सर्पीली घाटियों के सफर का रोमांच और प्राकृतिक सुषमा का सुख
राजेश त्रिपाठी
कटरा में मां वैष्णव देवी के दर्शन करने के पश्चात हमारा गंतव्य था भूस्वर्ग कश्मीर का श्रीनगर। हम जिस दल के साथ इस टूर पर गये थे, उसने तय किया कि कटरा से आगे के सफर के लिए एक बड़ी बस कर ली जाये, उसी में हमारे दल के 38 लोग समा पायेंगे। यह बस पूरी कश्मीर यात्रा में हमारे साथ रहनी थी। बस की गयी उसके ड्राइवर एक यंगमैन गोरे-चिट्टे खूबसूरत थे और वैसा ही था उनका सहायक जो लबादा जैसा लंबा कश्मीरी फरेन पहने हुए था। इनके साथ हमारा बस का सफर शुरू हुआ। कुछ दूर तक तो समतल सड़क मिली फिर शुरू हुआ सर्पीली घाटियों के बीच पहाड़ी सड़क का रोमांच भरा सफर। हजारों फुट की ऊंचाई पर टेढी़-मेढ़ी घुमावदार सड़क पर चलती हमारी बस। नीचे घाटी की ओर नजर डालें तो कलेजा मुंह को आता। उतनी ऊंचाई से कहीं बस फिसली तो सभी के पल भर में इतिहास बनने में देर न लगे। सड़क कहीं-कहीं इतनी पतली की उसके पहिए के बाद बस कुछ इंच धरती ही बचती थी और कहीं वह भी भुरभुरी हो गयी हो फसक जाये तो फिर पल भर में सबका जय गोविंद हो जाये। भगवान पर भरोसा था और उस नवजवान ड्राइवर पर भी जिसके हाथों में अब से एक सप्ताह तक के लिए हमारी जिंदगी सौंप दी गयी थी। उसकी एक पल की गलती हमारे लिए बहुत बड़े संकट का कारण बन सकती थी ।टेढ़ी-मेढ़ी सर्पीली सड़क कटरा से कुछ आगे बढ़ते ही शुरू हो गयी थी। कुछ और आगे बढ़ने पर मिलिट्री कालोनी सैपर्स इन्क्लैव मिली। उससे कुछ और आगे बढ़ने पर एक भवन मिला जिस पर लिखा था-कंट्री फर्स्ट-यानी सबसे पहले देष। यह भी सैनिक प्रतिष्ठान ही था। इसी में आगे चल कर श्रद्धांजलि पार्क है जो सेना के वीर शहीदों की याद में बनाया गया है। इसमें लिखा है-ये दिल मांगे मोर। यानी देश पर मर मिटने का अदम्य जज्बा। बीआरओ (बार्डर रोड आर्गनाइजेशन) सीमा सड़क संगठन के साहसी और निष्ठावान इंजीनियरों व श्रमिकों की ओर से खून-पसीना एक कर पहाड़ों का सीना चीर कर बनायी गयी सड़कें दुर्गम पहाड़ी पथ पर चलनेवालों के लिए वरदान है। ये हैं तो खतरनाक लेकिन कल्पना कीजिए कि अगर ये न होतीं तो श्रीनगर जैसी जगहों पर जाना भी मुमकिन न हो पाता। इन सड़कों पर जगह-जगह पर खतरे के लिए निर्देश भी लिखे गये हैं। हम जिस पर चल रहे थे वह कटरा से श्रीनगर की ओर जानेवाला राष्ट्रीय राजमार्ग 1 एएच था। इस पर बीआरओ की ओर से लिखे कुछ नारों की बानगी देखें- आफ्टर ह्विस्की, ड्राइविंग रिस्की। ड्राइव स्लो, इट्स हाईवे नाट रन वे। स्पीड थ्रिल्स बट इट किल्स।
ब्लागर राजेश त्रिपाठी की गोद में नाती देवांश |
खतरनाक सर्पीली सड़कों से होते हुए , प्राकृतिक सुषमा को जी भर कर निहारते हुए हम रात को श्रीनगर पहुंचे। श्रीनगर शहर में बस के प्रवेश करते ही इस टूर की श्रीनगर में कोआर्डिनेटर एक महिला बस में सवार हो गयीं और वे ही हमारी बस को निर्देश देते हुए डल लेक के डल गेट की ओर ले गयीं जहां हम लोगों को पास-पास बने दो छोटे होटलों में ठहराया गया। लगता ऐसा था जैसे ये डल के ही एक हिस्से को पाट कर बने हों। उन तक पहुंचने के लिए काठ के पटरों से बनाया पुल था जिसके नीचे डल का पानी बहता था। डल लेक का एक कोना वहां से दिख रहा था और उस पर बने हाउसवोट की बत्तियां टिमटिमा रही थीं। हाड़ कंपा देनेवाली ठंड यह एहसास कराने लगी थी कि हम कश्मीर में हैं जहां चारों ओर बर्फीले ग्लैशियर और अपार जलराशि का भंडार है। हमने जल्द विश्राम करने की सोची क्योंकि अगली सुबह से शुरू होनी थी श्रीनगर के आसपास के दर्शनीय स्थलों की यात्रा।
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