राजेश त्रिपाठी
जाने कैसा ये दौरे सियासत है।
हर शख्स दर्द की इबारत है।।
हर सिम्त घात में हैं राहजन।
या खुदा ये कैसी आफत है।।
अब कौन करे भला जिक्रे महबूब।
मुश्किलों की ही जब इनायत है।
किस तरह बचाये कोई खुद को।
राह में जब बिछी अलामत है।।
महफूज रखे है तो मां की दुआ।
वरना लम्हा-लम्हा एक सामत है।।
लग गयी मुल्क को किसकी नजर।
न चैन है न खुशी न कहीं राहत है।।
या खुदा अब कोई तो राह पैदा कर।
यहां सियासत भी अब तिजारत है।।
आज का युवा,जो सबसे अधिक भ्रमित है ,जीवन का सही उद्देश्य चुन ले कमर कस ले - तो दिन बहुरते देर नहीं लगेगी
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