राजेश त्रिपाठी
हर तरफ मायूसी है
तारी, ये हाहाकार क्यों है।
क्या हुआ आदमी आदमी से बेजार क्यों है।।
हर दिल में फरेब है, बदला व्यवहार क्यों हैं।
प्यार भी आज का बन गया व्यापार क्यों है।।
कोई खा-खा के मर रहा कोई फांके कर रहा।
क्या यही गांधी के
सपनों का हिंदुस्तान है।
हर ओर धुआं उठ रहा, घर में बागी पल रहे।
हर तरफ मतलबपरस्ती, बिक गया ईमान है।।
मुल्क के जो रहनुमा हैं, हमारे हुक्मरान हैं।
उनके लिए तो चारागाह सारा हिंदु्स्तान है।।
जो जहां चाहता है, पेट भर वह चर रहा।
मुफलिसी से जबकि पिस रहा इनसान है।।
आप गर बेहतरी का ख्वाब पाले हैं कोई।
तो यही कहेंगे, आप बेहद बदगुमान हैं।।
ये वो बादल हैं जो गरजते हैं बरसते नहीं।
बेच कर ये खा गये अपना सभी ईमान हैं।।
कोई सुभाष, कोई पटेल न कोई गांधी आयेगा।
अब तो भारत का कोई लाल ही इसे बचायेगा।।
जो जहां है बस वहीं से छेड़ दीजिए सत्याग्रह।
आपके प्यारे मुल्क को आपका इंतजार है।
नाउम्मीदी से ही राहे उम्मीद नजर आयेगी।
एक न एक दिन बदली दुख की हट जायेगी।।
फिर होगा हमारा मुल्क सारे जहां से अच्छा।
जिससे हम करते दिलों जां से ज्यादा प्यार है।।
सुन्दर....
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति .; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ
ReplyDeleteकभी इधर भी पधारिये ,