राजेश त्रिपाठी
सुनहरी खिली धूप में सोनमर्ग में
स्लेज की सैर और राह में सिंधु नदी के दर्शन की यादें अभी ताजा ही थी कि गुलमर्ग
का कार्यक्रम बन गया। गुलमर्ग के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था। जैसे वहां बहुत ही
अच्छा गोल्फ का मैदान है, बर्फ से ढंकी पहाड़ियों का विहंगम दृश्य दिखाने वाला
गोंडोला या रोप वे है। वहां लोग ट्रेकिं और घुड़सवारी करते हैं। कश्मीर का कण-कण
आपको करिशमाई और कुतूहल भरा लगेगा। जिधर निकल जाइए बांहें फैलाये प्राकृतिक सुषमा
अपने पूरे नूर के साथ आपका स्वागत करने को बेताब दिखेगी। बस आपमें पहाड़ी रास्तों
का सफर झेल लेने की हिम्मत भर होनी चाहिए। हमारी बस पहले तो कुछ दूर तक समतल में
चली और जैसे ही वह गुलमर्ग वाले पहाड़ी रास्ते पर चढ़ने लगी इस बात का एहसास होने
लगा कि कितनी कठिन और खतरनाक चढ़ाई है यह। बीच-बीच में इंजन को इतना जोर लगाना
पड़ता कि वह बेचारा भी गों-गों करने लगता।
हम सबका
गंतव्य था भूतल से 2653 मीटर ऊंचा गुलमर्ग। गुल यानी फूल और मर्ग यानी रास्ता। तो
फूलों के इस रास्ते की सैर कितनी कठिन है इसका एहसास सबसे अधिक हमें तब हुआ जब हम
चोटी के करीब पहुंचने को आये। सामने एक चौकी थी जिसमें कुछ सुरक्षाकर्मी तैनात थे।
उन्होंने बस को रोक दिया था और कुछ पूचताछ कर रहे थे तभी पत्नी ने कहा-'सांस लेने
में कुछ दिक्कत हो रही है। अजीब सा दबाव लग रहा है।' मैंने कहा-' सांस लेने में
तकलीफ तो मुझे भी हो रही है लेकिन मैंने समझा शायद मेरी तबीयत कुछ गड़बड़ चल रही
है इसलिए ऐसा हुआ होगा।'
गुलमर्ग
के बारे में पता चला कि इसकी खोज 15वीं शताब्दी में एक कश्मीरी शासक यूसुफ शाह चक
ने की थी। इसका नाम पहले गौरीमार्ग था जो शिव की पत्नी गौरी पर रखा गया था। बाद
में मुगल शासकों ने इसका नाम गुलमर्ग रख दिया। अस तक पहुंचने के 11 किलोमीटर लंबे
रास्ते में पाइन और फर के पेड़ों की कतारें हैं। और इस लंबे रास्ते से गुजरते हुए
आपको कश्मीर घाटी की पूरी सुषमा के साथ ही नागा पर्वत, हरमुख और अन्य स्थल देखने
को मिलते हैं।
खैर
हमारी बस पहाड़ी की चोटी पर स्थित गुलमर्ग पर पहुंच गयी। दुर्भाग्य यह कि रास्ते
में जो बारिश शुरू हुई थी वह चोटी तक आते-आते और जोरदार हो गयी। हम बस से उतर कर
एक रेस्तरां में मन मार कर बैठ गये और ठिठुरन वाली ठंड में चाय कि चुस्कियां लेने
और मन मसोसने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते थे। जहां तक नजर जाती दूर-दूर तक बर्फ
से ठंकी पहाड़ियां। पहाड़ियों का जो हिस्सा खाली था वह भी बारिश से तुरत-तुरत बनने
वाले बर्फ से ढंक गया। इसके बाद हमारे सामने पहाड़ी चोटियों के नाम पर बर्फ की एक
सफेद चादर सी बिछी नजर आने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने पूरे पहाड़ को नरम रुई
से ढंक दिया है। बारिश इतनी तेज थी कि गोंडोला (रोप वे) भी बंद कर दिया गया था।
गोंडोला की सैर का बड़ा मन था क्योंकि उससे आप इस सुरम्य स्थल का विहंगम दृश्य देख
सकते हैं जो पैदल चल कर संभव नहीं। गोल्फ कोर्स को भी पानी और बर्फ की पतली चादर
ढंक चुकी थी।
गुलमर्ग का शिवमंदिर |
अपने राजमहल में दिन बिता रहे थे, तो रानी महल से कुछ किलोमीटर दूर इस मंदिर में आतीं और शिव की पूजा किया करती थीं। इस मंदिर में सुबप 6 बजे और रात को 9 बजे आरती होती है। 1998 में बारामुला के डागर डिवीजन हेडक्वार्टर की ओर से इसका नवीकरण कराया गया और अभी इसका प्रबंध जम्मू कश्मीर धर्मार्थ ट्र्स्ट देखता है जिसके प्रमुख महाराजा हरि सिंह के पुत्र कर्ण सिंह हैं।
मंदिर
में दर्शन करते वक्त पता चला कि फिल्म 'आपकी कसम' का लोकप्रिय गीत 'जय जय शिवशंकर,
कांटा लगे न कंकर' इसी मंदिर के इर्द-गिर्द फिल्माया गया था। कश्मीर में एक बात
देखी कि जहां कहीं भी किसी फिल्म की शूटिंग हुई है, उस जगह का जिक्र लोग अवश्य
करते हैं। कई ऐसी जगहों को तो जैसे टूरिस्ट स्पाट ही बना दिया गया है।
खैर
बारिश को न रुकना था न वह रुकी और हमारा गुलमर्ग का सफर अधूरा रह गया। गोंडोला
बर्फबारी के चलते बंद था, गोल्फ कोर्स तक जाना मुश्किल था क्योंकि राह फिसलनभरी थी
और वहां भी पानी भर गया था। खैर बादलों को पहाड़ों की चोटियां चूमते देख कर, बरसते
पानी का संग-संग बरफ बन कर पहाड़ियों में जमने का मनोरम दृश्य देख कर ही हमारा मन
भर गया था। हम लोग वहां से वापस श्रीनगर की ओर लौट पड़े़।
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