साहित्य, समसामयिक, सामाजिक सरोकार
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Wednesday, August 15, 2012
माना कि भूख है, जिल्लत भरी है जिंदगी.
शासन के रोम-रोम में भर चुकी है गंदगी।
सच्चाई हाशिए में खड़ी, अब झूठ-राज है,
हुक्मरानों के यहां अब बदले मिजाज हैं।
पर ये क्या कम है हम तो आजाद हैं,
इस दिन की आपको मुबारकबाद है।।
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