॉडल का यहां जिक्र हो रहा है, उसका नाम लिखना भी उसे वेवजह महत्व देना और अपनी ही लेखनी को गंदा करने के समान है। याद नहीं आता कि इसने कभी भी शालीनता या शुचिता की बात की हो। कुछ अरसे से इसे नंगी होने का शौक चर्राया है। एक बड़ी कंपनी की यह कैलेंडर गर्ल 2011 में उस वक्त से नंगी होने की बेचैनी का बोझ ढो रही है, जब भारत विश्वकप खेल रहा था, इसने कहा था कि अगर देश विश्वकप जीत जाता है, तो यह स्टेडियम में खुलेआम नंगी होकर अपनी क्रिकेट टीम को बधाई देगी। उसका दावा था कि ऐसा करने से क्रिकेटरों में और अच्छा खेलने का जज्बा जगेगा। इसके लिए उसने बाकायादा बीसीसीआई से अनुमति भी मांगी थी लेकिन यह देश के शालीन लोगों का सौभाग्य है कि इसे इस पागलपन और नंगई की अनुमति नहीं मिली। उसकी इस हरकत के खिलाफ याचिका भी दायर की गयी थी। उसके बाद से यह अपने टि्वटर एकाउंट में अपनी नग्न तस्वीरें और वीडियो नियमित डाल रही है। पता नहीं इससे वह क्या हासिल करना चाहती है। संभव है कि किसी खास वर्ग को इसमें मनोरंजन और उत्तेजना के तत्व मिलते हों लेकिन सुधी, शालीन लोगों को इस तरह की नंगई से वितृष्णा ही होती होगी। हमारा देश अभी पश्चिमी भोग-लिप्सा के गर्त में पूरी तरह से नहीं डूबा यह हमारा सौभाग्य है। क्योंकि जिस दिन इस तरह की मॉडलों के कहे-किये को सम्मान मिलने लगेगा, वह दिन भारतीय संस्कृति के पतन और सात्विकता के विनाश का क्षण होगा।
      इस मॉडल की नंगी होने की अकुलाहट कई रंग खिला रही है। यह कुछ इस कदर जाहिर कर रही है वह कोई बड़े पुण्य का कार्य करने जा रही हो। अब इसका यह फितूर ट्वीट में उस विवादास्पद तस्वीर के रूप में सामने आया है जिसे लेकर खूब हंगामा हो रहा है। ऐसी मॉडलों को इस तरह महत्व देना और समाचारपत्र में उनकी दूषित भावनाओं को प्रकाशित करना और कुछ भी हो पत्रकारिता तो नहीं ही है। पत्रकारों को ऐसे किसी भी काम से बचना चाहिए जो उनके पेशे को कलुषित करे, समाज का अहित करे। उन्हें कुछ भी छापने से पहले उसके अच्छे-बुरे का आकलन कर लेना चाहिए यही वक्त की मांग है, यही पत्रकारिता के पेशे का सिद्धांत है।

 


 

1 comment:

  1. poonam pande ka ilaj kiya jana chahiye .....mujhe lagta hai ki vo mansik roop se aswasth hai .sateek prastuti . aabhar ye hai mission london olympic-support this ...like this page

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